28-11-2021, 09:04 AM
रीत की रीत
बाद में तो बहुत कुछ पता चला मेरी एक भाभी हैं बनारस की वहीँ सिगरा की, दुबे भाभी उनकी बड़ी बहन सी थीं और वो दूबे भाभी रीत की,... लेकिन अब बात को शार्ट करती हैं बस ये समझ लीजिये बनारस के रिश्ते से मैं उसकी छोटी बहन हो गयी थी और ये बस बिना गाली वो भी असली गन्दी वाली गाली के इनसे बात नहीं करती थी, ... भले ही छोटे सही, लगे तो उसके जिज्जा ही, ...
लेकिन असली बात थी उसकी दिमाग की, लोग कहते हैं की चाचा चौधरी का दिमाग कम्यूटर से भी तेज चलता है,
और रीत का हर जानने वाला कहता है , की रीत का दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, ...
साइबर सिक्योरटी, हैकिंग, ब्लैक हैट व्हाइट हैट से बहुत ऊपर, वो कहती थी साइबर वर्ड की मैं अघोरी हूँ, ... और सच में उसका नाम लेते ही,...
मैं भी न कहाँ,... बात कहाँ की कहाँ पहुँच जाती है,...
तो ये घण्टियाँ रीत का सिग्नेचर ट्यून थीं , और उससे बात करने के लिए मुझे वीपीन, डार्क वेब और ढेर सारी बातें इस्तेमाल करनी पड़ती थीं तो सब से पहले मैंने वर्चुअल की बोर्ड खोला, वरना सबसे पहले फिंगर प्रिंट्स तो की बोर्ड के ही हो जाते हैं,... और ये वर्चुअल की बोर्ड भी एक क्लाउड सर्वर पर आपरेट होता था , यानी डिवाइस को आप लाख उलट पलट लें न तो भी कुछ पता नहीं चलने वाला, उसके बाद बायोमेट्रिक्स और प्रेशर पेड यानी एक किसी ऊँगली का प्रेशर बाकी से कम ज्यादा होने पर अंदाज लगा जाता था की आप अपनी मर्जी से नहीं खोल रहे हो बस , ताला बंद तो बंद.
और डार्क वेब का दरवाजा खुलने पर भी उसने अच्छे खासे तगड़े पहरेदार बैठा रखे थे,... लेकिन जिसे रास्ता पता हो,... साढ़े चार मिनट बाद उसकी आवाज सुनाई पड़ी,
जैसा की परंपरा है , पहले उसने इनको दस गालियां सुनाई और मुझे दस नुस्खे बताये की ससुराल में इनके साथ क्या सलूक किया जाय, असली बात ये थी उसे मालूम था की हम लोग एक दिन बनारस भी जाएंगे और दूबे भाभी से भी मिलेंगे। बस उसने ये बोला की हम लोग दूबे भाभी के यहाँ ज्यादा समय गुजारें, उन्हें रीत के बारे में बस इतना बताएं की वो ठीक है, खुश है और तगड़ी है. और उस से भी बढ़ कर उस के बारे में दूबे भाभी से, उस के बनारस के समय के बारे में ज्यादा न पूछें।
थोड़ी देर हम चुप बैठे रहे, मैं रीत से कभी मिली नहीं थी, लेकिन लगता था हम लोग कितने जन्मों की सहेली हैं,
फिर वो चालू हो गयी, वो पेपर पढ़ा.
अच्छी बच्ची की तरह मैं बोली, हाँ वही पढ़ रह थी।
फोन उसने उसके लिए भी किया था लेकिन मैंने एक सवाल कर दिया , और उस का जवाब उसने खिलखिलाते हुए दिया ,
मैंने अपनी तेरी ननदों के लिए जो खेल खिलौने भेजे थे वो ज़रा ले आओ.
( जब ये एम्स्टर्डम गए थे तो वहां ढेर सारे सेक्स ट्वायज ले आये थे)
डबल डिल्डो, सुपर डिल्डो १२ इंच का, कई साइज के स्ट्रैप आन डिल्डो,..
बाद में तो बहुत कुछ पता चला मेरी एक भाभी हैं बनारस की वहीँ सिगरा की, दुबे भाभी उनकी बड़ी बहन सी थीं और वो दूबे भाभी रीत की,... लेकिन अब बात को शार्ट करती हैं बस ये समझ लीजिये बनारस के रिश्ते से मैं उसकी छोटी बहन हो गयी थी और ये बस बिना गाली वो भी असली गन्दी वाली गाली के इनसे बात नहीं करती थी, ... भले ही छोटे सही, लगे तो उसके जिज्जा ही, ...
लेकिन असली बात थी उसकी दिमाग की, लोग कहते हैं की चाचा चौधरी का दिमाग कम्यूटर से भी तेज चलता है,
और रीत का हर जानने वाला कहता है , की रीत का दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, ...
साइबर सिक्योरटी, हैकिंग, ब्लैक हैट व्हाइट हैट से बहुत ऊपर, वो कहती थी साइबर वर्ड की मैं अघोरी हूँ, ... और सच में उसका नाम लेते ही,...
मैं भी न कहाँ,... बात कहाँ की कहाँ पहुँच जाती है,...
तो ये घण्टियाँ रीत का सिग्नेचर ट्यून थीं , और उससे बात करने के लिए मुझे वीपीन, डार्क वेब और ढेर सारी बातें इस्तेमाल करनी पड़ती थीं तो सब से पहले मैंने वर्चुअल की बोर्ड खोला, वरना सबसे पहले फिंगर प्रिंट्स तो की बोर्ड के ही हो जाते हैं,... और ये वर्चुअल की बोर्ड भी एक क्लाउड सर्वर पर आपरेट होता था , यानी डिवाइस को आप लाख उलट पलट लें न तो भी कुछ पता नहीं चलने वाला, उसके बाद बायोमेट्रिक्स और प्रेशर पेड यानी एक किसी ऊँगली का प्रेशर बाकी से कम ज्यादा होने पर अंदाज लगा जाता था की आप अपनी मर्जी से नहीं खोल रहे हो बस , ताला बंद तो बंद.
और डार्क वेब का दरवाजा खुलने पर भी उसने अच्छे खासे तगड़े पहरेदार बैठा रखे थे,... लेकिन जिसे रास्ता पता हो,... साढ़े चार मिनट बाद उसकी आवाज सुनाई पड़ी,
जैसा की परंपरा है , पहले उसने इनको दस गालियां सुनाई और मुझे दस नुस्खे बताये की ससुराल में इनके साथ क्या सलूक किया जाय, असली बात ये थी उसे मालूम था की हम लोग एक दिन बनारस भी जाएंगे और दूबे भाभी से भी मिलेंगे। बस उसने ये बोला की हम लोग दूबे भाभी के यहाँ ज्यादा समय गुजारें, उन्हें रीत के बारे में बस इतना बताएं की वो ठीक है, खुश है और तगड़ी है. और उस से भी बढ़ कर उस के बारे में दूबे भाभी से, उस के बनारस के समय के बारे में ज्यादा न पूछें।
थोड़ी देर हम चुप बैठे रहे, मैं रीत से कभी मिली नहीं थी, लेकिन लगता था हम लोग कितने जन्मों की सहेली हैं,
फिर वो चालू हो गयी, वो पेपर पढ़ा.
अच्छी बच्ची की तरह मैं बोली, हाँ वही पढ़ रह थी।
फोन उसने उसके लिए भी किया था लेकिन मैंने एक सवाल कर दिया , और उस का जवाब उसने खिलखिलाते हुए दिया ,
मैंने अपनी तेरी ननदों के लिए जो खेल खिलौने भेजे थे वो ज़रा ले आओ.
( जब ये एम्स्टर्डम गए थे तो वहां ढेर सारे सेक्स ट्वायज ले आये थे)
डबल डिल्डो, सुपर डिल्डो १२ इंच का, कई साइज के स्ट्रैप आन डिल्डो,..