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Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#44
प्रकाश को मन में एक नश्तर-सा चुभता महसूस हुआ। मगर जल्दी ही उसने अपने को सँभाल लिया। “आप लोग आज ही जा रहे हैं?” उसने चेष्टा की कि शब्दों से उसके मन का भाव प्रकट न हो।

“जी हाँ,” बीना दूसरी तरफ़ देखती रही, “जाना तो सुबह ही था, मगर इसके हठ की वजह से इतनी देर हो गयी। अब भी यह...।” और बात बीच में ही छोडक़र उसने बच्चे से फिर कहा, “चल, तुझे ज़ीने तक पहुँचा दूँ।”

बच्चा प्रकाश के हाथ से बाँह छुड़ाकर कुछ दूर भाग गया। “मैं नहीं जाऊँगा,” उसने कहा।

“अच्छा आ,” बीना बोली, “मैं तुझे ऊपर पहुँचा देती हूँ—उस दिन की तरह।”

“मैं नहीं जाऊँगा,” और बच्चा कुछ क़दम और दूर चला गया।

“आप आप क्यों नहीं जातीं? यह इस तरह अपना हठ नहीं छोड़ेगा,” प्रकाश ने होंठ काटते हुए कहा। बीना ने आँख झपकने तक उसकी तरफ़ देख लिया। उस दृष्टि में एक तीखा चुभता-सा भाव था। मगर आँख झपकने के साथ ही वह भाव धुल गया और उसने अपने को सहेज लिया। उसके चेहरे पर एक दृढ़ता आ गयी और उसने बच्चे को बाँहों में उठा लिया। “चल, मैं तेरे साथ चलती हूँ,” उसने कहा।

बच्चे का रुआँसा भाव हँसी में बदल गया और उसने माँ के गले में बाँहें डाल दीं। प्रकाश उनसे आगे-आगे ज़ीना चढऩे लगा।

ऊपर पहुँचकर बीना ने बच्चे को बाँहों से उतार दिया और कहा, “ले अब मैं जा रही हूँ।”

“नहीं,” बच्चे ने उसका हाथ पकड़ लिया, “तुम यहीं रहो।”

“बैठ जाइए न,” प्रकाश ने कुर्सी पर पड़ी दो-एक चीज़ें जल्दी से हटा दीं और कुर्सी बीना की तरफ़ बढ़ा दी। बीना कुर्सी पर न बैठकर चारपाई के कोने पर बैठ गयी। तभी बच्चे का ध्यान न जाने किस चीज़ ने खींच लिया। वह उन दोनों को छोडक़र बालकनी में चला गया और वहाँ से उचककर सडक़ की तरफ़ देखने लगा।

प्रकाश कुर्सी की पीठ पर हाथ रखे जैसे खड़ा था, वैसे ही खड़ा रहा। बीना चारपाई के कोने में और भी सिमटकर दीवार की तरफ़ देखने लगी। असावधानी के एक क्षण में उनकी आँखें मिल गयीं, तो बीना ने अपनी पूरी शक्ति संचित करके पूछ लिया, “कल इसकी जेब में कुछ रुपये मिले थे। वे आपने रखे थे?”

“हाँ,” प्रकाश ने अटकते स्वर से कहा, “सोचा था, उनसे यह...कोई चीज़ बनवा लेगा।”

बीना पल-भर चुप रही। फिर बोली, “क्या चीज़ बनवानी होगी?”

“कोई भी चीज़। कोई अच्छा-सा ओवरकोट या...।”

कुछ देर फिर चुप्पी रही। फिर बीना ने पूछ लिया, “कैसा कोट बनवाना होगा?”

“कैसा भी। जैसा इसे अच्छा लगे, या...या जैसा आप ठीक समझें।”

“कोई खास तरह का कपड़ा लेना हो, तो बता दीजिए।”

“खास कपड़ा कोई नहीं...कैसा भी हो।”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 09:14 PM



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