29-04-2019, 09:14 PM
वह बार-बार बालकनी पर जाता—एक धडक़ती आशा लिये। बार-बार टूरिस्ट होटल की सडक़ पर नज़र दौड़ाता और पहले से अधिक अस्थिर होकर कमरे में लौट आता। उसकी धमनियों में लहू की हर बूँद उत्कंठित और व्याकुल थी। उसने सुबह से कुछ खाया नहीं था, इसलिए भूख भी उसे परेशान कर रही थी। कुछ देर बाद कमरा बन्द करके वह खाना खाने चला गया। बड़े-बड़े कौर निगलकर किसी तरह दो रोटियाँ गले से उतारीं और जल्दी से वापस चला आया। मगर उतनी देर भी कमरे से बाहर रहना उसे एक अपराध-सा लग रहा था। लौटते हुए उसने सोचा कि उसे खुद जाकर टूरिस्ट होटल से पता कर लेना चाहिए। मगर सडक़ की चढ़ाई चढ़ते हुए उसने दूर से देखा—बीना बच्चे के साथ उसकी बलकनी के नीचे सडक़ पर खड़ी थी।
वह तेज़-तेज़ चलकर उनके पास पहुँच गया। मगर बच्चे ने उसकी तरफ़ नहीं देखा। वह अपनी माँ का हाथ खींचता हुआ किसी चीज़ के लिए हठ कर रहा था। प्रकाश ने उसकी बाँह हाथ में ली, तो वह बाँह छुड़ाने के लिए ज़मीन पर लोटने लगा। “मैं तुम्हारे घर नहीं जाऊँगा,” उसने लगभग चीखकर कहा। प्रकाश अचकचा गया और उसकी बाँह छोडक़र जड़-सा खड़ा रहा।
“मुझसे नाराज़ है क्या?” उसने बिना दोनों में से किसी की तरफ़ देखे पूछ लिया।
“ममी, मेरे साथ ऊपर क्यों नहीं चलती?” बच्चा उसी तरह चिल्लाया।
प्रकाश और बीना की आँखें मिलने को हुईं, मगर पूरी तरह नहीं मिल पायीं। प्रकाश ने बच्चे की बाँह फिर हाथ में ले ली और तटस्थ स्वर में बीना से कहा, “आप भी आ जाइए न!”
“इसे आज जाने क्या हुआ!” बीना कुछ झुँझलाहट के साथ बोली, “सुबह से बात-बात पर तंग कर रहा है!”
“इस वक़्त यह अकेला मेरे साथ ऊपर नहीं जाएगा,” प्रकाश ने स्वर की तटस्थता अब भी बनाए रखी।
“चल, मैं तुझे ज़ीने तक पहुँचा देती हूँ,” बीना उसे उत्तर न देकर बच्चे से बोली, “ऊपर से जल्दी लौट आना। घोड़े वाले उधर तैयार खड़े हैं।”
वह तेज़-तेज़ चलकर उनके पास पहुँच गया। मगर बच्चे ने उसकी तरफ़ नहीं देखा। वह अपनी माँ का हाथ खींचता हुआ किसी चीज़ के लिए हठ कर रहा था। प्रकाश ने उसकी बाँह हाथ में ली, तो वह बाँह छुड़ाने के लिए ज़मीन पर लोटने लगा। “मैं तुम्हारे घर नहीं जाऊँगा,” उसने लगभग चीखकर कहा। प्रकाश अचकचा गया और उसकी बाँह छोडक़र जड़-सा खड़ा रहा।
“मुझसे नाराज़ है क्या?” उसने बिना दोनों में से किसी की तरफ़ देखे पूछ लिया।
“ममी, मेरे साथ ऊपर क्यों नहीं चलती?” बच्चा उसी तरह चिल्लाया।
प्रकाश और बीना की आँखें मिलने को हुईं, मगर पूरी तरह नहीं मिल पायीं। प्रकाश ने बच्चे की बाँह फिर हाथ में ले ली और तटस्थ स्वर में बीना से कहा, “आप भी आ जाइए न!”
“इसे आज जाने क्या हुआ!” बीना कुछ झुँझलाहट के साथ बोली, “सुबह से बात-बात पर तंग कर रहा है!”
“इस वक़्त यह अकेला मेरे साथ ऊपर नहीं जाएगा,” प्रकाश ने स्वर की तटस्थता अब भी बनाए रखी।
“चल, मैं तुझे ज़ीने तक पहुँचा देती हूँ,” बीना उसे उत्तर न देकर बच्चे से बोली, “ऊपर से जल्दी लौट आना। घोड़े वाले उधर तैयार खड़े हैं।”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.