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Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#42
“दो दिन से बिलकुल साफ़ बोल रहा है,” बीना के साथ की युवा स्त्री ने कहा, “कहता है पापा ने कहा है तू बड़ा हो गया है, इसलिए अब तुतलाकर मत बोला कर।”

प्रकाश कुछ न कहकर तस्वीरें देखता रहा। फिर दस का एक नोट निकालकर फोटोग्राफर को देते हुए कहा, “इसमें से आप अपने पैसे काट लीजिए!”

फोटोग्राफर पल-भर असमंजस में उसे देखता रहा। फिर बोला, “पैसे तो अभी आप ही के मेरी तरफ़ निकलते हैं। मेम साहब ने जो बीस रुपये दिये थे, उनमें से दो-एक रुपये अभी बचते होंगे। कहें तो अभी हिसाब कर दूँ।”

“नहीं, रहने दीजिए हिसाब बाद में हो जाएगा,” कहकर प्रकाश ने नोट वापस जेब में रख लिया और बच्चे की उँगली पकड़े दुकान से बाहर निकल आया। कुछ क़दम चलने पर पीछे से बीना का स्वर सुनाई दिया, “यह आपके साथ घूमने जा रहा है?”

“हाँ!” प्रकाश ने थोड़ा चौंककर पीछे देख लिया, “मैं अभी थोड़ी देर में इसे वापस छोड़ जाऊँगा।”

“देखिए, आपसे एक बात कहनी थी...।”

“कहिए...।”

बीना पल-भर कुछ सोचती हुई चुप रही। फिर बोली, “इसे ऐसी कोई बात मत बताइएगा जिससे यह...।”

प्रकाश को लगा जैसे कोई ठंडी चीज़ उसके स्नायुओं से छूट गयी हो। उसकी आँखें झुक गयीं और उसने धीरे-से कहा, “नहीं, मैं ऐसी कोई बात इससे नहीं कहूँगा।” उसे खेद हुआ कि एक दिन पहले जब बच्चा हठ करके कह रहा था कि ‘पापा’ और ‘पिताजी’ एक ही व्यक्ति को नहीं कहते—‘पापा’ को पापा कहते हैं और ‘पिताजी’ ममी के पापा को—तो वह क्यों उसकी ग़लतफ़हमी दूर करने की कोशिश करता रहा था।

वह अकेला बच्चों के साथ क्लब की सडक़ पर चलने लगा, तो कुछ दूर जाकर बच्चा सहसा रुक गया। “हम कहाँ जा रहे हैं, पापा?” उसने पूछा।

“पहले क्लब चल रहे हैं,” उसने कहा, “वहाँ से घोड़ा लेकर आगे घूमने जाएँगे।”

“नहीं, मैं वहाँ उस आदमी के पास नहीं जाऊँगा,” कहकर बच्चा सहसा पीछे की तरफ़ चल दिया।

“किस आदमी के पास?”

“वह जो वहाँ क्लब में था। मैं उसके हाथ से पानी भी नहीं पिऊँगा।”

“क्यों?”

“मुझे वह आदमी अच्छा नहीं लगता।”

प्रकाश पल-भर बच्चे को देखता रहा, फिर उसकी तरफ़ मुड़ आया। “हाँ, हम उस आदमी के पास नहीं चलेंगे,” उसने कहा, “मुझे भी वह आदमी अच्छा नहीं लगता।”

बहुत दिनों के बाद उस रात प्रकाश को गहरी नींद आयी। ऐसी नींद, जिसमें सपने दिखाई न दें, उसके लिए लगभग भूली हुई चीज़ हो चुकी थी। फिर भी जागने पर उसे अपने में ताज़गी का अनुभव नहीं हुआ, अनुभव हुआ एक खालीपन का। जैसे कोई चीज़ उसके अन्दर उफनती रही हो, जो गहरी नींद सो लेने से चुक गयी हो। रोज़ की तरह उठकर वह बालकनी पर गया। देखा आकाश साफ़ है। रात को सोया था, तो बारिश हो रही थी। मगर उस धुले-निखरे आकाश को देखकर आभास तक नहीं होता था कि कभी वहाँ बादल भी घिरे रहते थे। सामने की पहाडिय़ाँ सुबह की धूप में धुलकर उजली हो उठी थीं।

प्रकाश काफ़ी देर वहाँ खड़ा रहा—अपनी ताज़गी में एक जड़ता का अनुभव करता हुआ। फिर दूर उठते बादल की तरह कोई चीज़ उसे अपने में उमड़ती महसूस होने लगी और उसका मन एक दबी-सी आशंका से सिहर गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि...?

वह बालकनी से हट आया। पिछली शाम बच्चे ने उसे बताया था। उसकी ममी कह रही थी कि दिन साफ़ हुआ, तो वे लोग सुबह वहाँ से चले जाएँगे। रात को जैसी बारिश हो रही थी, उससे सुबह तक आसमान खुलने की कोई सम्भावना नहीं लगती थी। इसलिए सोते वक़्त वह इस तरफ़ से लगभग निश्चिन्त था। मगर रात-रात में आसमान का रूप बिलकुल बदल गया था। तो क्या सचमुच आज वे लोग वहाँ से चले जाएँगे?

उसने कमरे में बिखरे सामान को देखा—कुछ इनी-गिनी चीज़ें थीं। चाहा कि उन्हें सहेज दे, मगर किसी भी चीज़ को रखने-उठाने को मन नहीं हुआ। बिस्तर को देखा। उसमें रोज़ से बहुत कम सलवटें थीं। लगा जैसे रात की गहरी नींद के लिए वह बिस्तर ही दोषी हो, और गहरी नींद बरसते आकाश के साफ़ हो जाने के लिए!

धीरे-धीरे दोपहर की तरफ़ बढऩे लगी। इससे उसके मन को कुछ सहारा मिला। वह चाह रहा था कि इसी तरह शाम हो जाए और फिर रात—और बच्चा उससे विदा लेने न आए। मगर जब दोपहर भी ढलने लगी और बच्चा नहीं आया, तो उसके मन में एक और आशंका सिर उठाने लगी। कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी ममी सुबह-सुबह ही उसे लेकर वहाँ से चली गयी हो?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 09:13 PM



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