29-04-2019, 09:13 PM
प्रकाश जहाँ था, वहीं खड़ा रहा। पल-भर के लिए उसकी आँख बीना से मिलीं। उसे लगा कि बीना का चेहरा पहले से कुछ साँवला हो गया है और उसकी आँखों के नीचे स्याह दायरे उभर आये हैं। वह पहले से काफ़ी दुबली भी लग रही थी। कुछ पल रुके रहने के बाद प्रकाश आगे बढ़ गया और चेरीवाला लिफ़ाफ़ा बीना की तरफ़ बढ़ाकर ख़ुश्क गले से बोला, “यह मैं बच्चे के लिए लाया था।”
बीना ने लिफ़ाफ़ा ले लिया, मगर लेते हुए उसकी आँखें दूसरी तरफ़ मुड़ गयीं। “पलाश!” उसने कुछ अस्थिर आवाज़ में बच्चे को पुकारा, “यह ले, पापा तेरे लिए चेरी लाए हैं।”
“मैं नहीं लेता,” बच्चे ने गैलरी से कहा और भागकर और भी दूर चला गया।
बीना ने एक असहाय नज़र बच्चे पर डाली और प्रकाश की तरफ़ देखकर बोली, “कहता है, मैं पापा से नहीं बोलूँगा। वे सुबह रुके क्यों नहीं, चले क्यों गए?”
प्रकाश बीना को उत्तर न देकर गैलरी में चला गया और कुछ दूर बच्चे का पीछा करके उसने उसे बाँहों में उठा लिया। “मैं तुमसे नहीं बोलूँगा, कभी नहीं बोलूँगा,” बच्चा अपने को छुड़ाने की चेष्टा करता कहता रहा।
“ऐसी क्या बात है?” प्रकाश उसे पुचकारने की चेष्टा करने लगा, “पापा से इस तरह नाराज़ होते हैं क्या?”
“तुमने मेरी तस्वीरें क्यों नहीं देखीं?”
“कहाँ थी तेरी तस्वीरें? मुझे तो पता ही नहीं था।”
“पता क्यों नहीं था? तुम दुकान के बाहर से ही क्यों चल गए थे?”
“अच्छा ला, पहले तेरी तस्वीरें देखें, फिर घूमने चलेंगे।”
“यह सुबह आपको दिखाने के लिए ही तस्वीरें लेने गया था।” बीना के साथ खड़ी एक युवा स्त्री ने कहा। प्रकाश ने ध्यान नहीं दिया था कि उसके साथ कोई और भी है।
“तस्वीरें मेरे पास थोड़े ही न हैं? उसी के पास हैं।”
“सुबह फोटोग्राफर ने निगेटिव दिखाए थे, पाज़िटिव वह अब इस वक़्त देगा,” उसी स्त्री ने फिर कहा।
“तो चल, पहले दुकान पर चलकर तेरी तस्वीरें ले लें। देखें तो सही कैसी तस्वीरें हैं!”
“मैं ममी को साथ लेकर जाऊँगा,” बच्चे ने उसकी बाँहों में मचलते हुए कहा।
“हाँ, हाँ, तेरी ममी भी साथ आ रही है,” कहते हुए प्रकाश ने एक बार बीना की तरफ़ देख लिया। बीना होंठ दाँतों में दबाए आँखें झपक रही थी। वह चुपचाप उसके साथ चल दी।
फोटोग्राफर की दुकान में दाख़िल होते ही बच्चा प्रकाश की बाँहों से उतर गया और फोटोग्राफर से बोला, “मेरे पापा को मेरी तस्वीरें दिखाओ।” फोटोग्राफर ने तस्वीरें निकालकर मेज़ पर फैला दीं, तो बच्चा एक-एक तस्वीर उठाकर प्रकाश को दिखाने लगा, “देखो पापा, यह वहीं की तस्वीर है न जहाँ से तुमने कहा था, सारा काश्मीर नज़र आता है? और यह तस्वीर भी देखो जो तुमने मेरी घोड़े पर बैठे हुए उतारी थी...।”
बीना ने लिफ़ाफ़ा ले लिया, मगर लेते हुए उसकी आँखें दूसरी तरफ़ मुड़ गयीं। “पलाश!” उसने कुछ अस्थिर आवाज़ में बच्चे को पुकारा, “यह ले, पापा तेरे लिए चेरी लाए हैं।”
“मैं नहीं लेता,” बच्चे ने गैलरी से कहा और भागकर और भी दूर चला गया।
बीना ने एक असहाय नज़र बच्चे पर डाली और प्रकाश की तरफ़ देखकर बोली, “कहता है, मैं पापा से नहीं बोलूँगा। वे सुबह रुके क्यों नहीं, चले क्यों गए?”
प्रकाश बीना को उत्तर न देकर गैलरी में चला गया और कुछ दूर बच्चे का पीछा करके उसने उसे बाँहों में उठा लिया। “मैं तुमसे नहीं बोलूँगा, कभी नहीं बोलूँगा,” बच्चा अपने को छुड़ाने की चेष्टा करता कहता रहा।
“ऐसी क्या बात है?” प्रकाश उसे पुचकारने की चेष्टा करने लगा, “पापा से इस तरह नाराज़ होते हैं क्या?”
“तुमने मेरी तस्वीरें क्यों नहीं देखीं?”
“कहाँ थी तेरी तस्वीरें? मुझे तो पता ही नहीं था।”
“पता क्यों नहीं था? तुम दुकान के बाहर से ही क्यों चल गए थे?”
“अच्छा ला, पहले तेरी तस्वीरें देखें, फिर घूमने चलेंगे।”
“यह सुबह आपको दिखाने के लिए ही तस्वीरें लेने गया था।” बीना के साथ खड़ी एक युवा स्त्री ने कहा। प्रकाश ने ध्यान नहीं दिया था कि उसके साथ कोई और भी है।
“तस्वीरें मेरे पास थोड़े ही न हैं? उसी के पास हैं।”
“सुबह फोटोग्राफर ने निगेटिव दिखाए थे, पाज़िटिव वह अब इस वक़्त देगा,” उसी स्त्री ने फिर कहा।
“तो चल, पहले दुकान पर चलकर तेरी तस्वीरें ले लें। देखें तो सही कैसी तस्वीरें हैं!”
“मैं ममी को साथ लेकर जाऊँगा,” बच्चे ने उसकी बाँहों में मचलते हुए कहा।
“हाँ, हाँ, तेरी ममी भी साथ आ रही है,” कहते हुए प्रकाश ने एक बार बीना की तरफ़ देख लिया। बीना होंठ दाँतों में दबाए आँखें झपक रही थी। वह चुपचाप उसके साथ चल दी।
फोटोग्राफर की दुकान में दाख़िल होते ही बच्चा प्रकाश की बाँहों से उतर गया और फोटोग्राफर से बोला, “मेरे पापा को मेरी तस्वीरें दिखाओ।” फोटोग्राफर ने तस्वीरें निकालकर मेज़ पर फैला दीं, तो बच्चा एक-एक तस्वीर उठाकर प्रकाश को दिखाने लगा, “देखो पापा, यह वहीं की तस्वीर है न जहाँ से तुमने कहा था, सारा काश्मीर नज़र आता है? और यह तस्वीर भी देखो जो तुमने मेरी घोड़े पर बैठे हुए उतारी थी...।”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.