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Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#40
“मैं सचमुच बड़ा हूँ न पापा?” बच्चा ताली बजाता हुआ बोला, “तुम यह बात भी ममी से कह देना। वह कहती है मैं अभी बहुत छोटा हूँ। मैं छोटा नहीं हूँ न पापा!”

“नहीं, तू छोटा कहाँ है?” प्रकाश मैदान में दौडऩे लगा, “अच्छा भागकर मुझे पकड़।”

बच्चा अपनी छोटी-छोटी टाँगें पटकता हुआ दौडऩे लगा। प्रकाश को फिर अपने बचपन की याद आयी। उसे दौड़ते देखकर तब एक बार किसी ने कहा था, “अरे यह बच्चा कैसे टाँगें पटक-पटककर दौड़ता है! इसे ठीक से चलना नहीं आता क्या?”

बच्चे की उँगली पकड़े प्रकाश क्लब के बार-रूम में दाख़िल हुआ, तो बारमैन अब्दुल्ला उसे देखकर दूर से मुसकराया। “साहब के लिए दो बोतल बियर,” उसने पास खड़े बैरे से कहा, “साहब आज अपने साथ एक मेहमान को लाया है।”

“बच्चे के लिए एक गिलास पानी दे दो,” प्रकाश ने काउंटर के पास रुककर कहा, “इसे प्यास लगी है।”

“ख़ाली पानी?” अब्दुल्ला बच्चे के गालों को प्यार से सहलाने लगा। “और सब दोस्तों को तो साहब बियर पिलाता है और इस बेचारे को ख़ाली पानी?” और पानी की बोतल खोलकर वह गिलास में पानी डालने लगा। जब वह गिलास बच्चे के मुँह के पास ले गया, तो बच्चे ने यह अपने हाथ में ले लिया, “मैं अपने आप पिऊँगा,” उसने कहा, “मैं छोटा थोड़े ही हूँ? मैं तो बड़ा हूँ।”

“तू बड़ा है?” अब्दुल्ला हँसा, “तब तो तुझे पानी देकर मैंने ग़लती की है। बड़े लोगों को तो मैं बियर ही पिलाता हूँ।”

“बियर क्या होता है?” बच्चे ने मुँह से गिलास हटाकर पूछा।

“बियर होता नहीं, होती है।” अब्दुल्ला ने झुककर उसे चूम लिया, “तुझे पिलाऊँ क्या?”

“नहीं,” कहकर बच्चे ने अपनी बाँहें प्रकाश की तरफ़ फैला दीं। प्रकाश उसे लेकर ड्योढ़ी की तरफ़ चला, तो अब्दुल्ला भी उन दोनों के साथ-साथ बाहर चला आया, “किसका बच्चा है, साहब?” उसने पूछा।

“मेरा लडक़ा है,” कहकर प्रकाश बच्चे को सीढ़ी से नीचे उतारने लगा।

अब्दुल्ला हँस दिया। “साहब बहुत ख़ुशदिल आदमी है,” उसने कहा।

“क्यों?”

अब्दुल्ला हँसता हुआ सिर हिलाने लगा, “आपका भी जवाब नहीं है।”

प्रकाश कुछ कहने को हुआ, मगर अपने को रोककर बच्चे को लिये हुए आगे चल दिया। अब्दुल्ला ड्योढ़ी में रुककर पीछे से सिर हिलाता रहा। बैरा शेर मोहम्मद अन्दर से निकलकर आया, तो वह और भी खुलकर हँस दिया।

“क्या बात है? अकेला खड़ा कैसे हँस रहा है?” शेर मोहम्मद ने पूछा।

“साहब का भी जवाब नहीं है,” अब्दुल्ला किसी तरह हँसी पर काबू पाकर बोला।

“किस साहब का जवाब नहीं है?”

“उस साहब का,” अब्दुल्ला ने प्रकाश की तरफ़ इशारा किया, “उस दिन बोलता था कि इसने इसी साल शादी की है और आज बोलता है कि यह पाँच साल का बाबा इसका लडक़ा है। जब आया था, तो अकेला था। और आज इसके लडक़ा भी हो गया!” प्रकाश ने एक बार घूमकर तीखी नज़र से उसकी तरफ़ देख लिया। अब्दुल्ला एक बार फिर खिलखिला उठा। “ऐसा ख़ुशदिल आदमी मैंने आज तक नहीं देखा।”

“पापा, घास हरी क्यों होती है? लाल क्यों नहीं होती?” क्लब से निकलकर प्रकाश ने बच्चे को एक घोड़ा किराये पर ले दिया था। लिनेनमार्ग को जानेवाली पगडंडी पर वह खुद उसके साथ-साथ पैदल चल रहा था। घास के रेशमी फैलाव पर कोहरे का आकाश इस तरह झुका था जैसे अन्दर की उमड़ती वासना उसे अपने को उस पर दबा देने के लिए विवश कर रही हो। बच्चा उत्सुक आँखों से आसपास की पहाडिय़ों और सामने से बहकर जाती पानी की पतली धार को देख रहा था। कभी कुछ क्षण वह अपने को भूला रहता, फिर अपने अन्दर के किसी भाव से प्रेरित होकर काठी पर उछलने लगता।

“हर चीज़ का अपना रंग होता है,” प्रकाश ने बच्चे की जाँघ को हाथ से दबाए हुए कहा और कुछ देर खुद भी हरियाली के फैलाव में खोया रहा।

“हर चीज़ का अपना रंग क्यों होता है?”

“क्योंकि कुदरत ने हर चीज़ का अपना रंग बना दिया है।”

“कुदरत क्या होती है?”

प्रकाश ने झुककर उसकी जाँघ को चूम लिया। “कुदरत यह होती है,” उसने कहा। जाँघ पर गुदगुदी होने से बच्चा भी हँसने लगा।

“तुम झूठ बोलते हो,” उसने कहा।

“क्यों?”

“तुमको इसका पता ही नहीं है।”

“अच्छा, तो तू बता, घास का रंग हरा क्यों होता है?”

“घास मिट्‌टी के अन्दर से पैदा होती है, इसलिए इसका रंग हरा होता है।”

“अच्छा? तुझे इसका कैसे पता चल गया?”

बच्चा उछलता हुआ लगाम को झटकने लगा। “मेरे को ममी ने बताया था।”

प्रकाश के होंठों पर एक विकृत-सी मुस्कराहट आ गयी। उसे लगा जैसे आज भी उसके और बीना के बीच एक द्वन्द्व चल रहा हो और बीना उस द्वन्द्व में उस पर भारी पडऩे की चेष्टा कर रही हो। “तेरी ममी ने तुझे और क्या-क्या बता रखा है?” वह बोला, “यह भी बता रखा है कि आदमी के दो टाँगें क्यों होती हैं और चार क्यों नहीं?”

“हाँ। ममी कहती थी कि आदमी के दो टाँगें इसलिए होती हैं कि वह आधा ज़मीन पर चलता है, आधा आसमान में।”

“अच्छा?” प्रकाश के होंठों पर हँसी और मन में उदासी की एक रेखा फैल गयी, “मुझे इसका पता नहीं था।”

“तुमको तो किसी बात का भी पता नहीं है, पापा!” बच्चा बोला, “इतने बड़े होकर भी पता नहीं है!”

घास, बर्फ़ और आकाश के रंग दिन में कई-कई बार बदल जाते थे। बदलते रंगों के साथ मन भी और से और होने लगता था। सुबह उठते ही प्रकाश बच्चे के आने की प्रतीक्षा करने लगता। बार-बार वह बालकनी पर जाता और टूरिस्ट होटल की तरफ़ देखता हुआ देर-देर तक वहाँ खड़ा रहता। नाश्ता या खाना खाने जाने के लिए भी वह वहाँ से नहीं हटना चाहता था। उसे डर था कि बच्चा इस बीच वहाँ आकर लौट न जाए। तीन दिन में उसे साथ लिये वह कितनी ही बार घूमने के लिए गया था, उसके घोड़े के पीछे-पीछे दौड़ा था और उसके साथ घास पर लोटता रहा था। बच्चा जान-बूझकर रास्ते के कीचड़ में अपने पाँव लथपथ कर लेता और होंठ बिसूरकर कहता, “पापा, पाँव धो दो।” वह उसे उठाए इधर-उधर पानी ढूँढ़ता फिरता। बच्चे को वह जिस किसी कोण से देखता, उसी कोण से उसकी तस्वीर ले लेना चाहता। जब बच्चा थक जाता और लौटकर अपनी ममी के पास जाने का हठ करने लगता, तो वह उसे तरह-तरह के लालच देकर अपने पास रोक रखना चाहता। एक बार उसने बच्चे को अपनी माँ के साथ दूर से आते देखा और उतरकर नीचे चला गया। जब वह पास पहुँचा, तो बच्चा दौडक़र उसकी तरफ़ आने की जगह माँ के साथ फोटोग्राफर की दुकान के अन्दर चला गया। वह कुछ देर सडक़ पर रुका रहा, फिर यह सोचकर ऊपर चला आया कि फोटोग्राफर की दुकान से निकलकर बच्चा अपने-आप ऊपर आ जाएगा। मगर बालकनी पर खड़े-खड़े उसने देखा कि बच्चा दुकान से निकलकर उस तरफ़ आने की बजाय हठ के साथ अपनी माँ का हाथ खींचता हुआ उसे वापस टूरिस्ट होटल की तरफ़ ले जा रहा है। उसका मन हुआ कि फिर नीचे जाकर बच्चे को अपने साथ ले आये, मगर कोई चीज़ उसके पैरों को रोके रही और वह वहीं खड़ा उसे देखता रहा। शाम तक न जाने कितनी बार वह बालकनी पर आया और कितनी-कितनी देर वहाँ खड़ा रहा। आख़िर उससे नहीं रहा गया, तो उसने नीचे जाकर कुछ चेरी ख़रीदी और बच्चे को देने के बहाने टूरिस्ट होटल की तरफ़ चल दिया। अभी वह टूरिस्ट होटल से कुछ फ़ासले पर था कि बच्चा अपनी माँ के साथ बाहर आता दिखाई दिया। मगर उस पर नज़र पड़ते ही वह वापस होटल की गैलरी में भाग गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 09:12 PM



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