Thread Rating:
  • 1 Vote(s) - 5 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#39
“नहीं, मैं जा रही हूँ,” बीना ने फिर भी उसकी तरफ़ नहीं देखा। “मुझे इतना बता दीजिए कि बच्चा कब तक लौटकर आएगा।”

“आप...जब कहें, तभी भेज दूँगा।” प्रकाश बालकनी की दहलीज लाँघकर कमरे में आ गया।

“चार बजे इसे दूध पीना होता है।”

“तो चार बजे तक मैं इसे वहाँ पहुँचा दूँगा।”

“इसने हल्का-सा स्वेटर ही पहन रखा है। दूसरे पुलोवर की ज़रूरत तो नहीं पड़ेगी?”

“आप दे दीजिए। ज़रूरत पड़ेगी, तो मैं इसे पहना दूँगा।”

बीना ने दहलीज़ के उस तरफ़ से पुलोवर उसकी तरफ़ बढ़ा दिया। उसने पुलोवर लेकर उसे शाल की तरह बच्चे को ओढ़ा दिया। “आप...,” उसने बीना से फिर कहना चाहा कि अन्दर आ जाए, मगर उससे कहा नहीं गया। बीना चुपचाप जीने की तरफ़ चल दी। प्रकाश कमरे से निकल आया। जीने से बीना ने कहा, “देखिए, इसे आइसक्रीम वगैरह मत खिलाइएगा। इसका गला बहुत जल्द ख़राब हो जाता है।”

“अच्छा!”

बीना पल-भर रुकी रही। शायद उसे और भी कुछ कहना था। मगर फिर बिना कुछ कहे नीचे उतर गयी। बच्चा प्रकाश की बाँहों में उछलता हुआ हाथ हिलाता रहा, “ममी, टा टा! टा टा!” प्रकाश उसे लिये बालकनी पर लौट आया तो वह उसके गले में बाँहें डालकर बोला, “पापा, मैं आइछक्लीम जलूल थाऊँदा।”

“हाँ-हाँ बेटे!” प्रकाश उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा, “जो तेरे मन में आए सो खाना।”

और कुछ देर वह अपने को, बालकनी को, और यहाँ तक कि बच्चे को भी भूला हुआ सामने कोहरे में देखता रहा।

कोहरे का पर्दा धीरे-धीरे उठने लगा, तो मीलों तक फैले हरियाली के रंगमंच की धुँधली रेखाएँ स्पष्ट हो उठीं।

वे दोनों गॉल्फ-ग्राउंड पार करके क्लब की तरफ़ जा रहे थे। चलते हुए बच्चे ने पूछा, “पापा, आदमी के दो टाँगें क्यों होती हैं? चार क्यों नहीं होतीं?”

प्रकाश ने चौंककर उसकी तरफ़ देखा और कहा, “अरे!”

“क्यों पापा,” बच्चा बोला, “तुमने अरे क्यों कहा है?”

“तू इतना साफ़ बोल सकता है, तो अब तक तुतलाकर क्यों बोल रहा था?” प्रकाश ने उसे बाँहों में उठाकर एक अभियुक्त की तरह सामने कर लिया। बच्चा खिलखिलाकर हँसा। प्रकाश को लगा कि यह वैसी ही हँसी है जैसी कभी वह स्वयं हँसा करता था। बच्चे के चेहरे की रेखाओं से भी उसे अपने बचपन के चेहरे की याद हो आयी। उसे लगा जैसे एकाएक उसका तीस साल पहले का चेहरा उसके सामने आ गया हो और वह ख़ुद उस चेहरे के सामने एक अभियुक्त की तरह खड़ा हो।

“ममी तो ऐछे ही अच्छा लदता है,” बच्चे ने कहा।

“क्यों?”

“मेले तो नहीं पता। तुम ममी छे पूछ लेना।”

“तेरी ममी तुझे जोर से हँसने से भी मना करती है?” प्रकाश को वे दिन याद आये जब उसके खिलखिलाकर हँसने पर बीना कानों पर हाथ रख लिया करती थी।

बच्चे की बाँहें उसकी गरदन के पास कस गयीं। “हाँ,” वह बोला, “ममी तहती है अच्छे बच्चे जोल छे नहीं हँछते।”

प्रकाश ने उसे बाँहों से उतार दिया। बच्चा उसकी उँगली पकड़े घास पर चलने लगा। “त्यों पापा,” उसने पूछा, “अच्छे बच्चे जोल छे त्यों नहीं हँछते?”

“हँसते हैं बेटा!” प्रकाश ने उसके सिर को सहलाते हुए कहा, “सब अच्छे बच्चे ज़ोर से हँसते हैं।”

“तो ममी मेले तो त्यों लोतती है?”

“अब वह तुझे नहीं रोकेगी। और तू तुतलाकर नहीं ठीक से बोला कर। तेरी ममी तुझे इसके लिए भी मना नहीं करेगी। मैं उससे कह दूँगा।”

“तो तुमने पहले ममी छे, त्यों नहीं तहा?”

“ऐसे नहीं, कह कि तुमने पहले ममी से क्यों नहीं कहा।”

बच्चा फिर हँस दिया, “तो तुमने पहले ममी से क्यों नहीं कहा?”

“पहले मुझे याद नहीं रहा। अब याद से कह दूँगा।”

कुछ देर दोनों चुपचाप चलते रहे। फिर बच्चे ने पूछा, “पापा, तुम मेरे जन्मदिन की पार्टी में क्यों नहीं आये? ममी कहती थी तुम विलायत गये हुए थे।”

“हाँ, मैं विलायत गया हुआ था।”

“तो पापा, अब तुम विलायत नहीं जाना।”

“क्यों?”

“मेरे को अच्छा नहीं लगता। विलायत जाकर तुम्हारी शकल और ही तरह की हो गयी है।”

प्रकाश एक रूखी-सी हँसी हँसा, “कैसी हो गयी है शकल?”

“पता नहीं कैसी हो गयी है? पहले दूसरी तरह की थी, अब दूसरी तरह की है।”

“दूसरी तरह की कैसे?”

“पता नहीं। पहले तुम्हारे बाल काले-काले थे। अब सफ़ेद-सफ़ेद हो गये हैं।”

“तू इतने दिन मेरे पास नहीं आया, इसीलिए मेरे बाल सफ़ेद हो गये हैं।”

बच्चा इतने ज़ोर से हँसा कि उसके क़दम लडख़ड़ा गये। “पापा, तुम तो विलायत गये हुए थे,” उसने कहा, “मैं तुम्हारे पास कैसे आता? मैं क्या अकेला विलायत जा सकता हूँ?”

“क्यों नहीं जा सकता? तू इतना बड़ा तो है।”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply


Messages In This Thread
RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 09:11 PM



Users browsing this thread: 2 Guest(s)