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Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#36
पहले कुछ दिन तो वह समझ नहीं सका कि वह हँसी क्या है। निर्मला कभी भी बिना बात के हँसना शुरू कर देती और देर तक हँसती रहती। वह हैरान होकर उसे देखता रहता। तीन-चार साल के बच्चे भी वैसे आकस्मिक ढंग से नहीं हँसते थे जैसे वह हँसती थी। कोई उसके सामने गिर जाए या कोई चीज़ किसी के हाथ से गिरकर टूट जाए, तो उसके लिए अपनी हँसी रोकना असम्भव हो जाता था। ऐसे में लगातार दस-दस मिनट तक वह हँसी से बेहाल रहती। वह उसे समझाने की चेष्टा करता कि ऐसी बातों पर नहीं हँसा जाता, तो निर्मला को और भी हँसी छूटती। वह उसे डाँट देता, तो वह उसी आकस्मिक ढंग से बिस्तर पर लेटकर हाथ-पैर पटकती हुई रोने लगती, चिल्ला-चिल्लाकर अपनी मरी हुई माँ को पुकारने लगती, और अन्त में बाल बिखेरकर देवी बन जाती और घर-भर को शाप देने लगती। कभी अपने कपड़े फाडक़र इधर-उधर छिपा देती, अपने गहने जूतों के अन्दर सँभाल देती। कभी अपनी बाँह पर फोड़े की कल्पना करके दो-दो दिन उसके दर्द से कराहती रहती और फिर सहसा स्वस्थ होकर कपड़े धोने लगती और सुबह से शाम तक कपड़े धोती रहती।

जब मन शान्त होता, तो मुँह गोल किये वह अँगूठा चूसने लगती।

उठते-बैठते, खाते-पीते, प्रकाश के सामने निर्मला के तरह-तरह के रूप आते रहते और उसका मन एक अन्धे कुएँ में भटकने लगता। रास्ता चलते हुए उसके मन में एक शून्य-सा घिर आता और वह भौंचक्का-सा सडक़ के किनारे खड़ा होकर सोचने लगता कि वह घर से क्यों आया है और कहाँ जा रहा है। उसका किसी से मिलने या कहीं भी आने-जाने को मन न होता। कई बार वह बिलकुल जड़ होकर देर-देर तक एक ही जगह खड़ा या बैठा रहता। एक बार सडक़ पर चलते हुए वह खम्भे से टकराकर नाली में गिर गया। एक बार बस पर चढऩे की कोशिश में नीचे गिर जाने से उसकी बुश्शर्ट पीछे से फट गयी और वह इससे बेख़बर दूसरी बस में चढक़र आगे चल दिया। उसे पता तब चला जब किसी ने रास्ते में उससे कहा, “जेंटलमैन, तुम्हें घर जाकर कपड़े बदल लेने चाहिए?”

उसे लगता जैसे वह जी न रहा हो, अन्दर ही अन्दर घुट रहा हो। क्या यही वह ज़िन्दगी थी जिसे पाने के लिए उसने इतने साल अपने से संघर्ष किया था?

उसे गुस्सा आता कि जुनेजा ने उसके साथ ऐसा क्यों किया? उस लडक़ी को मानसिक अस्पताल में भेजने की जगह उसका ब्याह क्यों कर दिया? उसने जुनेजा को इस सम्बन्ध में पत्र लिखे, परन्तु उसकी ओर से कोई उत्तर नहीं मिला। उसने जुनेजा को बुला भेजा, तो वह आया भी नहीं। वह स्वयं जुनेजा से मिलने गया, तो जवाब मिला कि निर्मला अब उसकी पत्नी है—उसके मायके के लोगों का उनकी ज़िन्दगी में कोई दख़ल नहीं है।

और निर्मला रात-दिन घर में उसी तरह हँसती और रोती रहती...!

“तुम मेरे भाई से क्या पूछने गये थे?” वह बाल बिखेरकर ‘देवी’ का रूप धारण किये हुए कहती, “तुम बीना की तरह मुझे भी तलाक़ देना चाहते हो? किसी तीसरी को घर में लाना चहाते हो? मगर मैं बीना नहीं हूँ। वह सती स्त्री नहीं थी। मैं सती स्त्री हूँ। तुम मुझे छोडऩे की बात मन में लाओगे, तो मैं इस घर को जलाकर भस्म कर दूँगी—सारे शहर में भूचाल ले आऊँगी। लाऊँ भूचाल?” और बाँहें फैलाकर वह चिल्लाने लगती, “आ भूचाल, आ...आ! मैं सती स्त्री हूँ, तो इस घर की ईंट से ईंट बजा दे। आ, आ, आ!”

वह उसे शान्त करने की चेष्टा करता, तो वह कहती, “देखो, तुम मुझसे दूर रहो। मेरे शरीर को हाथ मत लगाओ। मैं सती स्त्री हूँ। देवी हूँ। तुम मेरा सतीत्व नष्ट करना चाहते हो? मुझे ख़राब करना चाहते हो? मेरा तुमसे ब्याह कब हुआ है? मैं तो अभी कँवारी हूँ। छोटी-सी बच्ची हूँ। संसार का कोई भी पुरुष मुझे नहीं छू सकता। मैं आध्यात्मिक जीवन जीती हूँ। मुझे कोई छूकर देखे तो...।”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 09:10 PM



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