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Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#35
तब तक पति-पत्नी दोनों ने काग़ज़ पर हस्ताक्षर कर दिए थे। बच्चा उस समय कोर्ट के अहाते में कौओं के पीछे भागता हुआ किलकारियाँ भर रहा था। वहाँ आसपास धूल उड़ रही थी और चारों तरफ़ मटियाली-सी धूप फैली थी...।

फिर दिन, सप्ताह और महीने...!

अढ़ाई साल गुज़र जाने पर भी वह फिर से ज़िन्दगी शुरू करने की बात तय नहीं कर पाया था। उस बीच बच्चा तीन बार उससे मिलने के लिए आया था। वह नौकर के साथ आता और दिन-भर उसके पास रहकर अँधेरा होने पर लौट जाता। पहली बार वह उससे शरमाता रहा था, मगर बाद में उससे हिल-मिल गया था। वह बच्चे को लेकर घूमने चला जाता, उसे आइसक्रीम खिलाता, खिलौने ले देता। बच्चा जाने के वक़्त हठ करता, “अबी नहीं दाऊँदा। दूद पीतल दाऊँदा। थाना थातल दाऊँगा।”

जब बच्चा इस तरह की बात कहता, तो उसके अन्दर कोई चीज़ दुखने लगती। उसका मन होता था कि नौकर को झिडक़कर वापस भेज दे और बच्चे को कम से कम रात भर के लिए अपने पास रख ले। जब नौकर बच्चे से कहता, “बाबा, चलो, अब देर हो रही है,” तो उसका मन एक हताश आवेश से काँपने लगता, और बहुत मुश्किल से वह अपने को सँभाल पाता। आख़िरी बार बच्चा रात के नौ बजे तक रुका रह गया तो एक अपरिचित व्यक्ति उसे लेने के लिए चला आया।

बच्चा उस समय उसकी गोदी में बैठा खाना खा रहा था।

“देखिए, अब बच्चे को भेज दीजिए, इसे बहुत देर हो गयी,” उस अनजबी ने कहा।

“आप देख रहे हैं, बच्चा खाना खा रहा है,” उसका मन हुआ कि मुक्का मारकर उस आदमी के दाँत तोड़ दे।

“हाँ-हाँ, आप खाना खिला लीजिए,” अजनबी ने उदारता के साथ कहा, “मैं नीचे इन्तज़ार कर रहा हूँ।”

गुस्से के मारे उसके हाथ इस तरह काँपने लगे कि उसके लिए बच्चे को खाना खिलाना असम्भव हो गया।

जब नौकर बच्चे को लेकर चला गया, तो उसने देखा कि बच्चे की टोपी वहीं रह गयी है। वह टोपी लिये हुए दौडक़र नीचे पहुँचा, तो देखा कि नौकर और अजनबी के अलावा बच्चे के साथ कोई और भी है—उसकी माँ। वे लोग चालीस-पचास गज़ आगे चल रहे थे। उसने नौकर को आवाज़ दी, तो चारों ने मुडक़र एक साथ उसकी तरफ़ देखा। फिर नौकर टोपी लेने के लिए लौट आया और शेष तीनों आगे चलने लगे।

उस रात कम्बल में मुँह-सिर लपेटकर वह देर तक रोता रहा।

तब नए सिरे से फिर वही सवाल उसके मन में उठने लगा। क्यों वह अपने को इस अतीत से पूरी तरह मुक्त नहीं कर लेता? अगर बसा हुआ घर-बार हो, तो उसकी चहल-पहल में वह इस दुख को भूल नहीं जाएगा? उसने अपने को इसीलिए तो बच्चे से अलग किया था कि अपनी ज़िन्दगी को एक नया मोड़ दे सके—फिर इस तरह अकेली ज़िन्दगी जीकर वह यह यन्त्रणा किसलिए सह रहा है?

परन्तु नए सिरे से ज़िन्दगी शुरू करने की कल्पना में सदा एक आशंका मिली रहती थी। वह जितना उस आशंका से लड़ता था, वह उतनी ही और तीव्र हो उठती थी—जब उसका एक प्रयोग सफल नहीं हुआ, तो कैसे कहा जा सकता था कि दूसरा प्रयोग सफल होगा?

वह पहले की भूल दोहराना नहीं चाहता था, इसलिए उसकी आशंका ने उसे बहुत सतर्क कर दिया था। वह जिस किसी लडक़ी को अपनी भावी पत्नी के रूप में देखता, उसके चेहरे में उसे अपने पहले जीवन की छाया नज़र आने लगती। हालाँकि वह स्पष्ट रूप से इस विषय में कुछ भी सोच नहीं पाता था, फिर भी उसे लगता कि वह किसी ऐसी ही लडक़ी के साथ जीवन बिता सकता है जो हर लिहाज़ से बीना के उलट हो। बीना में बहुत अहंकार था, वह उसके बराबर पढ़ी-लिखी थी, उससे ज़्यादा कमाती थी। उसे अपनी स्वतन्त्रता का बहुत मान था और उस पर भारी पड़ती थी। बातचीत भी वह खुले मरदाना ढंग से करती थी। वह अब एक ऐसी लडक़ी चाहता था जो हर लिहाज से उस पर निर्भर करे और जिसकी कमजोरियाँ एक पुरुष के आश्रय की अपेक्षा रखती हों।

कुछ ऐसी ही लडक़ी थी निर्मला—उसके मित्र कृष्ण जुनेजा की बहन। दो-बार उसने उस लडक़ी को जुनेजा के यहाँ देखा था। बहुत सीधी-सी लडक़ी थी। साधारण पढ़ी-लिखी थी और साधारण ढंग से ही रहती थी। छब्बीस-सत्ताईस की होकर भी देखने में वह अठारह-उन्नीस से ज़्यादा की नहीं लगती थी। वह जुनेजा के घर की कठिनाइयों को जानता था। उन कठिनाइयों के कारण ही शायद इतनी उम्र तक उस लडक़ी की शादी नहीं हो सकी थी। जब निर्मला के साथ उसके ब्याह की बात उठायी गयी, तो उसे सचमुच लगा कि उसकी ज़िन्दगी अब सही पटरी पर आ जाएगी। बात तय हो जाने के बाद उसे अपना-आप काफ़ी भरा-भरा-सा लगने लगा। हवा और आकाश में उसे एक और ही आकर्षण लगने लगा। निर्मला ब्याहकर घर में आयी भी नहीं थी कि वह शाम को लौटते हए फूलों की बेनियाँ ख़रीदकर घर लाने लगा। अपना पहला घर उसे छोटा लगने लगा, इसीलिए उसने एक बड़ा घर ले लिया और नया फ़र्नीचर ख़रीदकर उसे सजा दिया। पास में ज़्यादा पैसे नहीं थे, फिर भी कर्ज़ लेकर उसने निर्मला के लिए कितना कुछ बनवा डाला...।

निर्मला हँसती हुई उसके घर में आयी—मगर वह एक ऐसी हँसी थी जो हँसने का मौका न रहने पर भी थमने में नहीं आती थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 09:10 PM



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