29-04-2019, 09:02 PM
मैंने सोफे की टेक से सिर लगा लिया है और आँखें बन्द कर ली हैं। तभी भीतर से टीपू की गों-गों की आवाज सुनाई देती है। मैं डर जाता हूं। दिमाग सुन्न हो गया है। सारी चीजें गडमड हो रही हैं। टीपू, अंकल, रितु, उदिता, मृदुभा, भीतर वाली लडक़ी। सबके चेहरे तेजी से मानस पटल पर आ-जा रहे हैं। मुझे टीपू पर तरस आ रहा है। बेचारा इतनी कम उम्र में इन धंधों में फंस गया है। उधर रितु ड्रग्स के नशे में किसी और की बांहों में झूल रही होगी। और यह लडक़ी - उसके बारे में सोचना चाहता हूं, पर कहीं लिंक नहीं जुडता। उसे इस वातावरण से अलग किसी और वातावरण के फ्रेम में देखना चाहता हूं पर उसका चेहरा बदल जाता है। उसकी जगह कोई और चेहरा ले लेता है। सिर बुरी तरह घूम रहा है। आँखें बन्द किए बैठा हूं। कमरे में हल्की रोशनी है, पर पहुंचने में जलन हो रही है। कम से कम लडक़ी को तो यह देखना चाहिए था कि वह कैसे मासूम बच्चे को फंसाकर लाई है। तभी गों-गों की आवाज आनी बन्द हो गयी। मैंने फिर आँखें बन्द कर लीं। जितना सोचता हूं, दिमाग उतना ही खराब होता है।
तभी खटके की आवाज से मेरी आँख खुली। वह लडक़ी दरवाजे में खडी है। निर्विकार सी। मैं डर गया - तो क्या वह फिर मुझे आमंत्रित करने आयी है पैसे ऐंठने के लिए। मैं कुछ हूं, इसके पहले ही वह धम्म से सामने वाले सोफे पर बैठ गयी है - सॉरी सर,वह कुछ कहना चाहती है पर सिर झुका लेती हैं।
- क्यों क्या हुआ! मेरी जान हलक में आ गयी है।
तभी खटके की आवाज से मेरी आँख खुली। वह लडक़ी दरवाजे में खडी है। निर्विकार सी। मैं डर गया - तो क्या वह फिर मुझे आमंत्रित करने आयी है पैसे ऐंठने के लिए। मैं कुछ हूं, इसके पहले ही वह धम्म से सामने वाले सोफे पर बैठ गयी है - सॉरी सर,वह कुछ कहना चाहती है पर सिर झुका लेती हैं।
- क्यों क्या हुआ! मेरी जान हलक में आ गयी है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.