29-04-2019, 09:00 PM
बाहर आए तो दखा कि नौ बज रहे हैं। मैंने टैक्सी रूकवायी तो उसने मना कर दिया। हम पैदल ही फिर कोलाबा की ओर चल दिये हैं। हालांकि मैं भी पूरे सुरूर में हूं लेकिन टीपू की वजह से मैं खुद को भूले हुए हूं। टीपू ने मेरा हाथ मजबूती से थामा हुआ है। तभी मेरी निगाह सडक़ के दोनों तरफ खडी सजी-धजी लडक़ियों पर पडती है। पहले तो उन्हें देख कर हैरान होता हूं, तभी ख्याल आता है,अरे! ये तो धंधा करने वाली लडक़ियां हैं। पर इस तरह सरे आम! उनकी तरफ देखते हुए भी मुझे अजीब लग रहा है। कुछेक लडक़ियां तो काफी अच्छी लग रही हैं। टीपू अपने ख्यालों में मस्त चला जा रहा है। मेरे हाथ में कसा उसका हाथ अस्थिर है।
हम धीरे-धीरे कदम बढा रहे हैं। तभी मैंने देखा कि एक खंभे की आड में खडी एक खूबसूरत लडक़ी हमारी तरफ देखकर मुस्कराई।निश्चय ही यह मुस्कुराहट प्रोफेशनल है। उसके रंग-ढंग से प्रभावित होने के बावजूद मैंने उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया है और आगे बढ ग़या हूं। लेकिन टीपू ने मेरे हाथ से अपना हाथ छुडवा लिया है और उसके पास चला गया है। मैं चौंका और भौंचक-सा वहीं खडा रह गया। टीपू यह क्या कर रहा है? मेरा दब्बूपन मुझे उस लडक़ी के पास जाने से रोक रहा है। टीपू उससे इशारों से बात कर रहा है। मेंरे पांव कांपने लगे हैं। असमंजस में पड ग़या हूं। वहीं बुत-सा खडा सब देख रहा हूं। इतनी भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहाहूं कि टीपू का हाथ पकडक़र उसे वहां से हटाऊं। तभी टीपू मेरे पास लौटा है। उसकी पहुंचने में एक अजीब-सी चमक आ गयी है।उसने मेरी सहमति चाही है। मैं उसे समझाने की कोशिश करता हूं। उसका हाथ पकडक़र आगे बढना चाहता हूं पर वह वहीं मेरा हाथ पकडक़र अड ग़या है। आज आयी मुसीबत! एक तो यह पहले ही होश में नहीं है। उस पर यह सब कुछ। मैं टीपू को प्यार से समझाता हूं, पर टीपू कुछ सुनने को तैयार नहीं है। तभी टीपू ने मुझे अपनी बांहों में भरा और मेरी मनुहार करने लगा है। वह कुछ कहना चाह रहा है, पर उसके मुंह से गों-गों की आवाज निकलने लगी है। यह आवाज मैंने उसके मुंह से पहले कभी नहीं सुनी थी।लडक़ी अभी भी वहीं खडी है और कनखियों से हमारी तरफ देख रही है। मैं लडक़ी की तरफ बढक़र उससे ही टीपू की हालत पर तरस खाने के लिए कहना चाहता हूं, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाता।
स्थितियां मेरी पहुंच से बाहर हो गई हैं। मैं कुछ भी करने में अपने को असमर्थ पा रहा हूं। कहां तो हम सेलिब्रेट करने निकले थे और कहां टीपू यह सब नाटक करने लगा। सोलह-सत्रह वर्ष की उम्र और यह सब धंधे। मैंने हथियार डाल दिए हैं। लेकिन मैंने तय कर लिया है कि मैं इस सब में शरीक नहीं होऊगां। टीपू ने टेक्सी रूकवायी है। लडक़ी आगे बैठी है। हम दोनों पीछे। मैंने कनखियों से लडक़ी की तरफ देखा है- बीस-बाइस साल की और पढी-लिखी लग रही है जो शायद गलत धंधे में आ गयी है। मैंने आँखें फिरा ली हैं। लडक़ी ने ही टैक्सी वाले को जगह बतायी। टीपू बहुत गंभीर है। उसकी मुट्ठियां तनी हुई हैं और वह कहीं नहीं देख रहा। हम दोनों ने एक बार भी आँखें नहीं मिलायी हैं। टैक्सी कहां जा रही है, मुझे कुछ पता नहीं।
हम धीरे-धीरे कदम बढा रहे हैं। तभी मैंने देखा कि एक खंभे की आड में खडी एक खूबसूरत लडक़ी हमारी तरफ देखकर मुस्कराई।निश्चय ही यह मुस्कुराहट प्रोफेशनल है। उसके रंग-ढंग से प्रभावित होने के बावजूद मैंने उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया है और आगे बढ ग़या हूं। लेकिन टीपू ने मेरे हाथ से अपना हाथ छुडवा लिया है और उसके पास चला गया है। मैं चौंका और भौंचक-सा वहीं खडा रह गया। टीपू यह क्या कर रहा है? मेरा दब्बूपन मुझे उस लडक़ी के पास जाने से रोक रहा है। टीपू उससे इशारों से बात कर रहा है। मेंरे पांव कांपने लगे हैं। असमंजस में पड ग़या हूं। वहीं बुत-सा खडा सब देख रहा हूं। इतनी भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहाहूं कि टीपू का हाथ पकडक़र उसे वहां से हटाऊं। तभी टीपू मेरे पास लौटा है। उसकी पहुंचने में एक अजीब-सी चमक आ गयी है।उसने मेरी सहमति चाही है। मैं उसे समझाने की कोशिश करता हूं। उसका हाथ पकडक़र आगे बढना चाहता हूं पर वह वहीं मेरा हाथ पकडक़र अड ग़या है। आज आयी मुसीबत! एक तो यह पहले ही होश में नहीं है। उस पर यह सब कुछ। मैं टीपू को प्यार से समझाता हूं, पर टीपू कुछ सुनने को तैयार नहीं है। तभी टीपू ने मुझे अपनी बांहों में भरा और मेरी मनुहार करने लगा है। वह कुछ कहना चाह रहा है, पर उसके मुंह से गों-गों की आवाज निकलने लगी है। यह आवाज मैंने उसके मुंह से पहले कभी नहीं सुनी थी।लडक़ी अभी भी वहीं खडी है और कनखियों से हमारी तरफ देख रही है। मैं लडक़ी की तरफ बढक़र उससे ही टीपू की हालत पर तरस खाने के लिए कहना चाहता हूं, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाता।
स्थितियां मेरी पहुंच से बाहर हो गई हैं। मैं कुछ भी करने में अपने को असमर्थ पा रहा हूं। कहां तो हम सेलिब्रेट करने निकले थे और कहां टीपू यह सब नाटक करने लगा। सोलह-सत्रह वर्ष की उम्र और यह सब धंधे। मैंने हथियार डाल दिए हैं। लेकिन मैंने तय कर लिया है कि मैं इस सब में शरीक नहीं होऊगां। टीपू ने टेक्सी रूकवायी है। लडक़ी आगे बैठी है। हम दोनों पीछे। मैंने कनखियों से लडक़ी की तरफ देखा है- बीस-बाइस साल की और पढी-लिखी लग रही है जो शायद गलत धंधे में आ गयी है। मैंने आँखें फिरा ली हैं। लडक़ी ने ही टैक्सी वाले को जगह बतायी। टीपू बहुत गंभीर है। उसकी मुट्ठियां तनी हुई हैं और वह कहीं नहीं देख रहा। हम दोनों ने एक बार भी आँखें नहीं मिलायी हैं। टैक्सी कहां जा रही है, मुझे कुछ पता नहीं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.