29-04-2019, 08:59 PM
अंदर आते समय मेरा मन मध्यमवर्गीय दब्बूपन की वजह से डर रहा है, लेकिन टीपू की चाल में ऐसी कोई बात नहीं है। वह लापरवाही के अन्दाज में मेरी बांह में बांह डाले चल रहा है। मेरा सारा ध्यान आसपास की रौनक और शानोशौकत पर लगा है। मेरी निगाहों में चकित भाव है जिसे मैं छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहा हूं।
हम पहली मंजिल पर स्थित रेस्तरां में पहुंचे। इत्तिफाक से ठीक समुद्र वाली खिडक़ी के पास की एक मेज खाली मिल गयी। समुद्र अपना असीम विस्तार लिए हमारे सामने है। दूर खडे बडे-बडे ज़हाजों की बत्तियां बहुत अच्छी लग रही हैं। छोटी-बडी क़िश्तियां ऊंचीलहरों पर इतरा रही है। इससे पहले कि मैं मीनू पर निगाह डालूं, टीपू ने दो बीयर का आर्डर दे दिया है। हमारी निगाहें मिलती हैं तो दोनों मुस्करा देते हैं। टीपू मुझसे मेरे इन्टरव्यू के बारे में पूछता है। मैं बतलाता हूं कि किस तरह सत्ताइस लडक़ों में से पांच को इन्टरव्यू के बाद भी रूकने के लिए कहा गया था। उन पांच में मैं भी था। उन्हें कुल तीन लडक़े लेने थे। बाद में इन्फॉरमली बातचीत के लिए बुलाया गया था और तभी मुझे बता दिया गया था कि मैं चुन लिया गया हूं। बीयर आ गयी है। साथ में भुनी हुई मूंगफली और सलाद। सर्विस बहुत अच्छी है और वेटर वगैरह बहुत नम्र।
हम धीरे-धीरे सिप करने लगे हैं। मैं टीपू से उसके दोस्तों, उसके परिवार वालों के व्यवहार के बारे में पूछना चाहता हूं। परिवार वालों का नाम सुनते ही उसने मुंह बिचकाया है। मुझे पहले ही आशंका थी कि उसे बहुत अच्छा ट्रीटमेंट नहीं मिलता। वह माइमिंग करके बताता रहा कि किस तरह पापा से बात किए हुए उसे कई दिन बीत जाते हैं, सिर्फ हैलो, हाय से आगे वे कभी बात नहीं करते।अव्वल तो वे घर पर होते ही नहीं। क्लब, पार्टियां, बिजनेस ट्रिप्स वगैरह और जब घर पर होते हैं तो या तो अपने बैडरूम में बैठे रहते हैं और बिजनेस के फोन वगैरह करते रहते हैं या शाम के वक्त अपने बार में बैठे पीते रहते हैं। मुझे बहुत धक्का लगा जब उसने बताया कि मम्मी अपने कुत्ते को तो गोद में बिठाकर खाना खिलाती है लेकिन उससे कभी सीधे मुंह बात नहीं करती हैं। जब भी सामने पडती हैं किसी-न-किसी बात पर डांटने लगती हैं - पढता क्यों नहीं, बाहर क्यों घूमता रहता हूं, पैसे क्यों माँगता हूं हर वक्त। वह बहुत उदास हो गया है। उसका चेहरा बता रहा है कि अरसे से किसी ने प्यार से बात तक नहीं की है। जब मैंने रितु के बारे में पूछा तो उसका चेहरा और विकृत हो गया। वह बुदबुदाया - शी इज ए बिच। तो मेरा अन्दाज सही था। वह सचमुच बिगडी हुई लडक़ी है। टीपू उसके बारे में बात करने तक को तैयार नहीं है। बहुत कुरेदने पर उसने बताया कि वह पता नहीं किन आवारा लडक़ों के साथ घूमती रहती है और ड्रग्स भी लेती है।
हम एक-एक बीयर ले चुके हैं। हलका-सा सुरूर आने लगा है। टीपू ने इशारे से दो और बीयर का आर्डर दे दिया। मेरी इच्छा नहीं है और बीयर पीने की। साथ ही टीपू की उम्र देखते हुए भी डर रहा हूं कि कहीं उसे ज्यादा न हो जाए। थोडा सा ध्यान जेब पर भी है।पर बीयर आ चुकी हैं। मैं उसका खराब मूड देखकर बातचीत को उदिता पर ले आया। उसका चेहरा कुछ संभला। लगता है, वह उदिता को जी-जान से चाहता है, वह उसकी छोटी-छोटी बातें भी बताने लगा। उदिता की चर्चा करते हुए वह इतना भावुक हो गया कि उसकी पहुंचने में पानी आ गया। उसके हाथ कांपने लगे। किसी तरह हमने बीयर खत्म की। मुझे डर लगने लगा है टीपू घर पहुंचभी पाएगा या नहीं। जब अंकल को पता चलेगा कि हम दोनों ने दो-दो बीयर पी हैं तो मुझे ही डांटेंगे। मैंने बिल मंगवाया। मैंने सौ का नोट निकालकर बिल के फोल्डर में रखा लेकिन टीपू अड ग़या - यह ट्रीट उसकी तरफ से है, वही पे करेगा। वह हाथ-पैर चलाने लगा। मैं सीन क्रिएट नहीं करना चाहता। बिल उसी ने दिया। हलकी-सी राहत भी हुई। मैं तय कर लेता हूं डिनर के पैसे मैं दूंगा। टीपू उठा और लडख़डाते हुए मेरे साथ चलने लगा। वह ठीक तरह चल भी नहीं पा रहा है। मेरी चिंता बढती जा रही है।
हम पहली मंजिल पर स्थित रेस्तरां में पहुंचे। इत्तिफाक से ठीक समुद्र वाली खिडक़ी के पास की एक मेज खाली मिल गयी। समुद्र अपना असीम विस्तार लिए हमारे सामने है। दूर खडे बडे-बडे ज़हाजों की बत्तियां बहुत अच्छी लग रही हैं। छोटी-बडी क़िश्तियां ऊंचीलहरों पर इतरा रही है। इससे पहले कि मैं मीनू पर निगाह डालूं, टीपू ने दो बीयर का आर्डर दे दिया है। हमारी निगाहें मिलती हैं तो दोनों मुस्करा देते हैं। टीपू मुझसे मेरे इन्टरव्यू के बारे में पूछता है। मैं बतलाता हूं कि किस तरह सत्ताइस लडक़ों में से पांच को इन्टरव्यू के बाद भी रूकने के लिए कहा गया था। उन पांच में मैं भी था। उन्हें कुल तीन लडक़े लेने थे। बाद में इन्फॉरमली बातचीत के लिए बुलाया गया था और तभी मुझे बता दिया गया था कि मैं चुन लिया गया हूं। बीयर आ गयी है। साथ में भुनी हुई मूंगफली और सलाद। सर्विस बहुत अच्छी है और वेटर वगैरह बहुत नम्र।
हम धीरे-धीरे सिप करने लगे हैं। मैं टीपू से उसके दोस्तों, उसके परिवार वालों के व्यवहार के बारे में पूछना चाहता हूं। परिवार वालों का नाम सुनते ही उसने मुंह बिचकाया है। मुझे पहले ही आशंका थी कि उसे बहुत अच्छा ट्रीटमेंट नहीं मिलता। वह माइमिंग करके बताता रहा कि किस तरह पापा से बात किए हुए उसे कई दिन बीत जाते हैं, सिर्फ हैलो, हाय से आगे वे कभी बात नहीं करते।अव्वल तो वे घर पर होते ही नहीं। क्लब, पार्टियां, बिजनेस ट्रिप्स वगैरह और जब घर पर होते हैं तो या तो अपने बैडरूम में बैठे रहते हैं और बिजनेस के फोन वगैरह करते रहते हैं या शाम के वक्त अपने बार में बैठे पीते रहते हैं। मुझे बहुत धक्का लगा जब उसने बताया कि मम्मी अपने कुत्ते को तो गोद में बिठाकर खाना खिलाती है लेकिन उससे कभी सीधे मुंह बात नहीं करती हैं। जब भी सामने पडती हैं किसी-न-किसी बात पर डांटने लगती हैं - पढता क्यों नहीं, बाहर क्यों घूमता रहता हूं, पैसे क्यों माँगता हूं हर वक्त। वह बहुत उदास हो गया है। उसका चेहरा बता रहा है कि अरसे से किसी ने प्यार से बात तक नहीं की है। जब मैंने रितु के बारे में पूछा तो उसका चेहरा और विकृत हो गया। वह बुदबुदाया - शी इज ए बिच। तो मेरा अन्दाज सही था। वह सचमुच बिगडी हुई लडक़ी है। टीपू उसके बारे में बात करने तक को तैयार नहीं है। बहुत कुरेदने पर उसने बताया कि वह पता नहीं किन आवारा लडक़ों के साथ घूमती रहती है और ड्रग्स भी लेती है।
हम एक-एक बीयर ले चुके हैं। हलका-सा सुरूर आने लगा है। टीपू ने इशारे से दो और बीयर का आर्डर दे दिया। मेरी इच्छा नहीं है और बीयर पीने की। साथ ही टीपू की उम्र देखते हुए भी डर रहा हूं कि कहीं उसे ज्यादा न हो जाए। थोडा सा ध्यान जेब पर भी है।पर बीयर आ चुकी हैं। मैं उसका खराब मूड देखकर बातचीत को उदिता पर ले आया। उसका चेहरा कुछ संभला। लगता है, वह उदिता को जी-जान से चाहता है, वह उसकी छोटी-छोटी बातें भी बताने लगा। उदिता की चर्चा करते हुए वह इतना भावुक हो गया कि उसकी पहुंचने में पानी आ गया। उसके हाथ कांपने लगे। किसी तरह हमने बीयर खत्म की। मुझे डर लगने लगा है टीपू घर पहुंचभी पाएगा या नहीं। जब अंकल को पता चलेगा कि हम दोनों ने दो-दो बीयर पी हैं तो मुझे ही डांटेंगे। मैंने बिल मंगवाया। मैंने सौ का नोट निकालकर बिल के फोल्डर में रखा लेकिन टीपू अड ग़या - यह ट्रीट उसकी तरफ से है, वही पे करेगा। वह हाथ-पैर चलाने लगा। मैं सीन क्रिएट नहीं करना चाहता। बिल उसी ने दिया। हलकी-सी राहत भी हुई। मैं तय कर लेता हूं डिनर के पैसे मैं दूंगा। टीपू उठा और लडख़डाते हुए मेरे साथ चलने लगा। वह ठीक तरह चल भी नहीं पा रहा है। मेरी चिंता बढती जा रही है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.