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Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#23
उसने इशारे से पूछा - यहां किस सिलसिलें में आया हूं।
मैंने बताया यहां एक कम्पनी में मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव के लिए इन्टरव्यू देना है। कल इन्टरव्यू है बेलार्ड पियर में। तभी उसने अपनी जेब से एक लडक़ी की तस्वीर निकाली। मुझे फोटो दिखाते हुए वह दिल पर हाथ रख कर मुस्कुराया। मैं समझ गया कि वह उसकी स्वीट हार्ट की फोटो थी। लडक़ी निश्चय ही सुन्दर और संवेदनशील लगी। मैंने नाम पूछा। उसने कागज लेकर उस पर बहुत सुन्दर अक्षरों में लिखा - उदिता, माई लव। और कागज को चूम लिया। मुझे हंसी आ गई। पूछा - तुम्हारे साथ पढती है क्या। उसने सिर हिलाया - नहीं। फ्रेंड की सिस्टर है। - वह भी तुम्हें चाहती है क्या! मेरे पूछने पर उसने कुछ नहीं कहा, सिर्फ एक मिनट में आने का इशारा करके चला गया। थोडी देर में वापस आया तो उसके हाथ में कई चीजें थीं - दो तीन किताबें, एक खूबसूरत पेन, सेंट की शीशी, गॉगल्स और कई छोटे-मोटे गिफ्ट आइटम। वह अपने हाथों में यह अनमोल खजाना लिए बहुत उल्लसित था। मैंने पूछा और तुमने क्या दिया है उसे। उसने आँख दबाकर कैमरा एडजस्ट और क्लिक करने की माइमिंग की।
- लेकिन इतने पैसे कहां से लाए तुम? जो कुछ उसने बताया, वह मुझे चौंकाने के लिए काफी था।
- नयी साइकिल बेचकर और घर में बताया कि खो गई।
मुझे उस पर तरस आया। बेचारे को अपने प्यार का इजहार करने के लिए क्या-क्या करना पडता है। मैंने यूं ही पूछा - कभी फिल्म वगैरह भी जाते हो, लेकिन तुरन्त ही अपने सवाल पर अफसोस होने लगा - टीपू बेचारा कैसे इन्जॉय कर पाता होगा। लेकिन मुझे टीपू की मुस्कराहट ने उबार लिया। उसने इशारे से बताया कि वे कई फिल्में एक साथ देख चुके हैं। मैं कुछ और पूछता इसके पहले ही टीपू ने मुझे घेर लिया - आपकी कोई गर्ल फ्रैंड है क्या! पहुंचने के सामने मृदुभा का चेहरा उभर आया और याद आयी यहां आने से पहले उससे हुई आखिरी मुलाकात। जब मैंने उससे पूछा था - तुम्हारे लिए क्या लाऊं बम्बई से, तो उसने कहा था - तुम सफल होकर लौट आना, मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मैं अभी उस मुलाकात के ख्यालों में ही डूबा था कि टीपू ने मेरा कंधा हिलाकर अपना सवाल दोहराया। मैं मुस्करा दिया - हां है एक। उसने तुरन्त नाम पूछा, क्या करती है, कैसी है।
उसकी पहुंचने में चमक थी। मुझे अच्छा लगा कि मैंने सिगरेट की तरह इस मामले में झूठ नहीं बोला है। मेरी गर्ल फ्रैण्ड की बात जानकर वह खुद को मेरे और करीब महसूस करने लगा था। मैंने उसे बताया कि वह फिजिक्स में एमएससी कर रही है अभी।
- और आप? उसने मुझसे पूछा।
- हम तो भई, बीएससी के बाद से ही काम की तलाश में भटक रहे हैं।
उसने जेब में डिब्बी निकालकर एक और सिगरेट सुलगायी। तभी उसे कुछ याद आया। वह सिगरेट छोडक़र अपने कमरे में गया और जब वापस आया तो उसके हाथ में पासपोर्ट था। उसने बताया कि अगली जनवरी में वह एक साल के लिए न्यूयार्क जा रहा है। उसे पापा के क्लब ने स्पॉन्सर किया है स्पेशल ट्रेनिंग के लिए। कमरे में उसके आने से मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। हमें बेशक एक-दूसरे की बात समझने में या अपनी बात समझाने में काफी दिक्कत हो रही थी, लेकिन फिर भी हम दोनों का अकेलापन कट रहा था। मेरा अकेलापन तो खैर दो-चार दिन का था। वह खुद को अभिव्यक्त करने के लिए कितना परेशान रहता होगा। तभी उसने घडी देखी।
बताया-उसके टयूटर के आने का वक्त हो गया है। उसने अपनी चीजें सहेजीं और फिर मिलने का वादा करके चला गया।वह अपने पीछे कई सवाल छोड ग़या है। कितना अकेलापन महसूस करता होगा टीपू। क्या रितु उससे उसी तरह लड-झगड क़र लाड-प्यार जताती होगी जिस तरह सामान्य भाई-बहन करते हैं। क्या आंटी अपने क्लब और पार्टियों से फुर्सत निकालकर इसके सिर पर हाथ फेरने या होमवर्क करवाने का टाइम निकाल पाती होंगी। क्या इसके उस तरह के दोस्त होंगे जो इसे अपने खेलों, अपनी दिनचर्या में खुशी-खुशी शामिल करते होंगे। क्या उदिता और टयूटर के अलावा भी कोई उससे बात करता होगा। मैं तो यहां दो दिनों के अकेलेपन से ही टूट रहा हूं, बेचारा टीपू तो कब से अकेला है। मुझे नहीं लगा कि वह अपनी दिनचर्या में इतना खो जाता हो कि उसे किसी साथी की जरूरत ही न होती हो। उसने अपनी एक अलग दुनिया बनायी तो होगी लेकिन उसका कितना दिल करता होगा कि कोई उसकी अकेली दुनिया में आए। देर तक उसके ख्यालों में खोया रहा।
इन्टरव्यू बहुत अच्छा हो गया है। मैं चुन लिया गया हूं और मुझे मेरे अनुरोध पर दिल्ली हैडक्वार्टर दिया गया है। दिल्ली, पंजाब और हरियाणा कवर करना होगा। अपॉइन्टमेंट लैटर दस दिनों में भेज दिया जाएगा। तुरन्त ज्वाइन करना है और पन्द्रह दिन की ट्रेनिंग के लिए फिर बम्बई आना होगा। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है। मेरे संघर्ष खत्म हो रहे हैं। मनपसन्द नौकरी मिल गयी है। अच्छी पोस्ट, बडी क़ंपनी, अच्छा वेतन, और टूरिंग जॉब। मैं इतना उत्साहित हूं कि जी कर रहा है कि किसी भी व्यक्ति को रोककर उसे अपने सेलेक्शन के बारे में बताऊं। बाऊजी को तुरन्त तार दूं, लेकिन तार तो कल ही पहुंच पाएगा। फोन कर दूं, पडौस के सचदेवा के घर, लेकिन उन लोगों से तो आजकल ठनी हुई है। कहीं मेरा नाम सुनकर ही फोन रख दिया तो मेरे तीस-चालीस रूपयों का खून हो जाएगा। मैं तो इसी वक्त और यहीं अपनी खुशी बांटना चाहता हूं। कितनी अजीब बात है, असीम दुख के क्षण मैंने तनहा काटे हैं और कभी किसी को अपने दुख का हमराज नहीं बनाया है। आज मैं अपनी खुशी के क्षणों में भी अकेला हूं। कोई हमराज है ही नहीं यहां। हालांकि खुशी बांटने के लिए कब से तरस रहा हूं।
घर पर तार डाला। मृदुभा को सांकेतिक भाषा में कार्ड डाला। थोडी देर मैरीन ड्राइव पर टहलता रहा। मन बहुत हलका हो गया है।समुद्र ज्वार पर है। लगा, मानो वह भी मेरी खुशी में शामिल है और लहरों के हाथ बढाकर मुझे बधाई दे रहा है। बहुत खूबसूरत है शहर का यह हिस्सा। वापिस आने का मन ही नहीं है। घर लौटते हुए शाम हो गई है। एक मन हुआ कि मिठाई का एक डिब्बा ही ले लूं अंकल वगैरह के लिए। लेकिन टाल गया। मुझे पता है मिठाई का भी वही हश्र होना है जो पकवानों और कार्डिगन का हुआ है।मुझे और फजीहत नहीं करानी अपनी, न ही मूड खराब करना है।
घर पर सिर्फ टीपू और रूबी हैं। मैंने टीपू को खबर सुनायी है। वह तपाक से मेरे गले मिला है। मैंने खुशी से उसका गाल चूम लिया है और उसके बाल बिखरा दिए हैं। वह बहुत खुश हो गया है। मुझे अच्छा लगा है कि घर पर सिर्फ टीपू मिला है। आंटी वगैरह को तो मैं बताता ही नहीं। रूबी ने चाय के लिए पूछा, लेकिन टीपू ने मना कर दिया है।
- आज की शाम हम सेलीब्रेट करेंगे। खाना भी बाहर खायेंगे, और उसने मुझे हाथ-मुंह धोने का भी मौका नहीं दिया है। घसीट कर बाहर ले आया है। हल्की-हल्की बूंदा-बांदी हो रही है और आज बरसात में भीगना अच्छा लग रहा है। पर शायद टीपू को यहां की बरसात में भीगने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उसने एक टैक्सी रूकवायी है और कोलाबा की तरफ चलने का इशारा किया है। मैं परसों इस तरफ आया था लेकिन तब मूड खराब होने के कारण कुछ भी एन्जॉय नहीं कर पाया था। आज कोलाबा में घूमना चाहता हूं, पर टीपू पता नहीं कहां लिए जा रहा है। उसने दो-एक बार टैक्सी को दायें-बायें मुडने का इशारा किया है। टैक्सी ताज होटल के पोर्च में आकर रूकी है। अब तक ताज होटल और गेटवे को फिल्मों में ही देखा था। किसी फाइव स्टार होटल में जाने का यह पहला मौका है।मैं मेरठ के एयर कण्डीशण्ड होटलों में भी दो-एक बार ही कॉफी पीने ही जा पाया था। मैंने टैक्सी का बिल देने की बडी क़ोशिश की परन्तु टीपू ने दिया और चेंज लिए बिना मुझे घसीट कर अन्दर ले चला। मैंने जेब पर बाहर से ही हथेली के स्पर्श से महसूस कि किया पैसे सुरक्षित हैं। हालांकि मुझे यहां के दामों के बारे में कोई जानकारी नहीं है फिर भी मैंने मन ही मन हिसाब लगा लिया है,सौ-डेढ सौ रूपए तक तो खर्च होंगे ही।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 08:59 PM



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