29-04-2019, 08:59 PM
मन में हल्की-सी तसल्ली भी हुई थी कि अगर हम रईस नहीं हैं तो कम-से-कम इन्सानी मूल्यों पर तो टिके हुए हैं, तहजीब से बात तो कर सकते हैं। अब यही लोग मेरठ आए होते तो इनको बता देते कि मेजबानी क्या होती है! सारा परिवार इनकी जी-हुजूरी में एक टांग पर खडा होता। क्या मजाल कि कोई जरा ऊंची आवाज में बोल कर तो दिखाए। बाउजी की यही तो खासियत है। न तो किसी की बेइज्जती करते हैं, न अपनी होने देते हैं। अब उनको मैं ये सब बताऊंगा तो देखना-खन्ना अंकल से बातचीत तब बंद न हुई तो बात है। सवालों के जवाब मैं बीयर के घूंट भरते हुए खुद से पूछता रहा। बीयर के सुरूर में खुद को, सबको कोसने के बाद मैं हलका महसूस कर रहा था। सोचा, कल स्टेशन जाकर इंटरव्यू वाले दिन की टिकट की कोशिश करूंगा, ताकि फालतू में यहां दिमाग खराब न होता रहे।
दरवाजा अंकल ने खोला था। ड्राइंग रूम में हलकी रोशनी थी। उनके हाथ में भरा हुआ गिलास था और ड्राइंग रूम के कोने में बने उनके शानदार बार में बत्ती जल रही थी। बार स्टैण्ड पर आइस-बॉक्स, सोडा फाउन्टेन और खुली बोतल रखी थी।
- यस, यंग मैन, उन्होंने अपने गिलास में से लम्बा घूंट लेते हुए पूछा था - कहां घूमकर आ रहे हो?
-कहीं नहीं अंकल, बरसात की वजह से सारे दिन घर पर ही रहा, अभी जरा नीचे तक घूमने निकल गया था।
मैं उनसे नजरें नहीं मिलाना चाहता था, क्योंकि मूड अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था और मैं नहीं चाहता था कि उन्हें पता चले कि मैं बीयर पीकर आया हूं। वैसे भी अपनी और फजीहत करवाने की इच्छा नहीं थी। बेशक अंकल ने कोई ऐसी बात नहीं की थी, जिसे मैं अन्यथा लेता, लेकिन वे सुबह हो रहे पूरे ड्रामे में तो मौजूद थे। जब मैंने शहर देखने की इच्छा व्यक्त की थी तो वे भी तो मुझे गाइड कर सकते थे या रितु या ड्रायवर को मुझे घुमा लाने के लिए कह सकते थे, या फिर आंटी और रितु को चीजें रख लेने के लिए कह सकते थे।
-तुम्हारा खाना तुम्हारे कमरे में रखा है, हमें पता नहीं था तुम कितने बजे तक लौटोगे।
उन्होंने गिलास खाली किया और तिपाई पर रखते हुए बोले थे
- हम डिनर पर बाहर इन्वाइटेड हैं। आंटी वगैरह जा चुके हैं। मैं तुम्हारे लिए ही बैठा था। वे उठ खडे हुए और बाहर जाते हुए बोले - ओकेयंग मैन, सी यू टुमारो, गुड नाइट।
मैं गुडनाइट कहकर अपने कमरे में आ गया था।
कोनेवाली मेज पर ढका हुआ खाना और पानी का जग वगैरह रखे हुए थे। देखा-दो एक सब्जियां, चावल और रोटी थीं। भूख होने के बावजूद खाने की इच्छा नहीं हुई। अगर मेरी इतनी ही चिन्ता थी तो मुझे उसी वक्त बता देते या कह देते, बाहर ही खा लेता। लेकिन फिर सोचा-अगर मैं खाना न खाऊं और सुबह होने पर आंटी देखेंगी तो फिर भिनभिनाएंगी - एक तो स्पेशियली खाना बनवाया और छुआ तक नहीं। नहीं खाना था तो मना करके जाते। और मैं खाना खाकर सो गया था।
सबेरे से फिर वही रूटीन चल रहा है, बरसात हो रही है और मैं कमरे में बन्द हूं। रूबी एक बार सुबह पूछ भी गई थी वीडियो पर कोई फिल्म देखना चाहेंगे। लेकिन मैंने मना कर दिया था। फिल्म देखने का मतलब है - ड्राइंग रूम में बैठना और ड्राइंग रूम चूंकिसभी कमरों के बीच में पडता है, अतः सबकी निगाहों के बीच बैठना मुझे कतई गवारा नहीं था। रितु के कमरे से अब म्यूजिक की आवाज आनी बन्द हो गई है, लगता है कि किसी किताब वगैरह में मन लग गया होगा। फर्स्ट ईयर में है रितु। सुन्दर है, पर है अपनी माँ की तरह नकचढी। एक ही नजर में आप मालूम कर सकते हैं - माँ-बाप की बिगडैल और जिद्दी लडक़ी है। बस ड्राइंग रूम में ही कल जो हैलो हुई थी, उसके बाद नजर तो कई बार आई है लेकिन आँखें न उसने मिलाई हैं न मैंने ही जरूरत समझी है।खासकर कार्डीगन वाले प्रसंग से तो मुझे उसकी शक्ल तक से नफरत हो गई है।
इस घर में मुझे एक ही आदमी ढंग का लगा है - टीपू। सत्रह साल का टीपू देखने में खासा जवान लगता है, स्मार्ट भी है। टैन्थ में पढता है। इतना अच्छा लडक़ा, लेकिन अफसोस कि वह गूंगा-बहरा है। समझता है वह भी सिर्फ अंग्रेजी लिप मूवमेंट के सहारे।अपनी बात माइमिंग से ही समझाता है या कभी-कभी लिखकर भी। उससे आज बहुत ही शानदार ढंग से मुलाकत हुई। इन्टरव्यू के सिलसिले में कुछ तैयारी कर रहा था कि दरवाजे पर वह दिखाई दिया। पहले तो मैंने पहचाना नहीं लेकिन जब अन्दर आ गया और उसने हाथ बढाया तो मुझे याद आ गया। कल जब मैं यहां पहुंचा तो वह कॉलेज जा रहा था। शायद पैसों की किसी बात को लेकर आंटी उसे डांट रही थीं। बाऊजी ने भी मुझे उसके बारे में बताया था कि खन्ना उसकी ट्रेनिंग और पढाई की वजह से काफी परेशान रहते हैं।
उसने बहुत गर्मजोशी से मेरा हाथ थामा। मुझे बहुत अच्छा लगा। कोई तो है जो यहां शब्दों के बिना भी इतनी अच्छी तरह से कम्यूनिकेट कर रहा था। हम हाथ मिलाने भर में एक-दूसरे के मित्र बन गए। मुझे उसका आना अच्छा लगा। वह अचानक उठा और दरवाजा बन्द कर आया। हालांकि उस वक्त हम दोनों और रूबी के अलावा घर में कोई और न था। उसने जेब से सिगरेट की डिब्बी और माचिस निकाली और एक सिगरेट ऊपर करके मेरे आगे बढायी। अच्छा तो यह बात थी! सिगरेट कभी-कभार मैं पी लेता हूं।चार्म्स मेरा ब्रांड भी है, परन्तु यहां अंकल के घर पर रहने के कारण मैंने फिलहाल स्थगित कर रखी थी। अब सिगरेट देखकर तलब तो उठी लेकिन एक सोलह-सत्रह साल के लडक़े के साथ इस तरह सिगरेट पीना न जाने क्यों अच्छा नहीं लगा - हालांकि ऑफर वही कर रहा था। मेरे मना करने पर उसे आश्चर्य हुआ। उसके सिगरेट सुलगाने और पीने का अन्दाज बता रहा था कि वह पुराना खिलाडी है। उससे खुलकर बातें करना चाहता था पर कभी ऐसी स्थिति से वास्ता न पडा था कि माइमिंग के सहारे बात करनी पडे या ऊंचीआवाज में अंग्रेजी बोलते हुए होंठों से सही मूवमेंट्स के जरिए अपनी बात समझानी पडे।
दरवाजा अंकल ने खोला था। ड्राइंग रूम में हलकी रोशनी थी। उनके हाथ में भरा हुआ गिलास था और ड्राइंग रूम के कोने में बने उनके शानदार बार में बत्ती जल रही थी। बार स्टैण्ड पर आइस-बॉक्स, सोडा फाउन्टेन और खुली बोतल रखी थी।
- यस, यंग मैन, उन्होंने अपने गिलास में से लम्बा घूंट लेते हुए पूछा था - कहां घूमकर आ रहे हो?
-कहीं नहीं अंकल, बरसात की वजह से सारे दिन घर पर ही रहा, अभी जरा नीचे तक घूमने निकल गया था।
मैं उनसे नजरें नहीं मिलाना चाहता था, क्योंकि मूड अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था और मैं नहीं चाहता था कि उन्हें पता चले कि मैं बीयर पीकर आया हूं। वैसे भी अपनी और फजीहत करवाने की इच्छा नहीं थी। बेशक अंकल ने कोई ऐसी बात नहीं की थी, जिसे मैं अन्यथा लेता, लेकिन वे सुबह हो रहे पूरे ड्रामे में तो मौजूद थे। जब मैंने शहर देखने की इच्छा व्यक्त की थी तो वे भी तो मुझे गाइड कर सकते थे या रितु या ड्रायवर को मुझे घुमा लाने के लिए कह सकते थे, या फिर आंटी और रितु को चीजें रख लेने के लिए कह सकते थे।
-तुम्हारा खाना तुम्हारे कमरे में रखा है, हमें पता नहीं था तुम कितने बजे तक लौटोगे।
उन्होंने गिलास खाली किया और तिपाई पर रखते हुए बोले थे
- हम डिनर पर बाहर इन्वाइटेड हैं। आंटी वगैरह जा चुके हैं। मैं तुम्हारे लिए ही बैठा था। वे उठ खडे हुए और बाहर जाते हुए बोले - ओकेयंग मैन, सी यू टुमारो, गुड नाइट।
मैं गुडनाइट कहकर अपने कमरे में आ गया था।
कोनेवाली मेज पर ढका हुआ खाना और पानी का जग वगैरह रखे हुए थे। देखा-दो एक सब्जियां, चावल और रोटी थीं। भूख होने के बावजूद खाने की इच्छा नहीं हुई। अगर मेरी इतनी ही चिन्ता थी तो मुझे उसी वक्त बता देते या कह देते, बाहर ही खा लेता। लेकिन फिर सोचा-अगर मैं खाना न खाऊं और सुबह होने पर आंटी देखेंगी तो फिर भिनभिनाएंगी - एक तो स्पेशियली खाना बनवाया और छुआ तक नहीं। नहीं खाना था तो मना करके जाते। और मैं खाना खाकर सो गया था।
सबेरे से फिर वही रूटीन चल रहा है, बरसात हो रही है और मैं कमरे में बन्द हूं। रूबी एक बार सुबह पूछ भी गई थी वीडियो पर कोई फिल्म देखना चाहेंगे। लेकिन मैंने मना कर दिया था। फिल्म देखने का मतलब है - ड्राइंग रूम में बैठना और ड्राइंग रूम चूंकिसभी कमरों के बीच में पडता है, अतः सबकी निगाहों के बीच बैठना मुझे कतई गवारा नहीं था। रितु के कमरे से अब म्यूजिक की आवाज आनी बन्द हो गई है, लगता है कि किसी किताब वगैरह में मन लग गया होगा। फर्स्ट ईयर में है रितु। सुन्दर है, पर है अपनी माँ की तरह नकचढी। एक ही नजर में आप मालूम कर सकते हैं - माँ-बाप की बिगडैल और जिद्दी लडक़ी है। बस ड्राइंग रूम में ही कल जो हैलो हुई थी, उसके बाद नजर तो कई बार आई है लेकिन आँखें न उसने मिलाई हैं न मैंने ही जरूरत समझी है।खासकर कार्डीगन वाले प्रसंग से तो मुझे उसकी शक्ल तक से नफरत हो गई है।
इस घर में मुझे एक ही आदमी ढंग का लगा है - टीपू। सत्रह साल का टीपू देखने में खासा जवान लगता है, स्मार्ट भी है। टैन्थ में पढता है। इतना अच्छा लडक़ा, लेकिन अफसोस कि वह गूंगा-बहरा है। समझता है वह भी सिर्फ अंग्रेजी लिप मूवमेंट के सहारे।अपनी बात माइमिंग से ही समझाता है या कभी-कभी लिखकर भी। उससे आज बहुत ही शानदार ढंग से मुलाकत हुई। इन्टरव्यू के सिलसिले में कुछ तैयारी कर रहा था कि दरवाजे पर वह दिखाई दिया। पहले तो मैंने पहचाना नहीं लेकिन जब अन्दर आ गया और उसने हाथ बढाया तो मुझे याद आ गया। कल जब मैं यहां पहुंचा तो वह कॉलेज जा रहा था। शायद पैसों की किसी बात को लेकर आंटी उसे डांट रही थीं। बाऊजी ने भी मुझे उसके बारे में बताया था कि खन्ना उसकी ट्रेनिंग और पढाई की वजह से काफी परेशान रहते हैं।
उसने बहुत गर्मजोशी से मेरा हाथ थामा। मुझे बहुत अच्छा लगा। कोई तो है जो यहां शब्दों के बिना भी इतनी अच्छी तरह से कम्यूनिकेट कर रहा था। हम हाथ मिलाने भर में एक-दूसरे के मित्र बन गए। मुझे उसका आना अच्छा लगा। वह अचानक उठा और दरवाजा बन्द कर आया। हालांकि उस वक्त हम दोनों और रूबी के अलावा घर में कोई और न था। उसने जेब से सिगरेट की डिब्बी और माचिस निकाली और एक सिगरेट ऊपर करके मेरे आगे बढायी। अच्छा तो यह बात थी! सिगरेट कभी-कभार मैं पी लेता हूं।चार्म्स मेरा ब्रांड भी है, परन्तु यहां अंकल के घर पर रहने के कारण मैंने फिलहाल स्थगित कर रखी थी। अब सिगरेट देखकर तलब तो उठी लेकिन एक सोलह-सत्रह साल के लडक़े के साथ इस तरह सिगरेट पीना न जाने क्यों अच्छा नहीं लगा - हालांकि ऑफर वही कर रहा था। मेरे मना करने पर उसे आश्चर्य हुआ। उसके सिगरेट सुलगाने और पीने का अन्दाज बता रहा था कि वह पुराना खिलाडी है। उससे खुलकर बातें करना चाहता था पर कभी ऐसी स्थिति से वास्ता न पडा था कि माइमिंग के सहारे बात करनी पडे या ऊंचीआवाज में अंग्रेजी बोलते हुए होंठों से सही मूवमेंट्स के जरिए अपनी बात समझानी पडे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.