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Adultery हर ख्वाहिश पूरी की
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भाभी का इतना कहना ही था कि मेने भाभी की नंगी जाँघ जो गाउन के उपर सिमटने से हो गयी थी, को सहलाया..

और एक हाथ से उनकी चुचि को उमेठते हुए उनके लाल रसीले होठों पर टूट पड़ा.

भाभी मेरी सबसे पहली पसंद थी, उसे भला कैसे छोड़ सकता था..

भैया का लंड शायद भाभी को अंदर तक तृप्त नही कर पाता था, इस वजह से वो मेरे साथ सेक्स करने में पूरी तरह खुल जाती थी…,

अहह…..लल्लाअ…मेरे दूधों को चूसो….. बहुत खुजली होती है इनमें……इस्शह….खा जाऊओ…..…

मेने जासे ही उनके कड़क हो चुके निप्पल्स को काटा…..भाभी कराह उठीी…
ज़ोर्से…नही मेरे रजाअ…..उफ़फ्फ़….माँ…..मस्लो इन्हें…

भाभी दिनो दिन गदराती जा रही थी, उनके चुचे अब 34+ और गान्ड भी 36 की हो चुकी थी, जो मेरी बहुत बड़ी कमज़ोरी रही है शुरू से ही…

एक गहरी स्मूच के बाद मेने उनका गाउन निकाल फेंका, उन्होने भी मेरे कपड़े नोंच डाले, और एक दूसरे में समाते चले गये…

भाभी को सबसे ज़्यादा मज़ा मेरे लंड की सवारी करने में ही आता था,.. सो उन्होने अपना हाथ मेरे सीने पर रख कर मुझे पलंग पर धकेल दिया…और


वो मेरे उपर सवार होकर अपनी चुचियों के कंट्रोल बटन्स (निपल्स) को मेरे सीने से रगड़ती हुई… फुल मस्ती से अपनी चूत को मेरे कड़क लंड पर रगड़ने लगी…

उनकी चूत से निकलने वाले रस से मेरी जांघें और पेट तक गीला होने लगा, फिर जब भाभी की मस्ती चरम पर पहुँची,

तो उन्होने अपना हाथ घुसा कर मेरे मूसल जैसे लंड को पकड़ कर अपनी सुरंग का रास्ता दिखा दिया…. और खुद पीछे को सरकती चली गयी….

जैसे – 2 लंड चूत की दीवारों को घिसता हुआ अंदर को बढ़ता गया, भाभी के मूह से सिसकारी निकलती चली गयी…

पूरा लंड सुरंग के अंदर फुँचते ही भाभी लंबी साँस छोड़ते हुए बोली…

अहह…..लल्ला…..सच में ये तुम्हारा हथियार दिनो दिन बड़ा ही होता जा रहा है….. उफफफ्फ़…. कहाँ तक मार करता है…

फिर धीरे – 2 धक्के लगाते हुए बुदबुदाने लगी – हाए मैयाअ… तभी तो रूचि के पापा के साथ मज़ा ही नही आता है मुझे….

ना जाने क्यों जितना सुकून और संतुष्टि सेक्स करने में मुझे भाभी के साथ होती थी, वो किसी और के साथ में नही होती थी…

मे और भाभी रात के तीसरे पहर तक एक दूसरे के साथ कुस्ति करते, एक दूसरे को मात देने की कोशिश में लगे रहे…..

आख़िरकार दोनो ही जीत कर हारते हुए.... थक कर चूर, कोई 3 बजे सोए…..!

सुबह नाश्ता करते हुए बाबूजी ने मुझे पुछा – छोटू बेटा ! तुझे मोबाइल चलाना आता है..?

मे – हां बाबूजी, उसमें क्या है… मेरे कयि दोस्तों के पास है.. (हालाँकि मोबाइल का चलन अभी कुच्छ समय पहले ही शुरू हुआ था.)

बाबूजी – तो एक काम कर राम को फोन करके बोल देना, एक मोबाइल लेता आए इस बार.. ये ज़रूरी चीज़ें होती जा रही हैं जिंदगी में…

मे – हां बाबूजी ! आप सही कह रहे हैं.. वैसे मे आपको बोलने ही वाला था इस बारे में, फोन होना ज़रूरी है…

बाबूजी – देखा बहू… हम बाप बेटे के विचार कितने मिलते हैं..

भाभी ने हँसकर कहा – हां बाबूजी… आख़िर खून तो एक ही है ना.. !

हम सभी चकित थे, आज बाबूजी के व्यवहार को देख कर.. कुच्छ दिनो से उनमें काफ़ी बदलाव आया था.. लेकिन आज वो कुच्छ ज़्यादा ही खुश लग रहे थे..

कारण मेरी समझ में कुच्छ -2 आता जा रहा था, उनके खुश रहने का राज,

मेने जैसा सोचा था, वैसा होता दिख रहा था…. बाबूजी की खुशी हम सबके लिए ज़रूरी थी..

खैर मे कॉलेज चला गया और लौटते में एसटीडी से मेने भैया को फोन करके बाबूजी की बात बताई.. उन्होने भी हां करदी…

सॅटर्डे को भैया आए और सिम के साथ मोबाइल भी ले आए, जो बाबूजी के नाम से आक्टीवेट था..

चूँकि दोनो भाइयों के पास पहले से ही फोन की सुविधा थी उनके ऑफीस और घर दोनो जगहों पर, तो अब दूरियाँ कम होने लगी थी…

हमारे इलाक़े के लोकल एमएलए रस बिहारी शर्मा, एक दिन अपने क्षेत्र के दौरे पर आए,
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RE: हर ख्वाहिश पूरी की - by nitya.bansal3 - 22-11-2021, 10:48 AM



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