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Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#15
सारा दोष उस लडक़ी का है। उसकी बर्थ रोहित के पास भी तो हो सकती थी। या फिर अलीगढ ज़ंक्शन पर प्लेटफार्म पर उतर कर चाय भी तो पी सकती थी। यह भी तो अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि, वह कहाँ ट्रेन में चढी है, पठानकोट, अमृतसर, व्यास या कहीं और से। अम्बाला से तो नहीं चढी वरना, वहाँ स्टेशन पर ही दिख जाती।
चेहरे से तो पंजाबी लगती है। कभी कभी उसके चेहरे पर बंगाली या मारवाडीपन भी दिखता है सलवार सूट तो ,., पहनावा भी होता है। रोहित निरन्तर लडक़ी के बारे में ही सोचे जा रहा था,कोई बात नहीं, मैं भी पीछा नहीं छोडने वाला। कानपुर जंक्शन पर ट्रेन ज्यादा देर रुकती है, वहीं उसकी आवाज सुनने का प्रयत्न करुंगा।
मैले से कपडे पहने एक छोटा लडक़ा हाथ में थमे सिक्कों को खास अन्दाज में बजाता है। लडक़े के दूसरे हाथ में पत्तों का बना झाडू है। कुछ देर से रोहित उस लडक़े को डब्बे की सफाई करता देख रहा था। उसने एक सिक्का लडक़े को थमा दिया। लडक़े का मेहनत करना उसे अच्छा लगता है, वह भीख तो नहीं मांगता। लडक़ा सिक्कों को उसी अन्दाज में बजाता अन्य यात्रियों की ओर मुड ग़या।
रोहित ने बर्थ पर लेट कर फिर से कहानियों की पत्रिका निकाल ली। परन्तु दो चार पृष्ठ पलट कर फिर से तकिये के नीचे सरका दी। आंखे मूंदते ही वह लडक़ी फिर से उसके दिमाग में उभर आयी।वही गोरा रंग, गोल चेहरा, भूरी आँखे, आकर्षक नैन नक्श , होंठों से झांकती श्वेत मोतियों सी दंत पंक्ति पतली गरदन को तीन तरफ से घेरे भीतर की तरफ मुडे क़ंधे तक कटे रेशमी बाल और बदन पर खिलता आसमानी सूट...
कानपुर जंक्शन पर चावल वाले की रेहडी यात्रियों से घिर चुकी थी। उसने जगह बना कर चावल की प्लेट ली और थोडी दूर खडे होकर लडक़ी वाली खिडक़ी पर नजर डाली। इस क्रम में उसने स्वयं को खाने में व्यस्त दिखने की पूरी सावधानी बरती ताकि, लडक़ी देखे तो समझे कि उसने अनायास ही देखा है। लडक़ी परांठे खाने में तल्लीन थी। अच्छा तो साहिबा को चावल से ज्यादा परांठे पसन्द हैं।लडक़ी का खाना खत्म हो चुका था। उसने पास से गुजरती किताबों वाली रेहडी क़ो रुकवाया। दो चार पत्रिकाएं छांट कर ले लीं। रोहित ने देखा लडक़ी ने साहित्यिक पत्रिकाएं ही लीं थीं। यानि लडक़ी की भी अभिरुचि साहित्य में है, वह मुस्कुराया। लेकिन इतनी पत्रिकायें? कहीं वह लडक़ी लेखिका तो नहीं? बिजली की तरह यह विचार उसके दिमाग में कौंधा। दूसरे पल प्रतिविचार भी आया, इतनी सुन्दर लडक़ी लेखिका नहीं हो सकती....मगर वह ज्यादा देर इस विषय पर तर्क ना कर सका। ट्रेन पटरियों पर फिसलने लगी। दरवाजे का हत्था पकड वह भी डब्बे के अन्दर झूल गया।
नई दिल्ली से चुनार स्टेशन तक इस ट्रेन में बिजली वाला इंजन लगता है।इसलिये रफ्तार पकडने में ज्यादा देर नहीं लगती। ट्रेन स्टेशन से निकल कर बडी तेजी से आबादी को पीछे छोड बढी ज़ा रही थी। स्टेशन पर जो चहल पहल डब्बे में पैदा हुई थी, वह अब गुम हो चुकी थी। एक बार फिर से वही बर्थें, वही पंखे, वही यात्री, वातावरण में पुराना बोझिलपन खींच लाये, जो अगले स्टेशन तक यूं ही बना रहना था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 08:51 PM



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