Thread Rating:
  • 1 Vote(s) - 5 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#13
बाथरूम से निकलने तक ट्रेन सीटी बजाती धीमी होने लगी। पेन्ट्री की चाय छोडो अब स्टेशन की चाय पी जाये, उसने सोचा। ट्रेन अलीगढ ज़ंक्शन पर रुक गयी। चाय लेने के बाद वह प्लेटफार्म पर चहल कदमी करता उस डब्बे तक बढ ग़या जिधर वो लडक़ी बैठी थी। कुछ बर्थों के बाद एक खिडक़ी पर वह लडक़ी प्लेटफार्म पर खडे चाय वाले से चाय लेती दिखी। तो उसे भी प्लेटफार्म और पेन्ट्री कार की चाय का फर्क पता है, मुस्कुराता हुआ रोहित थोडा आगे बढ ग़या। फिर खडा होकर चाय की चुस्कियों के साथ तिरछी नजर से उस लडक़ी को देखने लगा, कैसे उस लडक़ी से बात की जाये।शायद बातचीत से ही पता चले कि उसका चेहरा इतना पहचाना सा क्यों लग रहा है? काश वह लडक़ी उसके साथ वाली बर्थ पर होती तो, कितनी आसानी से बातें की जा सकती थीं।
रोहित ने कई बार ट्रेन के सफर किये हैं। ट्रेन के लम्बे सफर में साथ वाली बर्थ पर सुन्दर और अकेली लडक़ी के सहयात्री बनने का उसका ख्वाब कभी भी पूरा नहीं हुआ अब तक। वह लडक़ी भी तो इतनी दूर बैठी है। अब उसकी बर्थ पर जाकर तो बात नहीं की जा सकती ना! अगर उसने जवाब नहीं दिया या फिर जवाब में कोई ऐसी वैसी बात कह दी तो, बेकार ही में अपनी भद पिट जायेगी।नहींउससे बातें करना आसान नहीं। तो फिर कैसे पता चलेगा कि वह इतना परिचित क्यों लग रही है?
प्लेटफार्म के छोर पर सिग्नल हरा हो गया। इंजन की सीटी बजने और ट्रेन के सरकने तक रोहित चाय का खाली कसोरा फेंक कर डब्बे में समा गया।
जितना लडक़ी की तरफ से ध्यान हटाता, वह चेहरा उतना ही आँखों के सामने आ जाता। लडक़ी के परिचित होने का अहसास घन की तरह दिमाग पर प्रहार करने लगतापता तो चलना चाहिये, वह लडक़ी है कौन? थोदी देर बर्थ पर करवटें बदलने के बाद उसकी बेचैनी बेतरह बढ ग़यी। वह, लडक़ी को फिर नजर भर देखना चाहता था। इसके लिये तो लडक़ी की तरफ जाना होगा। रोहित बर्थ से उतरा, पैरों में चप्पलें फंसा कर डब्बे की उस ओर बढने लगा, जिधर लडक़ी थी। डिब्बे में अच्छी खासी भीड थी। कुछ लोग ताश की पत्ते बीच में बिखेरे खेल का आनन्द ले रहे थे। उसे लगा आगे बढना कठिन है, लौटना पडेग़ा। मगर लडक़ी को एक झलक देखने की तीव्र इच्छा ने उसे आगे की ओर ठेला। ताश के खिलाडियों ने उसे घूर कर देखा और बडी अनिच्छा से दांये बांये सरक कर आगे जाने के लिये उस पर अहसान किया। रोहित ने चैन की सांस ली। आगे बढ क़र उसने कनखियों से लडक़ी पर नजर डाली। मगर हाय रे दुर्भाग्य! लडक़ी लेट कर पत्रिका पढ रही थी। पूरा चेहरा पत्रिका की आड में छिपा था। रोहित के लिये वहाँ खडे रहना कठिन था, उसकी देह पर ही वह एक मुलायम सी नजर फेर कर वह आगे बढ ग़या। लडक़ियों को कितना आराम है, दिन में भी नीचे वाली बर्थ पर लेटी हुई है।
थोडी देर यूं ही डब्बे के दूसरे छोर वाले दरवाजे पर खडा रहने के बाद वह वापस लौटा। उसने सोचा,इस बार तो निश्चय ही लडक़ी की एक झलक पा लेगा। परन्तु इस बार लडक़ी बर्थ के नीचे रखी टोकरी पर झुकी हुई थी। गर्दन तक कटे बालों ने उसके चेहरे को चारों तरफ से ढंक रखा था
निराश रोहित अपनी बर्थ की ओर बढ ग़या। ताश के खिलाडी फ़िर से उसके सामने थे। शायद उनकी बाजी किसी दिलचस्प मोड पर थी। तभी तो उसे देख कर इस बार उनके चेहरे पर अप्रिय भाव कुछ ज्यादा ही उभर आये। उनके बीच से रास्ता निकाल कर बढते हुये रोहित ने सुना, किसी ने कटाक्ष किया था।
'' टिकट चेकर का काम कर रहे हैं क्या भाई साब?''
जी में आया कि पलट कर करारा जवाब दे दे। परन्तु बात बढ ज़ाने की आशंका से वह बिना कुछ कहे अपनी बर्थ पर आ गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply


Messages In This Thread
RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 08:49 PM



Users browsing this thread: 2 Guest(s)