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Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#12
कस्तूरी
गोरा रंग, भूरी आँखे, गोल चेहरा और तीखे नैन नक्श वाली उस लडक़ी में गजब का आकर्षण था।
एक हाथ में तौलिया और दूसरे हाथ में टूथब्रश व पेस्ट थामे वह लडक़ी रोहित वाली बर्थ के पास से निकल कर बाथरूम की ओर चली गई। खिडक़ियों से आती हवा तरंगों पर उसका आसमानी सलवार सूट और गरदन तक कटे बाल लहराते हुये गुजर गये थे। उस खूबसूरती ने पूरी तरह से रोहित की नींद उडा दी थी।
सामान्यत: वह सुबह आठ बजे से पहले कभी नहीं उठता। ट्रेन के सफर में तो दस ग्यारह भी बज जायें तो क्या फिक्र! इसी कारण अम्बाला से टाटानगर तक के लिये सफर में उसने ऊपर वाली बर्थ का आरक्षण करवाया था ताकि दिन के समय भी बर्थ पर लेटने की सुविधा रहे।डेली पैसेन्जरों के कारण दिन में नीचे वाली बर्थ पर लेटना असंभव है। रेल विभाग ने कहने को 'स्लीपर क्लास बना दिया है मगर डेली पैसेन्जर तो पूर्व की भांति ही चढ ज़ाते हैं। उन्हें बैठने न दो तो झगडा करने पर उतारु हो जाते हैं। मानो रेल उनकी जागीर हो। वैसे लोगों का बिना उचित टिकट के स्लीपर क्लास में सफर और बैठने के लिये मारा मारी करना सीना जोरी नहीं तो और क्या है?
रोहित ने अंगडाई ली और खिडक़ी की ओर झुक कर बाहर देखा। खट खट्खट् खट् ट्रेन पूरी रफ्तार से दौडी ज़ा रही थी। उसने घडी देखी, आठ बज चुके हैं। तब तो दिल्ली पार हो गई। उसने सोचा था,दिल्ली जंक्शन पर उतर कर जरा चहल कदमी करेगा, ठंडा वंडा पियेगा। क्या बात है इस शहर की,पांच साल तक रहने की बातें करने वाला कोई तेरह दिन रहता है कोई दस महीने! मगर जाते वक्त कोई नहीं पूछता कि कब लौटियेगा हुजूर? पुरानी दिल्ली से हट कर लोगों ने नई दिल्ली तो बना ली मगर जिन्दगी का नया ढंग नहीं सीख पाये
दस दिन पहले अम्बाला से मौसी का फोन आने के बाद से ही मां ने जिद पकड ली थी कि ,
'' जाओ मौसी ने बुलाया है।''
मौसी ने कहा था, '' लाडो, रोहित के लिये बडी अच्छी लडक़ी देखी है वे लोग भी बनारस के रहने वाले हैं। यहाँ अपनी बहन के पास आयी है। उसके जीजाजी यहां इनके ही साथ काम करते हैं।''
मां तो जैसे तैयार बैठी थी, '' दीदी, मैं क्या बताऊं। मेरा बस चले तो मैं तुरन्त हाँ कर दूँ। मगर आजकल के लडक़ों को तो तुम जानती ही हो। चार अक्षर क्या पढ लिये हमें ही पढाने लगते हैं। मैं रोहित को भेज देती हूँ। उससे हाँ करवा लो तो हमारी भी हाँ है।''
फिर रोहित मां को न टाल सका। प्रोग्राम बनाते और आरक्षण कराते पाँच दिन और बीत गये। सातवें दिन वह अम्बाला पहुंच गया, मगर सब व्यर्थ गया था। लडक़ी दो दिन पूर्व ही बनारस लौट गयी थी।उसकी मां वहाँ बीमार थी। रोहित भी पुन: आने को कह कर लौट पडा। इस बीच मौसी उस लडक़ी की सुन्दरता का विवरण रोहित के दिमाग में कूट कूट कर भर चुकी थी। कभी वह सोचता, चलो शादी के झंझट से कुछ और दिनों के लिये बच गया। फिर दूसरे ही पल उसके मन में एक सुन्दर पत्नी का खयाल आता। जब विचारों में सुन्दर पत्नी और साधारण मगर गुण वाली पत्नी के बीच विवाद छिडता तो वह दुविधाग्रस्त हो जाता, किसे चुने? बडे बुर्जुगों की माने तो साधारण परन्तु गुण वाली का चुनाव करता। हमउम्र साथियों की सुने तो सुन्दर लडक़ी काखैर इस बार तो बात टल गयी।अगली बार देखा जायेगा।
वह आसमानी सूट, बॉब कट बालों वाली सुन्दर गोरी लौटती नजर आई। अपने हाथ में थमे तौलिये से आहिस्ता आहिस्ता चेहरे को थपथपाते हुये। इस बार उसका चेहरा अच्छी तरह देखने को मिला।रोहित का दिल धक्क से रह गया। जाने क्यों लडक़ी का चेहरा जाना पहचाना लगा। उसने लडक़ी के चेहरे पर नजरें गडा दीं, मानो परिचय वहीं छुपा है। तभी लडक़ी ने अपनी नजरें उठा कर रोहित को देखा। शायद उसे स्वयं को घूरे जाने का अहसास हो गया था। रोहित झेंप गया। लडक़ी क्या सोचेगी कि, वह उसे क्यों घूर रहा है? एक तो लडक़ी उसे भली लगी दूसरे उसका चेहरा जाना पहचाना लग रहा था। रोहित नहीं चाहता था कि लडक़ी के समक्ष उसका इंप्रेशन खराब हो। रोहित ने अपनी नजरें जल्दी से खिडक़ी के बाहर घुमा लीं। लडक़ी अपनी बर्थ की ओर बढती हुई उसकी नजरों से ओझल हो गयी।
ह्नउसे कहाँ देखा है, रोहित ने दिमाग पर जोर डाला, जवाब नदारद! फिर क्यों उसका चेहरा इतना जाना पहचाना सा लग रहा है। क्या सिर्फ इसलिये कि वह बहुत सुन्दर है( ऐसी हालत में हर सुन्दर लडक़ी जानी पहचानी लगती है)। उसका अंर्तमन इस तर्क को नकारता है। नहीं, लडक़ी का चेहरा निश्चय ही जाना पहचाना सा है। काश! उसकी आवाज सुनने को मिल जाती। वक्त के प्रवाह में भले ही चेहरे बदल जाते हों मगर आवाज नहीं बदलती। ऐसी स्थिति में आवाज तुरन्त ही पहचान करवा देती है।
खैर... छोडो भी, रोहित ने विचारों को झटका। होगी कोई। कई बार ऐसा होता है कि, छोटी सी बात भी याद नहीं आती। जितना प्रयत्न करो, उतनी ही दूर चली जाती है। प्रयत्न करना छोड दें तो, वह बात सहज ही याद आ जाती है। इसी आधार पर रोहित ने प्रयत्न करना छोड दिया। तकिये के नीचे से पत्रिका निकाल कर पृष्ठ पलटने लगा। मगर ध्यान उस लडक़ी में ही अटका रहा। उसने पत्रिका पुन: तकिये के नीचे घुसा दी।
'' चाऽयचाय गरमइलायची वाली चाऽय'' आवाज लगाता पेन्ट्री कार का बेयरा दूसरी तरफ से डब्बे में घुसा। चाय पी जाये। उसने सोचा, वह अपनी बर्थ पर उठ बैठा। कुछ यात्रियों ने बेयरे को चाय के लिये रोक रखा था। बेयरे के यहां आने तक हाथ मुंह धो ले, वह उतर कर बाथरूम की तरफ बढ ग़यामगर वह लडक़ी है बहुत सुन्दर!
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 08:48 PM



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