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Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#9
आइसक्रीम खाने के बाद बाइक पर।।।। उसने पूछा नहीं- अब कहाँ ले जाओगे? कंधे का सहारा लिये बैठी रही। चिकनी-चौड़ी चमचमाती सड़कों पर बाइक प्लेन की तरह सर्र-सर्र उड़ती रही, घुमावदार मोड़ों पर मोटरवोट-सी लहराती हुई। वह जीवन के सर्वाधिक तीक्ष्ण और मदहोश लम्हों से गुज़र रही थी। मन स्पेस में कुलाँचे भर रहा था। लग रहा था ये सफ़र कभी बीते नहीं।।।। मगर अचानक उसे होश आया, कंधे पर चिबुक धर कर धड़कती-सी बोली, टे्रन नहीं छूट जाय-कहीं!
-ट्रेन! वह चौंक गया सहसा, आज का ही वापसी रिजर्वेशन है?
-हाँ!
-मगर चली गइंर् तो इंटरव्यू टल जायेगा! बाइक धीमी पड़ गई।
-जाना नहीं, टिकट कैन्सल कराना है।।। उसने दबे स्वर में कहा।
अभिषेक ने तुरंत बाइक स्टेशन की ओर मोड़ दी।।।।

वह ऊहापोह में थी- क्या सोचता होगा! कितनी कंजूस है।।। गरीब है बेचारी! पर क्या करे? उसके तइंर् तो एक-एक पाई की अहमियत थी। कितने अभावों में जी रही थी, किससे कहती।।।।
लौट कर बाईपास के एक ढाबे पर गरमागरम लज़ीज़ खाना खिलाते हुए पूछा अभिषेक ने, अब गेस्ट हाउस चलोेेेगी?
-हाँ! और-क्या! उसने निर्विकल्प कहा।
वह असमंजस में पड़ गया। बेसिन से लौट कर हाथ पोंछते हुए बोला, रात इसी में गुज़र जायेगी। नार्थ-साउथ हैं गेस्ट हाउस और पंचवटी।
वह खामोश रह गई। मगर रास्ते में फिर कहा, अच्छा होता मुझे गेस्ट हाउस छोड़ देते, तुम्हें असुविधा होगी।।।।
अभिषेक ने कोई उत्तार नहीं दिया। रात बढ़ रही थी और फर्राटेदार हवा भली लग रही थी अभी। वक़्त पंख लगा कर उड़ रहा था, गोया। फिर जाने कब बाइक एक मुकाम पर आकर ठहर गई। सुबह वाली जगह तो नहीं थी यह।।।।
-किराये का फ्लैट है।।। छोटा-सा! उसने मुस्करा कर स्वागत किया।

मेरे रूम से बड़ा और बेहतर होगा। नमिता ने मन ही मन सोचा। वह छिंदवाड़ा से है। अम्भा के मुकाबले वहाँ फिर भी खुलापन है। उतनी दकियानूसी नहीं। विकास बड़ी तेजी से बदलता है समाज को।।।।
बाइक रखने के बाद वह जीना चढ़ा कर ऊपर ले आया नमिता को। बरामदा, एक रूम और लेट-बॉथ, इतना ही था- बस।
बरामदेे में दो कुर्सियाँ पड़ी थीं एक छोटी-सी मेज। रूम में फर्श पर बिस्तर और उस पर भी पुस्तकों-पत्रिकाआें का हुजूम, गेट के पीछे दीवाल पर कपड़ों की नुमाइश, एक ओर स्टैंड के बीच के खाने में टीवी और टॉप पर गुलदस्तों की तरह खाली कप और गिलास।।।। वह मुस्कराई, अभी कोई अंतर नहीं आया।।।। वह झेंपता-सा बोला, तुम जाकर चेंज-वेंज करलोे, तब तक मैं व्यवस्थित करता हूँ!
बैग तो गेस्ट हाउस में ही छूट गया था, क्या बदलती? निवृत होते ख्याल आया कि अब क्या इंतजाम करेगा वह? बिस्तर तो एक है! लौटी तो उसे सचमुच जहाँ का तहाँ ख़डा पाया।।।। नज़र मिलते ही गोया शर्मिंदगी में हँसता-सा बोला, न्यू पोस्टिंग, न्यू सेटलमेंट।।। मई-जून में आया, तब पता नहीं था कि बारिश पड़ते ही रात भीगने के साथ यहाँ एक मोटी चादर भी लेनी पड़ती है! बैड, कम्प्यूटर तक।।। अभी ग्वालियर में ही पड़ा है-सॉरी!
वह फिर मुस्करायी। गरीबी का एहसास काफी हद तक कम हो गया था।।।।
-तुम सोओ! हठात् वह बरामदे की ओर चल दिया।
-तुम भी सोओ-ना! वह तो पक्की थी। चाबी गुम गई थी तब वह और सोमेश भी तो अपनी-अपनी करवट लेट गए थे!
अभिषेक का दिल धड़कने लगा।
मोब सिरहानेे रखकर निर्विकल्प नमिता अपनी करवट लेट गई। थोड़ी देर में बत्ताी बुझा कर वह भी अपनी करवट लेटा तो बरामदेे की रोशनी आधे कमरे में गिर रही थी। बुझाना मुनासिब नहीं समझा उसने। कुछ देर बातें हुइंर् कैरियर को लेकर। अपने-अपने संघर्ष कहे एक-दूसरे से। फिर जम्हाइयाँ गहरी हो गइंर् और झपक गए बतियाते-बतियाते।

सोमेश ने कहा जरूर था कि जब तक मैं घर हो आऊँगा! मगर गया नहीं, क्योंकि उसे अगले ही दिन तो नमिता को रिसीव करना था! ट्रेन गुज़र गई तो थोड़ी घबराहट के साथ उसने रात सवा तीन बजे प्लेटफार्म के एसटीडी बूथ से नम्बर मिलाया।।।। तब सीपीयू में देर से अटकी जैसे कोई फ्लॉपी खुली, नींद टूट गई नमिता की। टॉप की चेन खुली थी! और अभिषेक का हाथ।।। स्थिति भाँप कर उसे धक्का-सा लगा।
-हलो।।। उसने करवट लेकर काँपते स्वर में कहा।
-कहाँ हो? सोमेश का चिंतित स्वर कान में बजा।
-यहीं! वह शर्म से डूबे स्वर में बोली।
-यहाँ-कहाँ? उसने धड़कते दिल से सूने प्लेटफार्म पर नज़रें दौड़ाइंर्ं।
-यहीं, भोपाल में।।।
-क्यों? आई नहीं।।।।
-कल इंटरव्यू है!
-अच्छा! वह बुझ गया, ठीक है, ओके- विश यू, ऑल द बेस्ट।

अगले दिन कंपनी जाकर पता चला कि अभी कोई नई यूनिट नहीं डाली जा रही, इसलिए- भरती फिलहाल नहीं होेगी!
फिर अभिषेक ने बहुत रोकी मगर वह बिना रिजर्वेशन के ही शाम की गाड़ी से लौट पड़ी। ।।।रात एक-डेढ़ बजे पहुँची घर के फाटक पर। सोमेश उस वक़्त जाग रहा था, मगर उसे पता नहीं चला। पता चलता, जो वह आवाज लगाती, गेट बजाती! वह तो नुकीले सरियों पर चढ़ कर धम्म से कूद पड़ी!
आहट पाकर वह दौड़ा। उसे देख कर दिल धक्धक् कर उठा...
-कमाल है, आवाज भी नहीं दे सकती थीं.... वह आहत स्वर में धीरे-से चीखा।

नमिता का दिल भर आया। वह अपने कमरे में जाकर सिसकने लगी।































(।कविता फिरोज की डायरी से)
ए. असफल
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 08:44 PM



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