29-04-2019, 08:43 PM
मगर अभिषेक का फोन आने पर एकान्त तलाशने लगती है।।।। जब से वह एक बार होकर गया है, आत्मीयता और गाढ़ी हो गई है। ग्वालियर रहते आता था, तब वह बात नहीं थी। भोपाल शिफ्ट होने के बाद आया और खास कर मिलने आया तो बात कुछ विशेष हो गई। दिन भर एक-दूसरे के सामने से हटे नहीं। रात को सोमेश बिठाने गया और ट्रेन दो घंटे लेट थी तो प्लेटफार्म से एक बार फिर लौट आया! एक-एक पल करीब रह कर जी-मर लेना चाहता था, जैसे! वह वाकया वह भूलती नहीं। सोमेश ने बहुत कहा कि मेरे कमरे में चल कर रेस्ट कर ले। फिर रात भर तो सफर करेगा ही! लेकिन वह नमिता की चेयर पर उन्हीं पाँवों बैठा रहा।।।। और यहीं मोहब्बत की, उसकी गहराई की शिनाख्त होती थी।।।। मगर जो उसे सुखकर है, वही अखरता है, सोमेश को! उस दिन वह बहुत असहज रहा। खास कर प्लेटफार्म से लौटने के बाद के समय में।।। उसने कहा भी नमिता से कि वह बोरियत से बचने, रेस्ट करने नहीं, तुमसे मिलने ही आया था! वह मुस्करा कर रह गई, जैसे जानती थी! तब से अक्सर रीमिक्स देखती है! पढ़ते वक़्त भी सुनती रहती है धीमी आवाज में। पहले यही चीजें काटती थीं!
छुटि्टयाँ अपने-अपने घर काट कर लौट आए हैं दोनों। वह अभी तक कह नहीं पाया है, कहे कैसे? कहे भी तो क्या कि मुझ बेरोजगार के खूंटे से बंध जाओ, नमिता! कहाँ तो वह कैरियर इज फर्स्ट का पाठ पढ़ाता है।।। नहीं, अभी बीच में ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दे सकेगा। खास कर अपने लिए! तिस पर एक नई मुसीबत ये हो गई है कि जो आशा का दीप दिख रहा था, वह जगने से पहले ही बुझ गया है। कॉलेज प्रबंधन समिति ने एक्सपीरियेंस होल्डर्स को ही रखने का डिसीजन लिया है! अब फिर से कोचिंग सेंटर में पढ़ा कर ही खर्च निकालना होगा। ।।।और हिम्मत टूट न जाये, इसलिये उसने कह रखा है कि हम अपना कोचिंग चलाएंगे। सुबह योगा की ट्रेनिंग दिया करेंगे। ठीक रहेगा।।।।
सोचती है- नमिता, ठीक तो रहेगा। पर तैयारी पर असर पड़ेगा। बिजनेस और कम्पटीशन दोनों एक साथ नहीं सधते। एक बंधी नौकरी होती तो माइंड फ्री होता। वर्किंग आवर्स के अलावा सिऱ्फ कम्पटीशन का भूत रहता।।।। लेकिन-लेकिन! वह सोचते-सोचते पजल्ड हो जाती।
नए सत्र के साथ ही कभी गर्मी कभी बारिश का मौसम शुरू हो चुका था। अभिषेक को सब डिटेल मिल रहा था। वह भोपाल के लिए प्रेरित कर रहा था, नमिता को। उसे फुरसत नहीं है। कम्पनी छुट्टी नहीं दे रही, नहीं तो आकर समझाता! मोबाइल रोज़ काँपता है। नम्बर देख कर नमिता उठ जाती है। ।।।वह बुला रहा है ।।।कम्पनी में तुम्हें भी जॉब मिल सकता है। बायोडेटा और प्रोजेक्ट की सीडी लेती आओ।।।। यहाँ तैयारी भी अच्छी हो जायेगी। कोचिंग के लिये कोटा के बाद एम।पी। में भोपाल ही बेस्ट प्लेस है। फिर मैं भी हूँ। कम्पनी सेलरी भी अच्छी देगी। नमिता-नमिता।।।
उसने सोमेश से कहा, बुला रहा है- क्या करूं?
एक-दो रोज़ आहत हुआ वह। फिर ऊपरी मन से बोला, अच्छा चली जाओ, देख आओ- क्या बिगड़ता है?
-तुम नहीं चलोगे?
-मैं क्या करूँगा, घर हो आऊँगा जब तक।।। जाना भी डयू है।
नमिता मान गई। उसने ट्रेन का वापसी रिजर्वेशन टिकट लाकर दे दिया। रात में बिठा देगा, सुबह पहुँचेगी। दिन में कम्पनी हो आयेगी, रात को फिर बैठ कर सुबह अपनी जगह।।।।
और क्या करना! ठीक है। वह भी संतुष्ट थी।
यहाँ सोमेश ने सी-ऑफ किया और ६-७ घंटे के सफर के बाद वहाँ अभिषेक ने पिकअप कर लिया उसे। कोई उलझन नहीं हुई। भाग्य से उसे इतने अच्छे मित्र मिले हैं- दिल भर आता है कई बार।।।। अभिषेक कम्पनी के गेस्ट हाउस मेंे ले आया। ए।सी। रूम। साफ-सुथरे लेट-बाथ। सादा खाना। भरपूर आराम। दिन मस्ती में गुज़रा। वह डयूटी करते लंच ब्रेक में आया, बता गया- बायोडेटा और प्रोजेक्ट पहुंच गया है प्रबंधकों पर। शायद, कल बुला लिया जाय! ।।।वह सोते-जागते सपने बुनते सोचती रही कि जॉब मिल जाय तो सारी अनिश्चितता और मारामारी मिटे। ऊब गई पढ़ाई से। साल-दो-साल के गैप से फिर देखेगी आगे की राह।।।
शाम को अभिषेक उसे बड़े तालाब पर ले आया। सूर्यास्त बहुत सुंदर दिखा। निर्मल जल की शांत लहरों पर दहकते शोले! आग की लम्बी-सी खाई।।।। मन हिलोरें लेने लगा। सारा आगा-पीछा, सारे रंजोगम भूल गई उन अद्भुत क्षणों में।।।। तटके फुटपाथ और पार्क रंग-बिरंगे बच्चोंे और युवा जोड़ों से भरे चिड़ियों से चहचहा रहे थे! सारी वोटें, सारी बैंचें हथिया लीं उन्होंने। फव्वारे मरकरी और नियोन बल्बों की जगमगाहट में तिलस्मी मंजर प्रतीत हो रहे थे।।।। अभिषेक से सटी प्रमुदित-सी वह सारे अजूबे देख रही थी। और उसने भी चलते-चलते हाथ कमर में डाल लिया था! दूरी न के बराबर रह गई। सभी जोड़े तो आपस में गुँथे थे ऐसे ही! कोई एतराज नहीं जताया नमिता ने। बड़ी जगह में आकर गोया दिल भी बड़ा हो गया था। माहौल किस कदर अपने आप में ढाल लेता है मनुष्य को, वह प्रत्यक्ष अनुभव कर रही थी।।।।
पार्क से निकलकर फुटपाथ पर आ गए।
-चाट खाओगी? उसने पूछा।
वह हँसी, जैसे, कोई पुराना अनुभव याद आया, `नहीं।।।'
-आइसक्र्रीम? वह मुस्कराया।
इन्कार नहीं किया।
छुटि्टयाँ अपने-अपने घर काट कर लौट आए हैं दोनों। वह अभी तक कह नहीं पाया है, कहे कैसे? कहे भी तो क्या कि मुझ बेरोजगार के खूंटे से बंध जाओ, नमिता! कहाँ तो वह कैरियर इज फर्स्ट का पाठ पढ़ाता है।।। नहीं, अभी बीच में ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दे सकेगा। खास कर अपने लिए! तिस पर एक नई मुसीबत ये हो गई है कि जो आशा का दीप दिख रहा था, वह जगने से पहले ही बुझ गया है। कॉलेज प्रबंधन समिति ने एक्सपीरियेंस होल्डर्स को ही रखने का डिसीजन लिया है! अब फिर से कोचिंग सेंटर में पढ़ा कर ही खर्च निकालना होगा। ।।।और हिम्मत टूट न जाये, इसलिये उसने कह रखा है कि हम अपना कोचिंग चलाएंगे। सुबह योगा की ट्रेनिंग दिया करेंगे। ठीक रहेगा।।।।
सोचती है- नमिता, ठीक तो रहेगा। पर तैयारी पर असर पड़ेगा। बिजनेस और कम्पटीशन दोनों एक साथ नहीं सधते। एक बंधी नौकरी होती तो माइंड फ्री होता। वर्किंग आवर्स के अलावा सिऱ्फ कम्पटीशन का भूत रहता।।।। लेकिन-लेकिन! वह सोचते-सोचते पजल्ड हो जाती।
नए सत्र के साथ ही कभी गर्मी कभी बारिश का मौसम शुरू हो चुका था। अभिषेक को सब डिटेल मिल रहा था। वह भोपाल के लिए प्रेरित कर रहा था, नमिता को। उसे फुरसत नहीं है। कम्पनी छुट्टी नहीं दे रही, नहीं तो आकर समझाता! मोबाइल रोज़ काँपता है। नम्बर देख कर नमिता उठ जाती है। ।।।वह बुला रहा है ।।।कम्पनी में तुम्हें भी जॉब मिल सकता है। बायोडेटा और प्रोजेक्ट की सीडी लेती आओ।।।। यहाँ तैयारी भी अच्छी हो जायेगी। कोचिंग के लिये कोटा के बाद एम।पी। में भोपाल ही बेस्ट प्लेस है। फिर मैं भी हूँ। कम्पनी सेलरी भी अच्छी देगी। नमिता-नमिता।।।
उसने सोमेश से कहा, बुला रहा है- क्या करूं?
एक-दो रोज़ आहत हुआ वह। फिर ऊपरी मन से बोला, अच्छा चली जाओ, देख आओ- क्या बिगड़ता है?
-तुम नहीं चलोगे?
-मैं क्या करूँगा, घर हो आऊँगा जब तक।।। जाना भी डयू है।
नमिता मान गई। उसने ट्रेन का वापसी रिजर्वेशन टिकट लाकर दे दिया। रात में बिठा देगा, सुबह पहुँचेगी। दिन में कम्पनी हो आयेगी, रात को फिर बैठ कर सुबह अपनी जगह।।।।
और क्या करना! ठीक है। वह भी संतुष्ट थी।
यहाँ सोमेश ने सी-ऑफ किया और ६-७ घंटे के सफर के बाद वहाँ अभिषेक ने पिकअप कर लिया उसे। कोई उलझन नहीं हुई। भाग्य से उसे इतने अच्छे मित्र मिले हैं- दिल भर आता है कई बार।।।। अभिषेक कम्पनी के गेस्ट हाउस मेंे ले आया। ए।सी। रूम। साफ-सुथरे लेट-बाथ। सादा खाना। भरपूर आराम। दिन मस्ती में गुज़रा। वह डयूटी करते लंच ब्रेक में आया, बता गया- बायोडेटा और प्रोजेक्ट पहुंच गया है प्रबंधकों पर। शायद, कल बुला लिया जाय! ।।।वह सोते-जागते सपने बुनते सोचती रही कि जॉब मिल जाय तो सारी अनिश्चितता और मारामारी मिटे। ऊब गई पढ़ाई से। साल-दो-साल के गैप से फिर देखेगी आगे की राह।।।
शाम को अभिषेक उसे बड़े तालाब पर ले आया। सूर्यास्त बहुत सुंदर दिखा। निर्मल जल की शांत लहरों पर दहकते शोले! आग की लम्बी-सी खाई।।।। मन हिलोरें लेने लगा। सारा आगा-पीछा, सारे रंजोगम भूल गई उन अद्भुत क्षणों में।।।। तटके फुटपाथ और पार्क रंग-बिरंगे बच्चोंे और युवा जोड़ों से भरे चिड़ियों से चहचहा रहे थे! सारी वोटें, सारी बैंचें हथिया लीं उन्होंने। फव्वारे मरकरी और नियोन बल्बों की जगमगाहट में तिलस्मी मंजर प्रतीत हो रहे थे।।।। अभिषेक से सटी प्रमुदित-सी वह सारे अजूबे देख रही थी। और उसने भी चलते-चलते हाथ कमर में डाल लिया था! दूरी न के बराबर रह गई। सभी जोड़े तो आपस में गुँथे थे ऐसे ही! कोई एतराज नहीं जताया नमिता ने। बड़ी जगह में आकर गोया दिल भी बड़ा हो गया था। माहौल किस कदर अपने आप में ढाल लेता है मनुष्य को, वह प्रत्यक्ष अनुभव कर रही थी।।।।
पार्क से निकलकर फुटपाथ पर आ गए।
-चाट खाओगी? उसने पूछा।
वह हँसी, जैसे, कोई पुराना अनुभव याद आया, `नहीं।।।'
-आइसक्र्रीम? वह मुस्कराया।
इन्कार नहीं किया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.