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Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#7
सोमेश की आँखों में नींद नहीं। अब कोई शुरूवात है! अब पूरी संभावना है! दिल धड़क रहा था। हालांकि वह प्रेम करने नहीं पढ़ाई करने आया था। अगर प्रेम करता तो नमिता की बहन नीति से ही कर लेता। नीति में ज्यादा संभावना थी। उसका तो कोई खास लक्ष्य भी नहीं था। मगर नमिता की नज़र तो चिड़िया की आँख पर है। कितना संघर्ष कर रही है। रूखा-सूखा खा-लेना। दो-चार घंटे सो लेना। फिर पढ़ाई, कॉलेज, कोचिंग। ।।।एडमीशन की फीस जुटा रही है धीरे-धीरे। फाइनल के बाद कोचिंग देना छोड़ देगी। गैट के लिए खुद कोचिंग लेगी। तब एक-एक पैसा काम आयेगा।

हफ्ते भर बाद अभिषेक का मैसेज आया, नमिता के मोबाइल पर- कहाँ रहती हो?
उसने बटन दबाये, सी-५२, पी।एन।टी। कॉलोनी।
तुरंत बाद फोन कॉल- पीएनटी में कहाँ?
-पानी की टंकी के पास, पुलिस में एक दीवान जी हैं, उन्हीं के मक़ान में।
-वहीं-कहीं सोमेश भी तो है।।।
-उसी के सामने वाले रूम में हूँ!
-ओ % बताया नहीं उसने कभी!
-क्या पता।।। उसने कंधे उचकाये।
मौज में ऐसा करती है कभी-कभी। मस्ती में होती है तब अक्सर गुनगुनाने लगती है। लेकिन सोमेश को बताना भूल गई यह वाक्या! रात जब सारे कामों से निबट कर बारह-साड़े बाहर के लगभग मेडीटेशन पर बैठी- वही निरर्थक शब्द, पों।।। पों।।। पों।।। जो मंत्र कह कर दिया गया था, दोहराते ध्यान केन्द्रित हुआ, अचानक याद आया! वह दौड़ी। ।।।सोमेश सोतेे समय तक गेट सिऱ्फ भेड़ कर रखता है! क्योंकि उसे हरदम इंतजार रहता है और वह अक्सर आती भी रहती है! कमरे में झांक कर बोली, बताया सब कुछ- उसका मैसेज, फोन कॉल! वह कम्प्यूटर पर बैठा था, बुझ गया। सेंध लगा रहा है अभिषेक धीरे-धीरे! उसे एक नया सदमा घेरने लगा। नींद उड़ने लगी।
अगले दिन वह कॉलेज नहीं गया, न बाजार। सारा दिन बेकार गुज़ार दिया। अभिषेक आया नहीं। और जब उम्मीद नहीं बची। उसकी जान में जान आने लगी तो रात में यमदूत की तरह दस-साड़े दस बजे अक्समात् प्रकट हो गया। सीधे नमिता के कमरे पर ही दस्तक दी। जैसे, इधर आता तो वह ले नहीं जाता। यहीं बुला लेता नमिता को और यहीं से चलता करता उसे!

यक-बयक अपनी गरीबी पर शरमा गई वह। कहाँ बिठाये। एक पलंग, एक कुरसी। पलंग पर थाली रखे खाना खा रही थी पढ़ती हुई। ।।।अभिषेक चेयर पर बैठ गया। नमिता ने हड़बड़ी में थाली उठा कर गैस के पास रख दी। अभिषेक ने कहा, खा-लो इत्मीनान से, मैं खाकर आया हूँ, बाई गॉड!
-अच्छा, चाय लोगे!
-हाँ, चल जायेगी।।।।
वह उठ कर सोमेश की किचेन में गई। दूध उठा कर उसके कमरे में झांकी, अभिषेक आया है! चाय बनाती हूँ।।। तुम भी पियोगे?
-हाँ, नहीं।।। वह हड़बड़ा गया, देखना- अभी कॉफी बनायी थी। तुम लेती नहीं, इसलिए पूछा नहीं, कब आया?
सोमेश ख़डा हो गया। लेटा था जमीन पर बिस्तर में। उसका रूम तो नमिता से भी छोटा है। मगर उन्हीं पैसों में किचेन जुड़ी हुई है।
-अभीअभी! आओ, तुम भी।।। नमिता लौट गई।
वह लुंजपुंज हाथपांव से पीछे-पीछे चला आया। अभिषेक ने बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया। जैसे, मेजबान हो! बड़ी अजीब बात थी। सोमेश हतप्रभ रह गया।
वे दोनों चहक रहे थे-
जनवरी में बैच भेल जा रहा है।
हमारा भिलाई।
अच्छा!
हाँ!
प्रोजेक्ट ढंग का बन जाय तो कोई राह बने।।।
और-क्या!

उम्मीद झिलमिला रही थी। ।।।कप थमा दिये नमिता ने। सोमेश बोला, देखना- अभी कॉफी,
-छोड़ो देर हो गई।।। नमिता चहकी, हजम हो चुकी कब की तुम्हारी कॉफी!
बात हँसने की थी। मगर वह हँसा तो लगा, रो रहा है! इमोशनल है, उसने पाया। अभी ऐसा क्या! अभी क्या देख लिया उसने अभिषेक और नमिता के बीच। हाँ- ये तो है कि दोनों एक ही ब्राँच के हैं। कहो, एक ही कम्पनी में लग जायें! कहो, किसी दिन एक ही कॉलेज में पढ़ाने लगें! ।।।वह कहाँ तक पीछा करेगा? कब तक साथ छुड़ायेगा? ।।।उसने निश्वास छोड़ा।
-एक सकलकंदी रखी है, दूँ! नमिता ने अभिषेक से पूछा
-चलेगी, उसने चाय सिप करते हुए कहा- बल्कि दौड़ेगी, मुझे पसंद भी है- भुनी है-ना!
-हाँ, घी लगा कर भूनी।
-क्योंकि उवालने से मिठास निकल जाती है।।।
-और क्या।।।
उसने सकलकंदी छील कर प्लेट में रख दी।
-स्वादिष्ट है, बहुत स्वादिष्ट है! अभिषेक ने खाते-खाते कहा।
सोमेश ने सोचा फ्लर्ट कर रहा है। जब सकलकंदी की इतनी तारीफ, तो फिर खाने की कितनी करेगा! लड़के इसी तरह लिफ्ट लेते हैं! उसने नमिता को देखा उदासी से। ।।।कल आवाज की तारीफ की, परसों कपड़ों की करेगा, नरसों मिस इंडिया बना देगा।।। वह स्र्आँसा हो आया।
रात भीग रही थी। कम्प्यूटर में विजुअल बेसिक में पार्ट्स खुल रहे थे, जुड़ रहे थे। माउस पर मुट्ठी कसे उंगलियाँ नाच रही थीं अभिषेक की की-बोर्ड पर भी। ।।।नमिता का चेहरा स्क्रीन और उसके चेहरे के और पास होता जा रहा था। और जैसे नशे में अभिषेक के चेहरे की दमक बढ़ रही थी, आँखों में चमक।
सोमेश का दिल बैठ रहा था। उसके जाने के बाद वह भी अपने कमरे में आ लेटा। मगर नींद उचट गई थी, रात भर आई नहीं। आशंका जक़ड चुकी थी। बेखुदी में सोते वक़्त भी सिटकनी नहीं लगाई। ब्रह्म मुहूर्त में झपका होगा। नमिता दरवाजा खोल कर झाँकी! उसने उनींदे देखा- चेहरा बल्ब की रोशनी में उगते सूरज-सा दिखा। आँखें मल कर बैठ गया। दिल में फिर नई आशा सजने लगी। तीन-चार दिन में भूल गया वो वाकया भी।।।। नमिता पूर्ववत! किसी भी पल कमरे में आ धमकना। बनी हुई सब्जी दे जाना। कभी देखकर कि उसकी रसोई जगी नहीं, साधिकार बुला लेना। एक थाली में दो कटोरियाँ रख कर साथ खिला लेना। सब्जी आदि के लिये झोला पक़डा देना। दूध आदि के लिए बर्तन।।।। और वह, वह भी बदस्तूर उमंग से लबरेज! कभी उसके कम्प्यूटर पर, कभी अपने पर नईनई चीजें बताता। वक़्त मिलने पर शाम को उसके साथ पार्क तक टहलने निकल जाता। साथ योगा करना, सिखाना सब पूर्ववत् था।
मगर बीच-बीच में फोन आ जाता अभिषेक का।
-क्या कर रही हो?
-चाय पी रही हूँ।
-हमें नहीं पिलाओगी?
-हमने कब मना किया।
-आ जाऊँ!
-आ जाओ।।।
-चलोगी-कहीं?
-नहीं।
-वहाँ मज़ा नहीं आएगा।
-आजायेगा।।।' वह कट कर देती। कभी-कभी जब ज्यादा उतावला हो जाता, स्विच ऑफ कर लेती।

और सोमेश के पास होती या सोमेश उसके पास, तब फोन आ जाता तो वह बात करते-करते उठ जाती। आँगन में गेट तक टहलते हुए धीरे-धीरे बतियाती।
सोमेश का दिल बैठता जाता।
मगर वह रह रह कर मज़बूत कर लेता खुद को। ऐसा हो नहीं सकता। नमिता ऐसी लड़की नहीं। उसे बड़ी श्रद्धा है। वह बहुत इ़़ज्जत करता है। उसे बड़ा यक़ीन है। सो फिसल नहीं सकती।।।। खुली हुई जरूर है। जो लड़की बीई कर रही है। कस्बे की लड़की। शहर में अकेली रह कर बीई कर रही है, उसकी हिम्मत तो देखो! उसका इतना खुला होना अनहोनी नहीं है। बेशक़ वह चरित्रवान और नेकदिल है। इसी शहर में उसने लड़कियाँ देखी हैं- लड़कियाँ! पर्स में कोण्डोम डाले घूमती हैं!

दिन गुजरते गए। भिलाई का टूर भी निबट गया। वह उधर गई वह घर होे आया। शहर उसके बिना जंगल हो जाता है। रूम काटने को दौड़ता है। अगर वह कभी हमेशा के लिए यह शहर छोड़ कर चली गई तो फिर कभी यहाँ आ नहीं सकेगा। इसके जर्रे-जर्रे में दिखेगी वह।।।।
और फिर फाइनल भी निबट गया। ।।।प्रोजेक्ट के लिए अभिषेक भेल गया था। रिजल्ट से पहले ही भोपाल में वीडियोकोन ने उसे अनुबंधित कर लिया। वह इंग्लिश मीडियम से था। गुड रैंक, गवर्नमेंट कॉलेज की छाप। उम्दा साफ्टवेयर।।।। और नमिता प्राइवेट कॉलेज से, हिंदी मीडियम से, पोजीशन भी बनी नहीं, प्रोजेक्ट कचड़ा।।। जैसा सबका था। मगर वह निराश नहीं हुई। उसकी अपने ही कॉलेज में बात हो गई अगले सत्र से पढ़ाने की। गैट की तैयारी पर प्रभाव पड़ेगा जरूर मगर पगार से बहुत कुछ बनेगा। घर पर निर्भरता नहीं रहेगी। अभी शादी टाल सकेगी कुछ वर्ष और।।। खर्च चलेगा। थोड़ा पैसा भी सेव होगा। आड़े वक़्त काम आएगा। मानो गैट नहीं निकाल पाई! तो भी एम।टेक। कर सकेगी।।।। स्कॉलरशिप के अभाव में क्या लक्ष्य छोड़ देगी?।।। दोनों ने मिल के सोचा है।।।। समय संकल्प की पूर्ति में गुज़र रहा है। युद्ध से पहले की तैयारी का समय।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 08:42 PM



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