29-04-2019, 08:41 PM
मेजों पर लोग टूट रहे थे, प्लेटें नदारद।
भीड़ बहुत थी। खाना कम। प्लेट एक भी नहीं।।।।
-श्रीकांत का फ्रेंड सर्कल बड़ा है, वह हँसा।
-सभी कार्डों पर विद फेमिली लिखा गया था, नमिता ने जुगलबंदी की।
-और एक-एक कार्ड पर १००-१०० दोस्तों के नाम।।। अभिषेक ने कहकहा लगाया।
सोमेश प्लेटों के लिए मारा-मारा फिरा। यहाँ-वहाँ, कहीं मिली नहीं।।।।
-चलो, जब तक चाट खाई जाय।।। अभिषेक ने कहा।
स्टॉल पर जमकर भीड़ थी। वह चीला के लिए बार-बार हाथ बढ़ाता, बलवान हाथ नीचे झुका देते। तमाम देर बाद एक जैसेतैसे हाथ आया, उसे भी एक दूसरे पंजे ने झपट लिया। एक कौर रह गया मुट्ठी में। उसने पलट कर नमिता की ओर बढ़ाया। वह मुस्करा कर रह गई, लिया नहीं। तब तक अभिषेक दो रसगुल्ले ले आया। नमिता ने एक उठा लिया। हाफ-हाफ दोनों ने। फिर सोमेश गया रसगुल्लों के स्टॉल पर। थाल खाली मिला! जबकि अभिषेक एक चीला ले आया, नमिता ने ना-ना करके खा लिया।।।। ता़़ज्जुब, उसने सोमेश को उकसाया टिक्की के लिए!
जोरदार धक्के पड़ रहे थे चारोंतरफ से। टिक्की सिंक नहीं पाती, बँट जाती। हाथ फैला रह जाता उसका।।।। तभी अभिषेक नमिता को लेकर आगया बगल में। अपने हाथ में लेकर उसका हाथ आगे बढ़ा दिया, लड़कियों को पहले दो, लड़कियों को।।। वकालत करने लगा वह। थोड़ी-सी असफलता जनित खिसियाहट से भरा वह सरकता गया पीछे।
टिक्की वाला यूं भी लड़कियों को ही दौने पक़डा रहा था। पर लड़कियों के हाथ भी दर्जनों थे। चार-छह टिक्कियाँ सिंकतीं और दौने झपट लिए जाते। फिर दसियों मिनट प्रतीक्षा। मन ही मन एक से हजार-पाँचसो तक की गिनतियाँ। ।।।आखिर तमाम मश़़क्कत के बाद दो दौने झपट लिए उन्होंने।
स्टॉल से हट कर दूब पर ख़डे सोमेश के पास आ गए, जो अब ठिठुरन महसूस कर रहा था। एक आलू टिक्की नमिता के पेट में और हाफ-हाफ उन दोनों के। भूख और तेज़ हो गई।।।। लेकिन तब तक प्लेटें आ गइंर्। जर्द पड़ गए चेहरे चमकने लगे। टेबिलों पर लगे थालों की कतारों की ओर बढ़ गए फोरन। नीचे फ्लेम चमक रही थी, ऊपर पुलाव नदारद। मटर पनीर, रोटी, पूरी भी नहीं। दाल, मिक्सवेज, सलाद और रायता बचा था- बस! खालो, पीलो मौज उड़ालो।।। हँसी से पेट में बल पड़ने लगे। वे बचीखुची चीजें प्लेटों में भरकर गार्डन के बीचोंबीच बैंच पर आ बैठे। अभिषेक टेंट के पीछे तंदूर के पास जा घुसा। सोमेश ने नमिता से कहा, पहले कितने थाल भरे थे- पालकपूरी, छौले, तंदूरी, बेड़मी।।। क्या नहीं था!
-इससे तो अच्छी गाँव की पंगत होती है। नमिता ने कहा।
-हाँ! सबको भरपेट मिल जाता है।।। टाटपट्टी पर न सही, स्टेण्डर मुताबिक कुर्सी-टेबिल पर कर दो।।।।
-वो बेहतर।।। उसमें सम्मान है- खिलाने, पूछने वाले तो हैं! इज्जत है, मेहमान की।।।।
अभिषेक लौट आया, बहारो फूल बरसाओ, एक तंदूरी मिली! उसने रोटी उठा कर हिलायी। सोमेश और नमिता के गालों में मुस्कान के गड्ढे बने।
-सैक़डों लोग ख़डे हैं-सैक़डों।।। भैया कसम! वह हँसी से दोहरा हो रहा था, तंदूर बुझ चुका-था।।। फिर से गर्म हो र-हा है।।। किसी ने आटे पर मटर की थैली गिरा दी। गजब की मारामारी मची है। भूखे-बेहाल डॉक्टर-इंजीनियर।।। बंदरों-सी खोंखों मचाए हैं।।। खाकर ही जायेंगे। घरों में कौन रसोई रचेगा अब।
-तू हँस, हँसता रह! मुस्कराते हुए सोमेश ने रोटी उठा ली। आधी नमिता को पक़डा दी।
उसे लग रहा था, अभिषेक नहीं मिलता तो सचमुच भूखी लौट जाती।।।। सोमेश के बस की नहीं थी मारा-मारी! अब कौन आटा माड़ता! दुपहर की सूखी खिचड़ी दो-दो कौर गटक कर आँखें मूंद लेते। बाद में श्रीकांत को दावत का मज़ा चखाते।
और थोड़ी देर में अभिषेक नान से भरी प्लेट लिए चला आ रहा था।
-अबे! सर्ब करने वाले लड़के से छीन लाया-क्या? सोमेश चपल था। नमिता की आँखें धन्यवाद उगल रही थीं। दो-दो, तीन-तीन अपनीअपनी प्लेटों में लपक लीं उन्होंने! आसपास के लोग भी अभिषेक पर झपटने लगे।।।।
-भैया कसम, हलवाई रो रहा है! अभिषेक ने एक और फुवारा छोड़ा, श्रीकांत ने ढाईसौ का आर्डर देकर हजार लोग ख़डे कर दिए।। जै हो! जल्वे हैं श्रीकांत तेरे।।।
फिर वह उड़ा और तीन-चार दौने गाजर का हलुवा झपट लाया! गर्मागर्म! नमिता और सोमेश की अंतड़ियाँ तृप्त हो उठीं। स्वादिष्ट डकारें आने लगीं। घंटे भर पहले की सारी कोफ्त मिट गई। अभिषेक मज़ेदार लग उठा सोमेश को भी। यारों का यार! नमिता ने सोचा। ।।।उस पर बाइक थी। गुड नाइट बोल कर चला गया। वापसी में टैम्पो नहीं मिला। सोमेश ने तोलमोल कर एक ऑटो पटाया। फिर भी चालीस देने पड़े! लेकिन नमिता के बगल में बैठा तो लगा कि खुशबू को विदा करा कर ले जा रहा है! अनुभूति से रोमरोम खिल गया। हृदय अजीब से स्पंदनों से भर उठा।
रास्ते में वह बोली, कैसा बासी-बासी सा लग रहा था।।।।
-हाँ!
-रिसेप्शन तो शादी के दूसरे-तीसरे दिन ही अच्छा लगता है, ना!
-हाँ, देखना- ताज़गी तो नहीं थी।।। उसने संभल-संभल कर कहा, एक-दो महीने हो गए-ना मैरिज को।।।। घर वाले कुढ़े हुए थे,
-वही तो! नमिता बोली, शादी की उमंग-उत्साह ही दूसरा होता है। वो मज़ा नहीं था। श्रीकांत भैया के चेहरे पर भी चमक नहीं रही। ।।।भाभी भी बुझी-बुझी सी थी।
-हाँ, ये तो है! उसने ताईद की, अरेंज मैरिज-सा माहौल, वो मज़ा तो नहीं था।।।।
फिर थोड़ी देर बाद नमिता ने कहा-
`लेकिन ये हो जाता है आजकल,' ऑटो भाग रहा था।
`पहले बाहर नहीं निकलते थे। मिलना-जुलना नहीं होता था आपस में। तब अरेंज मैरिज ही एक मात्र विकल्प थी। लेकिन अब तो साथ रहते, काम करते, मिलते-जुलते और फिर उम्र का भी तक़ाजा।।।
वह मुँह ताक रहा था नमिता का!
उसे ताज्जुब था- बड़े गहरे अनुभव से बोल रही है। यानी मानसिक रूप से तैयार है! अगर परिस्थिति बनी तो लोहा ले सकेगी।।।। उसे अच्छा लगा। दिली खुशी हुई। संभावना कि उसके लिए जगह बन रही है!
फाटक अंदर से बंद था। ताला अंदर से पड़ता था। चाबी फाटक के पार बॉटनी वाले सर के कमरे की ख़िडकी पर टंगी रहती। रात के डेढ़-दो बज रहे थे। सर्दियों की रातें। चिल्लाने पर भी नींद नहीं खुलती। खुल भी जाये तो रजाई के भीतर दुबके लड़के ठण्ड में बाहर नहीं निकलते। ऊपर मकान मालकिन सुन भी लेगी तो उतरेगी नहीं। बच्चों को भेजने का तो सवाल ही नहीं। दीवान जी होते तो जरूर फाटक खोलने आ जाते! डिस्टरबेन्स से बचने के लिए ही तो मकान मालकिन ने डोरबैल हटवा दी है!
-चीखो! नमिता ने कहा, सामने वाले पीएससी-पीएमटी वाले सुन लेंगे! ।।।नहीं तो एनआईटीएम वाले सर निकल आएंगे।।।।
फाटक सिर से कोई ज्यादा ऊँचा नहीं! मगर ऊपर नुकीले सरिये हैं। सोमेश ने कहा, चढ़ कर उतर जाऊँ?
-उलझ गए तो।।। वह डरी।
-फिर!
-चीखो-खटकाओ।।।
-खोलना % ।।।देखना- स%र! खोलना। अमित % खोलना! विवेक % सुनना-जरा!
उसे हँसी आ रही थी। आज के समूचे प्रकरण पर। क्या बिगनिंग, क्या एण्ड!
-देखना % खोलना-सर % ।।।सोमेश चीख रहा है। वह बजा रही है फाटक- खटखटखट।।।।
-कहाँ गए थे तुम लोग।।। बापरे! मकान मालकिन उतर रही है! जीने पर स्वर से भी पहले उसके पैर, घड़ फिर गर्दन नज़र आती है! आँखें मींजती हुई। अलसाया मगर चिड़चिड़ाया स्वर, रात मैं भी चैन नहीं। फिल्मों से पेट नहीं भरता, मौजमस्ती से %
धत्तोरे की! सब कूड़ा! सारा मज़ा किरकिरा हो गया।।।
-देखना।।। वह मिमियाया, दीदी।।। वो श्रीकांत है-ना, उसी का मैरिज रिसेप्शन था। हजीरे से यहाँ तक पहले तो कोई साधन नहीं मिला, फिर ऑटो लिया। तो भी देर हो गई।
-देर हो गई।।। उसने मुँह बिचकाया, आने दो तुम्हारे पापा को- कहूँगी, बड़ा पढ़ता है।।। रात-रात भर आवारा हुआ घूमता-फिरता है।।।।। बड़बड़-बड़ और ख़डख़ड करके ताला खोल कर चली गई।
फाटक खुल गया, छुट्टी हुई। वे बहस करते तो और फँसते! सीधे अपने कमरों पर आ लगे। मगर नमिता पर्स टटोलते ही घबरा गई! गिफ्ट निकालते कहीं चाबी सरक गई उसकी! सोमेश टॉयलेट से लौटा तो वह कमरे में बैठी मिली। ।।।वह भी विचलित हो गया थोड़ी देर के लिए, अरे! कहाँ-कैसे? फिर सोचसमझ कर बोला, दो-तीन घंटे बचे हैं।।। देखना- एक एक करवट यहीं सो लेते हैं! अभी तोड़ेंगे तो सब इकट्ठे हो जाएंगे, तमाशा होगा।।।
बात सच थी। ।।।वह भी टॉयलेट से लौट कर फर्श पर बिछे इकलौते बिस्तर पर अपनी करवट लेट गई। ।।।फिर पता नहीं चला कब झपक गई।
मगर उसे नींद नहीं आ रही थी। सोती हुई नमिता उसे फरिश्ते-सी पवित्र और फूल-सी निष्कलुष लग रही थी।।।। वह कम्प्यूटर खोल कर `जोगर्स पार्क' देखने लगा। ।।।एक जज खिलाफ था प्रेम के, दुनिया भर के प्रेमियों के, प्रेम विवाहों के।।।। आफ्टर रिटायरमेंट मार्निंगवॉक के लिए जाते जोगर्स पार्क में मिली युवती के साथ योगा करते, प्रेम संबंधों पर बतियाते-बतियाते जीवन भर की धारणा बदल गई। वह खुद प्रेम करने लगा उस युवती से।।।
भीड़ बहुत थी। खाना कम। प्लेट एक भी नहीं।।।।
-श्रीकांत का फ्रेंड सर्कल बड़ा है, वह हँसा।
-सभी कार्डों पर विद फेमिली लिखा गया था, नमिता ने जुगलबंदी की।
-और एक-एक कार्ड पर १००-१०० दोस्तों के नाम।।। अभिषेक ने कहकहा लगाया।
सोमेश प्लेटों के लिए मारा-मारा फिरा। यहाँ-वहाँ, कहीं मिली नहीं।।।।
-चलो, जब तक चाट खाई जाय।।। अभिषेक ने कहा।
स्टॉल पर जमकर भीड़ थी। वह चीला के लिए बार-बार हाथ बढ़ाता, बलवान हाथ नीचे झुका देते। तमाम देर बाद एक जैसेतैसे हाथ आया, उसे भी एक दूसरे पंजे ने झपट लिया। एक कौर रह गया मुट्ठी में। उसने पलट कर नमिता की ओर बढ़ाया। वह मुस्करा कर रह गई, लिया नहीं। तब तक अभिषेक दो रसगुल्ले ले आया। नमिता ने एक उठा लिया। हाफ-हाफ दोनों ने। फिर सोमेश गया रसगुल्लों के स्टॉल पर। थाल खाली मिला! जबकि अभिषेक एक चीला ले आया, नमिता ने ना-ना करके खा लिया।।।। ता़़ज्जुब, उसने सोमेश को उकसाया टिक्की के लिए!
जोरदार धक्के पड़ रहे थे चारोंतरफ से। टिक्की सिंक नहीं पाती, बँट जाती। हाथ फैला रह जाता उसका।।।। तभी अभिषेक नमिता को लेकर आगया बगल में। अपने हाथ में लेकर उसका हाथ आगे बढ़ा दिया, लड़कियों को पहले दो, लड़कियों को।।। वकालत करने लगा वह। थोड़ी-सी असफलता जनित खिसियाहट से भरा वह सरकता गया पीछे।
टिक्की वाला यूं भी लड़कियों को ही दौने पक़डा रहा था। पर लड़कियों के हाथ भी दर्जनों थे। चार-छह टिक्कियाँ सिंकतीं और दौने झपट लिए जाते। फिर दसियों मिनट प्रतीक्षा। मन ही मन एक से हजार-पाँचसो तक की गिनतियाँ। ।।।आखिर तमाम मश़़क्कत के बाद दो दौने झपट लिए उन्होंने।
स्टॉल से हट कर दूब पर ख़डे सोमेश के पास आ गए, जो अब ठिठुरन महसूस कर रहा था। एक आलू टिक्की नमिता के पेट में और हाफ-हाफ उन दोनों के। भूख और तेज़ हो गई।।।। लेकिन तब तक प्लेटें आ गइंर्। जर्द पड़ गए चेहरे चमकने लगे। टेबिलों पर लगे थालों की कतारों की ओर बढ़ गए फोरन। नीचे फ्लेम चमक रही थी, ऊपर पुलाव नदारद। मटर पनीर, रोटी, पूरी भी नहीं। दाल, मिक्सवेज, सलाद और रायता बचा था- बस! खालो, पीलो मौज उड़ालो।।। हँसी से पेट में बल पड़ने लगे। वे बचीखुची चीजें प्लेटों में भरकर गार्डन के बीचोंबीच बैंच पर आ बैठे। अभिषेक टेंट के पीछे तंदूर के पास जा घुसा। सोमेश ने नमिता से कहा, पहले कितने थाल भरे थे- पालकपूरी, छौले, तंदूरी, बेड़मी।।। क्या नहीं था!
-इससे तो अच्छी गाँव की पंगत होती है। नमिता ने कहा।
-हाँ! सबको भरपेट मिल जाता है।।। टाटपट्टी पर न सही, स्टेण्डर मुताबिक कुर्सी-टेबिल पर कर दो।।।।
-वो बेहतर।।। उसमें सम्मान है- खिलाने, पूछने वाले तो हैं! इज्जत है, मेहमान की।।।।
अभिषेक लौट आया, बहारो फूल बरसाओ, एक तंदूरी मिली! उसने रोटी उठा कर हिलायी। सोमेश और नमिता के गालों में मुस्कान के गड्ढे बने।
-सैक़डों लोग ख़डे हैं-सैक़डों।।। भैया कसम! वह हँसी से दोहरा हो रहा था, तंदूर बुझ चुका-था।।। फिर से गर्म हो र-हा है।।। किसी ने आटे पर मटर की थैली गिरा दी। गजब की मारामारी मची है। भूखे-बेहाल डॉक्टर-इंजीनियर।।। बंदरों-सी खोंखों मचाए हैं।।। खाकर ही जायेंगे। घरों में कौन रसोई रचेगा अब।
-तू हँस, हँसता रह! मुस्कराते हुए सोमेश ने रोटी उठा ली। आधी नमिता को पक़डा दी।
उसे लग रहा था, अभिषेक नहीं मिलता तो सचमुच भूखी लौट जाती।।।। सोमेश के बस की नहीं थी मारा-मारी! अब कौन आटा माड़ता! दुपहर की सूखी खिचड़ी दो-दो कौर गटक कर आँखें मूंद लेते। बाद में श्रीकांत को दावत का मज़ा चखाते।
और थोड़ी देर में अभिषेक नान से भरी प्लेट लिए चला आ रहा था।
-अबे! सर्ब करने वाले लड़के से छीन लाया-क्या? सोमेश चपल था। नमिता की आँखें धन्यवाद उगल रही थीं। दो-दो, तीन-तीन अपनीअपनी प्लेटों में लपक लीं उन्होंने! आसपास के लोग भी अभिषेक पर झपटने लगे।।।।
-भैया कसम, हलवाई रो रहा है! अभिषेक ने एक और फुवारा छोड़ा, श्रीकांत ने ढाईसौ का आर्डर देकर हजार लोग ख़डे कर दिए।। जै हो! जल्वे हैं श्रीकांत तेरे।।।
फिर वह उड़ा और तीन-चार दौने गाजर का हलुवा झपट लाया! गर्मागर्म! नमिता और सोमेश की अंतड़ियाँ तृप्त हो उठीं। स्वादिष्ट डकारें आने लगीं। घंटे भर पहले की सारी कोफ्त मिट गई। अभिषेक मज़ेदार लग उठा सोमेश को भी। यारों का यार! नमिता ने सोचा। ।।।उस पर बाइक थी। गुड नाइट बोल कर चला गया। वापसी में टैम्पो नहीं मिला। सोमेश ने तोलमोल कर एक ऑटो पटाया। फिर भी चालीस देने पड़े! लेकिन नमिता के बगल में बैठा तो लगा कि खुशबू को विदा करा कर ले जा रहा है! अनुभूति से रोमरोम खिल गया। हृदय अजीब से स्पंदनों से भर उठा।
रास्ते में वह बोली, कैसा बासी-बासी सा लग रहा था।।।।
-हाँ!
-रिसेप्शन तो शादी के दूसरे-तीसरे दिन ही अच्छा लगता है, ना!
-हाँ, देखना- ताज़गी तो नहीं थी।।। उसने संभल-संभल कर कहा, एक-दो महीने हो गए-ना मैरिज को।।।। घर वाले कुढ़े हुए थे,
-वही तो! नमिता बोली, शादी की उमंग-उत्साह ही दूसरा होता है। वो मज़ा नहीं था। श्रीकांत भैया के चेहरे पर भी चमक नहीं रही। ।।।भाभी भी बुझी-बुझी सी थी।
-हाँ, ये तो है! उसने ताईद की, अरेंज मैरिज-सा माहौल, वो मज़ा तो नहीं था।।।।
फिर थोड़ी देर बाद नमिता ने कहा-
`लेकिन ये हो जाता है आजकल,' ऑटो भाग रहा था।
`पहले बाहर नहीं निकलते थे। मिलना-जुलना नहीं होता था आपस में। तब अरेंज मैरिज ही एक मात्र विकल्प थी। लेकिन अब तो साथ रहते, काम करते, मिलते-जुलते और फिर उम्र का भी तक़ाजा।।।
वह मुँह ताक रहा था नमिता का!
उसे ताज्जुब था- बड़े गहरे अनुभव से बोल रही है। यानी मानसिक रूप से तैयार है! अगर परिस्थिति बनी तो लोहा ले सकेगी।।।। उसे अच्छा लगा। दिली खुशी हुई। संभावना कि उसके लिए जगह बन रही है!
फाटक अंदर से बंद था। ताला अंदर से पड़ता था। चाबी फाटक के पार बॉटनी वाले सर के कमरे की ख़िडकी पर टंगी रहती। रात के डेढ़-दो बज रहे थे। सर्दियों की रातें। चिल्लाने पर भी नींद नहीं खुलती। खुल भी जाये तो रजाई के भीतर दुबके लड़के ठण्ड में बाहर नहीं निकलते। ऊपर मकान मालकिन सुन भी लेगी तो उतरेगी नहीं। बच्चों को भेजने का तो सवाल ही नहीं। दीवान जी होते तो जरूर फाटक खोलने आ जाते! डिस्टरबेन्स से बचने के लिए ही तो मकान मालकिन ने डोरबैल हटवा दी है!
-चीखो! नमिता ने कहा, सामने वाले पीएससी-पीएमटी वाले सुन लेंगे! ।।।नहीं तो एनआईटीएम वाले सर निकल आएंगे।।।।
फाटक सिर से कोई ज्यादा ऊँचा नहीं! मगर ऊपर नुकीले सरिये हैं। सोमेश ने कहा, चढ़ कर उतर जाऊँ?
-उलझ गए तो।।। वह डरी।
-फिर!
-चीखो-खटकाओ।।।
-खोलना % ।।।देखना- स%र! खोलना। अमित % खोलना! विवेक % सुनना-जरा!
उसे हँसी आ रही थी। आज के समूचे प्रकरण पर। क्या बिगनिंग, क्या एण्ड!
-देखना % खोलना-सर % ।।।सोमेश चीख रहा है। वह बजा रही है फाटक- खटखटखट।।।।
-कहाँ गए थे तुम लोग।।। बापरे! मकान मालकिन उतर रही है! जीने पर स्वर से भी पहले उसके पैर, घड़ फिर गर्दन नज़र आती है! आँखें मींजती हुई। अलसाया मगर चिड़चिड़ाया स्वर, रात मैं भी चैन नहीं। फिल्मों से पेट नहीं भरता, मौजमस्ती से %
धत्तोरे की! सब कूड़ा! सारा मज़ा किरकिरा हो गया।।।
-देखना।।। वह मिमियाया, दीदी।।। वो श्रीकांत है-ना, उसी का मैरिज रिसेप्शन था। हजीरे से यहाँ तक पहले तो कोई साधन नहीं मिला, फिर ऑटो लिया। तो भी देर हो गई।
-देर हो गई।।। उसने मुँह बिचकाया, आने दो तुम्हारे पापा को- कहूँगी, बड़ा पढ़ता है।।। रात-रात भर आवारा हुआ घूमता-फिरता है।।।।। बड़बड़-बड़ और ख़डख़ड करके ताला खोल कर चली गई।
फाटक खुल गया, छुट्टी हुई। वे बहस करते तो और फँसते! सीधे अपने कमरों पर आ लगे। मगर नमिता पर्स टटोलते ही घबरा गई! गिफ्ट निकालते कहीं चाबी सरक गई उसकी! सोमेश टॉयलेट से लौटा तो वह कमरे में बैठी मिली। ।।।वह भी विचलित हो गया थोड़ी देर के लिए, अरे! कहाँ-कैसे? फिर सोचसमझ कर बोला, दो-तीन घंटे बचे हैं।।। देखना- एक एक करवट यहीं सो लेते हैं! अभी तोड़ेंगे तो सब इकट्ठे हो जाएंगे, तमाशा होगा।।।
बात सच थी। ।।।वह भी टॉयलेट से लौट कर फर्श पर बिछे इकलौते बिस्तर पर अपनी करवट लेट गई। ।।।फिर पता नहीं चला कब झपक गई।
मगर उसे नींद नहीं आ रही थी। सोती हुई नमिता उसे फरिश्ते-सी पवित्र और फूल-सी निष्कलुष लग रही थी।।।। वह कम्प्यूटर खोल कर `जोगर्स पार्क' देखने लगा। ।।।एक जज खिलाफ था प्रेम के, दुनिया भर के प्रेमियों के, प्रेम विवाहों के।।।। आफ्टर रिटायरमेंट मार्निंगवॉक के लिए जाते जोगर्स पार्क में मिली युवती के साथ योगा करते, प्रेम संबंधों पर बतियाते-बतियाते जीवन भर की धारणा बदल गई। वह खुद प्रेम करने लगा उस युवती से।।।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.