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Non-erotic कहानी में, जो लड़की होती है
#4
़़जिंदगी इसी तरह गुज़र जाय। वह इससे ज्यादा कुछ और नहीं चाहता। बी।ई। के बाद नमिता गैट की तैयारी करेगी। एम।टेक। करेगी वह। गैट क्वालीफाय करना जरूरी है। फ्री सीट पर एडमीशन मिल जायेगा। और स्कॉलरशिप मिलेगी सो अलग। तभी तो कर पाएगी एम।टेक।।
उसने ठान लिया है। वह हर तरह की मदद करता रहेगा। किचेन से लेकर पढ़ाई तक। मगर घर वाले पीछे पड़े हैं कि बी।ई। के बाद ही नमिता के हाथ पीले कर दें! यही संकट है। वह रोज़ भरता है कि शादी को अभी ४-६ साल और टालो तुम। ।।।अड़ जाओ- मुझे एमटेक करना है। जॉब ढूंढ़ना है। फिर देखूँगी।।।।

नमिता कश्मकश में है। विवशता आँखोें में झलकती है। सब कुछ जाति-बिरादरी में ही होगा। होगा कैसे नहीं! उसकी क्या बिसात?
और देखो- मोहब्बत की सौ अलामतें! उस दिन `नाच' देख रहा था अभिषेक के साथ। इंटरवल तक थियेटर चौथाई रह गया। उसने मोबाइल माँगा। नमिता को लगाया, बस आ रहा हूँ। तुम पढ़ना। मैं आकर बना लूँगा।
-लड़की का सेलफोन है! अभिषेक ने कहा।
-तूने कैसे जाना? उसके चेहरे पर सलज्ज मुस्कान थी।
-जान लिया, लड़की का नम्बर है।।। उसने मोबाइल चमकाते हुए कहा।
-ए, कॉल नहीं करना, वो ऐसी लड़की नहीं है।
-सारी लड़कियाँ एक जैसी होती हैं।
-नहीं होतीं।
-पटा के दिखाऊँ?
वह डर गया।
-नहीं, नहीं! तू फोन नहीं करना।।।। वह स्र्आँसा हो आया।
-नहींं करूँगा, मर मत।।।।

मगर भयभीत था वह। नम्बर आ चुका था अभिषेक के मोबाइल में। दो दिन उसने फोन नहीं किया। उसे राहत मिली। तीसरे दिन रात में लगा दिया-
हलो! एक खनकदार आवाज कान के परदे पर चस्पां हो गई।
-हलो- नीरो है?
-कौन नीरो, सॉरी- नीरो नहीं है!
-नहीं, काटना नहीं, आपकी आवाज बहुत मीठी है।।।
नमिता चुप।
-क्या करती हैं? -मेरे पापा कहते हैं, फोन का पूरा इस्तेमाल करना चाहिए!
सिऱ्फ- जी! शेष- नमिता चुप।
-बताया नहीं अपने बारे में।।।
-बी।ई।।
-अरे! कौन से कॉलेज से?
-एम।पी।सी।टी।ई।।
-ब्राँच?
-मैकेनिकल।
-सुनो- फोन रखना नहीं।।। मैं भी हूँ मैकेनिकल में। एम।आई।टी।एस। से।
-अच्छा! आपके कॉलेज की रेपुटेशन तो अच्छी है। वह दब गई।
-अरे- कुच्छ नहीं, अब तो सब दूर कचड़ा है। रीसेम। फी भी और पढ़ाई भी। और डिग्री का वज़न भी! कंपनी वाले घर बैठे बुलाने से रहे।।।। फायनल है। अब तो दूध का दूध, पानी का पानी नज़र आने लगा।।।।
-मेरा भी है।।।
कहने के बाद उसने स्विच ऑफ कर दिया। बाद में कहा- होगे, क्या करना। ।।।सुबह सोमेश से कहा- तुमने परसों टॉकीज से जिस नम्बर से फोन किया, रात में उसी ने इंटरव्यू ले लिया।।।।
वह भयभीत-सा अपराधबोध से भर गया, देखना- बता नहीं पाया, वो मेरा फ्रेंड अभिषेक।।। वो भी बीई।।।
-पता चल गया।।। नमिता हँसी, चिपकू है।।।।
उसे तसल्ली हुई।
उसे खेद था कि यह उसने क्या किया। उसे डर लगा कि अब वह रोज़-बरोज़ रिंग मारेेगा! लेकिन फिर ढांढ़स बंधा मन को, नमिता रिस्पॉन्स नहीं देगी।
दिन गुजरते रहे। सर्दियाँ थीं। मौका श्रीकांत की मैरिज रिसेप्शन का। वे लोग टैम्पो से जरा जल्दी पहुँच गए। कस्बे से जुड़े थे इसलिए। पांडाल सजा हुआ मगर खाली था उस वक़्त। सोमेश ने पॉलीमिन की रेड टीशर्ट, जीन्स की ब्लू पैंट पहन रखी थी। मरकरी लाइट्स में अलहदा चमकता हुआ।।।। मन प्रफुल्लता से हुमकता हुआ। लोग जहाँ कोट, जैकेट, स्वेटर और कोई-कोई स्कार्फ, कनटोपे पहने- उनके बीच वह कितना स्मार्ट नज़र आ रहा था! जरा भी सिकुड़ नहीं रहा। सीना फुलाए इधर से उधर। सर्र-सर्र। ठंड जैसे छू भी नहीं रही।।।। नमिता का साथ- कंधे से कंधा और और क़दम से क़दम मिला हुआ! जाने क्या सोच कर उसने भी आज पुलोवर, कार्डीगन या कोट नहीं पहना। पिंक कलर के सलवार सूट से मैच करता शॉल कंधे पर टुपट्टे की तरह सजा लिया था ़़फकत। ।।।श्रीकांत और तमाम दोस्तों से हाथ मिला सोमेश का, नमिता की नमस्ते। जोड़े पर नज़रें टिकी रह जातीं।
श्रीकांत सूट में नहीं था अभी। इंतजाम देख रहा था। नमिता को होटल में भिजवा दिया उसने, जहाँ वधु की सजावट चल रही थी। सोमेश वुफे व्यवस्था चैक करने लगा। गार्डन में सब ठीक था। श्रीकांत विचलित। स्वजन आये नहीं थे अब तक। परिवार बड़ा था। माँ तो साथ थी, पर पापा, दादा, ताऊ, ताई, भाई, भाभी तक नहीं आए! श्रीकांत ने भीलवाड़ा में रहते हुए कोर्टमैरिज कर ली थी। अब रिसेप्शन देकर सामाजिक स्वीकृति ली जा रही थी, अपने देश में! कस्बे से लोग आ नहीं रहे थे। उसके तनाव का कारण यही था। बार-बार मोबाइल लगा रहा था। पता चल रहा था- वहाँ से निकल चुके हैं। रास्ते में हैं- कहाँ? पता नहीं! शायद, मुरैना। शायद, मुरैना और ग्वालियर के बीच।।। क्या पता अम्भा और मुरैना के बीच लटके हों। किसी पर मोबाइल नहीं। कोई सम्पर्क भी नहीं कर रहा उससे कि घबराये नहीं, देरी का कारण अमुक-अमुक है। १० बज गए। ९ से ११ का टाइम था। पांडाल में २-२, ५-५ मिनट कुर्सी गर्माकर लोग गार्डन में खाने पर टूट रहे थे। और मंच सूना था।।।। सोमेश उकसा रहा था- तू तैयार होकर आ! जा- बैठ मंच पर! रस्म होने दे।।।। पहली कतार में वधु पक्ष के मेहमान बैठे हुए। श्रीकांत रिक्त स्थान की पूर्ति-सा दोस्तों और अपने गुस्र्जनों से उनका परिचय करा रहा था।।।।
सोमेश ने उसका हैंडसैट लेकर नमिता को मैसेज दे दिया कि भाभी को ले आओ।।।। वह तो इसी प्रतीक्षा में थी! दस मिनट के अंतराल में वीडियो कैमरे की तेज़ चकाचौंध के बीच नमिता और श्रीकांत की मम्मी के मध्य वह भारी परिधान और गहनों से झुकी, श्रीकांत की वधु खुशबू, डग-डग भरती चली आ रही थी। ।।।तब उसने जोर देकर जैसे आखिरी बार कहा श्रीकांत से, अब तू भी झट से तैयार हो आ और जाकर बैठ जा मंच पर।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कहानी में, जो लड़की होती है - by neerathemall - 29-04-2019, 08:41 PM



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