29-04-2019, 08:40 PM
उन्हीं दिनों वह नमिता को शायद, प्रेम भी करने लगा- जो उसने अपने कम्प्यूटर पर यह कविता। लिखी: और बाद में डिलीट कर दी कि कहीं पढ़ न ले!
खामोश रातों में
क्या देखती हो तुम
आइने के सामने ख़डे होकर?
आँखोें में उतर आई चमक को
या
स्याह जुल्फों को
जो ढलक आई हैं शानों पर!
नहीं।।।
शायद, पढ़ती हो
चेहरे पर तहरीरें मोहब्बत की
लिखावट उन उंगलियों की।।।
वह कह नहीं सकता था। चुपके-चुपके देखता जरूर था। चौबीसौ घंटे साथ रहने की कोशिश करता। कोई अंग छू जाता तो अजीब-सी अनुभूति से भर उठता। कह नहीं पाता, पर शो जरूर करता कि वह उसकी गर्लफ्रेंड है। जाहिर है, थी भी। उसने श्रीकांत, सोनू और कई मित्रों को कान्टेक्ट नम्बर उसी के मोबाइल फोन का दे रखा था। ज्यादातर करीब होता। सुबह ६ से ९ बजे तक और शाम ५ से रात १०-११ बजे तक। घंटी बजते ही नमिता बटन दबाकर हलो कहती। वह मुँह फाड़ हाथ बढ़ाने को होता। फोन उसे पक़डा देती।
खामोश रातों में
क्या देखती हो तुम
आइने के सामने ख़डे होकर?
आँखोें में उतर आई चमक को
या
स्याह जुल्फों को
जो ढलक आई हैं शानों पर!
नहीं।।।
शायद, पढ़ती हो
चेहरे पर तहरीरें मोहब्बत की
लिखावट उन उंगलियों की।।।
वह कह नहीं सकता था। चुपके-चुपके देखता जरूर था। चौबीसौ घंटे साथ रहने की कोशिश करता। कोई अंग छू जाता तो अजीब-सी अनुभूति से भर उठता। कह नहीं पाता, पर शो जरूर करता कि वह उसकी गर्लफ्रेंड है। जाहिर है, थी भी। उसने श्रीकांत, सोनू और कई मित्रों को कान्टेक्ट नम्बर उसी के मोबाइल फोन का दे रखा था। ज्यादातर करीब होता। सुबह ६ से ९ बजे तक और शाम ५ से रात १०-११ बजे तक। घंटी बजते ही नमिता बटन दबाकर हलो कहती। वह मुँह फाड़ हाथ बढ़ाने को होता। फोन उसे पक़डा देती।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
