16-11-2021, 03:31 PM
तभी पिछे से एक हाथ मेरे कंधे पर आके रुक गया... मैने पिछे मुड़कर देखा तो ये रसूल था...
रसूल: भाई कहाँ है तू दुपेहर से मैं घर भी गया था लेकिन हीना ऑर नाज़ी ने बताया कि तू बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया मैने समझा तू यतीम खाने गया होगा वहाँ से भी रूबी से ऐसा ही जवाब मिला तुझे काफ़ी ढूँढा जब तू नही मिला तो मैं जानता था तू कहाँ मिलेगा...
मैं: यार शाम हो गई पता ही नही चला मैं यार आज खुद को काफ़ी उलझा हुआ महसूस कर रहा था इसलिए सोचा यहाँ आ जाउ तो मन शांत हो जाएगा...
रसूल: मैं जानता हूँ यार... चल बता फिर किसको प्यार करता है तू ऑर किससे शादी करेगा मैं कल ही क़ाज़ी को बुलवा लेता हूँ...
मैं: तू क़ाज़ी को बुलवा ले मैने मेरी हम-सफ़र को चुन लिया है...
रसूल: (खुश होके मेरे गले लगते हुए) अर्रे वाह भाई खुश कर दिया क्या मस्त खबर सुनाई है... चल बता कौन है हमारी होने वाली भाभी...
मैं: (मुस्कुरा कर) कल निकाह पर देख लेना
रसूल:यार तू कल ही शादी करेगा क्या...
मैं: हाँ क्यो... नही कर सकता क्या...
रसूल: नही... नही यार ऐसी बात नही है मेरा मतलब था शादी अगर धूम-धाम से होगी तो ज़्यादा बेहतर होगा ऑर उसके लिए तेयारियाँ करने के लिए वक़्त चाहिए...
मैं: (कुछ सोचते हुए) एक हफ़्ता बहुत है क्या...
रसूल: हाँ एक हफ्ते मे तो मैं सब इंतज़ाम कर दूँगा...
मैं: तो ठीक है फिर तय हो गया...
उसके बाद मैं ओर रसूल कार मे बैठ कर घर आ गये जहाँ नाज़ी रूबी ऑर हीना मेरा इंतज़ार कर रही थी...
रसूल: लो जी आपका मुजरिम पकड़ लाया हूँ अब खुद ही संभाल लो मैं तो चला शादी की तेयारियाँ करने... मुझे बहुत काम है...
रसूल की बात सुन्नकर वो तीनो मेरे पास आके बैठ गई ऑर मुझे सवालिया नज़रों से देखने लगी क्योंकि रसूल की तरह वो भी जानना चाहती थी कि मैं किससे शादी करना चाहता हूँ लेकिन उनमे से कोई भी मुझसे ये सवाल नही पूछ रही थी शायद उनमे किसी मे भी दूसरे का नाम सुनने की हिम्मत नही थी इसलिए कुछ देर मेरे पास खामोश बैठी रहने के बाद तीनो अपने-अपने कामो मे लग गई... मैं जानता था कि वो तीनो ही अंदर से बेहद उदास हैं लेकिन फिर भी मेरी खुशी के लिए तीनो रसूल की बीवी के साथ शादी की शॉपिंग मे लग गई... तय किए हुए दिन पूरी बस्ती को दुल्हन की तरह सज़ा दिया गया ऑर मेरी शादी बस्ती मे करना ही तय हुआ क्योंकि मेरा भी कोई अपना खास रिश्तेदार तो था नही जो भी थे ये बस्ती वाले ऑर मेरे दोस्त मेरे यार ही थे इसलिए मैने बस्ती मे ही शादी करने का फ़ैसला किया जिसको सबने खुशी-खुशी मान लिया...
लेकिन इन गुज़रे दिनों मे सब मुझसे आके बार-बार एक ही सवाल पुछ्ते थे कि दुल्हन कौन है ऑर मैं किसी को कुछ नही बता रहा था इसलिए सब एक अजीब सी उलझन मे शादी की तैयारियाँ कर रहे थे...
रसूल: भाई कहाँ है तू दुपेहर से मैं घर भी गया था लेकिन हीना ऑर नाज़ी ने बताया कि तू बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया मैने समझा तू यतीम खाने गया होगा वहाँ से भी रूबी से ऐसा ही जवाब मिला तुझे काफ़ी ढूँढा जब तू नही मिला तो मैं जानता था तू कहाँ मिलेगा...
मैं: यार शाम हो गई पता ही नही चला मैं यार आज खुद को काफ़ी उलझा हुआ महसूस कर रहा था इसलिए सोचा यहाँ आ जाउ तो मन शांत हो जाएगा...
रसूल: मैं जानता हूँ यार... चल बता फिर किसको प्यार करता है तू ऑर किससे शादी करेगा मैं कल ही क़ाज़ी को बुलवा लेता हूँ...
मैं: तू क़ाज़ी को बुलवा ले मैने मेरी हम-सफ़र को चुन लिया है...
रसूल: (खुश होके मेरे गले लगते हुए) अर्रे वाह भाई खुश कर दिया क्या मस्त खबर सुनाई है... चल बता कौन है हमारी होने वाली भाभी...
मैं: (मुस्कुरा कर) कल निकाह पर देख लेना
रसूल:यार तू कल ही शादी करेगा क्या...
मैं: हाँ क्यो... नही कर सकता क्या...
रसूल: नही... नही यार ऐसी बात नही है मेरा मतलब था शादी अगर धूम-धाम से होगी तो ज़्यादा बेहतर होगा ऑर उसके लिए तेयारियाँ करने के लिए वक़्त चाहिए...
मैं: (कुछ सोचते हुए) एक हफ़्ता बहुत है क्या...
रसूल: हाँ एक हफ्ते मे तो मैं सब इंतज़ाम कर दूँगा...
मैं: तो ठीक है फिर तय हो गया...
उसके बाद मैं ओर रसूल कार मे बैठ कर घर आ गये जहाँ नाज़ी रूबी ऑर हीना मेरा इंतज़ार कर रही थी...
रसूल: लो जी आपका मुजरिम पकड़ लाया हूँ अब खुद ही संभाल लो मैं तो चला शादी की तेयारियाँ करने... मुझे बहुत काम है...
रसूल की बात सुन्नकर वो तीनो मेरे पास आके बैठ गई ऑर मुझे सवालिया नज़रों से देखने लगी क्योंकि रसूल की तरह वो भी जानना चाहती थी कि मैं किससे शादी करना चाहता हूँ लेकिन उनमे से कोई भी मुझसे ये सवाल नही पूछ रही थी शायद उनमे किसी मे भी दूसरे का नाम सुनने की हिम्मत नही थी इसलिए कुछ देर मेरे पास खामोश बैठी रहने के बाद तीनो अपने-अपने कामो मे लग गई... मैं जानता था कि वो तीनो ही अंदर से बेहद उदास हैं लेकिन फिर भी मेरी खुशी के लिए तीनो रसूल की बीवी के साथ शादी की शॉपिंग मे लग गई... तय किए हुए दिन पूरी बस्ती को दुल्हन की तरह सज़ा दिया गया ऑर मेरी शादी बस्ती मे करना ही तय हुआ क्योंकि मेरा भी कोई अपना खास रिश्तेदार तो था नही जो भी थे ये बस्ती वाले ऑर मेरे दोस्त मेरे यार ही थे इसलिए मैने बस्ती मे ही शादी करने का फ़ैसला किया जिसको सबने खुशी-खुशी मान लिया...
लेकिन इन गुज़रे दिनों मे सब मुझसे आके बार-बार एक ही सवाल पुछ्ते थे कि दुल्हन कौन है ऑर मैं किसी को कुछ नही बता रहा था इसलिए सब एक अजीब सी उलझन मे शादी की तैयारियाँ कर रहे थे...