16-11-2021, 02:54 PM
रात काफ़ी हो गई थी इसलिए मैने घर जाने का सोचा ऑर अपनी सोचो के साथ मैं गाड़ी मे बैठ गया... ड्राइवर ने मुझे मेरे घर के सामने उतार दिया... मैने बुझे हुए दिल के साथ दरवाज़ा खट-खाटाया तो रूबी ने जल्दी से दरवाज़ा खोला ऑर एक दिल-क़श मुस्कान के साथ मेरा स्वागत किया...
रूबी: आज बहुत देर कर दी तुमने कहाँ थे इतनी देर...
मैं: कही नही बस ऐसे ही बैठा था ऑफीस मे...
रूबी: (मेरा हाथ पकड़कर मुझे घर के अंदर ले जाते हुए) क्या बात है आज मेरा शेर उदास लग रहा है कुछ हुआ क्या...
मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए) बस ऐसे ही आज दिल उदास है
रूबी: (मुझे बेड पर बिठा कर गले से लगते हुए) अगर तुमको बुरा ना लगे तो तुम मुझे अपनी परेशानी की वजह बता सकते हो इससे मन हल्का हो जाएगा तुम्हारा...
मैं: नही कुछ नही हुआ बस वैसे ही सिर मे ज़रा दर्द है... (मैं रूबी को अपना बीता हुआ कल नही बताना चाहता था इसलिए बात को घुमा दिया)
रूबी: अच्छा ऐसा करो खाना खा लो फिर मैं तुम्हारा मूड ऑर सिर दर्द दोनो ठीक कर दूँगी...
मैं: मुझे भूख नही है तुम खा लो...
रूबी: अर्रे... ऐसे कैसे भूख नही है... भूखे रहने से भी सिर मे दर्द होता है जानते हो... तुम यही बैठो मैं खाना लेके आती हूँ तुम्हारे लिए आज मैं मेरी जान को अपने हाथो से खिलाउन्गी (मुस्कुराते हुए वो रसोई मे चली गई)
मैं कुछ देर उसको जाते हुए देखता रहा फिर मैं वापिस अपनी सोचो मे गुम्म हो गया... कुछ ही देर मे रूबी खाना ले आई ऑर मेरे साथ आके बैठ गई ऑर अपने हाथो से मुझे खाना खिलाने लगी... उसको इस तरह खाना खिलाता देख कर मुझे नाज़ी ऑर फ़िज़ा की याद आ गई क्योंकि जब मैं नाराज़ हो जाता था तो वो भी मुझे ऐसे ही खाना खिलाती थी... उसको इतने प्यार से खाना खिलाते देख कर मैं रूबी को ना नही कह पाया ऑर भूख ना होने के बावजूद मैं खाना खाने लगा साथ ही मैने भी रोटी उठाई ओर अपने हाथ से रूबी को खिलाने लगा... ये पहली बार था जब मैं रूबी को इतने प्यार से देख रहा था वो मुझे इस तरह खाना खिलाते देख कर बहुत हेरान थी ऑर बिना कुछ बोले वो भी खाना खाने लगी अब हम दोनो एक दूसरे को खाना खिला रहे थे...
खाने के बाद मैं बिस्तर पर लेट गया ऑर रूबी हमेशा की तरह अपना नाइट गाउन पहनकर आ गई ऑर मेरे साथ आके लेट गई... वो आज भी मुझे वैसे ही प्यार से देख रही थी जैसे पहले दिन मिली थी तब देख रही थी...
मैं: क्या देख रही हो...
रूबी: देख रही हूँ तुम कितने बदल गये हो
मैं: क्या बदल गया...
रूबी: पहले तुमने कभी मुझसे ये भी नही पूछा था कि मैने खाया या नही ऑर आज तुमने खुद मुझे खाना खिलाया...
मैं: आज इसलिए खिलाया क्योंकि मेरा मन था तुमको खाना खिलाने का मैं जानता हूँ तुम मेरे बाद ही खाना खाती हो...
रूबी: (बिना कुछ बोले मुझे गले से लगते हुए) मुझे ये वाला शेरा बहुत पसंद है ऑर इसको मैं पहले से भी ज़्यादा प्यार करने लगी हूँ... मुझे तुम्हारी सबसे अच्छी बात जानते हो क्या लगी...
मैं: क्या...
रूबी: तुम अब दूसरो का बहुत सोचते हो पहले ऐसे नही थे...
मैं: रूबी तुमको एक सवाल पुच्छू अगर बुरा ना मानो तो...
रूबी: तुम्हारी कभी कोई बात बुरी नही लगती मेरी जान पुछो क्या पुच्छना है...
मैं: तुम मुझे इतना प्यार करती हो फिर भी कभी अपना हक़ नही जमाती मुझ पर ना ही तुमने कभी मेरे काम के बारे मे पूछा ना कभी ये पूछा कि मैं कहाँ था किसके साथ था ऐसा क्यो...
रूबी: (मुस्कुराते हुए) क्योंकि एक बार तुमने ही कहा थे कि अपनी औकात मे रहा करो मैं कहाँ जाता हूँ क्या करता हूँ इससे तुमको कोई मतलब नही है ऑर हर बात तुमको बतानी मैं ज़रूरी नही समझता इसलिए तब से मैं हमेशा अपनी औकात मे ही रहती हूँ...
मैं: पहले जो भी बोला था उसको भूल जाओ ऑर मुझे माफ़ कर दो... अब जो कह रहा हूँ वो याद रखना तुम जब हक़ जमाती हो तो अच्छा लगता है ऐसा लगता है मेरा भी कोई अपना है...
रूबी: (खुश होके मुझे ज़ोर से गले लगाते हुए) हाए मैं मर जाउ... आज तुम मेरी जान लेके रहोगे... ऐसी बाते ना करो कही मैं पागल ही ना हो जाउ खुशी से...
मैं: (रूबी का चेहरा अपने दोनो हाथो से पकड़ते हुए) तुम जब हँसती हो तो बहुत अच्छी लगती हो इसलिए हँसती रहा करो...
रूबी: (खामोश होके हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म
मैं: तुमको पता है तुम बहुत अच्छी हो... (रूबी का माथा चूमते हुए)
रूबी: (बिना कुछ बोले मेरे ऑर पास सरकते हुए ऑर अपनी आँखें बंद करते हुए) हमम्म
रूबी: आज बहुत देर कर दी तुमने कहाँ थे इतनी देर...
मैं: कही नही बस ऐसे ही बैठा था ऑफीस मे...
रूबी: (मेरा हाथ पकड़कर मुझे घर के अंदर ले जाते हुए) क्या बात है आज मेरा शेर उदास लग रहा है कुछ हुआ क्या...
मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए) बस ऐसे ही आज दिल उदास है
रूबी: (मुझे बेड पर बिठा कर गले से लगते हुए) अगर तुमको बुरा ना लगे तो तुम मुझे अपनी परेशानी की वजह बता सकते हो इससे मन हल्का हो जाएगा तुम्हारा...
मैं: नही कुछ नही हुआ बस वैसे ही सिर मे ज़रा दर्द है... (मैं रूबी को अपना बीता हुआ कल नही बताना चाहता था इसलिए बात को घुमा दिया)
रूबी: अच्छा ऐसा करो खाना खा लो फिर मैं तुम्हारा मूड ऑर सिर दर्द दोनो ठीक कर दूँगी...
मैं: मुझे भूख नही है तुम खा लो...
रूबी: अर्रे... ऐसे कैसे भूख नही है... भूखे रहने से भी सिर मे दर्द होता है जानते हो... तुम यही बैठो मैं खाना लेके आती हूँ तुम्हारे लिए आज मैं मेरी जान को अपने हाथो से खिलाउन्गी (मुस्कुराते हुए वो रसोई मे चली गई)
मैं कुछ देर उसको जाते हुए देखता रहा फिर मैं वापिस अपनी सोचो मे गुम्म हो गया... कुछ ही देर मे रूबी खाना ले आई ऑर मेरे साथ आके बैठ गई ऑर अपने हाथो से मुझे खाना खिलाने लगी... उसको इस तरह खाना खिलाता देख कर मुझे नाज़ी ऑर फ़िज़ा की याद आ गई क्योंकि जब मैं नाराज़ हो जाता था तो वो भी मुझे ऐसे ही खाना खिलाती थी... उसको इतने प्यार से खाना खिलाते देख कर मैं रूबी को ना नही कह पाया ऑर भूख ना होने के बावजूद मैं खाना खाने लगा साथ ही मैने भी रोटी उठाई ओर अपने हाथ से रूबी को खिलाने लगा... ये पहली बार था जब मैं रूबी को इतने प्यार से देख रहा था वो मुझे इस तरह खाना खिलाते देख कर बहुत हेरान थी ऑर बिना कुछ बोले वो भी खाना खाने लगी अब हम दोनो एक दूसरे को खाना खिला रहे थे...
खाने के बाद मैं बिस्तर पर लेट गया ऑर रूबी हमेशा की तरह अपना नाइट गाउन पहनकर आ गई ऑर मेरे साथ आके लेट गई... वो आज भी मुझे वैसे ही प्यार से देख रही थी जैसे पहले दिन मिली थी तब देख रही थी...
मैं: क्या देख रही हो...
रूबी: देख रही हूँ तुम कितने बदल गये हो
मैं: क्या बदल गया...
रूबी: पहले तुमने कभी मुझसे ये भी नही पूछा था कि मैने खाया या नही ऑर आज तुमने खुद मुझे खाना खिलाया...
मैं: आज इसलिए खिलाया क्योंकि मेरा मन था तुमको खाना खिलाने का मैं जानता हूँ तुम मेरे बाद ही खाना खाती हो...
रूबी: (बिना कुछ बोले मुझे गले से लगते हुए) मुझे ये वाला शेरा बहुत पसंद है ऑर इसको मैं पहले से भी ज़्यादा प्यार करने लगी हूँ... मुझे तुम्हारी सबसे अच्छी बात जानते हो क्या लगी...
मैं: क्या...
रूबी: तुम अब दूसरो का बहुत सोचते हो पहले ऐसे नही थे...
मैं: रूबी तुमको एक सवाल पुच्छू अगर बुरा ना मानो तो...
रूबी: तुम्हारी कभी कोई बात बुरी नही लगती मेरी जान पुछो क्या पुच्छना है...
मैं: तुम मुझे इतना प्यार करती हो फिर भी कभी अपना हक़ नही जमाती मुझ पर ना ही तुमने कभी मेरे काम के बारे मे पूछा ना कभी ये पूछा कि मैं कहाँ था किसके साथ था ऐसा क्यो...
रूबी: (मुस्कुराते हुए) क्योंकि एक बार तुमने ही कहा थे कि अपनी औकात मे रहा करो मैं कहाँ जाता हूँ क्या करता हूँ इससे तुमको कोई मतलब नही है ऑर हर बात तुमको बतानी मैं ज़रूरी नही समझता इसलिए तब से मैं हमेशा अपनी औकात मे ही रहती हूँ...
मैं: पहले जो भी बोला था उसको भूल जाओ ऑर मुझे माफ़ कर दो... अब जो कह रहा हूँ वो याद रखना तुम जब हक़ जमाती हो तो अच्छा लगता है ऐसा लगता है मेरा भी कोई अपना है...
रूबी: (खुश होके मुझे ज़ोर से गले लगाते हुए) हाए मैं मर जाउ... आज तुम मेरी जान लेके रहोगे... ऐसी बाते ना करो कही मैं पागल ही ना हो जाउ खुशी से...
मैं: (रूबी का चेहरा अपने दोनो हाथो से पकड़ते हुए) तुम जब हँसती हो तो बहुत अच्छी लगती हो इसलिए हँसती रहा करो...
रूबी: (खामोश होके हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म
मैं: तुमको पता है तुम बहुत अच्छी हो... (रूबी का माथा चूमते हुए)
रूबी: (बिना कुछ बोले मेरे ऑर पास सरकते हुए ऑर अपनी आँखें बंद करते हुए) हमम्म