16-11-2021, 02:53 PM
उसके बाद मैने वो फाइल को पकड़ा ऑर बाबा को उपर उनके कमरे मे ले गया ऑर बेड पर लिटा कर खुद अपने ऑफीस मे आ गया... कुछ देर फाइल को अच्छे से देखने के बाद मैं याद करने लगा कि हेड क्वॉर्टर्स मे मैने इन सब लोगो मे से किसको देखा है जो हमारे लिए काम करता है... लेकिन अफ़सोस कोई भी चेहरा मेरे देखे हुए चेहरो से नही मिलता था सब नये ही चेहरे थे... इसका मतलब ख़ान ने सिर्फ़ अपने लोगो से ही मुझे मिलवाया था जो उसके लिए काम करते थे... मैं अब आगे क्या करना है उसके बारे मे ही सोच रहा था... आज के इस हादसे ने कई राज़ खोल दिए थे...
अब मुझे इतना तो पता चल ही गया था कि कौन मेरा अपना है ओर कौन अपना होने का दिखावा कर रहा है एक तरफ ख़ान ऑर रिज़वाना थे जो मुझसे शेख़ साहब की दौलत का पता निकलवाने के लिए इस्तेमाल कर रहे थे ऑर मेरे सामने मेरे हम दर्द बन रहे थे...
दूसरी तरफ बाबा थे फ़िज़ा थी नाज़ी थी हीना थी जिन्होने बिना किसी लालच के मेरी देख भाल की मुझे इतना प्यार दिया ऑर मैं ताक़त के नशे मे चूर सब अहसान भूल गया मेरे बिना जाने वो कैसे होंगे ऑर मुझे कितना याद करते होंगे... मैं तो उन लोगो की ज़िम्मेवारी भी ख़ान को दे आया था जाने उन लोगो का मेरे बिना क्या हाल होगा... यहाँ आने के बाद मैने एक बार भी उनके बारे मे जानना ज़रूरी नही समझा ना ही ख़ान ने मुझे उनके बारे मे कुछ बताया... अब मुझे खुद की खुद-गर्जी पर गुस्सा आ रहा था कि मैं उनका प्यार भूल गया उनके किए हुए मुझ पर अहसान भूल गया... फिर मुझे मेरी उनके साथ गुज़री हुई ज़िंदगी का एक-एक लम्हा याद आने लगा...
कैसे बाबा फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने मेरी जान बचाई मेरी इतने वक़्त तक देख-भाल की कैसे बाबा ने मुझे अपना बेटा बना लिया ऑर मुझ पर अपने बेटे से भी ज़्यादा ऐतबार किया... कैसे जब मैं बीमार हुआ था तो हीना मेरे लिए शहर से डॉक्टर लेके आई थी ऑर मेरे बीमार होने पर अपने अब्बू से झगड़ा करके अपने मुलाज़िम मेरे खेतो मे लगा दिए थे... वो सब कुछ किसी फिल्म की तरह मेरे आँखो के सामने चलने लगा... अब मैं अकेला बैठा रो भी रहा था ऑर उन सब को याद भी कर रहा था... वो दिन मेरा उदासी के साथ ही गुज़रा मुझे अपनी ग़लती का अहसास हो रहा था कि जाने-अंजाने मैने उनको भी मुसीबत मे डाल दिया है...
अब मुझे इतना तो पता चल ही गया था कि कौन मेरा अपना है ओर कौन अपना होने का दिखावा कर रहा है एक तरफ ख़ान ऑर रिज़वाना थे जो मुझसे शेख़ साहब की दौलत का पता निकलवाने के लिए इस्तेमाल कर रहे थे ऑर मेरे सामने मेरे हम दर्द बन रहे थे...
दूसरी तरफ बाबा थे फ़िज़ा थी नाज़ी थी हीना थी जिन्होने बिना किसी लालच के मेरी देख भाल की मुझे इतना प्यार दिया ऑर मैं ताक़त के नशे मे चूर सब अहसान भूल गया मेरे बिना जाने वो कैसे होंगे ऑर मुझे कितना याद करते होंगे... मैं तो उन लोगो की ज़िम्मेवारी भी ख़ान को दे आया था जाने उन लोगो का मेरे बिना क्या हाल होगा... यहाँ आने के बाद मैने एक बार भी उनके बारे मे जानना ज़रूरी नही समझा ना ही ख़ान ने मुझे उनके बारे मे कुछ बताया... अब मुझे खुद की खुद-गर्जी पर गुस्सा आ रहा था कि मैं उनका प्यार भूल गया उनके किए हुए मुझ पर अहसान भूल गया... फिर मुझे मेरी उनके साथ गुज़री हुई ज़िंदगी का एक-एक लम्हा याद आने लगा...
कैसे बाबा फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने मेरी जान बचाई मेरी इतने वक़्त तक देख-भाल की कैसे बाबा ने मुझे अपना बेटा बना लिया ऑर मुझ पर अपने बेटे से भी ज़्यादा ऐतबार किया... कैसे जब मैं बीमार हुआ था तो हीना मेरे लिए शहर से डॉक्टर लेके आई थी ऑर मेरे बीमार होने पर अपने अब्बू से झगड़ा करके अपने मुलाज़िम मेरे खेतो मे लगा दिए थे... वो सब कुछ किसी फिल्म की तरह मेरे आँखो के सामने चलने लगा... अब मैं अकेला बैठा रो भी रहा था ऑर उन सब को याद भी कर रहा था... वो दिन मेरा उदासी के साथ ही गुज़रा मुझे अपनी ग़लती का अहसास हो रहा था कि जाने-अंजाने मैने उनको भी मुसीबत मे डाल दिया है...