16-11-2021, 02:13 PM
कुछ ही देर मे दरवाज़ा खुल गया... उस घर मे से एक आदमी बाहर आया...
मैं: जी इतनी रात को आपको तक़लीफ़ देने के लिए माफी चाहता हूँ दर-असल मुझे रसूल से मिलना था...
अभी मैने अपनी बात भी मुक़ाम्मल नही की थी कि मेरे सामने खड़ा आदमी मुझे देख कर खुश हो गया ऑर मेरे गले से लग गया...
आदमी: शेरा भाई तुम ज़िंदा हो...
मेरे कुछ समझ नही आ रहा था कि ये आदमी मुझे कैसे जनता है...
मैं: क्या आप मुझे जानते हैं...
आदमी: कैसी बातें कर रहे हो भाई तुमको यहाँ कौन नही जानता तुम तो हमारे अपने हो... बाहर क्यो खड़े हो अंदर आओ...
मैं: जी शुक्रिया...
मेरी कुछ भी समझ नही आ रहा था कि ये मेरे साथ क्या हो रहा है ये आदमी मुझे कैसे जानता है... तभी एक औरत मेरी तरफ आई ऑर अदब से मुझे सलाम किया ऑर मेरे सामने पानी का एक ग्लास रख दिया ऑर वापिस अंदर चली गई... उस ख़ातून ने नक़ाब किया हुआ था इसलिए मैं उसका चेहरा नही देख पाया... तभी वो आदमी मेरे पास आया...
आदमी: तुम यही बैठो मैं सारी बस्ती को बताके आता हूँ कि हमारा शेरा वापिस आ गया है ऑर हमारी दुआ रंग ले आई है...
मैं: अच्छा लेकिन तुम्हारा नाम क्या है
आदमी: कमाल है 4 दिन हम से दूर क्या हुए अब तुम मेरा नाम भी भूल गये हो... मैं रसूल हूँ तुम्हारे बचपन का साथी... तुम बैठो मैं अभी आया...
अपडेट-45
मैं चुप-चाप वहाँ बैठा रहा साथ ही पानी पीने लगा ऑर चारो तरफ नज़र दौड़ा कर उस घर को देखने लगा घर कुछ खास नही बना हुआ था एक दम मेरे गाव के घर जैसा था... तभी एक छोटा सा बच्चा मेरे पास आया...
बच्चा: आप शेरा चाचा हो ना...
मैं: (उस बच्चे को उठा कर अपनी गोद मे बिठाते हुए) हंजी बेटा मैं शेरा हूँ लेकिन आप मुझे कैसे जानते हो...
बच्चा: (उंगली से एक कमरे मे इशारा करते हुए) अम्मी ने बताया मुझे कि आप मेरे शेरा चाचा हो...
मैं: अच्छा... ये तो बहुत अच्छी बात है ऑर आपका नाम क्या है...
बच्चा: मेरा नाम अली है आपका नाम क्या है शेरा चाचा...
मैं: (हँसते हुए) अच्छा जी... तुम तो बहुत प्यारी बाते करते हो...
अभी मैं उस बच्चे से बात ही कर रहा था कि बाहर मुझे लोगो का शोर सुनाई दिया इसलिए मैने उस बच्चे को अपनी गोद मे उठाया ऑर बाहर जाके देखने लगा... बाहर बहुत से लोग जमा हो गये थे जो मुझे बड़ी हैरानी से देख रहे थे... तभी उस भीड़ मे से एक बूढ़ी सी औरत मेरे सामने आके खड़ी हो गई ऑर मुझे बड़े गौर से देखने लगी... फिर बड़े प्यार से मुझे गले से लगा लिया ऑर मेरा माथा चूम लिया साथ ही मुझे दुआ देने लगी...
अम्मा: (रोते हुए) कहाँ चला गया था बेटा अपनी अम्मा को छोड़ कर ऑर इतना वक़्त तू था कहाँ जानता है हमने तुझे कितना याद किया ऑर तेरी सलामती के लिए कितनी दुआएँ की थी...
मैं: मेरा आक्सिडेंट हो गया था जिससे मेरी याददाश्त चली गई थी... आप लोग कौन है ऑर मुझे कैसे जानते हैं...
अम्मा: मुझे पहचाना नही शेरा मैं अम्मा हूँ...
मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए) मुझे यहाँ जापानी ने भेजा है...
अम्मा: जापानी... है कहाँ वो ना-मुराद तू वापिस आ गया है ऑर उसने हमे बताना भी ज़रूरी नही समझा...
उसके बाद मैने अपनी सारी कहानी अम्मा को ऑर वहाँ खड़े तमाम लोगो को सुना दी ऑर साथ ही ये भी बता दिया कि जापानी के साथ क्या हुआ ये सुनकर सब लोग बेहद दुखी हो गये...
अम्मा: क्या तक़दीर मिली है हमे एक बेटा वापिस मिला तो दूसरा बेटा दूर चल गया...
मैं: अम्मा मैने उससे बहुत कहा था साथ चलने के लिए लेकिन वो माना ही नही ऑर खुद उन लोगो से मेरे लिया लड़ता रहा... मेरे लिए अपनी जान क़ुरबान कर दी...
अम्मा: ऐसा ही था वो तुझ पर तो जान देता था ऑर तुम दोनो की दोस्ती को कौन नही जानता...
मैं: (रोते हुए) अम्मा मुझे बहुत अफ़सोस है कि मैं जापानी के लिए कुछ कर नही पाया...
उसके बाद काफ़ी देर वहाँ सब लोग खड़े रहे ऑर सब लोग मुझसे तरह-तरह के सवाल पुछ्ते रहे रात काफ़ी हो गई थी इसलिए अम्मा ने सबको जाने का कह दिया ऑर मुझे वापिस रसूल के साथ एक घर मे भेज दिया जो मुझे बताया गया कि ये मेरा ही घर है... उसके बाद मैं उस घर के अंदर चला गया ऑर पूरे घर को बड़े गौर से देखने लगा... घर काफ़ी शानदार था ऑर वहाँ रखी हर चीज़ काफ़ी कीमती लग रही थी... उस घर की एक-एक चीज़ मुझसे जुड़ी थी लेकिन जाने क्यो मुझे कुछ भी याद नही था... मैं उस घर की एक-एक चीज़ को बड़े गौर से देख रहा था ऑर पहचाने की कोशिश कर रहा था... कुछ देर यहाँ-वहाँ घूमने के बाद मैं अपने बिस्तर पर आके लेट गया ऑर दिन भर हुए तमाम हादसो के बारे मे सोचने लगा... कुछ ही देर मे मुझे नींद आ गई ऑर मैं सुकून की नींद सो गया...
मैं: जी इतनी रात को आपको तक़लीफ़ देने के लिए माफी चाहता हूँ दर-असल मुझे रसूल से मिलना था...
अभी मैने अपनी बात भी मुक़ाम्मल नही की थी कि मेरे सामने खड़ा आदमी मुझे देख कर खुश हो गया ऑर मेरे गले से लग गया...
आदमी: शेरा भाई तुम ज़िंदा हो...
मेरे कुछ समझ नही आ रहा था कि ये आदमी मुझे कैसे जनता है...
मैं: क्या आप मुझे जानते हैं...
आदमी: कैसी बातें कर रहे हो भाई तुमको यहाँ कौन नही जानता तुम तो हमारे अपने हो... बाहर क्यो खड़े हो अंदर आओ...
मैं: जी शुक्रिया...
मेरी कुछ भी समझ नही आ रहा था कि ये मेरे साथ क्या हो रहा है ये आदमी मुझे कैसे जानता है... तभी एक औरत मेरी तरफ आई ऑर अदब से मुझे सलाम किया ऑर मेरे सामने पानी का एक ग्लास रख दिया ऑर वापिस अंदर चली गई... उस ख़ातून ने नक़ाब किया हुआ था इसलिए मैं उसका चेहरा नही देख पाया... तभी वो आदमी मेरे पास आया...
आदमी: तुम यही बैठो मैं सारी बस्ती को बताके आता हूँ कि हमारा शेरा वापिस आ गया है ऑर हमारी दुआ रंग ले आई है...
मैं: अच्छा लेकिन तुम्हारा नाम क्या है
आदमी: कमाल है 4 दिन हम से दूर क्या हुए अब तुम मेरा नाम भी भूल गये हो... मैं रसूल हूँ तुम्हारे बचपन का साथी... तुम बैठो मैं अभी आया...
अपडेट-45
मैं चुप-चाप वहाँ बैठा रहा साथ ही पानी पीने लगा ऑर चारो तरफ नज़र दौड़ा कर उस घर को देखने लगा घर कुछ खास नही बना हुआ था एक दम मेरे गाव के घर जैसा था... तभी एक छोटा सा बच्चा मेरे पास आया...
बच्चा: आप शेरा चाचा हो ना...
मैं: (उस बच्चे को उठा कर अपनी गोद मे बिठाते हुए) हंजी बेटा मैं शेरा हूँ लेकिन आप मुझे कैसे जानते हो...
बच्चा: (उंगली से एक कमरे मे इशारा करते हुए) अम्मी ने बताया मुझे कि आप मेरे शेरा चाचा हो...
मैं: अच्छा... ये तो बहुत अच्छी बात है ऑर आपका नाम क्या है...
बच्चा: मेरा नाम अली है आपका नाम क्या है शेरा चाचा...
मैं: (हँसते हुए) अच्छा जी... तुम तो बहुत प्यारी बाते करते हो...
अभी मैं उस बच्चे से बात ही कर रहा था कि बाहर मुझे लोगो का शोर सुनाई दिया इसलिए मैने उस बच्चे को अपनी गोद मे उठाया ऑर बाहर जाके देखने लगा... बाहर बहुत से लोग जमा हो गये थे जो मुझे बड़ी हैरानी से देख रहे थे... तभी उस भीड़ मे से एक बूढ़ी सी औरत मेरे सामने आके खड़ी हो गई ऑर मुझे बड़े गौर से देखने लगी... फिर बड़े प्यार से मुझे गले से लगा लिया ऑर मेरा माथा चूम लिया साथ ही मुझे दुआ देने लगी...
अम्मा: (रोते हुए) कहाँ चला गया था बेटा अपनी अम्मा को छोड़ कर ऑर इतना वक़्त तू था कहाँ जानता है हमने तुझे कितना याद किया ऑर तेरी सलामती के लिए कितनी दुआएँ की थी...
मैं: मेरा आक्सिडेंट हो गया था जिससे मेरी याददाश्त चली गई थी... आप लोग कौन है ऑर मुझे कैसे जानते हैं...
अम्मा: मुझे पहचाना नही शेरा मैं अम्मा हूँ...
मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए) मुझे यहाँ जापानी ने भेजा है...
अम्मा: जापानी... है कहाँ वो ना-मुराद तू वापिस आ गया है ऑर उसने हमे बताना भी ज़रूरी नही समझा...
उसके बाद मैने अपनी सारी कहानी अम्मा को ऑर वहाँ खड़े तमाम लोगो को सुना दी ऑर साथ ही ये भी बता दिया कि जापानी के साथ क्या हुआ ये सुनकर सब लोग बेहद दुखी हो गये...
अम्मा: क्या तक़दीर मिली है हमे एक बेटा वापिस मिला तो दूसरा बेटा दूर चल गया...
मैं: अम्मा मैने उससे बहुत कहा था साथ चलने के लिए लेकिन वो माना ही नही ऑर खुद उन लोगो से मेरे लिया लड़ता रहा... मेरे लिए अपनी जान क़ुरबान कर दी...
अम्मा: ऐसा ही था वो तुझ पर तो जान देता था ऑर तुम दोनो की दोस्ती को कौन नही जानता...
मैं: (रोते हुए) अम्मा मुझे बहुत अफ़सोस है कि मैं जापानी के लिए कुछ कर नही पाया...
उसके बाद काफ़ी देर वहाँ सब लोग खड़े रहे ऑर सब लोग मुझसे तरह-तरह के सवाल पुछ्ते रहे रात काफ़ी हो गई थी इसलिए अम्मा ने सबको जाने का कह दिया ऑर मुझे वापिस रसूल के साथ एक घर मे भेज दिया जो मुझे बताया गया कि ये मेरा ही घर है... उसके बाद मैं उस घर के अंदर चला गया ऑर पूरे घर को बड़े गौर से देखने लगा... घर काफ़ी शानदार था ऑर वहाँ रखी हर चीज़ काफ़ी कीमती लग रही थी... उस घर की एक-एक चीज़ मुझसे जुड़ी थी लेकिन जाने क्यो मुझे कुछ भी याद नही था... मैं उस घर की एक-एक चीज़ को बड़े गौर से देख रहा था ऑर पहचाने की कोशिश कर रहा था... कुछ देर यहाँ-वहाँ घूमने के बाद मैं अपने बिस्तर पर आके लेट गया ऑर दिन भर हुए तमाम हादसो के बारे मे सोचने लगा... कुछ ही देर मे मुझे नींद आ गई ऑर मैं सुकून की नींद सो गया...