12-11-2021, 04:33 PM
"अले. मेले. लाड़ले." संगीता दीदी ने बड़े लाड से कहा, "कित'ने जलदी नलाज होता है मेला राजा भैया. उसे मश्करी भी समझ आती नही." ऐसा कह'कर वो ज़ोर से हंस'ने लगी. में कुच्छ नही बोला और चेह'रा मायूस कर के उसे दिखाने लगा के में नाराज़ हो गया हूँ.
"अच्च्छा! अच्च्छा!. इत'नी भी नाराज़ होने की ऐकटिंग कर'ने की ज़रूरत नही है, सागर. मुझे मालूम है मन ही मन लड्डू फूट रहे होंगे तुम्हारे." उस'ने बड़ी मुश्कील से अप'नी हँसी रोकते हुए कहा और वो सुन'कर मुझे भी हँसी आई.
"देखा. देखा. कैसे दिल से हँसे तुम." ऐसा कह'कर संगीता दीदी उठ गयी और अप'ने घुट'ने पर खड़ी होकर उस'ने मुझे उप्पर उठ'ने का इशारा किया. में झट से उठा के बैठ गया. उस'ने मेरा टी-शर्ट दोनो बाजू से पकड़ लिया और धीरे धीरे उप्पर उठाते हुए निकाल दिया. फिर उस'ने मुझे पिछे धकेल के लिटा दिया और वैसे ही अप'ने घुट'ने के बल चल के वो मेरे पैरो तले गई. फिर उस'ने मेरे -पॅंट के इलास्टीक में दोनो बाजू से अप'नी उंगलीया घुसा के उसे पकड़ लिया. उस'ने उंगलीया ऐसे घुसाई थी के शॉर्ट पॅंट के साथ उस'ने अंदर की मेरी अंडरावेअर भी पकड़ ली थी. धीरे धीरे वो उसे नीचे खींच'ने लगी.
मेरा लंड ज़्यादा कड़क नही था और नीचे की ओर पड़ा हुआ था इस'लिए पॅंट नीचे खींचते सम'य उसे मेरा लंड आड़े नही आ रहा था. मेरे लंड के उप्पर की झाँते नज़र आने लगी तो उसे हँसी आई और बड़ी मुश्कील से अप'नी हँसी दबाते हुए वो पॅंट और नीचे खींच'ती गई. जैसे जैसे मेरा लंड उसे नज़र आने लगा वैसे वैसे उसकी हँसी कम होती गई. मेरी बड़ी बहन के साम'ने मेरा लंड खुल रहा है इस ख़याल से में उत्तेजीत हो रहा था. संगीता दीदी ने पॅंट मेरे घुटनो तक खींची और यकायक मेरा लंड उसकी नज़र के साम'ने खुल गया! झट से उस'ने पॅंट मेरे पैरो से खींच के निकाल दी और बाजू में डाल दी.
अब में संगीता दीदी के साम'ने पूरा नंगा था. उसकी नज़र मेरे अध-खड़े लंड पर टिकी हुई थी. मेरी बहन के साम'ने में नंगा हूँ और वो मेरे लंड को देख रही है ये अह'सास मुझे पागल कर'ने लगा. देख'ते ही देख'ते मेरा लंड कड़ा होने लगा. उस में जैसे जान भर दी हो और एक अलग जानवर की तरह वो डोल'ने लगा और तन के खड़ा हो गया. जैसे जैसे मेरा लंड कड़ा होता गया वैसे वैसे संगीता दीदी की आँखें चौंक'ती गई.
एक पल के लिए वो मेरी तरफ देख'ती थी तो अगले पल मेरे कड़े हो रहे लंड को देख'ती थी. मेरे ध्यान में आया के मेरे जल्दी जल्दी कड़े हो रहे लंड को देख'कर वो हैरान हो रही थी.
"सागर!! क्या है ये.! कित'ना जल्दी तुम्हारा लंड तन के खड़ा हो गया!! मेने ऐसे लंड को खड़े होते हुए कभी नही देखा था!"
"सच, दीदी??. ये तो तुम्हारा कमाल है, दीदी!"
"मेरा कमाल?? मेने क्या किया, सागर?"
"नही. प्रैक्टिकली तुम'ने कुच्छ नही किया. लेकिन में तुम्हारे साम'ने नंगा हूँ ना. मेरी बहन के साम'ने में नंगा हूँ इस भावना से में इतना उत्तेजीत हो गया हूँ के पुछो मत.."
"मुझे पुच्छ'ने की ज़रूरत ही नही, सागर. में देख सक'ती हूँ ये कमाल." वो अब भी मेरे लंड को हैरानी से देख रही थी.
"ये, सागर. में ज़रा तुम्हारे लंड को अच्छी तरह से देख लूँ? मेरे मन में ये बहुत दिनो की 'इच्छा' है." ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मेरे दोनो पैर फैला दिए और वो मेरे पैरो के बीच में बैठ गयी.
"कमाल है, दीदी. तुम'ने कभी जीजू के लंड को अच्छी तरह से देखा नही क्या?" मेने आश्चर्य से पुछा.
"हाँ. उनके लंड को क्या अच्छी तरह से देख'ना. वो तो मुझे हाथ भी लगाने नही देते थे. और हम दोनो रात के नाइट लॅंप में सेक्स कर'ते थे इस'लिए उनका लंड कभी अच्छी तराहा से देख'ने को भी नही मिला मुझे."
"अच्च्छा!.. तो आद'मी का लंड अच्छी तरह से देख'ने को मिले ये तुम्हारी 'इच्छा' थी हाँ."
"हां. लेकिन किसी भी आद'मी का नही. सिर्फ़ तुम्हारे जीजू का लंड."
"ओहा आय सी!. लेकिन ये तो जीजू का लंड नही है, दीदी."
"हां ! डियर सागर. मुझे मालूम है वो.. मेरे पति का लंड नही तो ना सही.. मेरे भाई का लंड तो है. इसी को निहार के में अप'नी 'इच्छा' पूरी कर लूँगी.." संगीता दीदी की बात सुन'कर में ज़ोर ज़ोर'से हंस'ने लगा. उस'ने चौन्क के मेरी तरफ देखा और पुछा, "ऐसे क्यों हंस रहे हो, सागर?"
"इस'लिए के. अब तुम कित'नी आसानी से 'लंड' वग़ैरा शब्द बोल रही हो और थोड़ी देर पह'ले तुम 'शी!' कर रही थी. वो मुझे याद आया और मुझे हँसी आई!" मेने हंस'ते हुए उसे जवाब दिया.
"तो फिर क्या.. ये तो तुम्हारा ही कमाल है, सागर. तुम्ही ने मुझे गंदी कर दिया है."
"अब तक तो नही." उसे सुनाई ना दे ऐसी आवाज़ में मेने धीरे से कहा.
"क्या? क्या कहा तुम'ने??" उस'ने चमक कर पुछा.
"अम?. का. कुच्छ नही, दीदी. तुम कर रही हो ना मेरे लंड का परीक्षण??" मेने बात पलट'कर उसे कहा. फिर मेने संगीता दीदी को मेरे पैरो के बीच में आराम से लेट'ने के लिए कहा. वो मेरे पैरो के बीच अप'ने पेट'पर लेट गयी और उस'ने अपना चेह'रा मेरे लंड के नज़दीक लाया. कुच्छ पल के लिए मेरे लंड को उप्पर से नीचे देख'ने के बाद उस'ने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया और मेरा लंड पकड़ लिया.
"अहहा!! !" मेरी बहन के हाथ का स्पर्श मेरे लंड को हुआ और अप'ने आप मेरे मूँ'ह से सिस'की बाहर निकल गई.
"क्या हुआ, सागर? तुम्हें दर्द हुआ कही?" संगीता दीदी ने परेशानी से पुछा.
"दर्द नही. सुख. सुख का अनुभव हुआ, दीदी!." उस अनोखे सुख से आँखें बंद कर'ते मेने कहा.
"सुख का अनुभव? यानी क्या, सागर??"
"अरे, दीदी!. तुम मेरा लंड हाथ में ले लो ये मेरी बहुत दिनो की 'इच्छा' थी."
"कौन, में???"
"तुम यानी.. कोई भी लड़'की. दीदी!"
"अच्च्छा! अच्च्छा!. इत'नी भी नाराज़ होने की ऐकटिंग कर'ने की ज़रूरत नही है, सागर. मुझे मालूम है मन ही मन लड्डू फूट रहे होंगे तुम्हारे." उस'ने बड़ी मुश्कील से अप'नी हँसी रोकते हुए कहा और वो सुन'कर मुझे भी हँसी आई.
"देखा. देखा. कैसे दिल से हँसे तुम." ऐसा कह'कर संगीता दीदी उठ गयी और अप'ने घुट'ने पर खड़ी होकर उस'ने मुझे उप्पर उठ'ने का इशारा किया. में झट से उठा के बैठ गया. उस'ने मेरा टी-शर्ट दोनो बाजू से पकड़ लिया और धीरे धीरे उप्पर उठाते हुए निकाल दिया. फिर उस'ने मुझे पिछे धकेल के लिटा दिया और वैसे ही अप'ने घुट'ने के बल चल के वो मेरे पैरो तले गई. फिर उस'ने मेरे -पॅंट के इलास्टीक में दोनो बाजू से अप'नी उंगलीया घुसा के उसे पकड़ लिया. उस'ने उंगलीया ऐसे घुसाई थी के शॉर्ट पॅंट के साथ उस'ने अंदर की मेरी अंडरावेअर भी पकड़ ली थी. धीरे धीरे वो उसे नीचे खींच'ने लगी.
मेरा लंड ज़्यादा कड़क नही था और नीचे की ओर पड़ा हुआ था इस'लिए पॅंट नीचे खींचते सम'य उसे मेरा लंड आड़े नही आ रहा था. मेरे लंड के उप्पर की झाँते नज़र आने लगी तो उसे हँसी आई और बड़ी मुश्कील से अप'नी हँसी दबाते हुए वो पॅंट और नीचे खींच'ती गई. जैसे जैसे मेरा लंड उसे नज़र आने लगा वैसे वैसे उसकी हँसी कम होती गई. मेरी बड़ी बहन के साम'ने मेरा लंड खुल रहा है इस ख़याल से में उत्तेजीत हो रहा था. संगीता दीदी ने पॅंट मेरे घुटनो तक खींची और यकायक मेरा लंड उसकी नज़र के साम'ने खुल गया! झट से उस'ने पॅंट मेरे पैरो से खींच के निकाल दी और बाजू में डाल दी.
अब में संगीता दीदी के साम'ने पूरा नंगा था. उसकी नज़र मेरे अध-खड़े लंड पर टिकी हुई थी. मेरी बहन के साम'ने में नंगा हूँ और वो मेरे लंड को देख रही है ये अह'सास मुझे पागल कर'ने लगा. देख'ते ही देख'ते मेरा लंड कड़ा होने लगा. उस में जैसे जान भर दी हो और एक अलग जानवर की तरह वो डोल'ने लगा और तन के खड़ा हो गया. जैसे जैसे मेरा लंड कड़ा होता गया वैसे वैसे संगीता दीदी की आँखें चौंक'ती गई.
एक पल के लिए वो मेरी तरफ देख'ती थी तो अगले पल मेरे कड़े हो रहे लंड को देख'ती थी. मेरे ध्यान में आया के मेरे जल्दी जल्दी कड़े हो रहे लंड को देख'कर वो हैरान हो रही थी.
"सागर!! क्या है ये.! कित'ना जल्दी तुम्हारा लंड तन के खड़ा हो गया!! मेने ऐसे लंड को खड़े होते हुए कभी नही देखा था!"
"सच, दीदी??. ये तो तुम्हारा कमाल है, दीदी!"
"मेरा कमाल?? मेने क्या किया, सागर?"
"नही. प्रैक्टिकली तुम'ने कुच्छ नही किया. लेकिन में तुम्हारे साम'ने नंगा हूँ ना. मेरी बहन के साम'ने में नंगा हूँ इस भावना से में इतना उत्तेजीत हो गया हूँ के पुछो मत.."
"मुझे पुच्छ'ने की ज़रूरत ही नही, सागर. में देख सक'ती हूँ ये कमाल." वो अब भी मेरे लंड को हैरानी से देख रही थी.
"ये, सागर. में ज़रा तुम्हारे लंड को अच्छी तरह से देख लूँ? मेरे मन में ये बहुत दिनो की 'इच्छा' है." ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मेरे दोनो पैर फैला दिए और वो मेरे पैरो के बीच में बैठ गयी.
"कमाल है, दीदी. तुम'ने कभी जीजू के लंड को अच्छी तरह से देखा नही क्या?" मेने आश्चर्य से पुछा.
"हाँ. उनके लंड को क्या अच्छी तरह से देख'ना. वो तो मुझे हाथ भी लगाने नही देते थे. और हम दोनो रात के नाइट लॅंप में सेक्स कर'ते थे इस'लिए उनका लंड कभी अच्छी तराहा से देख'ने को भी नही मिला मुझे."
"अच्च्छा!.. तो आद'मी का लंड अच्छी तरह से देख'ने को मिले ये तुम्हारी 'इच्छा' थी हाँ."
"हां. लेकिन किसी भी आद'मी का नही. सिर्फ़ तुम्हारे जीजू का लंड."
"ओहा आय सी!. लेकिन ये तो जीजू का लंड नही है, दीदी."
"हां ! डियर सागर. मुझे मालूम है वो.. मेरे पति का लंड नही तो ना सही.. मेरे भाई का लंड तो है. इसी को निहार के में अप'नी 'इच्छा' पूरी कर लूँगी.." संगीता दीदी की बात सुन'कर में ज़ोर ज़ोर'से हंस'ने लगा. उस'ने चौन्क के मेरी तरफ देखा और पुछा, "ऐसे क्यों हंस रहे हो, सागर?"
"इस'लिए के. अब तुम कित'नी आसानी से 'लंड' वग़ैरा शब्द बोल रही हो और थोड़ी देर पह'ले तुम 'शी!' कर रही थी. वो मुझे याद आया और मुझे हँसी आई!" मेने हंस'ते हुए उसे जवाब दिया.
"तो फिर क्या.. ये तो तुम्हारा ही कमाल है, सागर. तुम्ही ने मुझे गंदी कर दिया है."
"अब तक तो नही." उसे सुनाई ना दे ऐसी आवाज़ में मेने धीरे से कहा.
"क्या? क्या कहा तुम'ने??" उस'ने चमक कर पुछा.
"अम?. का. कुच्छ नही, दीदी. तुम कर रही हो ना मेरे लंड का परीक्षण??" मेने बात पलट'कर उसे कहा. फिर मेने संगीता दीदी को मेरे पैरो के बीच में आराम से लेट'ने के लिए कहा. वो मेरे पैरो के बीच अप'ने पेट'पर लेट गयी और उस'ने अपना चेह'रा मेरे लंड के नज़दीक लाया. कुच्छ पल के लिए मेरे लंड को उप्पर से नीचे देख'ने के बाद उस'ने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया और मेरा लंड पकड़ लिया.
"अहहा!! !" मेरी बहन के हाथ का स्पर्श मेरे लंड को हुआ और अप'ने आप मेरे मूँ'ह से सिस'की बाहर निकल गई.
"क्या हुआ, सागर? तुम्हें दर्द हुआ कही?" संगीता दीदी ने परेशानी से पुछा.
"दर्द नही. सुख. सुख का अनुभव हुआ, दीदी!." उस अनोखे सुख से आँखें बंद कर'ते मेने कहा.
"सुख का अनुभव? यानी क्या, सागर??"
"अरे, दीदी!. तुम मेरा लंड हाथ में ले लो ये मेरी बहुत दिनो की 'इच्छा' थी."
"कौन, में???"
"तुम यानी.. कोई भी लड़'की. दीदी!"
(12-11-2021, 12:19 PM)sandy4hotgirls1 Wrote: Bahut achchhe..isse aur kamuk banao bhai bahan ke bich.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.