10-11-2021, 04:33 PM
जब मैं बाबा को लेके बाहर आया तो शायद रिज़वाना ने मेरे जाने के बारे मे फ़िज़ा ऑर नाज़ी को पहले ही बता दिया था इसलिए उनका खुश-हाल चेहरा फिर से उदास हुआ पड़ा था...
मैं: अर्रे क्या हुआ आप सबने मुँह क्यो लटका लिया...
फ़िज़ा: कल तुम फिर से जा रहे हो हमने तो सोचा था कि सारा काम ख़तम करके ही आए हो...
मैं: (कुर्सी पर बाबा को बैठते हुए) हंजी कल निकलना है ओर काम भी जल्दी ही ख़तम कर दूँगा फिकर मत करो...
नाज़ी: वापिस कितने दिन मे आओगे
मैं: पता नही कुछ दिन लग सकते हैं इसलिए मैने सोचा की जाने से पहले सबसे मिलता हुआ चलूं... अच्छा बाबा ये डॉक्टर रिज़वाना है जिनके पास मैं शहर मे रहता हूँ...
रिज़वाना: (बाबा को अदब से सलाम करते हुए)
मैं: बाबा ये भी आज मेरे साथ यही रुक जाए तो आपको कोई ऐतराज़ तो नही बिचारी इतनी दूर से मुझे छोड़ने आई हैं...
बाबा: नही नही बेटा कैसी बातें कर रहे हो भला मुझे क्या ऐतराज़ होगा ये भी तो हमारी नाज़ी जैसी ही है ऑर ये तुम्हारा अपना घर है बेटा रहो जितने दिन तुम चाहो...
रिज़वाना: जी शुक्रिया बाबा जी मैं बस कल नीर के साथ ही चली जाउन्गी...
नाज़ी: वैसे बाबा नीर पहले से काफ़ी बदला हुआ नही लग रहा...
बाबा: नही बेटा ये तो पहले जैसा ही है
नाज़ी: उउउहहुउऊ... कपड़े तो देखो ना नीर के बाबा (मुस्कुराते हुए) गुंडा लग रहा है ना...
फ़िज़ा: (मुस्कुरा कर) चुप कर पागल इतना अच्छा तो लग रहा है वैसे भी शहर मे रहने का कुछ तो असर आएगा...
उसके बाद सारा दिन ऐसे ही गुज़रा रात को बाबा अपनी आदत के मुताबिक़ जल्दी सो गये लेकिन नाज़ी,फ़िज़ा ऑर रिज़वाना को चैन कहाँ था वो तीनो मुझे पूरी रात घेरकर बैठी रही ऑर मेरे गुज़रे 15 दिनो के बारे मे मुझसे पूछती रही ऐसे ही सारी रात बातों का सिल-सिला चलता रहा... तीनो आज खुश भी थी ऑर उदास भी थी... लेकिन मैं मजबूर था ना उनको मुकम्मल खुशी दे सकता था ना ही उनकी उदासी को दूर कर सकता था... बातें करते हुए जाने कब सुबह हो गई पता ही नही चला अब मुझे अपने वादे के मुताबिक़ जाना था... मेरा बिल्कुल जाने दिल नही था ऑर ना ही घर मे किसी को मुझे भेजने का दिल था लेकिन फिर भी बाबा की दी हुई ज़ुबान को मुझे पूरा करने के लिए जाना था...
सुबह बाबा भी जल्दी उठ गये ऑर उठ ते ही मुझे अपने कमरे मे बुला लिया मेरे पिछे-पिछे नाज़ी, फ़िज़ा ऑर रिज़वाना भी उसी कमरे मे आ गई...
मैं: जी बाबा आपने मुझे बुलाया था...
बाबा: (हाँ मे सिर हिलाते हुए) बेटा अब तुम थोड़ी देर मे चले जाओगे इसलिए वहाँ जाके अपना ख़याल रखना...
मैं: जी बाबा... आप सब लोग भी अपना ख्याल रखना
रिज़वाना: (पिछे से मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए) नीर तुम फिकर मत करो मैं हूँ ना तुम्हारी गैर मोजूद्गी मे मैं यहाँ आती रहूंगी ऑर इनको किसी चीज़ की कमी नही होगी ये मेरा तुमसे वादा है...
मैं: (मुस्कुरकर) शुक्रिया बस अब मैं चैन से जा सकता हूँ...
फ़िज़ा: बाबा मुझे डर लग रहा है... पता नही वो लोग कैसे होंगे... आप एक बार ख़ान साहब से बात करके देखिए ना उन्हे कह दीजिए कि हमे नही नीर को नही भेजना...
मैं: बच्चों जैसी बात मत करो फ़िज़ा तुम जानती हो बाबा ने वादा किया था ऑर वैसे भी ख़ान की मदद करके मैं भी तो हमेशा के लिए आज़ाद हो जाउन्गा फिर तो हमेशा के लिए यहाँ ही रहूँगा ऑर रही मेरी बात तो उपर वाले का करम से मैं अकेला भी पूरी फ़ौज़ पर भारी हूँ...
नाज़ी: बस-बस... जब देखो लड़ने पर आमादा रहते हो... वहाँ जाके अपना खाने पीने का ख्याल रखना ऑर हो सके तो हमे फोन करते रहना ऑर अपनी खैर-खबर देते रहना...
मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए) नही नाज़ी मैं फोन नही कर पाउन्गा...
नाज़ी: (आँखें दिखाते हुए) क्यो... वहाँ फोन नही है क्या...
मैं: ख़ान साहब ने बोला था कि वहाँ जाके जब तक मेरा मिशन पूरा नही हो जाता मैं किसी को नही जानता ऑर मेरा कोई नही...
फ़िज़ा: क्यो कोई नही हम हैं ना...
मैं: (अपने सिर पर हाथ रखते हुए) अर्रे उन लोगो को मैं अपनी कोई कमज़ोरी नही दिखा सकता उनकी नज़र मे तो मैं शेरा ही हूँ ना जिसका आगे-पिछे कोई नही...
बाबा: (अपने दोनो हाथ हवा मे उठाते हुए) मालिक मेरे बेटे की हिफ़ाज़त करना... नाज़ी बेटा वो मैं जो ताबीज़ लेके आया था नीर के लिए वो ले आओ ज़रा...
नाज़ी: अभी लाई बाबा
मैं: कौनसा ताबीज़ बाबा
बाबा: बेटा ये बहुत मुबारक ताबीज़ है बहुत दुआ के साथ बनाया गया है ये तुम्हारी हर बुरी बला से हिफ़ाज़त करेगा...
नाज़ी: (तेज़ कदमो के साथ कमरे मे आके बाबा को ताबीज़ देते हुए) ये लो बाबा...
बाबा: (मेरे गले मे ताबीज़ बाँध कर मेरा माथा चूमते हुए) खुश रहो बेटा... अब तुम तेयार हो जाओ तुम्हारे जाने का वक़्त हो गया...
मैं: जी बाबा...
उसके बाद मैं ऑर रिज़वाना जल्दी से तेयार होने मे लग गये ऑर नाज़ी ऑर फ़िज़ा मेरे ऑर रिज़वाना के लिए नाश्ता बनाने लग गई... तेयार होके हम सब ने साथ मे नाश्ता किया ऑर उसके बाद फिर वही ढेर सारे आँसू ऑर बेश-कीमत दुवाओ के साथ मुझे विदा किया गया... कार मे रिज़वाना भी खुद को रोने से रोक नही पाई ऑर तमाम रास्ते वो भी मेरे कंधे पर सिर रख कर रोती रही... यक़ीनन इन सब के दिल मे जो मेरे लिए प्यार था वही मेरा जाना मुश्किल कर रहा था मेरा दिल चाह रहा था कि मैं ना कर दूं ऑर मैं ना जाउ... लेकिन मैं ऐसा चाह कर भी नही कर सकता था इसलिए अपने दिल को मज़बूत करके मैने कार की रफ़्तार बढ़ा दी अब मैं जल्दी से जल्दी शहर पहुँचना चाहता था... सब घरवाले ऑर रिज़वाना के बारे मे सोचते हुए जल्दी ही मैने कार को शहर तक पहुँचा दिया...