10-11-2021, 04:21 PM
अभी मैं परदा हटाने के लिए एक कदम ही आगे बढ़ाया था कि अचानक मुझे रिज़वाना की चीख सुनाई दी मैने फॉरन चीख की तरफ भागता हुआ गया... एक तो अंधेरा था उपर से कुछ नज़र भी नही आ रहा था इसलिए मैं नीचे पड़ी चीज़ो से टकराता हुआ दीवार को पकड़ कर आगे की तरफ बढ़ने लगा...
आवाज़ रसोई की तरफ से आई थी इसलिए मैं अंदाज़े से उस तरफ बढ़ रहा था... एक तो आज मेरा यहाँ पहला दिन था उपर से जगह भी मेरे लिए नयी थी इसलिए मुझे सही से रास्ते का अंदाज़ा नही हो रहा था इसी वजह से जगह-जगह चीज़े मुझसे टकरा रही थी कुछ देर बाद मैं रिज़वाना को आवाज़ लगाता हुआ रसोई के पास आ ही गया...
मैं: रिज़वाना जी कहाँ हो आप
रिज़वाना: (कराहते हुए) मैं यहाँ हूँ आयईयीई... ससिईईई...
मैं: क्या हुआ चोट लगी क्या
रिज़वाना: (रोते हुए) हाँ बहुत ज़ोर से लगी है
मैं: (बर्तनो से टकराते हुए) क्या हुआ चोट कैसे लग गई...
रिज़वाना: नीर उस तरफ नही दूसरी तरफ आओ जहाँ तुम हो वहाँ बर्तन है...
मैं: (घूमते हुए) अच्छा...
रिज़वाना: वो शाम को जो सब्जी गिरी थी ना मैने बाज़ार जाने की जल्दी मे उठाई नही थी बस उस पर ही पैर फिसल गया ऑर मैं गिर गई... मुझसे उठा नही जा रहा... (रोते हुए)
मैं जैसे ही रिज़वाना के पास पहुँचा मैने नीचे बैठकर अंधेरे मे हाथ इधर-उधर घुमाए तो रिज़वाना के चेहरे से मेरा हाथ टकराया मैने जल्दी से बिना कुछ बोले उसको अपनी गोद मे उठा लिया ऑर खड़ा हो गया...
रिज़वाना: (कराहते हुए) अययईीी... आराम से...
मैं: अब जाना किस तरफ है
रिज़वाना: तुम चलो मैं बताती हूँ
मैं: क्या पहेलिनुमा घर बनाया है
रिज़वाना: (अपनी दोनो बाजू मेरे गले मे डालते हुए) मैने थोड़ी बनाया है जैसा गवरमेंट... ने मुझे दिया मैने ले लिया...
मैं: इससे अच्छा तो मेरा घर था जहाँ कम से कम हाथ पैर तो नही टकराते थे अंधेरे मे
रिज़वाना: तुमको भी चोट लगी क्या
मैं: थोड़ी सी पैर मे लगी है वो आप चिल्लाई तो मैं घबरा गया कि जाने क्या हुआ है इसलिए जल्दी से आपकी आवाज़ की तरफ भागा बस इसी जल्दी मे मेज़ से पैर टकरा गया...
रिज़वाना: ज़्यादा चोट तो नही लगी
मैं: पता नही मैने देखा नही...
रिज़वाना: यहाँ से अब लेफ्ट घूम जाओ... मेरे कमरे मे चलकर मुझे दिखाओ कितनी चोट लगी है...
मैं: (हँसते हुए) देखोगी कैसे हाथ को हाथ नज़र तो आ नही रहा चोट क्या दिखेगी...
रिज़वाना: फिकर मत करो यहाँ अक्सर लाइट चली जाती है फिर थोड़ी देर मे आ जाती है...
ऐसे ही हम बाते करते हुए धीरे-धीरे रिज़वाना के कमरे मे आ गये ओर रिज़वाना ने ही गेट खोला ऑर फिर मैने रिज़वाना को धीरे से उसके बेड पर रख दिया...
रिज़वाना: (दर्द से कहते हुए) आयईीई... नीर कमर मे ऑर पीछे बहुत दर्द हो रही है हिला भी नही जा रहा...
मैं: अब अंधेरे मे तो कुछ कर भी नही सकते यार लाइट आने दो फिर देखते हैं...
रिज़वाना: अर्रे यार जिस काम के लिए गये थे वो तो किया ही नही...
मैं: कौनसा काम
रिज़वाना: मोमबत्ती यार (हँसते हुए)
मैं: जाने दो कोई बात नही आगे ही मोमबत्ती के चक्कर मे इतना तमाशा हो गया अब ऐसे ही ठीक है... देखा मैने मना किया था ना लेकिन आप ही बोल रही थी कि 2 मिंट का काम है... अब देखो आपका ही काम हो गया (हँसते हुए)
रिज़वाना: (मेरे कंधे पर थप्पड़ मारते हुए) एक तो मुझे चोट लग गई है उपर से मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो जाओ मैं नही बोलती तुमसे...
मैं: अच्छा-अच्छा माफी डॉक्टरनी साहिबा...
रिज़वाना: जाओ माफ़ किया... अच्छा ये तुम मुझे डॉक्टरनी साहिबा क्यो बुलाते रहते हो
मैं: अब आप डॉक्टरनी हो तो डॉक्टर ही बुलाउन्गा ना
रिज़वाना: डॉक्टर मैं सिर्फ़ हेड-क्वार्टेर के मेरे क्लिनिक मे हूँ यहाँ घर पर नही
मैं: तो फिर मैं यहाँ आपको क्या बुलाऊ...
रिज़वाना: म्म्म्मयम सिर्फ़ रिज़वाना बुला सकते हो
मैं: अच्छा तो सिर्फ़ रिज़वाना जी अब ठीक है (हँसते हुए)
रिज़वाना: (हँसते हुए) नीर तुम जानते हो आज बहुत मुद्दत के बाद मैने इतनी खुशी पाई है तुम क्या आए मेरी जिंदगी मे ऐसा लगता है जिंदगी फिर से रोशन हो गई...
मैं: मैने भी आज पहली बार इतनी मस्ती की है...
रिज़वाना: (कराहते हुए) आहह मेरी पीठ सस्सस्स
मैं: क्या हुआ बहुत दर्द है क्या...
रिज़वाना: अगर कमर को हिलाती हूँ तो दर्द होता है वैसे ठीक है
मैं: रूको लगता है कमर अटक गई है...
रिज़वाना: मुझे भी ऐसा ही लगता है... एक काम करो मेरी कमर को झटका दो ठीक हो जाएगी...
मैं: ठीक है आप मेरा सहारा लेके खड़ी होने की कोशिश करे
रिज़वाना: मैं गिर जाउन्गी नीर
मैं: मैं हूँ ना फिकर मत करो इस बार पकड़ लूँगा आपको... नही गिरोगि बस मेरा हाथ मत छोड़ना...
रिज़वाना: ठीक है
उसके बाद रिज़वाना मेरे हाथ के सहारे बेड पर धीरे-धीरे घुटने के बल खड़ी होने लगी लेकिन उसको खड़े होने मे दर्द हो रहा था इसलिए मैने अपने दोनो हाथ उसकी कमर मे डाले ओर उसकी दोनो बाजू अपने गर्दन पर लपेट ली
आवाज़ रसोई की तरफ से आई थी इसलिए मैं अंदाज़े से उस तरफ बढ़ रहा था... एक तो आज मेरा यहाँ पहला दिन था उपर से जगह भी मेरे लिए नयी थी इसलिए मुझे सही से रास्ते का अंदाज़ा नही हो रहा था इसी वजह से जगह-जगह चीज़े मुझसे टकरा रही थी कुछ देर बाद मैं रिज़वाना को आवाज़ लगाता हुआ रसोई के पास आ ही गया...
मैं: रिज़वाना जी कहाँ हो आप
रिज़वाना: (कराहते हुए) मैं यहाँ हूँ आयईयीई... ससिईईई...
मैं: क्या हुआ चोट लगी क्या
रिज़वाना: (रोते हुए) हाँ बहुत ज़ोर से लगी है
मैं: (बर्तनो से टकराते हुए) क्या हुआ चोट कैसे लग गई...
रिज़वाना: नीर उस तरफ नही दूसरी तरफ आओ जहाँ तुम हो वहाँ बर्तन है...
मैं: (घूमते हुए) अच्छा...
रिज़वाना: वो शाम को जो सब्जी गिरी थी ना मैने बाज़ार जाने की जल्दी मे उठाई नही थी बस उस पर ही पैर फिसल गया ऑर मैं गिर गई... मुझसे उठा नही जा रहा... (रोते हुए)
मैं जैसे ही रिज़वाना के पास पहुँचा मैने नीचे बैठकर अंधेरे मे हाथ इधर-उधर घुमाए तो रिज़वाना के चेहरे से मेरा हाथ टकराया मैने जल्दी से बिना कुछ बोले उसको अपनी गोद मे उठा लिया ऑर खड़ा हो गया...
रिज़वाना: (कराहते हुए) अययईीी... आराम से...
मैं: अब जाना किस तरफ है
रिज़वाना: तुम चलो मैं बताती हूँ
मैं: क्या पहेलिनुमा घर बनाया है
रिज़वाना: (अपनी दोनो बाजू मेरे गले मे डालते हुए) मैने थोड़ी बनाया है जैसा गवरमेंट... ने मुझे दिया मैने ले लिया...
मैं: इससे अच्छा तो मेरा घर था जहाँ कम से कम हाथ पैर तो नही टकराते थे अंधेरे मे
रिज़वाना: तुमको भी चोट लगी क्या
मैं: थोड़ी सी पैर मे लगी है वो आप चिल्लाई तो मैं घबरा गया कि जाने क्या हुआ है इसलिए जल्दी से आपकी आवाज़ की तरफ भागा बस इसी जल्दी मे मेज़ से पैर टकरा गया...
रिज़वाना: ज़्यादा चोट तो नही लगी
मैं: पता नही मैने देखा नही...
रिज़वाना: यहाँ से अब लेफ्ट घूम जाओ... मेरे कमरे मे चलकर मुझे दिखाओ कितनी चोट लगी है...
मैं: (हँसते हुए) देखोगी कैसे हाथ को हाथ नज़र तो आ नही रहा चोट क्या दिखेगी...
रिज़वाना: फिकर मत करो यहाँ अक्सर लाइट चली जाती है फिर थोड़ी देर मे आ जाती है...
ऐसे ही हम बाते करते हुए धीरे-धीरे रिज़वाना के कमरे मे आ गये ओर रिज़वाना ने ही गेट खोला ऑर फिर मैने रिज़वाना को धीरे से उसके बेड पर रख दिया...
रिज़वाना: (दर्द से कहते हुए) आयईीई... नीर कमर मे ऑर पीछे बहुत दर्द हो रही है हिला भी नही जा रहा...
मैं: अब अंधेरे मे तो कुछ कर भी नही सकते यार लाइट आने दो फिर देखते हैं...
रिज़वाना: अर्रे यार जिस काम के लिए गये थे वो तो किया ही नही...
मैं: कौनसा काम
रिज़वाना: मोमबत्ती यार (हँसते हुए)
मैं: जाने दो कोई बात नही आगे ही मोमबत्ती के चक्कर मे इतना तमाशा हो गया अब ऐसे ही ठीक है... देखा मैने मना किया था ना लेकिन आप ही बोल रही थी कि 2 मिंट का काम है... अब देखो आपका ही काम हो गया (हँसते हुए)
रिज़वाना: (मेरे कंधे पर थप्पड़ मारते हुए) एक तो मुझे चोट लग गई है उपर से मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो जाओ मैं नही बोलती तुमसे...
मैं: अच्छा-अच्छा माफी डॉक्टरनी साहिबा...
रिज़वाना: जाओ माफ़ किया... अच्छा ये तुम मुझे डॉक्टरनी साहिबा क्यो बुलाते रहते हो
मैं: अब आप डॉक्टरनी हो तो डॉक्टर ही बुलाउन्गा ना
रिज़वाना: डॉक्टर मैं सिर्फ़ हेड-क्वार्टेर के मेरे क्लिनिक मे हूँ यहाँ घर पर नही
मैं: तो फिर मैं यहाँ आपको क्या बुलाऊ...
रिज़वाना: म्म्म्मयम सिर्फ़ रिज़वाना बुला सकते हो
मैं: अच्छा तो सिर्फ़ रिज़वाना जी अब ठीक है (हँसते हुए)
रिज़वाना: (हँसते हुए) नीर तुम जानते हो आज बहुत मुद्दत के बाद मैने इतनी खुशी पाई है तुम क्या आए मेरी जिंदगी मे ऐसा लगता है जिंदगी फिर से रोशन हो गई...
मैं: मैने भी आज पहली बार इतनी मस्ती की है...
रिज़वाना: (कराहते हुए) आहह मेरी पीठ सस्सस्स
मैं: क्या हुआ बहुत दर्द है क्या...
रिज़वाना: अगर कमर को हिलाती हूँ तो दर्द होता है वैसे ठीक है
मैं: रूको लगता है कमर अटक गई है...
रिज़वाना: मुझे भी ऐसा ही लगता है... एक काम करो मेरी कमर को झटका दो ठीक हो जाएगी...
मैं: ठीक है आप मेरा सहारा लेके खड़ी होने की कोशिश करे
रिज़वाना: मैं गिर जाउन्गी नीर
मैं: मैं हूँ ना फिकर मत करो इस बार पकड़ लूँगा आपको... नही गिरोगि बस मेरा हाथ मत छोड़ना...
रिज़वाना: ठीक है
उसके बाद रिज़वाना मेरे हाथ के सहारे बेड पर धीरे-धीरे घुटने के बल खड़ी होने लगी लेकिन उसको खड़े होने मे दर्द हो रहा था इसलिए मैने अपने दोनो हाथ उसकी कमर मे डाले ओर उसकी दोनो बाजू अपने गर्दन पर लपेट ली