10-11-2021, 01:41 PM
अगले दिन वादे के मुताबिक़ सुबह ख़ान ने जीप भेजदी मुझे लेने के लिए... बाबा नाज़ी ऑर फ़िज़ा ने मुझे बहुत सारी दुआएँ ऑर भीगी आँखों के साथ रुखसत किया... मैं तमाम रास्ते नाज़ी... बाबा, फ़िज़ा ऑर हीना के बारे मे ही सोचता रहा ऑर इनके साथ बिताए वक़्त के बारे मे ही याद करता रहा... मुझे नही पता था कि जहाँ मैं जेया रहा हूँ वहाँ से वापिस आउन्गा या नही लेकिन इन लोगो के साथ बिताए वक़्त ने मेरे दिल मे इन लोगो के लिए बे-इंतेहा प्यार पैदा कर दिया था... वैसे तो ये लोग मेरे कोई नही थे लेकिन फिर भी ये मुझे मेरे अपनो से बढ़कर थे ऑर आज मैं जो कुछ भी करने जा रहा था इन लोगो के लिए ही करने जा रहा था...
आज मेरे पास जो जिंदगी थी वो इन लोगो का ही "अहसान" था... ऐसी ही मैं अपनी ही सोचो मे गुम्म था कि मुझे पता ही नही चला कब हम शहर आ गये ऑर कब एक घर के बाहर गाड़ी रुकी...
मैं: ये कौनसी जगह है ये तो ख़ान का दफ़्तर नही है...
ड्राइवर: आपको ख़ान साहब ने यही बुलाया है...
मैं: अच्छा...
उसके बाद मैं जीप से उतरा ऑर उस घर मे चला गया जो देखने मे सरपंच की हवेली जैसा बड़ा नही था लेकिन काफ़ी शानदार बना हुआ था... गेट के बाहर 2 पोलीस वाले बंदूक थामे खड़े थे जिन्होने मुझे देखते ही छोटा गेट खोल दिया... मैं जब अंदर गया तो घर के चारो तरफ लगे खुश्बुदार फूलों ने मेरा वेलकम किया सामने एक काँच का बड़ा सा गेट लगा था जिसे मैं धकेल्ता हुआ अंदर चला गया... घर काफ़ी खूबसूरती से सजाया गया था मैं चारो तरफ नज़रें घूमाकर घर की खूबसूरती देख रहा था तभी एक मीठी सी आवाज़ मेरे कानो से टकराई...
रिज़वाना: घर अच्छा लगा (मुस्कुराते हुए)
मैं: जी बहुत खूबसूरत घर है... क्या ये ख़ान साहब का घर है (चारो तरफ देखते हुए)
रिज़वाना: जी नही ये मेरा घर है... अर्रे आप खड़े क्यो हो बैठो...
मैं: लेकिन मुझे तो ख़ान साहब ने बुलाया था
रिज़वाना: अब कुछ दिन आपको भी यही रहना है यही हम आपकी ट्रैनिंग भी मुकम्मल करवाएँगे ऑर ये एक सीक्रेट मिशन है इसलिए ख़ान ने दफ़्तर मे किसी को भी इसके बारे मे नही बताया...
मैं: अच्छा... लेकिन ख़ान साहब है कहा...
रिज़वाना: आप बैठिए वो आते ही होंगे...
मैं: ठीक है...
रिज़वाना: यहाँ आपको रहने मे कोई ऐतराज़ तो नही...
मैं: जी नही मुझे क्या ऐतराज़ होगा मैं तो कहीं भी रह लूँगा...
अभी मैं ऑर रिज़वाना बाते ही कर रहे थे कि ख़ान भी अपने हाथ मे एक फाइल थामे हुए आ गया ऑर आते ही टेबल पर फाइल फेंक दी ऑर धम्म से सोफे पर गिर गया...
ख़ान: हंजी जनाब आ गये
मैं: जी... बताइए अब मुझे क्या करना है
ख़ान: यार तुम हर वक़्त जल्दी मे ही रहते हो क्या...
मैं: नही... वो आपने काम के लिए बुलाया था तो सोचा पहले काम ही कर ले...
ख़ान: कुछ खाओगे...
मैं: जी नही मेहरबानी...
ख़ान: यार शरमाओ मत अपना ही घर है...
मैं: जी नही मैं घर से खा कर आया था...
ख़ान: चलो जैसी तुम्हारी मर्ज़ी... अच्छा ये देखो तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ...
मैं: (सवालिया नज़रों से ख़ान को देखते हुए) जी क्या...
ख़ान: (उठकर मेरे साथ सोफे पर बैठ ते हुए) ये तुम्हारे पुराने दोस्तो की तस्वीरे हैं जिनके साथ अब तुमको काम क्रना है... (फाइल खोलते हुए)
आज मेरे पास जो जिंदगी थी वो इन लोगो का ही "अहसान" था... ऐसी ही मैं अपनी ही सोचो मे गुम्म था कि मुझे पता ही नही चला कब हम शहर आ गये ऑर कब एक घर के बाहर गाड़ी रुकी...
मैं: ये कौनसी जगह है ये तो ख़ान का दफ़्तर नही है...
ड्राइवर: आपको ख़ान साहब ने यही बुलाया है...
मैं: अच्छा...
उसके बाद मैं जीप से उतरा ऑर उस घर मे चला गया जो देखने मे सरपंच की हवेली जैसा बड़ा नही था लेकिन काफ़ी शानदार बना हुआ था... गेट के बाहर 2 पोलीस वाले बंदूक थामे खड़े थे जिन्होने मुझे देखते ही छोटा गेट खोल दिया... मैं जब अंदर गया तो घर के चारो तरफ लगे खुश्बुदार फूलों ने मेरा वेलकम किया सामने एक काँच का बड़ा सा गेट लगा था जिसे मैं धकेल्ता हुआ अंदर चला गया... घर काफ़ी खूबसूरती से सजाया गया था मैं चारो तरफ नज़रें घूमाकर घर की खूबसूरती देख रहा था तभी एक मीठी सी आवाज़ मेरे कानो से टकराई...
रिज़वाना: घर अच्छा लगा (मुस्कुराते हुए)
मैं: जी बहुत खूबसूरत घर है... क्या ये ख़ान साहब का घर है (चारो तरफ देखते हुए)
रिज़वाना: जी नही ये मेरा घर है... अर्रे आप खड़े क्यो हो बैठो...
मैं: लेकिन मुझे तो ख़ान साहब ने बुलाया था
रिज़वाना: अब कुछ दिन आपको भी यही रहना है यही हम आपकी ट्रैनिंग भी मुकम्मल करवाएँगे ऑर ये एक सीक्रेट मिशन है इसलिए ख़ान ने दफ़्तर मे किसी को भी इसके बारे मे नही बताया...
मैं: अच्छा... लेकिन ख़ान साहब है कहा...
रिज़वाना: आप बैठिए वो आते ही होंगे...
मैं: ठीक है...
रिज़वाना: यहाँ आपको रहने मे कोई ऐतराज़ तो नही...
मैं: जी नही मुझे क्या ऐतराज़ होगा मैं तो कहीं भी रह लूँगा...
अभी मैं ऑर रिज़वाना बाते ही कर रहे थे कि ख़ान भी अपने हाथ मे एक फाइल थामे हुए आ गया ऑर आते ही टेबल पर फाइल फेंक दी ऑर धम्म से सोफे पर गिर गया...
ख़ान: हंजी जनाब आ गये
मैं: जी... बताइए अब मुझे क्या करना है
ख़ान: यार तुम हर वक़्त जल्दी मे ही रहते हो क्या...
मैं: नही... वो आपने काम के लिए बुलाया था तो सोचा पहले काम ही कर ले...
ख़ान: कुछ खाओगे...
मैं: जी नही मेहरबानी...
ख़ान: यार शरमाओ मत अपना ही घर है...
मैं: जी नही मैं घर से खा कर आया था...
ख़ान: चलो जैसी तुम्हारी मर्ज़ी... अच्छा ये देखो तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ...
मैं: (सवालिया नज़रों से ख़ान को देखते हुए) जी क्या...
ख़ान: (उठकर मेरे साथ सोफे पर बैठ ते हुए) ये तुम्हारे पुराने दोस्तो की तस्वीरे हैं जिनके साथ अब तुमको काम क्रना है... (फाइल खोलते हुए)