10-11-2021, 01:36 PM
मेरे घर आते ही नाज़ी मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूर-घूर कर देखने लगी लेकिन वो बोल कुछ नही रही थी ऑर ऐसे ही गुस्से से मुझे घुरती हुई चुप-चाप फ़िज़ा के कमरे मे चली गई...
तभी फ़िज़ा भी रसोई मे से आ गई...
फ़िज़ा: आ गये नीर बहुत देर करदी... (मुस्कुराते हुए)
मैं: कुछ नही वो ज़रा हीना को गाड़ी सीखा रहा था तो देर हो गई...
फ़िज़ा: तुम्हारे इतनी चोट लगी है एक दिन नही सीखते तो क्या हो जाना था...
मैं: नही वो बाबा ने हीना को बोल दिया था तो मैं मना कैसे करता इसलिए सोचा जब आ गया हूँ तो गाड़ी चलानी भी सीखा ही देता हूँ...
फ़िज़ा: वो सब तो ठीक है लेकिन कुछ अपना भी ख्याल रखा करो...
मैं: (चारो तरफ देखते हुए) तुम हो ना मेरा ख्याल रखने के लिए... (मुस्कुराकर)
फ़िज़ा: अच्छा अब ज़्यादा प्यार दिखाने की ज़रूरत नही है चलो जाओ जाके नहा लो फिर साथ मे खाना खाएँगे...
मैं: अच्छा...
उसके बाद मैं नहाने चला गया ऑर फ़िज़ा भी वापिस रसोई मे चली गई... कुछ देर बाद मैं जब नहा कर बाहर आया तो फ़िज़ा अकेली ही खाने का सब समान टेबल पर रख रही थी...
मैं: नाज़ी दिखाई नही दे रही वो कहाँ है...
फ़िज़ा: वो अंदर है कमरे मे कह रही थी भूख नही है इसलिए खाना नही खाएगी... अब तुम तो जल्दी आओ मुझे बहुत भूख लगी है चलो आज हम दोनो खाना खा लेते हैं... (मुस्कुरा कर)
मैं: तुम खाना शुरू करो मैं ज़रा नाज़ी को देखकर आता हूँ...
फ़िज़ा: अच्छा...
मैं जब फ़िज़ा के कमरे मे गया तो नाज़ी अंदर उल्टी होके गान्ड उपर करके लेटी थी ऑर बार-बार तकिये को तोड़-मरोड़ रही थी... मैने एक नज़र उसको देखा ऑर वापिस खाने के टेबल के पास आ गया...
मैं: फ़िज़ा ज़रा नाज़ी की खाने की थाली बना दो मैं अभी उसको खाना खिला कर आता हूँ...
फ़िज़ा: ठीक है... लेकिन वो तो कह रही थी भूख नही है...
मैं: तुम खाना तो लगाओ बाकी मैं खिला लूँगा उसको
फ़िज़ा: ठीक है...
फिर फ़िज़ा ने नाज़ी की खाने की थाली मुझे दे दी ऑर मैं वो थाली लेके कमरे मे चला गया अंदर अभी भी नाज़ी वैसी ही उल्टी होके लेटी हुई थी...
मैं: लगता है आज बहुत गुस्सा हो (मुस्कुराते हुए)
नाज़ी: तुमसे मतलब...
मैं: अच्छा तो मुझसे गुस्सा हो...
नाज़ी: मैं क्यो किसी से गुस्सा होने लगी...
मैं: अच्छा... तो फिर खाना खाने क्यो नही आई...
नाज़ी: मुझे भूख नही है
मैं: ठीक है थोड़ा सा खा लो मैं तुम्हारे लिए खाना लेके आया हूँ...
नाज़ी: (उठकर बैठते हुए) किसने बोला था खाने लाने को नही खाना मुझे तुम जाओ यहाँ से...
मैं: ऐसे कैसे जाउ तुमको खाना खिलाए बिना तो नही जाउन्गा... (मुस्कुराते हुए)
नाज़ी: अब मेरे पास क्या लेने आए हो जाओ उसी बंदरिया को जाके खाना खिलाओ जिसके साथ बड़ी हँस-हँस के बाते हो रही थी...
मैं: अच्छा... तो इसलिए नाराज़ हो... हाहहहहाहा
नाज़ी: हँसो मत मुझे बहुत गुस्सा चढ़ा हुआ है...
मैं: ठीक है गुस्सा मुझ पर उतारो ना फिर खाने ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है देखो कैसे मायूस होके थाली मे पड़ा है बिचारा...
नाज़ी: (हँसते हुए) नीर तुम जाओ ना मुझे भूख नही है...
मैं: अच्छा चलो आज सुबह जैसे करते हैं...
नाज़ी: सुबह जैसे क्या
मैं: जैसे तुमने मुझे खाना खिलाया था अपने हाथो से मैं भी तुमको वैसे ही खिलाता हूँ फिर तो ठीक है...
नाज़ी: तुम जाओ ना नीर मुझे नही खाना...
मैं: (बेड पर बैठ ते हुए ऑर थाली मे से रोटी का टुकड़ा तोड़कर नाज़ी के मुँह के सामने करते हुए) मैने तुमसे पूछा नही कि तुमको भूख है या नही चलो अब मुँह खोलो...
नाज़ी: (मुस्कुराकर मुँह खोले हुए) आपने खाया...
मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए)
नाज़ी: क्या... चलो आप भी मुँह खोलो मैं खिलाती हूँ (मुस्कुराकर)
उसके बाद ऐसे ही हमने एक दूसरे को खाना खिलाया ऑर एक दूसरे को प्यार से देखते रहे...
मैं: वैसे तुम हीना से किस बात पर गुस्सा थी...
नाज़ी: जानते हो उस कमीनी ने कौन्से कपड़े पहने थे मेरे चाय गिराने के बाद...
मैं: मेरे कपड़े पहने थे तो क्या हुआ...
नाज़ी: ना सिर्फ़ आपके कपड़े पहने थे बल्कि उसने वो कपड़े पहने थे जो मैने खुद आपके लिए
बड़े प्यार से सिले थे... इसलिए मुझे गुस्सा आ रहा था...
मैं: कोई बात नही उसको कपड़ो से खुश हो लेने दो तुम्हारे पास तो तुम्हारा नीर खुद है फिर किसी से जलन कैसी... है ना
नाज़ी: (खुश हो कर मुझे गले से लगाते हुए) अब गुस्सा नही करूँगी...
मैं: चलो अब जल्दी से खाना ख़तम करो फिर सोना भी है बहुत रात हो गई है ना...
नाज़ी: एक बात बोलूं बुरा नही मनोगे तो...
मैं: हाँ बोलो
नाज़ी: वो जब आपके साथ होती है तो मुझे ऐसा लगता है जैसे आप मुझसे दूर हो गये हो...
मैं: किसी से बात कर लेने का मतलब ये नही होता नाज़ी कि मैं उसका हूँ... मैं सिर्फ़ ऑर सिर्फ़ इस घर का हूँ बॅस मुझे इतना पता है...
नाज़ी: मतलब सिर्फ़ मेरे हो... (मुस्कुराते हुए)
मैं: अच्छा अब दूर होके बैठो फ़िज़ा देख लेगी तो क्या सोचेगी...
नाज़ी: (दूर होके बैठ ते हुए) ये तो मैने सोचा ही नही... हाहहाहा
मैं: इसलिए कहता हूँ तुम मे अभी बच्पना है
नाज़ी: (नज़रे झुकाकर मुस्कुराते हुए)
मैं: अच्छा अब मैं चलता हूँ ठीक है बहुत रात हो गई है तुम भी सो जाओ अब...
नाज़ी: मेरे वाले कमरे मे जाके सोना आज ठीक है...
मैं: हम्म अच्छा... (थाली लेके खड़ा होते हुए)
नाज़ी: अर्रे ये आप क्यो लेके जा रहे हो छोड़ो मैं ले जाउन्गी (थाली मुझसे लेते हुए)
मैं: ठीक है
उसके बाद मैं खड़ा हुआ ऑर जैसे ही कमरे से बाहर जाने लगा नाज़ी की आवाज़ मेरे कानो से टकराई जिसने मेरे कदम रोक दिए...
नाज़ी: आज मुँह मीठा नही करना (मुस्कुरा कर)
मैं: करना तो है लेकिन... फ़िज़ा देख सकती है इसलिए अभी रहने देते हैं (मुस्कुराकर)
नाज़ी: सोच लो... ऐसा मोक़ा फिर नही दूँगी (मुस्कुराते हुए)
मैं: कोई बात नही मुझे कुछ करने के लिए मोक़े की ज़रूरत नही सिर्फ़ मर्ज़ी होनी चाहिए...
इतने मे फ़िज़ा की आवाज़ आ गई तो हम दोनो चुप हो गये...
फ़िज़ा: (कमरे मे आते हुए) अर्रे नाज़ी ने खाना खाया या नही...
मैं: खा लिया (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: क्या बात है जब मैने बोला था तो नही खाया तुम आए तो खा भी लिया...
नाज़ी: ऐसा कुछ नही है भाभी वो बस ये ज़िद्द करके बैठ गये तो खाना पड़ा...
फ़िज़ा: अच्छा अब चलो रसोई मे थोड़ा काम करवा दो मेरे साथ फिर सोना भी है...
नाज़ी: अच्छा अभी आई भाभी...
मैं: मेरे लिए ऑर कोई हुकुम सरकार... (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: जी... आप जाइए ऑर जाके अपने नये कमरे मे सो जाइए आराम से (मुस्कुरा कर)
मैं: जो हुकुम... आज बाबा के पास नही सोना क्या...
फ़िज़ा: नही वो बाबा कह रहे थे कि अगर नीर दूसरे कमरे मे सोना चाहे तो सुला देना नही तो यहाँ भी (बाबा के कमरे मे) सोएगा तो मुझे कोई ऐतराज़ नही...
मैं: तो मैं कहा सो फिर...
फ़िज़ा: जहाँ तुम चाहते हो सो जाओ आज तो सारा दिन मैं अकेली ही लगी रही नाज़ी भी तुम्हारे साथ शहर चली गई थी तो मुझे भी बहुत नींद आ रही है...
नाज़ी: तो भाभी आप सो जाओ ना वैसे भी बाबा ने ज़्यादा काम करने से मना किया है ना आपको...
फ़िज़ा: तो फिर घर का बाकी बचा हुआ काम कौन करेगा...
नाज़ी: मैं हूँ ना संभाल लूँगी आप जाओ जाके सो जाओ... (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: अच्छा... ठीक है (मुस्कुराते हुए) नाज़ी सोने से पहले याद से नीर को दूध गरम करके दे देना मैने उसमे दवाई डाल दी है...
नाज़ी: अच्छा भाभी...
तभी फ़िज़ा भी रसोई मे से आ गई...
फ़िज़ा: आ गये नीर बहुत देर करदी... (मुस्कुराते हुए)
मैं: कुछ नही वो ज़रा हीना को गाड़ी सीखा रहा था तो देर हो गई...
फ़िज़ा: तुम्हारे इतनी चोट लगी है एक दिन नही सीखते तो क्या हो जाना था...
मैं: नही वो बाबा ने हीना को बोल दिया था तो मैं मना कैसे करता इसलिए सोचा जब आ गया हूँ तो गाड़ी चलानी भी सीखा ही देता हूँ...
फ़िज़ा: वो सब तो ठीक है लेकिन कुछ अपना भी ख्याल रखा करो...
मैं: (चारो तरफ देखते हुए) तुम हो ना मेरा ख्याल रखने के लिए... (मुस्कुराकर)
फ़िज़ा: अच्छा अब ज़्यादा प्यार दिखाने की ज़रूरत नही है चलो जाओ जाके नहा लो फिर साथ मे खाना खाएँगे...
मैं: अच्छा...
उसके बाद मैं नहाने चला गया ऑर फ़िज़ा भी वापिस रसोई मे चली गई... कुछ देर बाद मैं जब नहा कर बाहर आया तो फ़िज़ा अकेली ही खाने का सब समान टेबल पर रख रही थी...
मैं: नाज़ी दिखाई नही दे रही वो कहाँ है...
फ़िज़ा: वो अंदर है कमरे मे कह रही थी भूख नही है इसलिए खाना नही खाएगी... अब तुम तो जल्दी आओ मुझे बहुत भूख लगी है चलो आज हम दोनो खाना खा लेते हैं... (मुस्कुरा कर)
मैं: तुम खाना शुरू करो मैं ज़रा नाज़ी को देखकर आता हूँ...
फ़िज़ा: अच्छा...
मैं जब फ़िज़ा के कमरे मे गया तो नाज़ी अंदर उल्टी होके गान्ड उपर करके लेटी थी ऑर बार-बार तकिये को तोड़-मरोड़ रही थी... मैने एक नज़र उसको देखा ऑर वापिस खाने के टेबल के पास आ गया...
मैं: फ़िज़ा ज़रा नाज़ी की खाने की थाली बना दो मैं अभी उसको खाना खिला कर आता हूँ...
फ़िज़ा: ठीक है... लेकिन वो तो कह रही थी भूख नही है...
मैं: तुम खाना तो लगाओ बाकी मैं खिला लूँगा उसको
फ़िज़ा: ठीक है...
फिर फ़िज़ा ने नाज़ी की खाने की थाली मुझे दे दी ऑर मैं वो थाली लेके कमरे मे चला गया अंदर अभी भी नाज़ी वैसी ही उल्टी होके लेटी हुई थी...
मैं: लगता है आज बहुत गुस्सा हो (मुस्कुराते हुए)
नाज़ी: तुमसे मतलब...
मैं: अच्छा तो मुझसे गुस्सा हो...
नाज़ी: मैं क्यो किसी से गुस्सा होने लगी...
मैं: अच्छा... तो फिर खाना खाने क्यो नही आई...
नाज़ी: मुझे भूख नही है
मैं: ठीक है थोड़ा सा खा लो मैं तुम्हारे लिए खाना लेके आया हूँ...
नाज़ी: (उठकर बैठते हुए) किसने बोला था खाने लाने को नही खाना मुझे तुम जाओ यहाँ से...
मैं: ऐसे कैसे जाउ तुमको खाना खिलाए बिना तो नही जाउन्गा... (मुस्कुराते हुए)
नाज़ी: अब मेरे पास क्या लेने आए हो जाओ उसी बंदरिया को जाके खाना खिलाओ जिसके साथ बड़ी हँस-हँस के बाते हो रही थी...
मैं: अच्छा... तो इसलिए नाराज़ हो... हाहहहहाहा
नाज़ी: हँसो मत मुझे बहुत गुस्सा चढ़ा हुआ है...
मैं: ठीक है गुस्सा मुझ पर उतारो ना फिर खाने ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है देखो कैसे मायूस होके थाली मे पड़ा है बिचारा...
नाज़ी: (हँसते हुए) नीर तुम जाओ ना मुझे भूख नही है...
मैं: अच्छा चलो आज सुबह जैसे करते हैं...
नाज़ी: सुबह जैसे क्या
मैं: जैसे तुमने मुझे खाना खिलाया था अपने हाथो से मैं भी तुमको वैसे ही खिलाता हूँ फिर तो ठीक है...
नाज़ी: तुम जाओ ना नीर मुझे नही खाना...
मैं: (बेड पर बैठ ते हुए ऑर थाली मे से रोटी का टुकड़ा तोड़कर नाज़ी के मुँह के सामने करते हुए) मैने तुमसे पूछा नही कि तुमको भूख है या नही चलो अब मुँह खोलो...
नाज़ी: (मुस्कुराकर मुँह खोले हुए) आपने खाया...
मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए)
नाज़ी: क्या... चलो आप भी मुँह खोलो मैं खिलाती हूँ (मुस्कुराकर)
उसके बाद ऐसे ही हमने एक दूसरे को खाना खिलाया ऑर एक दूसरे को प्यार से देखते रहे...
मैं: वैसे तुम हीना से किस बात पर गुस्सा थी...
नाज़ी: जानते हो उस कमीनी ने कौन्से कपड़े पहने थे मेरे चाय गिराने के बाद...
मैं: मेरे कपड़े पहने थे तो क्या हुआ...
नाज़ी: ना सिर्फ़ आपके कपड़े पहने थे बल्कि उसने वो कपड़े पहने थे जो मैने खुद आपके लिए
बड़े प्यार से सिले थे... इसलिए मुझे गुस्सा आ रहा था...
मैं: कोई बात नही उसको कपड़ो से खुश हो लेने दो तुम्हारे पास तो तुम्हारा नीर खुद है फिर किसी से जलन कैसी... है ना
नाज़ी: (खुश हो कर मुझे गले से लगाते हुए) अब गुस्सा नही करूँगी...
मैं: चलो अब जल्दी से खाना ख़तम करो फिर सोना भी है बहुत रात हो गई है ना...
नाज़ी: एक बात बोलूं बुरा नही मनोगे तो...
मैं: हाँ बोलो
नाज़ी: वो जब आपके साथ होती है तो मुझे ऐसा लगता है जैसे आप मुझसे दूर हो गये हो...
मैं: किसी से बात कर लेने का मतलब ये नही होता नाज़ी कि मैं उसका हूँ... मैं सिर्फ़ ऑर सिर्फ़ इस घर का हूँ बॅस मुझे इतना पता है...
नाज़ी: मतलब सिर्फ़ मेरे हो... (मुस्कुराते हुए)
मैं: अच्छा अब दूर होके बैठो फ़िज़ा देख लेगी तो क्या सोचेगी...
नाज़ी: (दूर होके बैठ ते हुए) ये तो मैने सोचा ही नही... हाहहाहा
मैं: इसलिए कहता हूँ तुम मे अभी बच्पना है
नाज़ी: (नज़रे झुकाकर मुस्कुराते हुए)
मैं: अच्छा अब मैं चलता हूँ ठीक है बहुत रात हो गई है तुम भी सो जाओ अब...
नाज़ी: मेरे वाले कमरे मे जाके सोना आज ठीक है...
मैं: हम्म अच्छा... (थाली लेके खड़ा होते हुए)
नाज़ी: अर्रे ये आप क्यो लेके जा रहे हो छोड़ो मैं ले जाउन्गी (थाली मुझसे लेते हुए)
मैं: ठीक है
उसके बाद मैं खड़ा हुआ ऑर जैसे ही कमरे से बाहर जाने लगा नाज़ी की आवाज़ मेरे कानो से टकराई जिसने मेरे कदम रोक दिए...
नाज़ी: आज मुँह मीठा नही करना (मुस्कुरा कर)
मैं: करना तो है लेकिन... फ़िज़ा देख सकती है इसलिए अभी रहने देते हैं (मुस्कुराकर)
नाज़ी: सोच लो... ऐसा मोक़ा फिर नही दूँगी (मुस्कुराते हुए)
मैं: कोई बात नही मुझे कुछ करने के लिए मोक़े की ज़रूरत नही सिर्फ़ मर्ज़ी होनी चाहिए...
इतने मे फ़िज़ा की आवाज़ आ गई तो हम दोनो चुप हो गये...
फ़िज़ा: (कमरे मे आते हुए) अर्रे नाज़ी ने खाना खाया या नही...
मैं: खा लिया (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: क्या बात है जब मैने बोला था तो नही खाया तुम आए तो खा भी लिया...
नाज़ी: ऐसा कुछ नही है भाभी वो बस ये ज़िद्द करके बैठ गये तो खाना पड़ा...
फ़िज़ा: अच्छा अब चलो रसोई मे थोड़ा काम करवा दो मेरे साथ फिर सोना भी है...
नाज़ी: अच्छा अभी आई भाभी...
मैं: मेरे लिए ऑर कोई हुकुम सरकार... (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: जी... आप जाइए ऑर जाके अपने नये कमरे मे सो जाइए आराम से (मुस्कुरा कर)
मैं: जो हुकुम... आज बाबा के पास नही सोना क्या...
फ़िज़ा: नही वो बाबा कह रहे थे कि अगर नीर दूसरे कमरे मे सोना चाहे तो सुला देना नही तो यहाँ भी (बाबा के कमरे मे) सोएगा तो मुझे कोई ऐतराज़ नही...
मैं: तो मैं कहा सो फिर...
फ़िज़ा: जहाँ तुम चाहते हो सो जाओ आज तो सारा दिन मैं अकेली ही लगी रही नाज़ी भी तुम्हारे साथ शहर चली गई थी तो मुझे भी बहुत नींद आ रही है...
नाज़ी: तो भाभी आप सो जाओ ना वैसे भी बाबा ने ज़्यादा काम करने से मना किया है ना आपको...
फ़िज़ा: तो फिर घर का बाकी बचा हुआ काम कौन करेगा...
नाज़ी: मैं हूँ ना संभाल लूँगी आप जाओ जाके सो जाओ... (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: अच्छा... ठीक है (मुस्कुराते हुए) नाज़ी सोने से पहले याद से नीर को दूध गरम करके दे देना मैने उसमे दवाई डाल दी है...
नाज़ी: अच्छा भाभी...