10-11-2021, 01:34 PM
अपडेट-31
हीना जल्दी से उठकर कार के अंदर से ही आगे वाली सीट पर चली गई ऑर जल्दी से अपनी सलवार पहनने लगी ऑर अपने कपड़े ठीक करने लगी तब तक मैं भी अपने कपड़े पहन कर आगे वाली ड्राइविंग सीट पर आ चुका था...
हीना: ये तो अब्बू की जीप है ये यहाँ कैसे आ गये अब क्या होगा...
मैं: डर लग रहा है (मुस्कुरा कर)
हीना: जब आप साथ होते हो तब डर नही लगता (मुस्कुरा कर)
इतना मे वो जीप हमारे पास आके रुकी ऑर उसमे से एक आदमी निकलकर बाहर आया...
आदमी: (गाड़ी के दरवाज़े पर हाथ से नीचे इशारा करते हुए) छोटी मालकिन आप अभी तक गाड़ी सीख रही है बड़े मालिक आपको बुला रहे हैं उन्होने कहा है कि बाकी कल सीख लेना...
हीना: अच्छा... तुम चलो हम इसी कार मे आ रहे हैं
आदमी: जी जैसी आपकी मर्ज़ी मालकिन...
फिर वो आदमी वापिस जीप मे बैठ गया ऑर हमने भी उसके पिछे ही अपनी कार दौड़ा ली... हीना पूरे रास्ते मेरे कंधे पर अपना सिर रखकर बैठी रही ऑर मुझे देखकर मुस्कुराती रही ऑर कभी-कभी मेरे गाल पर चूम लेती...
कुछ देर मे हवेली आ गई तो बाहर खड़े दरबान ने हमारी कार देखते ही बड़ा दरवाजा जल्दी से खोल दिया मैं गाड़ी हवेली के अंदर ले गया ऑर गाड़िया खड़ी करने की जगह पर गाड़ी रोक दी... तभी सरपंच वहाँ आ गया... जिसे देखते ही हीना जल्दी से कार से उतर गई... हालाकी उसे चलने मे तक़लीफ़ हो रही थी लेकिन उसने अपने अब्बू पर कुछ भी जाहिर नही होने दिया...
सरपंच: बेटी आज तो बहुत देर करदी मुझे फिकर हो रही थी...
हीना: अब मैं बच्ची नही हूँ अब्बू... बड़ी हो गई हूँ ऐसे फिकर ना किया करो ऑर वैसे भी नीर मेरे साथ ही तो थे... (मुस्कुरा कर)
सरपंच: अर्रे ये किसके कपड़े पहने है... हाहहहहहाहा
हीना: वो मैं इनको लेने इनके घर गई थी तो वहाँ बाबा जी चाय पी कर जाने की ज़िद्द करने लगे वहाँ चाय पकड़ते हुए मेरे हाथ से चाय का कप गिर गया था जो मेरे कपड़ो पर गिर गया (हीना ने झूठ बोला) इसलिए इन्होने मुझे अपने कपड़े दे दिए पहन ने के लिए... अच्छे है ना (मुस्कुराते हुए)
सरपंच: अच्छा... अच्छा अब तारीफे बंद करो ऑर चलो मैने खाना नही खाया तुम्हारी वजह से... (हीना के सिर पर हाथ फेरते हुए)
मैं गाड़ी से उतरते हुए दोनो बाप बेटी को बाते करते हुए देख रहा था ऑर उन दोनो की बाते सुनकर मुस्कुरा रहा था...
मैं: माफ़ कीजिए सरपंच जी आज थोड़ा देर हो गई... ये लीजिए आपकी अमानत की चाबी...
सरपंच: (चाबी पकड़ते हुए) कोई बात नही... अर्रे ये तुम्हारे सिर मे क्या हुआ
मैं: कुछ नही वो ज़रा चोट लग गई थी... (अपने माथे पर हाथ फेरते हुए)
सरपंच: (मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए) अपना ख्याल रखा करो
मैं: जी ज़रूर...
हीना: अब्बू वो गाड़ी वाली बात भी तो करो ना इनसे...
सरपंच: अर्रे हाँ मैं तो भूल ही गया... बेटा वो हीना कितने दिन से पिछे पड़ी है इसको नयी गाड़ी लेके देनी है... तो मुझे समझ नही आ रहा था कि कौनसी गाड़ी इसे लेके दूं तुम बताओ इसके लिए कौनसी गाड़ी अच्छी रहेगी...
मैं: कोई भी गाड़ी ले दीजिए... बस इतना ख़याल रखना कि गाड़ी छोटी हो जिससे इनको (हीना को) भी चलाने मे आसानी रहेगी...
हीना: अब्बू आप असल बात तो भूल ही गये ये वाली नही साथ जाने वाली बात पुछो ना...
सरपंच: आप खुद ही पूछ लो महारानी साहिबा... (हीना के आगे हाथ जोड़ते हुए)
हीना: नीर जी वो मैं सोच रही थी कि आप को हम से ज़्यादा समझ है गाडियो की तो आप भी हमारे साथ ही शहर चलें ना नयी गाड़ी लेने के लिए (मुस्कुराते हुए)
मैं: (चोन्कते हुए) मैं... मैं कैसे... नही आप लोग ही ले आइए मुझे खेतो मे भी काम होता है ना...
सरपंच: अर्रे बेटा मान जाओ नही तो ये सारा घर सिर पर उठा लेगी... जहाँ तक खेतो की बात है तो मैं अपने मुलाज़िम भेज दूँगा 1-2 दिन के लिए वो लोग तुम्हारे खेत का ख्याल रखेंगे जब तक तुम हमारे साथ शहर रहोगे...
मैं: ठीक है... लेकिन एक बार बाबा से पूछ लूँगा तो बेहतर होगा...
सरपंच: तुम्हारे बाबा की फिकर तुम ना करो मैं हूँ ना मैं कल ही जाके बात कर आउगा फिर परसो हम शहर चलेंगे... अब तो कोई ऐतराज़ नही तुमको...
मैं: जी नही... अच्छा सरपंच जी अब इजाज़त दीजिए काफ़ी रात हो गई है सब लोग खाने पर इंतज़ार कर रहे होंगे...
सरपंच: ठीक है... रूको तुमको मानसिंघ छोड़ आएगा... मानसिंघ... (अपने मुलाज़िम को आवाज़ लगाते हुए)
मानसिंघ: जी मालिक (दौड़कर सरपंच के सामने आते हुए)
सरपंच: नीर को उनके घर छोड़ आओ जीप पर...
मानसिंघ: जी... ठीक है मालिक...
उसके बाद मानसिंघ मुझे जीप पर घर तक छोड़ गया
हीना जल्दी से उठकर कार के अंदर से ही आगे वाली सीट पर चली गई ऑर जल्दी से अपनी सलवार पहनने लगी ऑर अपने कपड़े ठीक करने लगी तब तक मैं भी अपने कपड़े पहन कर आगे वाली ड्राइविंग सीट पर आ चुका था...
हीना: ये तो अब्बू की जीप है ये यहाँ कैसे आ गये अब क्या होगा...
मैं: डर लग रहा है (मुस्कुरा कर)
हीना: जब आप साथ होते हो तब डर नही लगता (मुस्कुरा कर)
इतना मे वो जीप हमारे पास आके रुकी ऑर उसमे से एक आदमी निकलकर बाहर आया...
आदमी: (गाड़ी के दरवाज़े पर हाथ से नीचे इशारा करते हुए) छोटी मालकिन आप अभी तक गाड़ी सीख रही है बड़े मालिक आपको बुला रहे हैं उन्होने कहा है कि बाकी कल सीख लेना...
हीना: अच्छा... तुम चलो हम इसी कार मे आ रहे हैं
आदमी: जी जैसी आपकी मर्ज़ी मालकिन...
फिर वो आदमी वापिस जीप मे बैठ गया ऑर हमने भी उसके पिछे ही अपनी कार दौड़ा ली... हीना पूरे रास्ते मेरे कंधे पर अपना सिर रखकर बैठी रही ऑर मुझे देखकर मुस्कुराती रही ऑर कभी-कभी मेरे गाल पर चूम लेती...
कुछ देर मे हवेली आ गई तो बाहर खड़े दरबान ने हमारी कार देखते ही बड़ा दरवाजा जल्दी से खोल दिया मैं गाड़ी हवेली के अंदर ले गया ऑर गाड़िया खड़ी करने की जगह पर गाड़ी रोक दी... तभी सरपंच वहाँ आ गया... जिसे देखते ही हीना जल्दी से कार से उतर गई... हालाकी उसे चलने मे तक़लीफ़ हो रही थी लेकिन उसने अपने अब्बू पर कुछ भी जाहिर नही होने दिया...
सरपंच: बेटी आज तो बहुत देर करदी मुझे फिकर हो रही थी...
हीना: अब मैं बच्ची नही हूँ अब्बू... बड़ी हो गई हूँ ऐसे फिकर ना किया करो ऑर वैसे भी नीर मेरे साथ ही तो थे... (मुस्कुरा कर)
सरपंच: अर्रे ये किसके कपड़े पहने है... हाहहहहहाहा
हीना: वो मैं इनको लेने इनके घर गई थी तो वहाँ बाबा जी चाय पी कर जाने की ज़िद्द करने लगे वहाँ चाय पकड़ते हुए मेरे हाथ से चाय का कप गिर गया था जो मेरे कपड़ो पर गिर गया (हीना ने झूठ बोला) इसलिए इन्होने मुझे अपने कपड़े दे दिए पहन ने के लिए... अच्छे है ना (मुस्कुराते हुए)
सरपंच: अच्छा... अच्छा अब तारीफे बंद करो ऑर चलो मैने खाना नही खाया तुम्हारी वजह से... (हीना के सिर पर हाथ फेरते हुए)
मैं गाड़ी से उतरते हुए दोनो बाप बेटी को बाते करते हुए देख रहा था ऑर उन दोनो की बाते सुनकर मुस्कुरा रहा था...
मैं: माफ़ कीजिए सरपंच जी आज थोड़ा देर हो गई... ये लीजिए आपकी अमानत की चाबी...
सरपंच: (चाबी पकड़ते हुए) कोई बात नही... अर्रे ये तुम्हारे सिर मे क्या हुआ
मैं: कुछ नही वो ज़रा चोट लग गई थी... (अपने माथे पर हाथ फेरते हुए)
सरपंच: (मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए) अपना ख्याल रखा करो
मैं: जी ज़रूर...
हीना: अब्बू वो गाड़ी वाली बात भी तो करो ना इनसे...
सरपंच: अर्रे हाँ मैं तो भूल ही गया... बेटा वो हीना कितने दिन से पिछे पड़ी है इसको नयी गाड़ी लेके देनी है... तो मुझे समझ नही आ रहा था कि कौनसी गाड़ी इसे लेके दूं तुम बताओ इसके लिए कौनसी गाड़ी अच्छी रहेगी...
मैं: कोई भी गाड़ी ले दीजिए... बस इतना ख़याल रखना कि गाड़ी छोटी हो जिससे इनको (हीना को) भी चलाने मे आसानी रहेगी...
हीना: अब्बू आप असल बात तो भूल ही गये ये वाली नही साथ जाने वाली बात पुछो ना...
सरपंच: आप खुद ही पूछ लो महारानी साहिबा... (हीना के आगे हाथ जोड़ते हुए)
हीना: नीर जी वो मैं सोच रही थी कि आप को हम से ज़्यादा समझ है गाडियो की तो आप भी हमारे साथ ही शहर चलें ना नयी गाड़ी लेने के लिए (मुस्कुराते हुए)
मैं: (चोन्कते हुए) मैं... मैं कैसे... नही आप लोग ही ले आइए मुझे खेतो मे भी काम होता है ना...
सरपंच: अर्रे बेटा मान जाओ नही तो ये सारा घर सिर पर उठा लेगी... जहाँ तक खेतो की बात है तो मैं अपने मुलाज़िम भेज दूँगा 1-2 दिन के लिए वो लोग तुम्हारे खेत का ख्याल रखेंगे जब तक तुम हमारे साथ शहर रहोगे...
मैं: ठीक है... लेकिन एक बार बाबा से पूछ लूँगा तो बेहतर होगा...
सरपंच: तुम्हारे बाबा की फिकर तुम ना करो मैं हूँ ना मैं कल ही जाके बात कर आउगा फिर परसो हम शहर चलेंगे... अब तो कोई ऐतराज़ नही तुमको...
मैं: जी नही... अच्छा सरपंच जी अब इजाज़त दीजिए काफ़ी रात हो गई है सब लोग खाने पर इंतज़ार कर रहे होंगे...
सरपंच: ठीक है... रूको तुमको मानसिंघ छोड़ आएगा... मानसिंघ... (अपने मुलाज़िम को आवाज़ लगाते हुए)
मानसिंघ: जी मालिक (दौड़कर सरपंच के सामने आते हुए)
सरपंच: नीर को उनके घर छोड़ आओ जीप पर...
मानसिंघ: जी... ठीक है मालिक...
उसके बाद मानसिंघ मुझे जीप पर घर तक छोड़ गया