10-11-2021, 01:31 PM
अपडेट-29
घर से निकलते हुए मैने पलटकर देखा तो नाज़ी मुझे रसोई मे खड़ी गुस्से से देख रही थी... जिसके गुस्से का मेरे पास कोई जवाब नही था इसलिए मैने वापिस गर्दन सीधी की ऑर हीना के साथ उसकी कार की तरफ चल पड़ा... आज जाने क्यो इस तरह नाज़ी का बर्ताव मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था क्योंकि वो एक खुश-मिज़ाज़ ऑर तमीज़दार लड़की थी लेकिन आज जाने उसको क्या हो गया था जो वो हीना के साथ ऐसे पेश आ रही थी... अभी मैं अपनी इन्ही सोचो मे गुम था कि मुझे हीना की आवाज़ आई...
हीना: जनाब अब सारी रात कार के सामने ही खड़ा रहना है या चलना भी है...
मैं: (हीना की तरफ चोंक कर देखते हुए) क्या... हाँ चलो बैठो...
हीना: आप भी ना... (मुस्कुराते हुए)
मैं: मैं भी क्या...
हीना: कुछ नही जल्दी बैठो...
मैं: अच्छा
उसके बाद मैं ओर हीना कार मे बैठे ऑर मैने कार स्टार्ट कर दी ऑर कुछ देर बिना कुछ बोले कार चलता रहा थोड़ी देर मे ही हम हवेली के पास आ गये...
हीना: अर्रे हवेली क्यो ले आए मुझे (रोने जैसी शक़ल बनाके)
मैं: घर नही जाना आपने...
हीना: बाबा ने कुछ ऑर भी कहा था ना आप भूल गये क्या (मुस्कुराते हुए)
मैं: ऑर क्या कहा था बाबा ने यही कहा था कि हीना को घर छोड़ आओ बस...
हीना: (अपने सिर पर हाथ रखते हुए) ओुंओ... बाबा ने ये भी तो कहा था कि कार चलानी भी सीखा देना मुझे... भूल गये क्या...
मैं: अर्रे हाँ मैं तो भूल ही गया था...
हीना: अब चलो गाड़ी घूमाओ मैदान की तरफ अभी इतनी जल्दी नही मैने घर जाना ...
मैं: अच्छा... (मुस्कुराते हुए)
उसके बाद मैने कार को मोड़ लिया ऑर वही से ही हम मैदान की तरफ निकल गये हीना मुझे बार-बार देखकर आज मुस्कुरा रही थी ऑर काफ़ी खुश लग रही थी... मैने कार चलाते हुए देखा कि वो बार-बार मेरी पहनी हुई कमीज़ को देख रही थी...
मैं: एक बात बोलू हीना जी अगर आपको बुरा ना लगे तो...
हीना: आज तक आपकी कोई बात का बुरा माना है जो अब मानूँगी बोलो... (मुस्कुराते हुए)
मैं: आप पर मेरे कपड़े बहुत अच्छे लग रहे हैं... (मुस्कुराते हुए)
हीना: अगर आपको बुरा ना लगे तो ये कपड़े मैं रख लूँ...
मैं: क्यो नही ज़रूर अगर आपको पसंद है तो... लेकिन आप मेरे कपड़ो का करेंगी क्या...
हीना: शुक्रिया... पसंद भी आए हैं ऑर...
मैं: ऑर क्या...
हीना: इन कपड़ो मे आपकी महक भी है जो मुझे बहुत पसंद है (नज़रे झुका कर मुस्कुराते हुए)
मैं: लेकिन आप इनका करेंगी क्या ये तो मर्दाना कपड़े है...
हीना: आप पास होते हो तो खुद को बहुत महफूज़ महसूस करती हूँ... ये कपड़े जब मेरे पास होंगे तो ऐसा लगेगा आप मेरे पास हो...
मैं: अच्छा जैसा आपको अच्छा लगे (मुस्कुराते हुए)
हीना: नीर दवाई तो टाइम पर ले रहे हो ना जो हमने शहर से ली थी...
मैं: कौनसी दवाई (कुछ सोचते हुए) अर्रे हाँ याद आया
हीना: शूकर है याद तो आ गया (मुस्कुराते हुए) अब बताओ दवाई ली या नही...
मैं: (उदास मुँह बनाके ना मे सिर हिलाते हुए) भूल गया...
हीना: ऊओुंओ... क्या करूँ मैं तुम्हारा (रोने जैसा मुँह बनाके)
मैं: कुछ नही करना क्या है (मुस्कुराते हुए) अब याद नही रहता तो क्या करू मैं भी...
हीना: अच्छा तुम एक काम कर सकते हो
मैं: क्या
हीना: कल से अपनी दवाइयाँ मुझे लाके देदो मैं आपको रोज़ दवाई दे जाया करूँगी
मैं: लेकिन अगर आप रोज़ घर आएँगी तो शायद नाज़ी ऑर फ़िज़ा को अच्छा नही लगेगा...
हीना: (कुछ सोचते हुए) हम्म... ये तो है... ऐसा करूँगी सुबह आप खेत मे अकेले होते हो ना दिन मे आपको खेत मे आके आपकी दवाई दे जाया करूँगी ऑर शाम को कार मे दे दिया करूँगी फिर तो ठीक है... वैसे भी हम मिलते तो रोज़ ही है... (मुस्कुराते हुए)
मैं: हाँ ये ठीक रहेगा...
घर से निकलते हुए मैने पलटकर देखा तो नाज़ी मुझे रसोई मे खड़ी गुस्से से देख रही थी... जिसके गुस्से का मेरे पास कोई जवाब नही था इसलिए मैने वापिस गर्दन सीधी की ऑर हीना के साथ उसकी कार की तरफ चल पड़ा... आज जाने क्यो इस तरह नाज़ी का बर्ताव मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था क्योंकि वो एक खुश-मिज़ाज़ ऑर तमीज़दार लड़की थी लेकिन आज जाने उसको क्या हो गया था जो वो हीना के साथ ऐसे पेश आ रही थी... अभी मैं अपनी इन्ही सोचो मे गुम था कि मुझे हीना की आवाज़ आई...
हीना: जनाब अब सारी रात कार के सामने ही खड़ा रहना है या चलना भी है...
मैं: (हीना की तरफ चोंक कर देखते हुए) क्या... हाँ चलो बैठो...
हीना: आप भी ना... (मुस्कुराते हुए)
मैं: मैं भी क्या...
हीना: कुछ नही जल्दी बैठो...
मैं: अच्छा
उसके बाद मैं ओर हीना कार मे बैठे ऑर मैने कार स्टार्ट कर दी ऑर कुछ देर बिना कुछ बोले कार चलता रहा थोड़ी देर मे ही हम हवेली के पास आ गये...
हीना: अर्रे हवेली क्यो ले आए मुझे (रोने जैसी शक़ल बनाके)
मैं: घर नही जाना आपने...
हीना: बाबा ने कुछ ऑर भी कहा था ना आप भूल गये क्या (मुस्कुराते हुए)
मैं: ऑर क्या कहा था बाबा ने यही कहा था कि हीना को घर छोड़ आओ बस...
हीना: (अपने सिर पर हाथ रखते हुए) ओुंओ... बाबा ने ये भी तो कहा था कि कार चलानी भी सीखा देना मुझे... भूल गये क्या...
मैं: अर्रे हाँ मैं तो भूल ही गया था...
हीना: अब चलो गाड़ी घूमाओ मैदान की तरफ अभी इतनी जल्दी नही मैने घर जाना ...
मैं: अच्छा... (मुस्कुराते हुए)
उसके बाद मैने कार को मोड़ लिया ऑर वही से ही हम मैदान की तरफ निकल गये हीना मुझे बार-बार देखकर आज मुस्कुरा रही थी ऑर काफ़ी खुश लग रही थी... मैने कार चलाते हुए देखा कि वो बार-बार मेरी पहनी हुई कमीज़ को देख रही थी...
मैं: एक बात बोलू हीना जी अगर आपको बुरा ना लगे तो...
हीना: आज तक आपकी कोई बात का बुरा माना है जो अब मानूँगी बोलो... (मुस्कुराते हुए)
मैं: आप पर मेरे कपड़े बहुत अच्छे लग रहे हैं... (मुस्कुराते हुए)
हीना: अगर आपको बुरा ना लगे तो ये कपड़े मैं रख लूँ...
मैं: क्यो नही ज़रूर अगर आपको पसंद है तो... लेकिन आप मेरे कपड़ो का करेंगी क्या...
हीना: शुक्रिया... पसंद भी आए हैं ऑर...
मैं: ऑर क्या...
हीना: इन कपड़ो मे आपकी महक भी है जो मुझे बहुत पसंद है (नज़रे झुका कर मुस्कुराते हुए)
मैं: लेकिन आप इनका करेंगी क्या ये तो मर्दाना कपड़े है...
हीना: आप पास होते हो तो खुद को बहुत महफूज़ महसूस करती हूँ... ये कपड़े जब मेरे पास होंगे तो ऐसा लगेगा आप मेरे पास हो...
मैं: अच्छा जैसा आपको अच्छा लगे (मुस्कुराते हुए)
हीना: नीर दवाई तो टाइम पर ले रहे हो ना जो हमने शहर से ली थी...
मैं: कौनसी दवाई (कुछ सोचते हुए) अर्रे हाँ याद आया
हीना: शूकर है याद तो आ गया (मुस्कुराते हुए) अब बताओ दवाई ली या नही...
मैं: (उदास मुँह बनाके ना मे सिर हिलाते हुए) भूल गया...
हीना: ऊओुंओ... क्या करूँ मैं तुम्हारा (रोने जैसा मुँह बनाके)
मैं: कुछ नही करना क्या है (मुस्कुराते हुए) अब याद नही रहता तो क्या करू मैं भी...
हीना: अच्छा तुम एक काम कर सकते हो
मैं: क्या
हीना: कल से अपनी दवाइयाँ मुझे लाके देदो मैं आपको रोज़ दवाई दे जाया करूँगी
मैं: लेकिन अगर आप रोज़ घर आएँगी तो शायद नाज़ी ऑर फ़िज़ा को अच्छा नही लगेगा...
हीना: (कुछ सोचते हुए) हम्म... ये तो है... ऐसा करूँगी सुबह आप खेत मे अकेले होते हो ना दिन मे आपको खेत मे आके आपकी दवाई दे जाया करूँगी ऑर शाम को कार मे दे दिया करूँगी फिर तो ठीक है... वैसे भी हम मिलते तो रोज़ ही है... (मुस्कुराते हुए)
मैं: हाँ ये ठीक रहेगा...