10-11-2021, 01:29 PM
अपडेट-28
तभी गेट खट-खटाने की आवाज़ आई तो नाज़ी जल्दी से अपनी जगह पर बैठ गई... रेहाना एक नर्स के साथ अंदर आई नर्स के हाथ मे एक बड़ी सी ट्रे थी जिसमे शायद वो हमारे लिए खाना लाई थी... नाज़ी ने खड़ी होके नर्स से प्लेट पकड़ ली ऑर फिर नर्स ऑर रेहाना ने मिलकर मुझे बिस्तर पर बिठा दिया फिर एक कटोरे मे रेहाना मुझे खिचड़ी खिलाने लगी जो शायद नाज़ी को अच्छा नही लग रहा था इसलिए वो अजीब से मुँह बनाके कभी रेहाना को कभी मुझे घूर-घूर के देख रही थी...
नाज़ी: डॉक्टरनी जी लाइए मैं खिला देती हूँ आप रहने दीजिए...
डॉक्टर: (मुस्कुराते हुए) ठीक है ये लो... (मुझे देखते हुए) नीर आप आराम से खाना खा लो उसके बाद आपके कुछ टेस्ट करने है नर्स यही है जब आप खाना खा लो तो बता देना फिर मैं आपके कुछ टेस्ट करूँगी ठीक है...
मैं: (खाते हुए हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म
उसके बाद मैने ऑर नाज़ी ने मिलकर खाना खाया अब मैं काफ़ी बेहतर महसूस कर रहा था कमज़ोरी भी महसूस नही हो रही थी मैं अब बिना कोई सहारे के अपने पैरो पर खड़ा हुआ ऑर नर्स हम को एक ठंडे से कमरे मे ले गई जहाँ एक बड़ी सी मशीन थी ऑर उसके पास डॉक्टर रेहाना फाइल्स हाथ मे लिए ही खड़ी थी... उसने एक नज़र मुझे मुस्कुराकर देखा ऑर फिर मशीन पर लेटने का इशारा किया मैं चुप-चाप उस मशीन पर लेट गया...
डॉक्टर: नीर कोई लोहे की चीज़ तो नही तुम्हारे पास मेरा मतलब है कोई घड़ी चैन या अंगूठी पहनी है तुमने इस वक़्त...
मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए) जी नही
डॉक्टर: अच्छा चलो अब अपनी आँखें बंद करके कुछ देर के लिए लेट जाओ
फिर मैं आराम से वहाँ लेटा रहा ऑर एक रोशनी मेरे सिर से लेके पैर तक बार-बार गुज़रती रही कुछ ही पल मे मुझे एक टीच की आवाज़ आई ऑर उसके बाद अगली आवाज़ रेहाना की थी जो मेरे कानो से टकराई...
डॉक्टर: बस हो गया नीर अब आप उठ सकते हैं...
मैं: बस इतना ही था ऑर कुछ नही...
डॉक्टर: (मुस्कुराकर ना मे सिर हिलाते) उऊहहुउ... चलो अब आप बाहर जाके बैठो मैं ख़ान से बात करके अभी आती हूँ
उसके बाद मैं वहाँ से खड़ा हुआ ऑर नर्स मुझे ऑर नाज़ी को एक कमरे मे छोड़ गई जहाँ सामने पड़े सोफे पर हम दोनो बैठ गये ऑर डॉक्टर रेहाना का इंतज़ार करने लगे...
कुछ देर बाद ही डॉक्टर रेहाना ऑर ख़ान दोनो एक साथ कमरे मे आए जिनके हाथ मे कुछ पेपर्स थे ऑर वो आपस मे किसी बात पर बहस कर रहे थे... कमरे मे आते ही मेरे सामने दोनो नॉर्मल हो गये ओर मुझे मुस्कुरकर देखने लगे...
ख़ान: चलिए जनाब आपको घर छोड़ आता हूँ...
मैं: बस इतना सा ही काम था...
ख़ान: हंजी बस इतना सा ही काम था बाकी आपका ऑर कुछ ज़रूरत होगी तो फिर आना पड़ेगा...
मैं: आ तो मैं जाउन्गा लेकिन मेरे खेत...
ख़ान: अर्रे उसकी फिकर तुम मत करो कुछ दिन के लिए नये आदमी रख लो ना यार...
मैं: साहब आदमी रखने की हैसियत होती तो मैं खुद काम क्यो करता
ख़ान: अर्रे तुम फिकर मत करो अब तुम मेरे साथ हो पैसे की फिकर मत करो तुमको जो भी चाहिए हो मुझे फोन कर देना तुम्हारा काम हो जाएगा...
उसके बाद उसने मुझे अपना कार्ड दिया जो मैने जेब मे डाल लिया फिर रेहाना ने नाज़ी को मेरे लिए कुछ दवाइयाँ भी साथ दी ऑर साथ ही कुछ हिदायतें भी दी कि किस वक़्त मुझे कौनसी दवाई देनी है...
डॉक्टर: नीर वैसे तो मैने नाज़ी को सब समझा दिया है वो तुमको वक़्त पर दवा देती रहेगी फिर भी मैं हफ्ते मे एक बार या तो तुम खुद अपने चेक-अप के लिए यहाँ आ जाओ या फिर मुझे तुम्हारे गाँव आना पड़ेगा बताओ कैसे करना पसंद करोगे...
मैं: जी मैं हर हफ्ते शहर नही आ सकता बेहतर होगा आप ही आ जाए...
डॉक्टर: (मुस्कुरकर) कोई बात नही
फिर मैं ख़ान ऑर नाज़ी उसी दरवाज़े से बाहर निकल गये जहाँ से आए थे... लेकिन हैरत की बात ये थी कि सुबह जब हम यहाँ आए थे तो बाहर बहुत से मुलाज़िम काम कर रहे थे लेकिन अब वहाँ कोई आदमी मोजूद नही था पूरा दफ़्तर खाली पड़ा था
मैं: ख़ान साहब यहाँ सुबह कुछ लोग काम कर रहे थे ना वो कहाँ गये...
ख़ान: वो यही काम करते हैं अब उनके घर जाने का वक़्त हो गया था इसलिए चले गये अंदर हमारा अपना सीक्रेट हेडक्वॉर्टर है... अंदर मेरी मर्ज़ी के बिना कोई नही जा सकता...
मैं: अच्छा ठीक है...
ऐसे ही बाते करते हुए हम बाहर निकल गये ऑर जीप मे बैठ गये ख़ान ड्राइवर की साथ वाली सीट पर आगे बैठा था जबकि मैं ओर नाज़ी फिर से पिछे ही बैठ गये नाज़ी वापिस मेरे साथ चिपक कर बैठी थी ऑर मेरे कंधे पर सिर रखा था पूरे रास्ते कोई खास बात नही हुई...
तभी गेट खट-खटाने की आवाज़ आई तो नाज़ी जल्दी से अपनी जगह पर बैठ गई... रेहाना एक नर्स के साथ अंदर आई नर्स के हाथ मे एक बड़ी सी ट्रे थी जिसमे शायद वो हमारे लिए खाना लाई थी... नाज़ी ने खड़ी होके नर्स से प्लेट पकड़ ली ऑर फिर नर्स ऑर रेहाना ने मिलकर मुझे बिस्तर पर बिठा दिया फिर एक कटोरे मे रेहाना मुझे खिचड़ी खिलाने लगी जो शायद नाज़ी को अच्छा नही लग रहा था इसलिए वो अजीब से मुँह बनाके कभी रेहाना को कभी मुझे घूर-घूर के देख रही थी...
नाज़ी: डॉक्टरनी जी लाइए मैं खिला देती हूँ आप रहने दीजिए...
डॉक्टर: (मुस्कुराते हुए) ठीक है ये लो... (मुझे देखते हुए) नीर आप आराम से खाना खा लो उसके बाद आपके कुछ टेस्ट करने है नर्स यही है जब आप खाना खा लो तो बता देना फिर मैं आपके कुछ टेस्ट करूँगी ठीक है...
मैं: (खाते हुए हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म
उसके बाद मैने ऑर नाज़ी ने मिलकर खाना खाया अब मैं काफ़ी बेहतर महसूस कर रहा था कमज़ोरी भी महसूस नही हो रही थी मैं अब बिना कोई सहारे के अपने पैरो पर खड़ा हुआ ऑर नर्स हम को एक ठंडे से कमरे मे ले गई जहाँ एक बड़ी सी मशीन थी ऑर उसके पास डॉक्टर रेहाना फाइल्स हाथ मे लिए ही खड़ी थी... उसने एक नज़र मुझे मुस्कुराकर देखा ऑर फिर मशीन पर लेटने का इशारा किया मैं चुप-चाप उस मशीन पर लेट गया...
डॉक्टर: नीर कोई लोहे की चीज़ तो नही तुम्हारे पास मेरा मतलब है कोई घड़ी चैन या अंगूठी पहनी है तुमने इस वक़्त...
मैं: (ना मे सिर हिलाते हुए) जी नही
डॉक्टर: अच्छा चलो अब अपनी आँखें बंद करके कुछ देर के लिए लेट जाओ
फिर मैं आराम से वहाँ लेटा रहा ऑर एक रोशनी मेरे सिर से लेके पैर तक बार-बार गुज़रती रही कुछ ही पल मे मुझे एक टीच की आवाज़ आई ऑर उसके बाद अगली आवाज़ रेहाना की थी जो मेरे कानो से टकराई...
डॉक्टर: बस हो गया नीर अब आप उठ सकते हैं...
मैं: बस इतना ही था ऑर कुछ नही...
डॉक्टर: (मुस्कुराकर ना मे सिर हिलाते) उऊहहुउ... चलो अब आप बाहर जाके बैठो मैं ख़ान से बात करके अभी आती हूँ
उसके बाद मैं वहाँ से खड़ा हुआ ऑर नर्स मुझे ऑर नाज़ी को एक कमरे मे छोड़ गई जहाँ सामने पड़े सोफे पर हम दोनो बैठ गये ऑर डॉक्टर रेहाना का इंतज़ार करने लगे...
कुछ देर बाद ही डॉक्टर रेहाना ऑर ख़ान दोनो एक साथ कमरे मे आए जिनके हाथ मे कुछ पेपर्स थे ऑर वो आपस मे किसी बात पर बहस कर रहे थे... कमरे मे आते ही मेरे सामने दोनो नॉर्मल हो गये ओर मुझे मुस्कुरकर देखने लगे...
ख़ान: चलिए जनाब आपको घर छोड़ आता हूँ...
मैं: बस इतना सा ही काम था...
ख़ान: हंजी बस इतना सा ही काम था बाकी आपका ऑर कुछ ज़रूरत होगी तो फिर आना पड़ेगा...
मैं: आ तो मैं जाउन्गा लेकिन मेरे खेत...
ख़ान: अर्रे उसकी फिकर तुम मत करो कुछ दिन के लिए नये आदमी रख लो ना यार...
मैं: साहब आदमी रखने की हैसियत होती तो मैं खुद काम क्यो करता
ख़ान: अर्रे तुम फिकर मत करो अब तुम मेरे साथ हो पैसे की फिकर मत करो तुमको जो भी चाहिए हो मुझे फोन कर देना तुम्हारा काम हो जाएगा...
उसके बाद उसने मुझे अपना कार्ड दिया जो मैने जेब मे डाल लिया फिर रेहाना ने नाज़ी को मेरे लिए कुछ दवाइयाँ भी साथ दी ऑर साथ ही कुछ हिदायतें भी दी कि किस वक़्त मुझे कौनसी दवाई देनी है...
डॉक्टर: नीर वैसे तो मैने नाज़ी को सब समझा दिया है वो तुमको वक़्त पर दवा देती रहेगी फिर भी मैं हफ्ते मे एक बार या तो तुम खुद अपने चेक-अप के लिए यहाँ आ जाओ या फिर मुझे तुम्हारे गाँव आना पड़ेगा बताओ कैसे करना पसंद करोगे...
मैं: जी मैं हर हफ्ते शहर नही आ सकता बेहतर होगा आप ही आ जाए...
डॉक्टर: (मुस्कुरकर) कोई बात नही
फिर मैं ख़ान ऑर नाज़ी उसी दरवाज़े से बाहर निकल गये जहाँ से आए थे... लेकिन हैरत की बात ये थी कि सुबह जब हम यहाँ आए थे तो बाहर बहुत से मुलाज़िम काम कर रहे थे लेकिन अब वहाँ कोई आदमी मोजूद नही था पूरा दफ़्तर खाली पड़ा था
मैं: ख़ान साहब यहाँ सुबह कुछ लोग काम कर रहे थे ना वो कहाँ गये...
ख़ान: वो यही काम करते हैं अब उनके घर जाने का वक़्त हो गया था इसलिए चले गये अंदर हमारा अपना सीक्रेट हेडक्वॉर्टर है... अंदर मेरी मर्ज़ी के बिना कोई नही जा सकता...
मैं: अच्छा ठीक है...
ऐसे ही बाते करते हुए हम बाहर निकल गये ऑर जीप मे बैठ गये ख़ान ड्राइवर की साथ वाली सीट पर आगे बैठा था जबकि मैं ओर नाज़ी फिर से पिछे ही बैठ गये नाज़ी वापिस मेरे साथ चिपक कर बैठी थी ऑर मेरे कंधे पर सिर रखा था पूरे रास्ते कोई खास बात नही हुई...