10-11-2021, 01:27 PM
अगले दिन सुबह जब मैं उठा तो सब जाग रहे थे नाज़ी ऑर फ़िज़ा रसोई मे थी ऑर बाबा बाहर सैर कर रहे थे... मैं जब उठकर बाहर आया तो नाज़ी ऑर फ़िज़ा नाश्ता बना रही थी ऑर साथ ही फ़िज़ा नाज़ी के पास खड़ी उसको कुछ समझा रही थी...
मैं: अर्रे आज इतनी जल्दी नाश्ता कैसे बना लिया...
फ़िज़ा: अर्रे भूल गये तुमने आज शहर जाना है ना इसलिए तुम्हारे लिए बनाया है जाओ तुम जल्दी से नहा कर तेयार हो जाओ फिर मैं नाश्ता लगा देती हूँ...
मैं: लेकिन शहर जाना क्यों है मैं नही जाउन्गा शहर मुझे खेत मे काम है...
फ़िज़ा: खेत की तुम फिकर ना करो एक दिन नही जाओगे तो आसमान नही टूट जाएगा पहले तुम शहर जाओ ऑर ख़ान के साथ जाके अपना इलाज कर्वाओ उनका सुबह आदमी आया था वो कह रहा था कि ख़ान साहब 8 बजे तुमको लेने आएँगे...
मैं: मुझे उससे कोई वास्ता नही रखना मैं नही जाउन्गा
फ़िज़ा: बच्चों जैसे ज़िद्द ना करो नीर मैं भी तो हूँ तुम्हारे साथ...
मैं: तुम भी... क्या मतलब
फ़िज़ा: अर्रे मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूंगी वापसी मे हम दोनो साथ ही आएँगे
नाज़ी: (बीच मे बोलते हुए) देखो ना नीर मैं मना कर रही हूँ भाभी को लेकिन ये सुन ही नही रही इस हालत मे इनका शहर जाना ठीक है क्या मैने तो कहा है तुम्हारे साथ मैं अकेली ही चली जाउन्गी लेकिन नही मेरी बात ही नही सुन रही...
मैं: तुम दोनो ही खामोश हो जाओ ऑर अपना काम करो कोई शहर नही जाएगा ना तुम ना मैं समझी...
अपडेट-27
अभी हम बात ही कर रहे थे कि एक जीप हमारे दरवाज़े के सामने आके रुक गई... जिसमे से ख़ान बाहर निकला ऑर बाहर खड़ा होके दरवाज़ा खट-खटाने लगा...
मैं: कौन है (दरवाज़े की तरफ देखते हुए)
ख़ान: जल्दी चलो लेट हो रहा है...
मैं: (रसोई से बाहर निकलते हुए) जी साहब आप
ख़ान: अर्रे तुम अभी तक तैयार नही हुए
मैं: मुझे कही नही जाना मैं यही रहूँगा
ख़ान: अर्रे तुमको अरेस्ट नही कर रहा हूँ यार तुमको बस डॉक्टर को दिखाना है ऑर शाम तक वापिस घर छोड़ जाउन्गा तुम्हारे ऑर कुछ नही... डरो मत कुछ करना होता तो कल ही तुम्हारा नंबर लग जाना था...
मैं: लेकिन ख़ान साहब मैं एक दम ठीक हूँ फिर आप मुझे शहर क्यो ले जा रहे हैं ऑर वैसे भी बिना याददाश्त के मैं आपके किस काम का हूँ बताओ...
ख़ान: अर्रे अजीब पागल आदमी है यार ये (नाज़ी की तरफ देखते हुए) अब आप ही समझाइये इसको मैं बाहर वेट कर रहा हूँ 10 मिनिट मे तैयार होके बाहर आ जाओ...
नाज़ी: हाँ नीर ये ठीक कह रहे हैं ज़रा ये भी तो सोचो तुम ठीक हो जाओगे इलाज करवाने से फिर तुमको जो घबराहट से चक्कर आते हैं वो भी आना बंद हो जाएँगे...
मैं: लेकिन नाज़ी अब भी तो मैं ठीक ही हूँ ना
नाज़ी: बहस ना करो जैसा कहती हूँ चुप-चाप करो ऑर फिर तुम डर क्यो रहे हो मैं भी तो चल रही हूँ तुम्हारे साथ...
ख़ान: हाँ ये ठीक रहेगा आप भी साथ ही चलो...
नाज़ी: (खुश होते हुए) मैं अभी तैयार होके आती हूँ चलो नीर तुम भी जाओ ऑर जाके तैयार हो जाओ...
इतने मे बाबा आ गये सैर करके जिनको ख़ान ने अदब से सलाम किया ऑर फिर बाबा को मेरे शहर ना जाने के बारे मे बताया तो बाबा के इसरार पर मैं शहर जाने के लिए राज़ी हो गया ऑर फिर मैं ऑर नाज़ी, इनस्पेक्टर ख़ान के साथ उसकी जीप मे बैठकर शहर के लिए रवाना हो गया...
फ़िज़ा दरवाज़े पर खड़ी मुझे देखती रही हो ऑर मुस्कुराकर हाथ हिलाकर अलविदा कहती रही... जीप मे बैठ ते ही ख़ान के सवाल-जवाब शुरू हो गये...
ख़ान: यार शेरा कल तुम्हारे पास इतना अच्छा मोका था तुम भागे क्यो नही...
नाज़ी: (बीच मे बोलते हुए) इनका नाम नीर है शेरा नही बेहतर होगा आप भी इनको नीर कहकर ही बुलाए...
ख़ान: जी माफ़ कीजिए... हाँ तो नीर साहब रात को आप भागे क्यो नही...
मैं: साहब मैं मेरे परिवार को छोड़कर कैसे जा सकता था...
ख़ान: परिवार... हाहहहाहा अच्छा है... वैसे तुम मेरे पहले इम्तिहान मे पास हो गये हो अब मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूँ...
मैं: जी कौनसा इम्तेहान
ख़ान: कल मेरे आदमियो ने पूरे गाव को घेर रखा था अगर तुम भागने की कोशिश भी करते तो वो लोग तुमको वही भुन देते लेकिन तुम नही भागे मुझे अच्छा लगा...
मैं: जब बाबा ने कहा था कि मैं नही जाउन्गा तो कैसे जाता...
ख़ान: हमम्म अब तो बस तुम एक बार ठीक हो जाओ तो मैं तुम पर अपना दाँव खेल सकता हूँ...
मैं: कौनसा दाँव
ख़ान: यार तुम जल्दी मे बहुत रहते हो सबर करो धीरे-धीरे सब पता चल जाएगा...
मैं: अब हम कहाँ जा रहे हैं?
ख़ान: पहले तुम्हारा लाइ डिटेक्टोर टेस्ट होगा उसके बाद तुम्हारे चेक-अप के लिए जाएँगे...
मैं: ठीक है...
उसके बाद कोई खास बात नही हुई पिछे मैं ऑर नाज़ी एक दूसरे के साथ बैठे थे नाज़ी पूरे रास्ते मेरे कंधे पर अपना सिर रखकर बैठी रही ऑर मेरा हाथ पकड़कर रखा... फिर हम को ख़ान एक अजीब सी जगह ले आया जो बाहर से तो किसी दफ़्तर की तरह लग रहा था जहाँ बहुत से मुलाज़िम काम कर रहे थे... फिर हम चलते हुए एक दरवाज़े के पास पहुँच गये जिसके सामने कुछ नंबर लिखे थे ख़ान ने कुछ नंबर दबाए ऑर गेट खुद ही खुल गया... अंदर अजीब सा महॉल था वहाँ बहुत से लोग बंदूक ताने खड़े थे मैं ऑर नाज़ी सारी जगह को देखते हुए ख़ान के पिछे-पिछे जा रहे थे...
मैं: अर्रे आज इतनी जल्दी नाश्ता कैसे बना लिया...
फ़िज़ा: अर्रे भूल गये तुमने आज शहर जाना है ना इसलिए तुम्हारे लिए बनाया है जाओ तुम जल्दी से नहा कर तेयार हो जाओ फिर मैं नाश्ता लगा देती हूँ...
मैं: लेकिन शहर जाना क्यों है मैं नही जाउन्गा शहर मुझे खेत मे काम है...
फ़िज़ा: खेत की तुम फिकर ना करो एक दिन नही जाओगे तो आसमान नही टूट जाएगा पहले तुम शहर जाओ ऑर ख़ान के साथ जाके अपना इलाज कर्वाओ उनका सुबह आदमी आया था वो कह रहा था कि ख़ान साहब 8 बजे तुमको लेने आएँगे...
मैं: मुझे उससे कोई वास्ता नही रखना मैं नही जाउन्गा
फ़िज़ा: बच्चों जैसे ज़िद्द ना करो नीर मैं भी तो हूँ तुम्हारे साथ...
मैं: तुम भी... क्या मतलब
फ़िज़ा: अर्रे मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूंगी वापसी मे हम दोनो साथ ही आएँगे
नाज़ी: (बीच मे बोलते हुए) देखो ना नीर मैं मना कर रही हूँ भाभी को लेकिन ये सुन ही नही रही इस हालत मे इनका शहर जाना ठीक है क्या मैने तो कहा है तुम्हारे साथ मैं अकेली ही चली जाउन्गी लेकिन नही मेरी बात ही नही सुन रही...
मैं: तुम दोनो ही खामोश हो जाओ ऑर अपना काम करो कोई शहर नही जाएगा ना तुम ना मैं समझी...
अपडेट-27
अभी हम बात ही कर रहे थे कि एक जीप हमारे दरवाज़े के सामने आके रुक गई... जिसमे से ख़ान बाहर निकला ऑर बाहर खड़ा होके दरवाज़ा खट-खटाने लगा...
मैं: कौन है (दरवाज़े की तरफ देखते हुए)
ख़ान: जल्दी चलो लेट हो रहा है...
मैं: (रसोई से बाहर निकलते हुए) जी साहब आप
ख़ान: अर्रे तुम अभी तक तैयार नही हुए
मैं: मुझे कही नही जाना मैं यही रहूँगा
ख़ान: अर्रे तुमको अरेस्ट नही कर रहा हूँ यार तुमको बस डॉक्टर को दिखाना है ऑर शाम तक वापिस घर छोड़ जाउन्गा तुम्हारे ऑर कुछ नही... डरो मत कुछ करना होता तो कल ही तुम्हारा नंबर लग जाना था...
मैं: लेकिन ख़ान साहब मैं एक दम ठीक हूँ फिर आप मुझे शहर क्यो ले जा रहे हैं ऑर वैसे भी बिना याददाश्त के मैं आपके किस काम का हूँ बताओ...
ख़ान: अर्रे अजीब पागल आदमी है यार ये (नाज़ी की तरफ देखते हुए) अब आप ही समझाइये इसको मैं बाहर वेट कर रहा हूँ 10 मिनिट मे तैयार होके बाहर आ जाओ...
नाज़ी: हाँ नीर ये ठीक कह रहे हैं ज़रा ये भी तो सोचो तुम ठीक हो जाओगे इलाज करवाने से फिर तुमको जो घबराहट से चक्कर आते हैं वो भी आना बंद हो जाएँगे...
मैं: लेकिन नाज़ी अब भी तो मैं ठीक ही हूँ ना
नाज़ी: बहस ना करो जैसा कहती हूँ चुप-चाप करो ऑर फिर तुम डर क्यो रहे हो मैं भी तो चल रही हूँ तुम्हारे साथ...
ख़ान: हाँ ये ठीक रहेगा आप भी साथ ही चलो...
नाज़ी: (खुश होते हुए) मैं अभी तैयार होके आती हूँ चलो नीर तुम भी जाओ ऑर जाके तैयार हो जाओ...
इतने मे बाबा आ गये सैर करके जिनको ख़ान ने अदब से सलाम किया ऑर फिर बाबा को मेरे शहर ना जाने के बारे मे बताया तो बाबा के इसरार पर मैं शहर जाने के लिए राज़ी हो गया ऑर फिर मैं ऑर नाज़ी, इनस्पेक्टर ख़ान के साथ उसकी जीप मे बैठकर शहर के लिए रवाना हो गया...
फ़िज़ा दरवाज़े पर खड़ी मुझे देखती रही हो ऑर मुस्कुराकर हाथ हिलाकर अलविदा कहती रही... जीप मे बैठ ते ही ख़ान के सवाल-जवाब शुरू हो गये...
ख़ान: यार शेरा कल तुम्हारे पास इतना अच्छा मोका था तुम भागे क्यो नही...
नाज़ी: (बीच मे बोलते हुए) इनका नाम नीर है शेरा नही बेहतर होगा आप भी इनको नीर कहकर ही बुलाए...
ख़ान: जी माफ़ कीजिए... हाँ तो नीर साहब रात को आप भागे क्यो नही...
मैं: साहब मैं मेरे परिवार को छोड़कर कैसे जा सकता था...
ख़ान: परिवार... हाहहहाहा अच्छा है... वैसे तुम मेरे पहले इम्तिहान मे पास हो गये हो अब मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूँ...
मैं: जी कौनसा इम्तेहान
ख़ान: कल मेरे आदमियो ने पूरे गाव को घेर रखा था अगर तुम भागने की कोशिश भी करते तो वो लोग तुमको वही भुन देते लेकिन तुम नही भागे मुझे अच्छा लगा...
मैं: जब बाबा ने कहा था कि मैं नही जाउन्गा तो कैसे जाता...
ख़ान: हमम्म अब तो बस तुम एक बार ठीक हो जाओ तो मैं तुम पर अपना दाँव खेल सकता हूँ...
मैं: कौनसा दाँव
ख़ान: यार तुम जल्दी मे बहुत रहते हो सबर करो धीरे-धीरे सब पता चल जाएगा...
मैं: अब हम कहाँ जा रहे हैं?
ख़ान: पहले तुम्हारा लाइ डिटेक्टोर टेस्ट होगा उसके बाद तुम्हारे चेक-अप के लिए जाएँगे...
मैं: ठीक है...
उसके बाद कोई खास बात नही हुई पिछे मैं ऑर नाज़ी एक दूसरे के साथ बैठे थे नाज़ी पूरे रास्ते मेरे कंधे पर अपना सिर रखकर बैठी रही ऑर मेरा हाथ पकड़कर रखा... फिर हम को ख़ान एक अजीब सी जगह ले आया जो बाहर से तो किसी दफ़्तर की तरह लग रहा था जहाँ बहुत से मुलाज़िम काम कर रहे थे... फिर हम चलते हुए एक दरवाज़े के पास पहुँच गये जिसके सामने कुछ नंबर लिखे थे ख़ान ने कुछ नंबर दबाए ऑर गेट खुद ही खुल गया... अंदर अजीब सा महॉल था वहाँ बहुत से लोग बंदूक ताने खड़े थे मैं ऑर नाज़ी सारी जगह को देखते हुए ख़ान के पिछे-पिछे जा रहे थे...