10-11-2021, 01:27 PM
नाज़ी: (हाँ मे सिर हिलाते हुए) अच्छा भाभी...
ये सुनकर मुझे भी झटका लगा कि ये कौन्से बॅग के बारे मे बात कर रही है जिसके बारे मे मैं नही जानता ऑर इन्होने मुझे कभी क्यो नही बताया... फिर फ़िज़ा ने बोलना शुरू किया ऑर ख़ान साब हमे नही पता नीर का असल नाम क्या है ऑर ये कौन है हाँ ये सच है कि हमारा इससे ज़ाति कोई ताल्लुक नही है... हम को जब ये मिला तो ये बुरी तरह खून मे लथ-पथ था ऑर इसे पाँच गोलियाँ लगी हुई थी ऑर अपनी आखरी साँसे गिन रहा था इसको हम इंसानियत के नाते घर ले आई फिर इसकी गोलियाँ निकाली ऑर इसकी मरहम पट्टी करके इसका इलाज किया... 3 महीने तक ये बेहोश था उसके बाद इसको होश आया लेकिन तब तक ये अपनी याददाश्त खो चुका था ऑर इससे अपने बारे मे कुछ भी याद नही था... (तभी नाज़ी एक काला बॅग ले आई)
नाज़ी: ये लो भाभी... (बॅग फ़िज़ा को देते हुए)
फ़िज़ा: (नाज़ी को देखते हुए) टेबल पर रख दो बॅग को... (घूमकर ख़ान से बात करते हुए) ख़ान साहब हमें ये बॅग नीर के कंधे पर लटका मिला था ये बेहोश था इसलिए हमने इसकी अमानत को संभाल कर रख दिया था (बॅग खोलते हुए) जब हमने इसके बारे मे मालूम करने के लिए बॅग खोला तो इसमे ये हथियार ऑर ये ढेर सारे पैसे पड़े मिले ये देखकर हम एक बार तो घबरा गई थी कि जाने ये कौन है ऑर इसके पास ऐसा समान क्या कर रहा है लेकिन फिर भी इंसानियत के नाते हमारा ये फ़र्ज़ था कि हम इसकी जान बचाते इसलिए हमने पोलीस मे खबर ना करके पहले इसको बचाना ज़रूरी समझा... हमने सोचा था क़ि जब ये होश मे आ जाएगा तो इसको हम जाने के लिए कह देंगे...
ख़ान: (बॅग मे देखते हुए) वाआह क्या बात है इतना सारा पैसा, ये ऑटोमॅटिक हथियार... ऑर आप लोग कहते हैं कि ये शेरा नही है...
फ़िज़ा: जनाब मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए वही तो मैं आपको बता रही हूँ... जब ये हमे मिला तो बहुत बुरी तरह ज़ख़्मी था मैं ऑर नाज़ी (उंगली से नाज़ी की तरफ इशारे करते हुए) इसको उठाकर अपने घर ले आई थी ताकि इसकी जान बचाई जा सके 3 महीने तक ये बेहोश पड़ा रहा उसके बाद जब ये होश मे आया तब इसने पहला लफ्ज़ जो बोला वो था "बाबा आपका बेटा आ गया... " जब बाबा इसके पास गये तो इनके परिवार के बारे मे ऑर इनका नाम पूछा लेकिन इसको कुछ भी याद नही था ये सब कुछ भूल चुका था क्योंकि इसके सिर मे काफ़ी गहरी चोट आई थी इसलिए...
मेरे शोहार भी एक शराबी ऑर जुवारि किस्म के इंसान है ऑर वो आज कल जैल मे सज़ा काट रहे हैं... बाबा हमेशा मेरे शोहर से दुखी रहते हैं लेकिन जब इसने मेरे ससुर को (बाबा की तरफ इशारा करते हुए) बाबा कहा तो बाबा का दिल पिघल गया ऑर इन्होने नीर को अपना बेटा बना लिया बाबा ने हम से कहा कि इसको पिच्छला कुछ भी याद नही है ऑर जाने ये कौन है तो क्यो ना इसको हम अपना लें ऑर ये हमारे ही घर मे रहे क्योंकि बाबा को इसमे अपना बेटा नज़र आता है जैसा बेटा वो हमेशा से चाहते थे... तब से लेके आज तक ये इस घर का बेटा बनकर एक बेटे के सारे फ़र्ज़ निभा रहा है हमें नही पता कि इनके अतीत मे ये कौन थे ऑर इन्होने क्या किया है... लेकिन आज की तारीख मे ये एक मेहनती इंसान है जो अपना खून-पसीना एक करके अपने परिवार का पेट भरने के लिए के लिए दिन रात खेत मे मेहनत करता है आज ये एक मासूम इंसान है कोई अपराधी नही... जनाब आपका मकसद तो ज़ुर्म को ख़तम करना है ना तो इनके अंदर का शेरा तो कब का मर चुका है क्या आप एक मासूम इंसान को एक अपराधी की सज़ा देंगे?
ख़ान: आपने जो किया वो इंसानियत की नज़र से क़ाबिल-ए-तारीफ है लेकिन जिसको आप एक भोला-भला मासूम इंसान कह रही हो वो एक पेशावर अपराधी है... आज मैं इसको छोड़ भी दूं तो कल अगर इसकी याददाश्त वापिस आ गई तो इसकी क्या गारंटी है कि ये अपनी दुनिया मे वापिस नही जाएगा ऑर कोई गुनाह नही करेगा आप नही जानती इसने कितने लोगो का क़त्ल किया है ये आदमी बहुत ख़तरनाक है इसको मैं ऐसे खुला नही छोड़ सकता...
बाबा: साहब मैं मानता हूँ कि औलाद के दुख ने मुझे ख़ुदग़र्ज़ बना दिया था लेकिन ये बुरा इंसान नही है... मैं आपसे वादा करता हूँ कि अगर अब ये कोई भी गुनाह करे तो आप मुझे फाँसी पर चढ़ा देना... नीर मेरा बेटा है इसकी पूरी ज़िम्मेदारी मैं लेता हूँ (मेरा हाथ पकड़कर)
ख़ान: (अपने सिर पर हाथ फेरते हुए) पता नही मैं ठीक कर रहा हूँ या ग़लत लेकिन फिर भी मैं इसको एक मोक़ा ज़रूर दूँगा...
बाबा, नाज़ी, फ़िज़ा: (एक आवाज़ मे अपने हाथ जोड़कर) आपका बहुत अहसान होगा साहब...
ख़ान: अहसान वाली कोई बात नही बस इसको कल मेरे साथ एक बार शहर चलना होगा मैं डॉक्टर से इसके दिमाग़ का चेक-अप करवाना चाहता हूँ साथ मे इसका लाइ डिटेक्टोर टेस्ट भी करूँगा... क्योंकि मुझे आप पर तो भरोसा है लेकिन इस पर नही...
फ़िज़ा: किस बात का चेक-अप साहब (हैरानी से) ऑर ये लाई क्या है (फ़िज़ा को लाइ डिटेक्टोर कहना नही आया)
ख़ान: लाइ डिटेक्टोर टेस्ट से हम ये पता कर सकते हैं कि इंसान झूठ बोल रहा है या सच ऑर इसका चेक-अप मैं इसलिए करवाना चाहता हूँ कि मुझे जानना है इसकी याददाश्त कब तक वापिस आएगी उसके बाद इसको मेरी मदद करनी होगी...
मैं: (जो इतनी देर से खामोश सब सुन रहा था) कैसी मदद साहब...
ख़ान: तुमको क़ानून से माफी इतनी आसानी से नही मिलेगी इसके बदले मे तुमको हमारी मदद करनी होगी तुम्हारे बाकी गॅंग वालो को पकड़वाने मे...
मैं: ठीक है साहब अब जो भी है यही मेरे अपने है ऑर इनके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ...
ख़ान: तो ठीक है फिर अभी मैं चलता हूँ सुबह मुलाक़ात होगी तैयार रहना ऑर हाँ अगर भागने की कोशिश की तो याद रखना मुजरिम को पनाह देने वाला भी मुजरिम ही होता है तुम्हारे घरवालो ने तुम्हारी गारंटी ली है अगर तुम भागे तो तुम सोच नही सकते मैं इनका क्या हाल करूँगा...
बाबा: ये कही नही जाएगा साहब आप बे-फिकर होके जाए... मैने कहा ना मैं इसकी ज़िम्मेदारी लेता हूँ...
ख़ान: ठीक है फिर मैं चलता हूँ...
मैं: ख़ान साहब ये बॅग भी ले जाइए ये अब मेरे भी काम का नही है...
ख़ान: (हैरान होते हुए) लगता है शेरा सच मे मर गया...
उसके बाद ख़ान ऑर उसके साथ जो पोलीस वाले आए थे वो सब मेरा बॅग लेकर चले गये ऑर हम सब उनको जाता हुआ देखते रहे... फिर बाबा ने मुझे अपने गले से लगा लिया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी मुझे देखकर मुस्कुरा भी रही थी ऑर साथ मे रो भी रही थी मैं भी उनको देखकर मुस्कुरा रहा था...
बाबा: बेटा हमें माफ़ करना हमने तुमसे तुम्हारी असलियत छुपाइ...
मैं: बाबा कैसी बात कर रहे हैं माफी माँग कर शर्मिंदा ना करे मुझे आपने जो मेरे लिए किया उसका अहसान मैं मरते दम तक नही चुका सकता...
बाबा: (मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे दुआ देते हुए) बेटा तुम हमेशा खुश रहो ऑर आबाद रहो...
फिर बाबा अपने कमरे मे चले गये ऑर मैं फ़िज़ा ऑर नाज़ी के पास ही बैठ गया... वो दोनो मुझे लगातार देख रही थी लेकिन कुछ बोल नही रही थी...
मैं: ऐसे क्या देख रही हो तुम दोनो...
फ़िज़ा: कुछ नही आज एक पल के लिए लगा जैसे हमने तुमको खो दिया (फिर से रोते हुए)
मैं: अर्रे तुम रोने क्यो लगी (फ़िज़ा के दोनो हाथ पकड़ते हुए ऑर नाज़ी की तरफ देखकर) नाज़ी पानी लेके आओ
नाज़ी: अभी लाई...
नाज़ी के जाते ही फ़िज़ा ने मुझे गले से लगा लिया ऑर फिर से रोने लगी
मैं: अर्रे क्या हुआ रोने क्यो लग गई...
फ़िज़ा: जान तुम नही जानते मैं बहुत डर गई थी...
मैं: इसमे डरने की क्या बात है मैं हूँ ना तुम्हारे पास कहीं गया तो नही ऑर फिकर ना करो अब मैं कही जाउन्गा भी नही अब सारी जिंदगी मैं नीर ही रहूँगा...
इतने मे नाज़ी पानी ले आई ऑर हम दोनो जल्दी से अलग होके बैठ गये... उसके बाद कोई खास बात नही हुई रात को हमने खामोशी से खाना खाया ऑर सोने चले गये... नाज़ी की नींद की दवाई की वजह से तबीयत खराब हो गई थी इसलिए फ़िज़ा ने दुबारा उसको वो गोली नही दी और उस रात हम सब सुकून से सो गये... बाबा ने मुझे नाज़ी के कमरे मे नही सोने जाने दिया ऑर अपने पास ही सुलाया...
ये सुनकर मुझे भी झटका लगा कि ये कौन्से बॅग के बारे मे बात कर रही है जिसके बारे मे मैं नही जानता ऑर इन्होने मुझे कभी क्यो नही बताया... फिर फ़िज़ा ने बोलना शुरू किया ऑर ख़ान साब हमे नही पता नीर का असल नाम क्या है ऑर ये कौन है हाँ ये सच है कि हमारा इससे ज़ाति कोई ताल्लुक नही है... हम को जब ये मिला तो ये बुरी तरह खून मे लथ-पथ था ऑर इसे पाँच गोलियाँ लगी हुई थी ऑर अपनी आखरी साँसे गिन रहा था इसको हम इंसानियत के नाते घर ले आई फिर इसकी गोलियाँ निकाली ऑर इसकी मरहम पट्टी करके इसका इलाज किया... 3 महीने तक ये बेहोश था उसके बाद इसको होश आया लेकिन तब तक ये अपनी याददाश्त खो चुका था ऑर इससे अपने बारे मे कुछ भी याद नही था... (तभी नाज़ी एक काला बॅग ले आई)
नाज़ी: ये लो भाभी... (बॅग फ़िज़ा को देते हुए)
फ़िज़ा: (नाज़ी को देखते हुए) टेबल पर रख दो बॅग को... (घूमकर ख़ान से बात करते हुए) ख़ान साहब हमें ये बॅग नीर के कंधे पर लटका मिला था ये बेहोश था इसलिए हमने इसकी अमानत को संभाल कर रख दिया था (बॅग खोलते हुए) जब हमने इसके बारे मे मालूम करने के लिए बॅग खोला तो इसमे ये हथियार ऑर ये ढेर सारे पैसे पड़े मिले ये देखकर हम एक बार तो घबरा गई थी कि जाने ये कौन है ऑर इसके पास ऐसा समान क्या कर रहा है लेकिन फिर भी इंसानियत के नाते हमारा ये फ़र्ज़ था कि हम इसकी जान बचाते इसलिए हमने पोलीस मे खबर ना करके पहले इसको बचाना ज़रूरी समझा... हमने सोचा था क़ि जब ये होश मे आ जाएगा तो इसको हम जाने के लिए कह देंगे...
ख़ान: (बॅग मे देखते हुए) वाआह क्या बात है इतना सारा पैसा, ये ऑटोमॅटिक हथियार... ऑर आप लोग कहते हैं कि ये शेरा नही है...
फ़िज़ा: जनाब मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए वही तो मैं आपको बता रही हूँ... जब ये हमे मिला तो बहुत बुरी तरह ज़ख़्मी था मैं ऑर नाज़ी (उंगली से नाज़ी की तरफ इशारे करते हुए) इसको उठाकर अपने घर ले आई थी ताकि इसकी जान बचाई जा सके 3 महीने तक ये बेहोश पड़ा रहा उसके बाद जब ये होश मे आया तब इसने पहला लफ्ज़ जो बोला वो था "बाबा आपका बेटा आ गया... " जब बाबा इसके पास गये तो इनके परिवार के बारे मे ऑर इनका नाम पूछा लेकिन इसको कुछ भी याद नही था ये सब कुछ भूल चुका था क्योंकि इसके सिर मे काफ़ी गहरी चोट आई थी इसलिए...
मेरे शोहार भी एक शराबी ऑर जुवारि किस्म के इंसान है ऑर वो आज कल जैल मे सज़ा काट रहे हैं... बाबा हमेशा मेरे शोहर से दुखी रहते हैं लेकिन जब इसने मेरे ससुर को (बाबा की तरफ इशारा करते हुए) बाबा कहा तो बाबा का दिल पिघल गया ऑर इन्होने नीर को अपना बेटा बना लिया बाबा ने हम से कहा कि इसको पिच्छला कुछ भी याद नही है ऑर जाने ये कौन है तो क्यो ना इसको हम अपना लें ऑर ये हमारे ही घर मे रहे क्योंकि बाबा को इसमे अपना बेटा नज़र आता है जैसा बेटा वो हमेशा से चाहते थे... तब से लेके आज तक ये इस घर का बेटा बनकर एक बेटे के सारे फ़र्ज़ निभा रहा है हमें नही पता कि इनके अतीत मे ये कौन थे ऑर इन्होने क्या किया है... लेकिन आज की तारीख मे ये एक मेहनती इंसान है जो अपना खून-पसीना एक करके अपने परिवार का पेट भरने के लिए के लिए दिन रात खेत मे मेहनत करता है आज ये एक मासूम इंसान है कोई अपराधी नही... जनाब आपका मकसद तो ज़ुर्म को ख़तम करना है ना तो इनके अंदर का शेरा तो कब का मर चुका है क्या आप एक मासूम इंसान को एक अपराधी की सज़ा देंगे?
ख़ान: आपने जो किया वो इंसानियत की नज़र से क़ाबिल-ए-तारीफ है लेकिन जिसको आप एक भोला-भला मासूम इंसान कह रही हो वो एक पेशावर अपराधी है... आज मैं इसको छोड़ भी दूं तो कल अगर इसकी याददाश्त वापिस आ गई तो इसकी क्या गारंटी है कि ये अपनी दुनिया मे वापिस नही जाएगा ऑर कोई गुनाह नही करेगा आप नही जानती इसने कितने लोगो का क़त्ल किया है ये आदमी बहुत ख़तरनाक है इसको मैं ऐसे खुला नही छोड़ सकता...
बाबा: साहब मैं मानता हूँ कि औलाद के दुख ने मुझे ख़ुदग़र्ज़ बना दिया था लेकिन ये बुरा इंसान नही है... मैं आपसे वादा करता हूँ कि अगर अब ये कोई भी गुनाह करे तो आप मुझे फाँसी पर चढ़ा देना... नीर मेरा बेटा है इसकी पूरी ज़िम्मेदारी मैं लेता हूँ (मेरा हाथ पकड़कर)
ख़ान: (अपने सिर पर हाथ फेरते हुए) पता नही मैं ठीक कर रहा हूँ या ग़लत लेकिन फिर भी मैं इसको एक मोक़ा ज़रूर दूँगा...
बाबा, नाज़ी, फ़िज़ा: (एक आवाज़ मे अपने हाथ जोड़कर) आपका बहुत अहसान होगा साहब...
ख़ान: अहसान वाली कोई बात नही बस इसको कल मेरे साथ एक बार शहर चलना होगा मैं डॉक्टर से इसके दिमाग़ का चेक-अप करवाना चाहता हूँ साथ मे इसका लाइ डिटेक्टोर टेस्ट भी करूँगा... क्योंकि मुझे आप पर तो भरोसा है लेकिन इस पर नही...
फ़िज़ा: किस बात का चेक-अप साहब (हैरानी से) ऑर ये लाई क्या है (फ़िज़ा को लाइ डिटेक्टोर कहना नही आया)
ख़ान: लाइ डिटेक्टोर टेस्ट से हम ये पता कर सकते हैं कि इंसान झूठ बोल रहा है या सच ऑर इसका चेक-अप मैं इसलिए करवाना चाहता हूँ कि मुझे जानना है इसकी याददाश्त कब तक वापिस आएगी उसके बाद इसको मेरी मदद करनी होगी...
मैं: (जो इतनी देर से खामोश सब सुन रहा था) कैसी मदद साहब...
ख़ान: तुमको क़ानून से माफी इतनी आसानी से नही मिलेगी इसके बदले मे तुमको हमारी मदद करनी होगी तुम्हारे बाकी गॅंग वालो को पकड़वाने मे...
मैं: ठीक है साहब अब जो भी है यही मेरे अपने है ऑर इनके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ...
ख़ान: तो ठीक है फिर अभी मैं चलता हूँ सुबह मुलाक़ात होगी तैयार रहना ऑर हाँ अगर भागने की कोशिश की तो याद रखना मुजरिम को पनाह देने वाला भी मुजरिम ही होता है तुम्हारे घरवालो ने तुम्हारी गारंटी ली है अगर तुम भागे तो तुम सोच नही सकते मैं इनका क्या हाल करूँगा...
बाबा: ये कही नही जाएगा साहब आप बे-फिकर होके जाए... मैने कहा ना मैं इसकी ज़िम्मेदारी लेता हूँ...
ख़ान: ठीक है फिर मैं चलता हूँ...
मैं: ख़ान साहब ये बॅग भी ले जाइए ये अब मेरे भी काम का नही है...
ख़ान: (हैरान होते हुए) लगता है शेरा सच मे मर गया...
उसके बाद ख़ान ऑर उसके साथ जो पोलीस वाले आए थे वो सब मेरा बॅग लेकर चले गये ऑर हम सब उनको जाता हुआ देखते रहे... फिर बाबा ने मुझे अपने गले से लगा लिया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी मुझे देखकर मुस्कुरा भी रही थी ऑर साथ मे रो भी रही थी मैं भी उनको देखकर मुस्कुरा रहा था...
बाबा: बेटा हमें माफ़ करना हमने तुमसे तुम्हारी असलियत छुपाइ...
मैं: बाबा कैसी बात कर रहे हैं माफी माँग कर शर्मिंदा ना करे मुझे आपने जो मेरे लिए किया उसका अहसान मैं मरते दम तक नही चुका सकता...
बाबा: (मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे दुआ देते हुए) बेटा तुम हमेशा खुश रहो ऑर आबाद रहो...
फिर बाबा अपने कमरे मे चले गये ऑर मैं फ़िज़ा ऑर नाज़ी के पास ही बैठ गया... वो दोनो मुझे लगातार देख रही थी लेकिन कुछ बोल नही रही थी...
मैं: ऐसे क्या देख रही हो तुम दोनो...
फ़िज़ा: कुछ नही आज एक पल के लिए लगा जैसे हमने तुमको खो दिया (फिर से रोते हुए)
मैं: अर्रे तुम रोने क्यो लगी (फ़िज़ा के दोनो हाथ पकड़ते हुए ऑर नाज़ी की तरफ देखकर) नाज़ी पानी लेके आओ
नाज़ी: अभी लाई...
नाज़ी के जाते ही फ़िज़ा ने मुझे गले से लगा लिया ऑर फिर से रोने लगी
मैं: अर्रे क्या हुआ रोने क्यो लग गई...
फ़िज़ा: जान तुम नही जानते मैं बहुत डर गई थी...
मैं: इसमे डरने की क्या बात है मैं हूँ ना तुम्हारे पास कहीं गया तो नही ऑर फिकर ना करो अब मैं कही जाउन्गा भी नही अब सारी जिंदगी मैं नीर ही रहूँगा...
इतने मे नाज़ी पानी ले आई ऑर हम दोनो जल्दी से अलग होके बैठ गये... उसके बाद कोई खास बात नही हुई रात को हमने खामोशी से खाना खाया ऑर सोने चले गये... नाज़ी की नींद की दवाई की वजह से तबीयत खराब हो गई थी इसलिए फ़िज़ा ने दुबारा उसको वो गोली नही दी और उस रात हम सब सुकून से सो गये... बाबा ने मुझे नाज़ी के कमरे मे नही सोने जाने दिया ऑर अपने पास ही सुलाया...