10-11-2021, 01:21 PM
अपडेट-24
फ़िज़ा: जान तुम्हारे बिना अब एक पल भी चैन नही आता मुझसे नाराज़ ना हुआ करो
मैं: मैं कब नाराज़ हुआ तुमसे?
फ़िज़ा: (मेरे दोनो गाल पकड़कर) अच्छा... सुबह जब मैं कान पकड़ कर माफियाँ माँग रही थी तब मेरी तरफ कौन नही देख रहा था बताओ ज़रा...
मैं: अच्छा... वो मैं तो ऐसे ही तुमको तंग कर रहा था
फ़िज़ा: जान बहुत मुश्किल से तुम मुझे मिले हो तुम नाराज़ होते हो तो दिल करता है सारी दुनिया ने मुझसे मुँह मोड़ लिया है तुम नही जानते मैं तुमको कितना प्यार करती हूँ तुम तो मेरे सब कुछ हो...
मैं: अच्छा... बताओ कितना प्यार करती हो (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: प्यार बताया नही करके दिखाया जाता है (मुस्कुरकर मेरे होंठों को चूमते हुए)
मैं: तो करके ही दिखा दो वैसे भी अब तो तुम्हारा ही हूँ मैं...
फ़िज़ा: जान यहाँ नही उपर कोठरी मे चलते हैं ना
मैं: ठीक है फिर मैं लेके जाउन्गा तुमको... मंज़ूर है
फ़िज़ा: (कुछ ना समझने जैसा चेहरा बनाते हुए) क्या...
मैं: (फ़िज़ा को गोद मे उठाते हुए) ऐसे...
फ़िज़ा: (डर कर चोन्क्ते हुए) जाआंणन्न्...
मैं: क्या है डर क्यो रही हो... गिरोगी नही
फ़िज़ा: (मुस्कुराकर अपनी दोनो बाजू मेरे गले मे डालते हुए) एम्म्म जानती हूँ... तुमने एक दम उठाया तो डर गई थी... जानते हो मुझे आज तक किसी ने भी ऐसे नही उठाया...
मैं: (फ़िज़ा को गोद मे उठाके सीढ़िया चढ़ते हुए) किसी ने भी नही...
फ़िज़ा: (ना मे सिर हिलाते हुए)
मैं: चलो अब से हम जब भी कोठरी मे जाएँगे ऐसे ही जाएँगे...
फ़िज़ा: जो हुकुम मेरी सरकार का... (हँसते हुए)
मैं: (अपना जुमला फ़िज़ा के मुँह से सुनकर हँसते हुए) मेरी बिल्ली मुझे ही मियउूओ...
फ़िज़ा: हमम्म जान भी मेरा... मेरी जान के जुमले भी मेरे (मुस्कुराते हुए)
मैं: जान कोठरी का दरवाज़ा खोलो
फ़िज़ा: पहले मुझे नीचे तो उतारो फिर खोलती हूँ
मैं: उउउहहुउऊ ऐसे ही खोलो
फ़िज़ा: (अजीब सा मुँह बनके कोठारी की कुण्डी खोलते हुए) जान आप भी ना...
हम दोनो अब कोठरी मे आ गये थे ऑर फ़िज़ा अब भी मेरी गोद मे ही थी... मैं चारो तरफ नज़र घुमा रहा था ताकि फ़िज़ा को लिटा सकूँ लेकिन वहाँ लेटने की कोई भी जगह नही थी ऑर ज़मीन भी मिट्टी से गंदी हुई पड़ी थी...
फ़िज़ा: क्या हुआ जान
मैं: जान लेटेंगे कहाँ यहाँ तो बिस्तर भी नही है
फ़िज़ा: जान वो जिस दिन तुम शहर से आए थे, तब नाज़ी उपर आई थी ना तो उसने यहाँ बिस्तर पड़ा देखा था जो उसने रात को उठाके नीचे रख दिया था क्योंकि अब तुम भी नीचे ही सोते हो
मैं: तो मैं अपनी जान को प्यार कहाँ करूँ फिर...
फ़िज़ा: आप मुझे नीचे उतारो मैं नीचे से जाके बिस्तर ले आती हूँ जल्दी से
मैं: म्म्म्ममम (कुछ सोचते हुए) रहने दो ऐसे ही कर लेंगे
फ़िज़ा: जान जिस्म ऑर कपड़े गंदे हो जाएँगे ऐसे तो... देख नही रहे यहाँ कितनी धूल है...
मैं: खड़े होके करेंगे ना... (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: (कुछ ना समझने जैसा मुँह बनाते हुए) खड़े होके कैसे करेंगे...
मैं: तुम बस देखती जाओ...
फ़िज़ा: अच्छा मुझे नीचे तो उतारो... जान ऐसे मज़ा नही आएगा... बस 2 मिंट लगेंगे मैं बिस्तर ले आती हूँ ना...
मैं: अच्छा ठीक है ये लो... (गोदी से फ़िज़ा को उतारकर ज़मीन पर खड़ी करते हुए)
फ़िज़ा तेज़ कदमो के साथ वापिस नीचे चली गई ऑर मैं कोठारी का उपर वाला गेट खोल कर बाहर की ठंडी हवा का मज़ा लेने लगा अभी कुछ ही देर हुई थी कि मुझे किसी की सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ आई मैने एक बार मुड़कर देखा तो ये फ़िज़ा थी जिसके हाथ मे एक गद्दा ऑर एक चद्दर ऑर एक तकिया था... आते ही उसने एक प्यार भरी मुस्कान के साथ मुझे देखा ऑर आँखों के इशारे से मुझे बिस्तर दिखाया...
मैं: लाओ मैं बिछा देता हूँ
फ़िज़ा: जान आप रहने दो मैं कर लूँगी...
मैं: कोई बात नही दोनो करेंगे तो जल्दी हो जाएगा
फिर हम दोनो मिलकर जल्दी से बिस्तर बिच्छाने लगे बिस्तर के होते ही फ़िज़ा जल्दी से खड़ी हो गई ऑर अपना दुपट्टा साइड पर रख दिया जो अब भी उसके गले मे लटक रहा था फिर हम दोनो जल्दी से बिस्तर पर बैठ गये तो उसने मुझे धक्का देकर बिस्तर पर लिटा दिया ऑर खुद मेरे उपर आ गई...
मैं: आज क्या बात है बहुत जल्दी मे हो...
फ़िज़ा: मुझसे ऑर इंतज़ार नही हो रहा (मेरा चेहरा चूमते हुए)
मेरा चेहरा चूमते हुए फ़िज़ा सीधा मेरे होंठों पर आई ऑर उसने जल्दी से अपना मुँह खोल कर मेरे दोनो होंठ अपने मुँह मे क़ैद कर लिए ऑर बुरी तरह चूसने लगी उसकी साँस लगातार तेज़ हो रही थी ऑर उसके चूमने मे शिद्दत सी आती जा रही थी अब वो बहुत प्यार से मेरे होंठों को चूस रही थी साथ ही अपनी ज़ुबान मेरे दोनो होंठ पर फेर रही थी हम दोनो की मज़े से आँखें बंद थी कुछ देर मेरे होंठ चूसने के बाद उसने मेरे मुँह के अंदर अपनी रसीली ज़ुबान दाखिल कर दी जिसे मैने मुँह खोलकर अपने मुँह मे जाने का रास्ता दे दिया ऑर मज़े से उसकी ज़ुबान चूसने लगा बहुत मीठा-मीठा सा ज़ाएका था उसकी ज़ुबान का... ज़ुबान चूस्ते हुए उसने मेरे दोनो हाथ अपने हाथ मे पकड़े ऑर अपनी कमर पर रख दिए... मैं कभी उसकी ज़ुबान चूस रहा था कभी उसके रस से भरे हुए होंठ ऑर साथ ही उसकी कमर पर अपने दोनो हाथ फेर रहा था
फ़िज़ा: जान तुम्हारे बिना अब एक पल भी चैन नही आता मुझसे नाराज़ ना हुआ करो
मैं: मैं कब नाराज़ हुआ तुमसे?
फ़िज़ा: (मेरे दोनो गाल पकड़कर) अच्छा... सुबह जब मैं कान पकड़ कर माफियाँ माँग रही थी तब मेरी तरफ कौन नही देख रहा था बताओ ज़रा...
मैं: अच्छा... वो मैं तो ऐसे ही तुमको तंग कर रहा था
फ़िज़ा: जान बहुत मुश्किल से तुम मुझे मिले हो तुम नाराज़ होते हो तो दिल करता है सारी दुनिया ने मुझसे मुँह मोड़ लिया है तुम नही जानते मैं तुमको कितना प्यार करती हूँ तुम तो मेरे सब कुछ हो...
मैं: अच्छा... बताओ कितना प्यार करती हो (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: प्यार बताया नही करके दिखाया जाता है (मुस्कुरकर मेरे होंठों को चूमते हुए)
मैं: तो करके ही दिखा दो वैसे भी अब तो तुम्हारा ही हूँ मैं...
फ़िज़ा: जान यहाँ नही उपर कोठरी मे चलते हैं ना
मैं: ठीक है फिर मैं लेके जाउन्गा तुमको... मंज़ूर है
फ़िज़ा: (कुछ ना समझने जैसा चेहरा बनाते हुए) क्या...
मैं: (फ़िज़ा को गोद मे उठाते हुए) ऐसे...
फ़िज़ा: (डर कर चोन्क्ते हुए) जाआंणन्न्...
मैं: क्या है डर क्यो रही हो... गिरोगी नही
फ़िज़ा: (मुस्कुराकर अपनी दोनो बाजू मेरे गले मे डालते हुए) एम्म्म जानती हूँ... तुमने एक दम उठाया तो डर गई थी... जानते हो मुझे आज तक किसी ने भी ऐसे नही उठाया...
मैं: (फ़िज़ा को गोद मे उठाके सीढ़िया चढ़ते हुए) किसी ने भी नही...
फ़िज़ा: (ना मे सिर हिलाते हुए)
मैं: चलो अब से हम जब भी कोठरी मे जाएँगे ऐसे ही जाएँगे...
फ़िज़ा: जो हुकुम मेरी सरकार का... (हँसते हुए)
मैं: (अपना जुमला फ़िज़ा के मुँह से सुनकर हँसते हुए) मेरी बिल्ली मुझे ही मियउूओ...
फ़िज़ा: हमम्म जान भी मेरा... मेरी जान के जुमले भी मेरे (मुस्कुराते हुए)
मैं: जान कोठरी का दरवाज़ा खोलो
फ़िज़ा: पहले मुझे नीचे तो उतारो फिर खोलती हूँ
मैं: उउउहहुउऊ ऐसे ही खोलो
फ़िज़ा: (अजीब सा मुँह बनके कोठारी की कुण्डी खोलते हुए) जान आप भी ना...
हम दोनो अब कोठरी मे आ गये थे ऑर फ़िज़ा अब भी मेरी गोद मे ही थी... मैं चारो तरफ नज़र घुमा रहा था ताकि फ़िज़ा को लिटा सकूँ लेकिन वहाँ लेटने की कोई भी जगह नही थी ऑर ज़मीन भी मिट्टी से गंदी हुई पड़ी थी...
फ़िज़ा: क्या हुआ जान
मैं: जान लेटेंगे कहाँ यहाँ तो बिस्तर भी नही है
फ़िज़ा: जान वो जिस दिन तुम शहर से आए थे, तब नाज़ी उपर आई थी ना तो उसने यहाँ बिस्तर पड़ा देखा था जो उसने रात को उठाके नीचे रख दिया था क्योंकि अब तुम भी नीचे ही सोते हो
मैं: तो मैं अपनी जान को प्यार कहाँ करूँ फिर...
फ़िज़ा: आप मुझे नीचे उतारो मैं नीचे से जाके बिस्तर ले आती हूँ जल्दी से
मैं: म्म्म्ममम (कुछ सोचते हुए) रहने दो ऐसे ही कर लेंगे
फ़िज़ा: जान जिस्म ऑर कपड़े गंदे हो जाएँगे ऐसे तो... देख नही रहे यहाँ कितनी धूल है...
मैं: खड़े होके करेंगे ना... (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: (कुछ ना समझने जैसा मुँह बनाते हुए) खड़े होके कैसे करेंगे...
मैं: तुम बस देखती जाओ...
फ़िज़ा: अच्छा मुझे नीचे तो उतारो... जान ऐसे मज़ा नही आएगा... बस 2 मिंट लगेंगे मैं बिस्तर ले आती हूँ ना...
मैं: अच्छा ठीक है ये लो... (गोदी से फ़िज़ा को उतारकर ज़मीन पर खड़ी करते हुए)
फ़िज़ा तेज़ कदमो के साथ वापिस नीचे चली गई ऑर मैं कोठारी का उपर वाला गेट खोल कर बाहर की ठंडी हवा का मज़ा लेने लगा अभी कुछ ही देर हुई थी कि मुझे किसी की सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ आई मैने एक बार मुड़कर देखा तो ये फ़िज़ा थी जिसके हाथ मे एक गद्दा ऑर एक चद्दर ऑर एक तकिया था... आते ही उसने एक प्यार भरी मुस्कान के साथ मुझे देखा ऑर आँखों के इशारे से मुझे बिस्तर दिखाया...
मैं: लाओ मैं बिछा देता हूँ
फ़िज़ा: जान आप रहने दो मैं कर लूँगी...
मैं: कोई बात नही दोनो करेंगे तो जल्दी हो जाएगा
फिर हम दोनो मिलकर जल्दी से बिस्तर बिच्छाने लगे बिस्तर के होते ही फ़िज़ा जल्दी से खड़ी हो गई ऑर अपना दुपट्टा साइड पर रख दिया जो अब भी उसके गले मे लटक रहा था फिर हम दोनो जल्दी से बिस्तर पर बैठ गये तो उसने मुझे धक्का देकर बिस्तर पर लिटा दिया ऑर खुद मेरे उपर आ गई...
मैं: आज क्या बात है बहुत जल्दी मे हो...
फ़िज़ा: मुझसे ऑर इंतज़ार नही हो रहा (मेरा चेहरा चूमते हुए)
मेरा चेहरा चूमते हुए फ़िज़ा सीधा मेरे होंठों पर आई ऑर उसने जल्दी से अपना मुँह खोल कर मेरे दोनो होंठ अपने मुँह मे क़ैद कर लिए ऑर बुरी तरह चूसने लगी उसकी साँस लगातार तेज़ हो रही थी ऑर उसके चूमने मे शिद्दत सी आती जा रही थी अब वो बहुत प्यार से मेरे होंठों को चूस रही थी साथ ही अपनी ज़ुबान मेरे दोनो होंठ पर फेर रही थी हम दोनो की मज़े से आँखें बंद थी कुछ देर मेरे होंठ चूसने के बाद उसने मेरे मुँह के अंदर अपनी रसीली ज़ुबान दाखिल कर दी जिसे मैने मुँह खोलकर अपने मुँह मे जाने का रास्ता दे दिया ऑर मज़े से उसकी ज़ुबान चूसने लगा बहुत मीठा-मीठा सा ज़ाएका था उसकी ज़ुबान का... ज़ुबान चूस्ते हुए उसने मेरे दोनो हाथ अपने हाथ मे पकड़े ऑर अपनी कमर पर रख दिए... मैं कभी उसकी ज़ुबान चूस रहा था कभी उसके रस से भरे हुए होंठ ऑर साथ ही उसकी कमर पर अपने दोनो हाथ फेर रहा था