10-11-2021, 01:20 PM
ऐसे ही हँसता हुआ मैं बाहर आया ऑर सीधा फ़िज़ा के पास चला गया जो बर्तन धो रही थी... मैं चुपके से पिछे से गया ऑर उसको पिछे से पकड़ लिया जिससे वो एक दम डर गई ऑर हाथ मे पकड़ी हुई थाली ज़मीन पर गिरा दी...
तभी नाज़ी की आवाज़ आई...
नाज़ी: (कमरे मे से ही आवाज़ लगाके) क्या हुआ भाभी...
फ़िज़ा: (चिल्लाती हुई) कुछ नही नाज़ी एक मोटा सा चूहा चढ़ गया था मुझपर ( मेरे गाल पकड़ते हुए) मैं डर गई तो थाली गिर गई हाथ से...
नाज़ी: अच्छा...
फ़िज़ा: (धीमी आवाज़ मे) ये कोई तरीका है किसी को प्यार करने का डरा दिया मुझे...
मैं: (हँसते हुए) ठीक है अगली बार आवाज़ लगाता हुआ आउन्गा कि फ़िज़ा मैं आ रहा हूँ...
फ़िज़ा: जी नही ढिंढोरा पीटने को तो नही कहा मैने बस ऐसे अचानक ना पकड़ा करो मैं डर जाती हूँ...
मैने तमाम बात-चीत के दौरान फ़िज़ा को पिछे से पकड़ा हुआ था ऑर वो साथ-साथ बर्तन धो रही थी साथ मे मुझसे बातें भी कर रही थी...
मैं: जान कल आई नही तुम सारी रात मैं तुम्हारा इंतज़ार करता था (रोने जैसी शक़ल बनाके)
फ़िज़ा: हाए... (मेरी गाल को चूमते हुए) मेरी जान मेरा इंतज़ार कर रहे थे... मैने तो सुना था बहुत मज़े से सोए रात को... (हँसते हुए)
मैं: मज़ाक ना करो यार बताओ क्यो नही आई
फ़िज़ा: मैं क्या करती रात को नाज़ी सोने का नाम ही नही ले रही थी कैसे आती... आधी रात को इसको नहाना याद आ गया... जानते हो सारी रात मैं बस इसके सोने का ही इंतज़ार करती रही...
मैं: खैर जाने दो कोई बात नही...
फ़िज़ा: अच्छा सुनो मैने हमारे मिलने के बारे मे कुछ सोचा है...
मैं: क्या सोचा है...
फ़िज़ा: मेरी एक सहेली है फ़ातिमा नाम की उसकी सास ये नींद की दवाई खाती है (मुझे एक दवाई का पत्ता दिखाते हुए)
मैं: तो इस दवाई का हम क्या करेंगे...
फ़िज़ा: रात को मैं एक गोली नाज़ी को दूध मे मिलाके सुला दूँगी फिर वो सुबह से पहले नही उठेगी ऑर हम रात भर मज़े करेंगे (मुस्कुरकर मेरी गाल चूमते हुए)
मैं: कुछ गड़-बॅड तो नही होगी
फ़िज़ा: कुछ नही होगा फिकर मत करो मैने अपनी सहेली से सब पूछ लिया है...
मैं: क्या पूछा अपनी सहेली से ऑर क्या कहा तुम्हारी सहेली ने?
फ़िज़ा: उसकी सास ये दवाई इसलिए खाती है क्योंकि उसको नींद ना आने की बीमारी है ऑर मैने ये बोलकर ये दवाई ली है कि हमारे बाबा को भी नींद बहुत कम आती है तो उसने खुद ही मुझे ये पत्ता दे दिया ऑर कहा कि जब बाबा को नींद ना आए तो उनको 1 गोली दूध के साथ दे देना वो सो जाएँगे आराम से...
मैं: तुम्हारी सहेली को हम पर शक़ तो नही हुआ?
फ़िज़ा: (ना मे सिर हिलाते हुए) तुम अपनी फ़िज़ा को इतनी पागल समझते हो
मैं: अच्छा ठीक है जैसा तुम ठीक समझो (फ़िज़ा का गाल चूमते हुए)
फ़िज़ा: चलो अब तुम बाहर जाओ नाज़ी आने वाली होगी हम रात को मिलेंगे ठीक है
मैं: अच्छा जाता हूँ (जाते हुए फ़िज़ा के दोनो मम्मों को दबाते हुए)
फ़िज़ा: (दर्द से) सस्स्स्सस्स रात को आना फिर बताउन्गी (हँसते हुए)
मैं रसोई से बाहर निकल गया ऑर वापिस अपने कमरे मे आ गया नाज़ी अभी तक मेरे कमरे मे ही थी ऑर अलमारी से मेरे कपड़े निकाल रही थी...
मैं: ये क्या कर रही हो नाज़ी
नाज़ी: कुछ नही... तुमको कल मेरे वाला कमरा देना है तो तुम्हारे कपड़े मेरे कमरे मे रखने जा रही हूँ...
मैं: अच्छा... लेकिन ये काम तो फ़िज़ा भी कर सकती थी...
नाज़ी: हर काम भाभी को बोलते हो अगर कोई काम मैं कर दूँगी तो क्या हो जाएगा...
मैं: तुमसे तो बहस करना ही बेकार है जो दिल मे आए वो करो बस्स्स्स
नाज़ी: हमम्म जब जीत नही सकते तो लड़ते क्यो हो... (मुस्कुराते हुए)
मैं: अच्छा अब जल्दी-जल्दी ये सब ख़तम करो फिर मुझे सोना है बहुत थक गया हूँ इसलिए नींद आ रही है
नाज़ी: अच्छा मैं बस जा रही हूँ तुम सो जाओ आराम से...
थोड़ी देर मे नाज़ी मेरे सारे कपड़े लेके चली गई ऑर मैं बिस्तर पर लेटा फ़िज़ा का इंतज़ार करने लगा साथ ही दिन भर जो कुछ हुआ उसके बारे मे सोचकर मुस्कुरा रहा था... मेरा दिमाग़ कभी नाज़ी के बारे मे सोच रहा था कभी फ़िज़ा के बारे मे तो कभी हीना के बारे मे क्योंकि ये तीनो ही मेरी जिंदगी मे एक अजीब सी खुशी लेके आई थी तीनो ही अपनी-अपनी जगह पर कमाल-धमाल थी खूबसूरती मे कोई किसी से कम नही थी... इन्ही तीनो के बारे मे सोचते हुए जाने कब मैं सच मे सो गया मुझे पता ही नही चला...
तभी नाज़ी की आवाज़ आई...
नाज़ी: (कमरे मे से ही आवाज़ लगाके) क्या हुआ भाभी...
फ़िज़ा: (चिल्लाती हुई) कुछ नही नाज़ी एक मोटा सा चूहा चढ़ गया था मुझपर ( मेरे गाल पकड़ते हुए) मैं डर गई तो थाली गिर गई हाथ से...
नाज़ी: अच्छा...
फ़िज़ा: (धीमी आवाज़ मे) ये कोई तरीका है किसी को प्यार करने का डरा दिया मुझे...
मैं: (हँसते हुए) ठीक है अगली बार आवाज़ लगाता हुआ आउन्गा कि फ़िज़ा मैं आ रहा हूँ...
फ़िज़ा: जी नही ढिंढोरा पीटने को तो नही कहा मैने बस ऐसे अचानक ना पकड़ा करो मैं डर जाती हूँ...
मैने तमाम बात-चीत के दौरान फ़िज़ा को पिछे से पकड़ा हुआ था ऑर वो साथ-साथ बर्तन धो रही थी साथ मे मुझसे बातें भी कर रही थी...
मैं: जान कल आई नही तुम सारी रात मैं तुम्हारा इंतज़ार करता था (रोने जैसी शक़ल बनाके)
फ़िज़ा: हाए... (मेरी गाल को चूमते हुए) मेरी जान मेरा इंतज़ार कर रहे थे... मैने तो सुना था बहुत मज़े से सोए रात को... (हँसते हुए)
मैं: मज़ाक ना करो यार बताओ क्यो नही आई
फ़िज़ा: मैं क्या करती रात को नाज़ी सोने का नाम ही नही ले रही थी कैसे आती... आधी रात को इसको नहाना याद आ गया... जानते हो सारी रात मैं बस इसके सोने का ही इंतज़ार करती रही...
मैं: खैर जाने दो कोई बात नही...
फ़िज़ा: अच्छा सुनो मैने हमारे मिलने के बारे मे कुछ सोचा है...
मैं: क्या सोचा है...
फ़िज़ा: मेरी एक सहेली है फ़ातिमा नाम की उसकी सास ये नींद की दवाई खाती है (मुझे एक दवाई का पत्ता दिखाते हुए)
मैं: तो इस दवाई का हम क्या करेंगे...
फ़िज़ा: रात को मैं एक गोली नाज़ी को दूध मे मिलाके सुला दूँगी फिर वो सुबह से पहले नही उठेगी ऑर हम रात भर मज़े करेंगे (मुस्कुरकर मेरी गाल चूमते हुए)
मैं: कुछ गड़-बॅड तो नही होगी
फ़िज़ा: कुछ नही होगा फिकर मत करो मैने अपनी सहेली से सब पूछ लिया है...
मैं: क्या पूछा अपनी सहेली से ऑर क्या कहा तुम्हारी सहेली ने?
फ़िज़ा: उसकी सास ये दवाई इसलिए खाती है क्योंकि उसको नींद ना आने की बीमारी है ऑर मैने ये बोलकर ये दवाई ली है कि हमारे बाबा को भी नींद बहुत कम आती है तो उसने खुद ही मुझे ये पत्ता दे दिया ऑर कहा कि जब बाबा को नींद ना आए तो उनको 1 गोली दूध के साथ दे देना वो सो जाएँगे आराम से...
मैं: तुम्हारी सहेली को हम पर शक़ तो नही हुआ?
फ़िज़ा: (ना मे सिर हिलाते हुए) तुम अपनी फ़िज़ा को इतनी पागल समझते हो
मैं: अच्छा ठीक है जैसा तुम ठीक समझो (फ़िज़ा का गाल चूमते हुए)
फ़िज़ा: चलो अब तुम बाहर जाओ नाज़ी आने वाली होगी हम रात को मिलेंगे ठीक है
मैं: अच्छा जाता हूँ (जाते हुए फ़िज़ा के दोनो मम्मों को दबाते हुए)
फ़िज़ा: (दर्द से) सस्स्स्सस्स रात को आना फिर बताउन्गी (हँसते हुए)
मैं रसोई से बाहर निकल गया ऑर वापिस अपने कमरे मे आ गया नाज़ी अभी तक मेरे कमरे मे ही थी ऑर अलमारी से मेरे कपड़े निकाल रही थी...
मैं: ये क्या कर रही हो नाज़ी
नाज़ी: कुछ नही... तुमको कल मेरे वाला कमरा देना है तो तुम्हारे कपड़े मेरे कमरे मे रखने जा रही हूँ...
मैं: अच्छा... लेकिन ये काम तो फ़िज़ा भी कर सकती थी...
नाज़ी: हर काम भाभी को बोलते हो अगर कोई काम मैं कर दूँगी तो क्या हो जाएगा...
मैं: तुमसे तो बहस करना ही बेकार है जो दिल मे आए वो करो बस्स्स्स
नाज़ी: हमम्म जब जीत नही सकते तो लड़ते क्यो हो... (मुस्कुराते हुए)
मैं: अच्छा अब जल्दी-जल्दी ये सब ख़तम करो फिर मुझे सोना है बहुत थक गया हूँ इसलिए नींद आ रही है
नाज़ी: अच्छा मैं बस जा रही हूँ तुम सो जाओ आराम से...
थोड़ी देर मे नाज़ी मेरे सारे कपड़े लेके चली गई ऑर मैं बिस्तर पर लेटा फ़िज़ा का इंतज़ार करने लगा साथ ही दिन भर जो कुछ हुआ उसके बारे मे सोचकर मुस्कुरा रहा था... मेरा दिमाग़ कभी नाज़ी के बारे मे सोच रहा था कभी फ़िज़ा के बारे मे तो कभी हीना के बारे मे क्योंकि ये तीनो ही मेरी जिंदगी मे एक अजीब सी खुशी लेके आई थी तीनो ही अपनी-अपनी जगह पर कमाल-धमाल थी खूबसूरती मे कोई किसी से कम नही थी... इन्ही तीनो के बारे मे सोचते हुए जाने कब मैं सच मे सो गया मुझे पता ही नही चला...