10-11-2021, 01:18 PM
अपनी ही सोचो मे गुम कब मैं घर पहुंच गया मुझे पता ही नही चला... जब घर आया तो नाज़ी ऑर फ़िज़ा घर के बाहर ही खड़ी थी शायद वो मेरा ही इंतज़ार कर रही थी... उनको मैने एक नज़र देखा तो दोनो ने ही अपनी सदाबहार मुस्कान के साथ मेरा स्वागत किया...
नाज़ी: ये क्या तुम पैदल आए हो तुम तो कार पर गये थे ना...
मैं: अर्रे हीना जी को छोड़कर भी तो आना था इसलिए कार भी वापिस वही दे आया
फ़िज़ा: ये सरपंच ने तुमको पैदल ही भेज दिया उससे इतना भी नही हुआ कि किसी मुलाज़िम को कहकर तुमको घर तक कार पर छोड़ जाए उसकी साहबज़ादी को मुफ़्त मे कार चलानी सीखा रहे हो...
मैं: अर्रे कोई बात नही पैदल आ गया तो क्या हो गया...
नाज़ी: बाप-बेटी दोनो एक जैसे हैं अहसान-फारमोश कही के...
मैं: अर्रे तुम दोनो के सवाल-जवाब ख़तम हो गये हो तो मुझे अंदर जाने दो यार भूख लगी है...
नाज़ी: हमम्म चलो हमने भी तुम्हारी वजह से खाना नही खाया... (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: चलो पहले तुम नहा लो फिर हम खाना खा लेंगे तब तक मैं खाना गरम करती हूँ
कुछ देर बाद मे मैं नहा लिया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने मिलकर खाना भी गरम कर दिया ऑर सब खाना टेबल पर लगा दिया था... हम तीनो खाना खाने बैठ गये...
नाज़ी: तो क्या सिखाया उस हेरोयिन को मास्टर जी ने (मुस्कुराते हुए)
मैं: कार ही सिखानी थी वही सिखाई ऑर क्या
फ़िज़ा: फिर सीख गई ना वो कार चलानी
मैं: अभी इतनी जल्दी कहा अभी तो कुछ दिन लगेंगे
नाज़ी: हाए तो क्या रोज़ा जाओगे उस भूंतनी को सिखाने के लिए?
मैं: हमम्म अब तो रोज़ इसी वक़्त ही घर आउन्गा कुछ दिन...
फ़िज़ा: ये बाबा भी ना इतना नही देखते कि एक अकेला इंसान सारा दिन खेत मे काम करके आया है अब उसको एक नये कम पर और लगा दिया है...
मैं: अर्रे तो क्या हो गया मैने कभी तुमको शिकायत तो नही की ना...
फ़िज़ा: यही तो रोना है तुम कभी शिकायत नही करते... लेकिन हमें तो दिखता है ना तुम हमारे लिए कितनी मेहनत करते हो जो काम किसी ओर इंसान के थे वो काम तुमको करने पड़ रहे हैं...
मैं: (मुस्कुराते हुए) कोई बात नही... मैं बहुत खुश-नसीब समझता हूँ खुद को जो मुझे इतने अच्छे घरवाले मिले तुम लोगो के लिए तो कुछ भी कर सकता हूँ...
नाज़ी: किस्मत तो हमारी अच्छी है जो हम को तुम मिल गये
मैं: अच्छा-अच्छा अब ज़्यादा बाते ना बनाओ ऑर चुप करके खाना खाओ...
नाज़ी: ये क्या तुम पैदल आए हो तुम तो कार पर गये थे ना...
मैं: अर्रे हीना जी को छोड़कर भी तो आना था इसलिए कार भी वापिस वही दे आया
फ़िज़ा: ये सरपंच ने तुमको पैदल ही भेज दिया उससे इतना भी नही हुआ कि किसी मुलाज़िम को कहकर तुमको घर तक कार पर छोड़ जाए उसकी साहबज़ादी को मुफ़्त मे कार चलानी सीखा रहे हो...
मैं: अर्रे कोई बात नही पैदल आ गया तो क्या हो गया...
नाज़ी: बाप-बेटी दोनो एक जैसे हैं अहसान-फारमोश कही के...
मैं: अर्रे तुम दोनो के सवाल-जवाब ख़तम हो गये हो तो मुझे अंदर जाने दो यार भूख लगी है...
नाज़ी: हमम्म चलो हमने भी तुम्हारी वजह से खाना नही खाया... (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: चलो पहले तुम नहा लो फिर हम खाना खा लेंगे तब तक मैं खाना गरम करती हूँ
कुछ देर बाद मे मैं नहा लिया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने मिलकर खाना भी गरम कर दिया ऑर सब खाना टेबल पर लगा दिया था... हम तीनो खाना खाने बैठ गये...
नाज़ी: तो क्या सिखाया उस हेरोयिन को मास्टर जी ने (मुस्कुराते हुए)
मैं: कार ही सिखानी थी वही सिखाई ऑर क्या
फ़िज़ा: फिर सीख गई ना वो कार चलानी
मैं: अभी इतनी जल्दी कहा अभी तो कुछ दिन लगेंगे
नाज़ी: हाए तो क्या रोज़ा जाओगे उस भूंतनी को सिखाने के लिए?
मैं: हमम्म अब तो रोज़ इसी वक़्त ही घर आउन्गा कुछ दिन...
फ़िज़ा: ये बाबा भी ना इतना नही देखते कि एक अकेला इंसान सारा दिन खेत मे काम करके आया है अब उसको एक नये कम पर और लगा दिया है...
मैं: अर्रे तो क्या हो गया मैने कभी तुमको शिकायत तो नही की ना...
फ़िज़ा: यही तो रोना है तुम कभी शिकायत नही करते... लेकिन हमें तो दिखता है ना तुम हमारे लिए कितनी मेहनत करते हो जो काम किसी ओर इंसान के थे वो काम तुमको करने पड़ रहे हैं...
मैं: (मुस्कुराते हुए) कोई बात नही... मैं बहुत खुश-नसीब समझता हूँ खुद को जो मुझे इतने अच्छे घरवाले मिले तुम लोगो के लिए तो कुछ भी कर सकता हूँ...
नाज़ी: किस्मत तो हमारी अच्छी है जो हम को तुम मिल गये
मैं: अच्छा-अच्छा अब ज़्यादा बाते ना बनाओ ऑर चुप करके खाना खाओ...