10-11-2021, 01:18 PM
अभी मैं अपने ख्यालो मे ही था कि मुझे हीना की आवाज़ आई
हीना: रोको... रोको... कार रोको... ससस्स आई... मेरे सिर मे लगी बहुत दर्द हो रहा है (मैं जानता था वो झूठ बोल रही है क्योंकि छत तक उसके सिर को मैने पहुँचने ही नही दिया था तो लगती कैसे)
मैं: क्या हुआ ठीक तो हो...
हीना: कुछ नही मुझे उधर बैठने दो नही तो फिर से च्चत सिर मे लग जाएगी रास्ता खराब है इसलिए अब आप ही चलाओ बाकी मैं कल सीख लूँगी
मैं: ठीक है
मैने कार रोकी ऑर वो बाहर निकलकर साथ वाली सीट पर आके बैठ गई मैं लगातार उसके चेहरे को ही देख रहा था लेकिन उसकी नज़र एक दम सामने थी उसके चेहरे पर अब भी दर्द महसूस हो रहा था हालाकी वो अपने दर्द ज़ाहिर नही कर रही थी फिर भी उसके चेहरे से सॉफ पता चल रहा था कि उसको अब भी तक़लीफ़ हो रही है... उसकी तक़लीफ़ मेरे लंड से भी देखी नही गई ऑर वो भी बैठने लगा मैं मन ही मन अपने लंड को गालियाँ दे रहा था कि साले इतनी ज़ोर से घुसने की क्या ज़रूरत थी हल्के-फुल्के मज़े भी तो ले सकता था... ऐसे ही खुद से बाते करते हुए मैं कार चलाने लगा सारे रास्ते हम खामोश रहे हम दोनो मे उसके बाद कोई बात नही हुई...
थोड़ी देर मे हवेली भी आ गई ऑर कार को देखते ही सरपंच के आदमियो ने बड़ा गेट खोल दिया जिससे कार अंदर आ सके... सामने सरपंच बाग मे टहल रहा था शायद वो हीना का ही इंतज़ार कर रहा था हमें देखकर सरपंच भी तेज़ कदमो के साथ हमारी तरफ आने लगा... मैने कार खड़ी की ऑर चाबी निकालकर सरपंच की तरफ बढ़ने लगा मेरे साथ ही हीना भी सरपंच के पास आ गई...
मैं: ये लीजिए सरपंच जी आपकी अमानत (कार की चाबी सरपंच को देते हुए)
सरपंच: कैसा रहा पहला दिन (मुस्कुराते हुए)
मैं: जी ये तो हीना जी ही बता सकती है
हीना: बहुत अच्छा था अब्बू अब तो मुझे स्टारिंग संभालना भी आ गया है थोड़ा-थोड़ा... (मुस्कुराते हुए)
सरपंच: अर्रे आएगा कैसे नही तुम तो मेरी बहुत होशियार बेटी हो (हीना के सिर पर हाथ रखते हुए)
मैं: अच्छा जी अब इजाज़त दीजिए घर मे सब इंतज़ार कर रहे होंगे
सरपंच: अर्रे ऐसे कैसे नही-नही खाना यही ख़ाके जाना
हीना: हाँ नीर जी खाना यहीं ख़ाके जाना
मैं: जी आज नही फिर कभी आज मैं घर बोलकर आया हूँ इसलिए सब लोग मेरा खाने पर इंतज़ार कर रहे होंगे...
सरपंच: अर्रे बचा-खुचा तो रोज़ खाते हो आज हमारे यहाँ शाही खाना भी खा के देखो तुमने जिंदगी मे कभी नही खाया होगा...
हीना: (बीच मे बोलते हुए) अब्बू आप फिर शुरू हो गये... मैने आपको कुछ समझाया था अगर याद हो तो...
सरपंच: अच्छा ठीक है नही बोलता बस अब तो खुश (इतना कहकर सरपंच अंदर चला गया)
मैं: ठीक है हीना जी कल मुलाक़ात होगी अब इजाज़त दीजिए...
हीना: अब्बू के इस तरह के बर्ताव के लिए माफी चाहती हूँ
मैं: अर्रे कोई बात नही आप माफी मत मांगिए...
हीना: वैसे अगर यहाँ खाना खा जाते तो बेहतर होता (मुस्कुराते हुए)
मैं: आज नही फिर कभी आपकी रोटी उधार रही हम पर (मुस्कुराते हुए) अच्छा अब इजाज़त दीजिए...
हीना: अच्छा जी कल मिलेंगे फिर... (हाथ हिलाते हुए मुस्कुराकर)
इतना कहकर मैं गेट की तरफ बढ़ गया ऑर हीना वही खड़ी मुझे देखती रही... गेट पर खड़े मुलाज़िम ने छोटा दरवाज़ा मेरे जाने के लिए खोल दिया ऑर मैं हवेली से बाहर निकल गया मैं अपनी सोचो मे गुम था ऑर मेरे कदम घर की तरफ बढ़ रहे थे... मेरे दिमाग़ मे इस वक़्त कई सवाल थे जिनके जवाब मुझे जानने थे... कहाँ मैं फ़िज़ा के साथ था ऑर बीच मे ये नाज़ी ऑर हीना कहा से टपक पड़ी ऑर अब ना तो मैं पूरी तरह नाज़ी के साथ था ना ही फ़िज़ा के साथ ऑर ना ही हीना के साथ ये तीनो ही मुझे एक जैसी लगने लगी थी... तीनो मेरे लिए फ़िकरमंद रहती थी ओर मेरा ख्याल रखने की पूरी कोशिश करती थी मुझे समझ नही आ रहा था कि तीनो मे किसको अपना कहूँ ऑर किसको बेगाना समझकर भूल जाउ...
हीना: रोको... रोको... कार रोको... ससस्स आई... मेरे सिर मे लगी बहुत दर्द हो रहा है (मैं जानता था वो झूठ बोल रही है क्योंकि छत तक उसके सिर को मैने पहुँचने ही नही दिया था तो लगती कैसे)
मैं: क्या हुआ ठीक तो हो...
हीना: कुछ नही मुझे उधर बैठने दो नही तो फिर से च्चत सिर मे लग जाएगी रास्ता खराब है इसलिए अब आप ही चलाओ बाकी मैं कल सीख लूँगी
मैं: ठीक है
मैने कार रोकी ऑर वो बाहर निकलकर साथ वाली सीट पर आके बैठ गई मैं लगातार उसके चेहरे को ही देख रहा था लेकिन उसकी नज़र एक दम सामने थी उसके चेहरे पर अब भी दर्द महसूस हो रहा था हालाकी वो अपने दर्द ज़ाहिर नही कर रही थी फिर भी उसके चेहरे से सॉफ पता चल रहा था कि उसको अब भी तक़लीफ़ हो रही है... उसकी तक़लीफ़ मेरे लंड से भी देखी नही गई ऑर वो भी बैठने लगा मैं मन ही मन अपने लंड को गालियाँ दे रहा था कि साले इतनी ज़ोर से घुसने की क्या ज़रूरत थी हल्के-फुल्के मज़े भी तो ले सकता था... ऐसे ही खुद से बाते करते हुए मैं कार चलाने लगा सारे रास्ते हम खामोश रहे हम दोनो मे उसके बाद कोई बात नही हुई...
थोड़ी देर मे हवेली भी आ गई ऑर कार को देखते ही सरपंच के आदमियो ने बड़ा गेट खोल दिया जिससे कार अंदर आ सके... सामने सरपंच बाग मे टहल रहा था शायद वो हीना का ही इंतज़ार कर रहा था हमें देखकर सरपंच भी तेज़ कदमो के साथ हमारी तरफ आने लगा... मैने कार खड़ी की ऑर चाबी निकालकर सरपंच की तरफ बढ़ने लगा मेरे साथ ही हीना भी सरपंच के पास आ गई...
मैं: ये लीजिए सरपंच जी आपकी अमानत (कार की चाबी सरपंच को देते हुए)
सरपंच: कैसा रहा पहला दिन (मुस्कुराते हुए)
मैं: जी ये तो हीना जी ही बता सकती है
हीना: बहुत अच्छा था अब्बू अब तो मुझे स्टारिंग संभालना भी आ गया है थोड़ा-थोड़ा... (मुस्कुराते हुए)
सरपंच: अर्रे आएगा कैसे नही तुम तो मेरी बहुत होशियार बेटी हो (हीना के सिर पर हाथ रखते हुए)
मैं: अच्छा जी अब इजाज़त दीजिए घर मे सब इंतज़ार कर रहे होंगे
सरपंच: अर्रे ऐसे कैसे नही-नही खाना यही ख़ाके जाना
हीना: हाँ नीर जी खाना यहीं ख़ाके जाना
मैं: जी आज नही फिर कभी आज मैं घर बोलकर आया हूँ इसलिए सब लोग मेरा खाने पर इंतज़ार कर रहे होंगे...
सरपंच: अर्रे बचा-खुचा तो रोज़ खाते हो आज हमारे यहाँ शाही खाना भी खा के देखो तुमने जिंदगी मे कभी नही खाया होगा...
हीना: (बीच मे बोलते हुए) अब्बू आप फिर शुरू हो गये... मैने आपको कुछ समझाया था अगर याद हो तो...
सरपंच: अच्छा ठीक है नही बोलता बस अब तो खुश (इतना कहकर सरपंच अंदर चला गया)
मैं: ठीक है हीना जी कल मुलाक़ात होगी अब इजाज़त दीजिए...
हीना: अब्बू के इस तरह के बर्ताव के लिए माफी चाहती हूँ
मैं: अर्रे कोई बात नही आप माफी मत मांगिए...
हीना: वैसे अगर यहाँ खाना खा जाते तो बेहतर होता (मुस्कुराते हुए)
मैं: आज नही फिर कभी आपकी रोटी उधार रही हम पर (मुस्कुराते हुए) अच्छा अब इजाज़त दीजिए...
हीना: अच्छा जी कल मिलेंगे फिर... (हाथ हिलाते हुए मुस्कुराकर)
इतना कहकर मैं गेट की तरफ बढ़ गया ऑर हीना वही खड़ी मुझे देखती रही... गेट पर खड़े मुलाज़िम ने छोटा दरवाज़ा मेरे जाने के लिए खोल दिया ऑर मैं हवेली से बाहर निकल गया मैं अपनी सोचो मे गुम था ऑर मेरे कदम घर की तरफ बढ़ रहे थे... मेरे दिमाग़ मे इस वक़्त कई सवाल थे जिनके जवाब मुझे जानने थे... कहाँ मैं फ़िज़ा के साथ था ऑर बीच मे ये नाज़ी ऑर हीना कहा से टपक पड़ी ऑर अब ना तो मैं पूरी तरह नाज़ी के साथ था ना ही फ़िज़ा के साथ ऑर ना ही हीना के साथ ये तीनो ही मुझे एक जैसी लगने लगी थी... तीनो मेरे लिए फ़िकरमंद रहती थी ओर मेरा ख्याल रखने की पूरी कोशिश करती थी मुझे समझ नही आ रहा था कि तीनो मे किसको अपना कहूँ ऑर किसको बेगाना समझकर भूल जाउ...