10-11-2021, 01:14 PM
काफ़ी देर मैं ऐसे ही लेटा रहा लेकिन फ़िज़ा नही आई मैने सोचा चलकर देखता हूँ कि क्या हुआ है आना तो फ़िज़ा को चाहिए था ये नाज़ी कहाँ से आ गई इसलिए मैं बिस्तर से उठा ऑर दबे कदमो के साथ फ़िज़ा के कमरे की तरफ बढ़ने लगा वहाँ जाके देखा तो फ़िज़ा ऑर नाज़ी की आवाज़ आ रही थी...
फ़िज़ा: नाज़ी कब तक बैठी रहोगी आधी रात हो गई है अब तुम भी सो जाओ
नाज़ी: भाभी आप सो जाओ मुझे अभी नींद नही आ रही जब नींद आएगी तो सो जाउन्गी
फ़िज़ा: जैसी तुम्हारी मर्ज़ी मुझे तो बहुत नींद आ रही है मैं सोने जा रही हूँ...
नाज़ी: अच्छा भाभी आप सो जाओ मैं भी थोड़ी देर मे सो जाउन्गी
मैं बाहर खड़ा उन दोनो की बाते सुन रहा था अब मुझे समझ आ गया कि फ़िज़ा क्यो नही आ सकी क्योंकि नाज़ी जाग रही थी... मैं वापिस अपने कमरे मे आके अपने बिस्तर पर लेट गया अब मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि इतना अच्छा मोक़ा था मैं नाज़ी को चोद सकता था लेकिन मैने उसको जाने क्यो दिया अब ना मुझे फ़िज़ा मिली ना ही नाज़ी यही सब बाते मे सोच रहा था
कुछ देर मे मुझे नींद ने अपनी आगोश मे भी ले लिया...
सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैं अपने रोज़ के कामो से फारिग होके तैयार हो गया सुबह नाश्ते पर मैं ओर नाज़ी साथ मे बैठे नाश्ता कर रहे थे ऑर फ़िज़ा अंदर रसोई मे थी... जैसे ही फ़िज़ा मुझे नाश्ता देने आई तो मैने गुस्से से उसकी तरफ देखा जिस पर उसने गंदा सा मुँह बना लिया ऑर नाज़ी की तरफ इशारा किया फिर मेरा ऑर नाज़ी का नाश्ता रखकर वापिस रसोई मे चली गई... नाज़ी मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी ऑर नाश्ता कर रही थी...
मैं: क्या बात है आज बड़े दाँत निकल रहे हैं तुम्हारे...
नाज़ी: लो जी अब मैं हँस भी नही सकती
मैं: तुम्हारे दाँत है जीतने चाहे दिखाओ
नाज़ी: हमम्म... आज तुम बड़ी देर तक सोते रहे
मैं: पता नही रात को नींद बहुत अच्छी आई...
ये सुनकर नाज़ी शर्मा सी गई ऑर मुँह नीचे कर लिया ऑर मुझसे पूछा...
नाज़ी: क्यो रात को क्या खास था
मैं: पता नही लेकिन बहुत अच्छी नींद आई (ज़ोर से बोलते हुए... क्योंकि मैं फ़िज़ा को ये सब सुना रहा था)
नाज़ी: ज़ोर से क्यो बोल रहे हो मैं बहरी नही हूँ धीरे भी तो बोल सकते हो ना
मैं: अच्छा... अच्छा बाते ख़तम करो ऑर जल्दी से नाश्ता खाओ फिर खेत भी जाना है...
उसके बाद हम दोनो खामोश होके नाश्ता करते रहे ऑर फ़िज़ा बार-बार रसोई मे से चेहरा निकालकर मुझे देख रही थी ऑर अपने कानो पर हाथ लगा रही थी मैने चेहरा घुमा लिया ऑर अपना नाश्ता ख़तम करने लगा... नाश्ता करके हम उठे तो फ़िज़ा फॉरन मेरे पास आई
फ़िज़ा: कितने बजे तक वापिस आओगे
मैं: जितने बजे रोज़ आता हूँ आज क्यो पूछ रही हो
फ़िज़ा: नही कुछ नही वैसे ही बस
मैं: (नाज़ी की तरफ देखते हुए) चले नाज़ी
नाज़ी: हाँ चलो (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा बार-बार नाज़ी के पीछे खड़ी अपने कानो पर हाथ लगा रही थी ऑर मुझसे रात के लिए माफी माँग रही थी लेकिन मैं उसकी तरफ ध्यान नही दे रहा था... फिर मैं ऑर नाज़ी खेत के लिए निकल गये ऑर दिन भर काम मे लगे रहे...
फ़िज़ा: नाज़ी कब तक बैठी रहोगी आधी रात हो गई है अब तुम भी सो जाओ
नाज़ी: भाभी आप सो जाओ मुझे अभी नींद नही आ रही जब नींद आएगी तो सो जाउन्गी
फ़िज़ा: जैसी तुम्हारी मर्ज़ी मुझे तो बहुत नींद आ रही है मैं सोने जा रही हूँ...
नाज़ी: अच्छा भाभी आप सो जाओ मैं भी थोड़ी देर मे सो जाउन्गी
मैं बाहर खड़ा उन दोनो की बाते सुन रहा था अब मुझे समझ आ गया कि फ़िज़ा क्यो नही आ सकी क्योंकि नाज़ी जाग रही थी... मैं वापिस अपने कमरे मे आके अपने बिस्तर पर लेट गया अब मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि इतना अच्छा मोक़ा था मैं नाज़ी को चोद सकता था लेकिन मैने उसको जाने क्यो दिया अब ना मुझे फ़िज़ा मिली ना ही नाज़ी यही सब बाते मे सोच रहा था
कुछ देर मे मुझे नींद ने अपनी आगोश मे भी ले लिया...
सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैं अपने रोज़ के कामो से फारिग होके तैयार हो गया सुबह नाश्ते पर मैं ओर नाज़ी साथ मे बैठे नाश्ता कर रहे थे ऑर फ़िज़ा अंदर रसोई मे थी... जैसे ही फ़िज़ा मुझे नाश्ता देने आई तो मैने गुस्से से उसकी तरफ देखा जिस पर उसने गंदा सा मुँह बना लिया ऑर नाज़ी की तरफ इशारा किया फिर मेरा ऑर नाज़ी का नाश्ता रखकर वापिस रसोई मे चली गई... नाज़ी मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी ऑर नाश्ता कर रही थी...
मैं: क्या बात है आज बड़े दाँत निकल रहे हैं तुम्हारे...
नाज़ी: लो जी अब मैं हँस भी नही सकती
मैं: तुम्हारे दाँत है जीतने चाहे दिखाओ
नाज़ी: हमम्म... आज तुम बड़ी देर तक सोते रहे
मैं: पता नही रात को नींद बहुत अच्छी आई...
ये सुनकर नाज़ी शर्मा सी गई ऑर मुँह नीचे कर लिया ऑर मुझसे पूछा...
नाज़ी: क्यो रात को क्या खास था
मैं: पता नही लेकिन बहुत अच्छी नींद आई (ज़ोर से बोलते हुए... क्योंकि मैं फ़िज़ा को ये सब सुना रहा था)
नाज़ी: ज़ोर से क्यो बोल रहे हो मैं बहरी नही हूँ धीरे भी तो बोल सकते हो ना
मैं: अच्छा... अच्छा बाते ख़तम करो ऑर जल्दी से नाश्ता खाओ फिर खेत भी जाना है...
उसके बाद हम दोनो खामोश होके नाश्ता करते रहे ऑर फ़िज़ा बार-बार रसोई मे से चेहरा निकालकर मुझे देख रही थी ऑर अपने कानो पर हाथ लगा रही थी मैने चेहरा घुमा लिया ऑर अपना नाश्ता ख़तम करने लगा... नाश्ता करके हम उठे तो फ़िज़ा फॉरन मेरे पास आई
फ़िज़ा: कितने बजे तक वापिस आओगे
मैं: जितने बजे रोज़ आता हूँ आज क्यो पूछ रही हो
फ़िज़ा: नही कुछ नही वैसे ही बस
मैं: (नाज़ी की तरफ देखते हुए) चले नाज़ी
नाज़ी: हाँ चलो (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा बार-बार नाज़ी के पीछे खड़ी अपने कानो पर हाथ लगा रही थी ऑर मुझसे रात के लिए माफी माँग रही थी लेकिन मैं उसकी तरफ ध्यान नही दे रहा था... फिर मैं ऑर नाज़ी खेत के लिए निकल गये ऑर दिन भर काम मे लगे रहे...