10-11-2021, 01:10 PM
थोड़ी देर बाद नाज़ी मेरा बिस्तर करने आ गई तो मैने अच्छा मोक़ा देखकर फ़िज़ा के पास जाने का सोचा ऑर मैं तेज़ कदमो के साथ फ़िज़ा के पास चला गया...
मैं: हंजी अब भी नाराज़ हो...
फ़िज़ा: (पलट कर) नीर मैं तुमको बहुत मारूँगी फिर से ऐसा किया तो...
मैं: (हँसते हुए) क्या किया मैने
फ़िज़ा: अच्छा बताऊ क्या किया (मेरे लंड को पकड़ते हुए)
मैं: आहह दर्द हो रहा है छोड़ो ना (हँसते हुए)
फ़िज़ा: (लंड को छोड़कर मेरे गले मे अपनी दोनो बाहे हार की तरह डालकर) नही छोड़ती क्या कर लोगे
मैं: नाज़ी आ जाएगी (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: नही आएगी मैने ही उसको तुम्हारा बिस्तर करने भेजा है...
मैं: अच्छा... फिर एक पप्पी दो ना...
फ़िज़ा: (मुस्कुराते हुए) ना दूं तो...
मैं: (सलवार के उपर से ही उसकी चूत पर हाथ रखते हुए) ले तो मैं ये भी लूँगा ऑर तुम मुझे रोक नही सकती जानती हो ना
फ़िज़ा: सस्सस्स जान ना करो ना हाथ हटाओ पहले वहाँ से फिर जो मर्ज़ी ले लेना
मैं: (हाथ को चूत पर ही रखे हुए) ये भी ले सकता हूँ
फ़िज़ा: क्या बात है आज जनाब की नियत ठीक नही लग रही (मुस्कुराते हुए)
मैं: तुमको देखते ही नियत खराब हो जाती है क्या करू...
फ़िज़ा: एम्म्म ठीक है आज फिर करे?
मैं: लेकिन कैसे नाज़ी साथ होगी ना तुम्हारे
फ़िज़ा: उसकी फिकर तुम ना करो तुम बस रात को कोठरी मे आ जाना ऑर सो मत जाना ठीक है
मैं: ठीक है आ जाउन्गा लेकिन तुम वहाँ आओगी कैसे
फ़िज़ा: उसकी फिकर तुम ना करो मैं आ जाउन्गी उसके सो जाने के बाद वैसे भी वो बहुत गहरी नींद मे सोती है तो सुबह से पहले नही उठेगी
मैं: हमम्म्म चलो ठीक है फिर अब जल्दी से पप्पी दो...
फ़िज़ा: मैं भी तुम्हारी मेरा सब कुछ तुम्हारा जहाँ चाहे वहाँ पप्पी ले लो मैने मना थोड़ी किया है...
मैं: नही आज तुम करो पहले फिर मैं करूँगा
फ़िज़ा: ठीक है थोड़ा नीचे तो झुको
मैं: नही आज एक नये तरीके से करेंगे
फ़िज़ा: कैसे?
मैं: (फ़िज़ा की कमर को दोनो बाजुओ से पकड़कर हवा मे उठाते हुए) ऐसे... अब देखो तुम्हारा चेहरा मेरे चेहरे के बराबर हो गया है
फ़िज़ा: हमम्म (ऑर फिर फ़िज़ा ने खुद ही अपने रसीले होंठ मेरे होंठों पर रख दिए ऑर अपनी आँखें बंद कर ली)
थोड़ी देर मैं ऑर फ़िज़ा एक दूसरे के होंठ चूस्ते रहे फिर मैने फ़िज़ा को नीचे उतरा तो उसकी साँस बहुत तेज़-तेज़ चल रही थी शायद वो गरम हो गई थी फिर उसने मुझे बाहर जाने को कहा ऑर खुद रसोई के बाकी कामो मे लग गई...
मैं बाहर खुली हवा मे बैठा खुले आसमान मे टिम-टिमाते तारो निहारने लगा थोड़ी देर मे नाज़ी भी कमरे से बाहर आ गई ऑर सीधा रसोई मे फ़िज़ा के पास चली गई फिर मैं भी अपने कमरे मे आके बिस्तर पर लेटा सबके सो जाने का इंतज़ार करता रहा कि कब रात हो ऑर कब मैं फ़िज़ा के साथ मज़े की वादियो की सैर करूँ नींद तो मेरी आँखो से क़ोस्सो दूर थी लेकिन फिर भी नाज़ी को दिखाने के लिए मैं बस चुप-चाप आँखें बंद किए हुए अपने बिस्तर पर पड़ा रहा...
कुछ देर बाद फ़िज़ा ऑर नाज़ी भी अपने कमरे मे सोने के लिए चली गई ऑर मैं आधी रात का इंतज़ार करने लगा...
मुझे इंतज़ार करते हुए काफ़ी देर हो गई थी इसलिए मैं बस अपने बिस्तर पर पड़ा फ़िज़ा के आने का इंतज़ार कर रहा था क्योंकि उसकी आदत थी वो हमेशा मुझे खुद बुलाने आती थी... मेरी नज़र दरवाज़े पर टिकी हुई थी लेकिन ज़हन मे बार-बार हीना का ख्याल आ रहा था... मैं अपने आप से ही कई सवाल पूछ रहा था ऑर फिर खुद से ही जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा था... इस वक़्त मुझे फ़िज़ा के बारे मे सोचना चाहिए था लेकिन जाने क्यो मुझे हीना याद आ रही थी... इस वक़्त मैं दो तरफ़ा सोच मे फँसा हुआ था आँखें बाहर दरवाज़े पर फ़िज़ा को तलाश रही थी ऑर ज़हन हीना को...
मैं: हंजी अब भी नाराज़ हो...
फ़िज़ा: (पलट कर) नीर मैं तुमको बहुत मारूँगी फिर से ऐसा किया तो...
मैं: (हँसते हुए) क्या किया मैने
फ़िज़ा: अच्छा बताऊ क्या किया (मेरे लंड को पकड़ते हुए)
मैं: आहह दर्द हो रहा है छोड़ो ना (हँसते हुए)
फ़िज़ा: (लंड को छोड़कर मेरे गले मे अपनी दोनो बाहे हार की तरह डालकर) नही छोड़ती क्या कर लोगे
मैं: नाज़ी आ जाएगी (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा: नही आएगी मैने ही उसको तुम्हारा बिस्तर करने भेजा है...
मैं: अच्छा... फिर एक पप्पी दो ना...
फ़िज़ा: (मुस्कुराते हुए) ना दूं तो...
मैं: (सलवार के उपर से ही उसकी चूत पर हाथ रखते हुए) ले तो मैं ये भी लूँगा ऑर तुम मुझे रोक नही सकती जानती हो ना
फ़िज़ा: सस्सस्स जान ना करो ना हाथ हटाओ पहले वहाँ से फिर जो मर्ज़ी ले लेना
मैं: (हाथ को चूत पर ही रखे हुए) ये भी ले सकता हूँ
फ़िज़ा: क्या बात है आज जनाब की नियत ठीक नही लग रही (मुस्कुराते हुए)
मैं: तुमको देखते ही नियत खराब हो जाती है क्या करू...
फ़िज़ा: एम्म्म ठीक है आज फिर करे?
मैं: लेकिन कैसे नाज़ी साथ होगी ना तुम्हारे
फ़िज़ा: उसकी फिकर तुम ना करो तुम बस रात को कोठरी मे आ जाना ऑर सो मत जाना ठीक है
मैं: ठीक है आ जाउन्गा लेकिन तुम वहाँ आओगी कैसे
फ़िज़ा: उसकी फिकर तुम ना करो मैं आ जाउन्गी उसके सो जाने के बाद वैसे भी वो बहुत गहरी नींद मे सोती है तो सुबह से पहले नही उठेगी
मैं: हमम्म्म चलो ठीक है फिर अब जल्दी से पप्पी दो...
फ़िज़ा: मैं भी तुम्हारी मेरा सब कुछ तुम्हारा जहाँ चाहे वहाँ पप्पी ले लो मैने मना थोड़ी किया है...
मैं: नही आज तुम करो पहले फिर मैं करूँगा
फ़िज़ा: ठीक है थोड़ा नीचे तो झुको
मैं: नही आज एक नये तरीके से करेंगे
फ़िज़ा: कैसे?
मैं: (फ़िज़ा की कमर को दोनो बाजुओ से पकड़कर हवा मे उठाते हुए) ऐसे... अब देखो तुम्हारा चेहरा मेरे चेहरे के बराबर हो गया है
फ़िज़ा: हमम्म (ऑर फिर फ़िज़ा ने खुद ही अपने रसीले होंठ मेरे होंठों पर रख दिए ऑर अपनी आँखें बंद कर ली)
थोड़ी देर मैं ऑर फ़िज़ा एक दूसरे के होंठ चूस्ते रहे फिर मैने फ़िज़ा को नीचे उतरा तो उसकी साँस बहुत तेज़-तेज़ चल रही थी शायद वो गरम हो गई थी फिर उसने मुझे बाहर जाने को कहा ऑर खुद रसोई के बाकी कामो मे लग गई...
मैं बाहर खुली हवा मे बैठा खुले आसमान मे टिम-टिमाते तारो निहारने लगा थोड़ी देर मे नाज़ी भी कमरे से बाहर आ गई ऑर सीधा रसोई मे फ़िज़ा के पास चली गई फिर मैं भी अपने कमरे मे आके बिस्तर पर लेटा सबके सो जाने का इंतज़ार करता रहा कि कब रात हो ऑर कब मैं फ़िज़ा के साथ मज़े की वादियो की सैर करूँ नींद तो मेरी आँखो से क़ोस्सो दूर थी लेकिन फिर भी नाज़ी को दिखाने के लिए मैं बस चुप-चाप आँखें बंद किए हुए अपने बिस्तर पर पड़ा रहा...
कुछ देर बाद फ़िज़ा ऑर नाज़ी भी अपने कमरे मे सोने के लिए चली गई ऑर मैं आधी रात का इंतज़ार करने लगा...
मुझे इंतज़ार करते हुए काफ़ी देर हो गई थी इसलिए मैं बस अपने बिस्तर पर पड़ा फ़िज़ा के आने का इंतज़ार कर रहा था क्योंकि उसकी आदत थी वो हमेशा मुझे खुद बुलाने आती थी... मेरी नज़र दरवाज़े पर टिकी हुई थी लेकिन ज़हन मे बार-बार हीना का ख्याल आ रहा था... मैं अपने आप से ही कई सवाल पूछ रहा था ऑर फिर खुद से ही जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा था... इस वक़्त मुझे फ़िज़ा के बारे मे सोचना चाहिए था लेकिन जाने क्यो मुझे हीना याद आ रही थी... इस वक़्त मैं दो तरफ़ा सोच मे फँसा हुआ था आँखें बाहर दरवाज़े पर फ़िज़ा को तलाश रही थी ऑर ज़हन हीना को...