10-11-2021, 01:08 PM
शाम को जब घर आए तो सरपंच के कुछ लोग घर के बाहर खड़े थे... जिन्हे मैने ऑर नाज़ी दोनो ने दूर से ही देख लिया था
नाज़ी: ये तो सरपंच के लोग है यहाँ क्या कर रहे हैं...
मैं: क्या पता चलो चलकर देखते हैं अब ये यहाँ क्या लेने आया है...
मैं ऑर नाज़ी तेज़ कदमो के साथ घर आ गये अंदर देखा तो बाबा ऑर सरपंच बैठे बाते कर रहे थे... मैने दोनो को जाके सलाम किया जबकि नाज़ी सीधा रसोई मे फ़िज़ा के पास चली गई ऑर मैं भी बाबा के पास ही कुर्सी पर बैठ गया...
बाबा: आ गये बेटा
मैं: जी बाबा
बाबा: बेटा सरपंच साब तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं...
मैं: जी फरमाइए... क्या कर सकता हूँ मैं
सरपंच: बेटा तुमसे एक काम था वो मेरी बेटी चाहती है कि तुम उसको गाड़ी चलाना सिख़ाओ...
मैं: जी... मैं ही क्यो आपके पास तो इतने सारे लोग है किसी को भी बोल दीजिए वैसे भी मेरे पास इतना वक़्त नही है मुझे खेत भी संभालना होता है...
सरपंच: मैने तो बहुत समझाया अपनी बच्ची को लेकिन वो बचपन से थोड़ी ज़िद्दी है एक बार कुछ फरमाइश कर दे फिर सुनती नही है किसी की... मैं तुम्हारा क़र्ज़ माफ़ करने को तेयार हूँ बस तुम उसको कार चलानी सीखा दो
मैं: (बाबा की तरफ सवालिया नज़रों से देखते हुए) जी आप बाबा से पुछिये
बाबा: बेटा मैं क्या कहूँ तुम देख लो अगर तुम्हारे पास फारिग वक़्त होता है तो सिखा देना
सरपंच: ये हुई ना बात बहुत अच्छे तो फिर मैं अगले हफ्ते ही मेरी बेटी को नयी कार खरीद दूँगा तब तक तुम मेरी कार पर ही उसको कार चलानी सिखा देना फिर कल से सिखा दोगे ना...
मैं: दिन-भर तो मैं खेत मे उलझा रहता हूँ शाम को ही वक़्त निकाल पाउन्गा उससे पहले नही
सरपंच: ठीक है मुझे कोई ऐतराज़ नही... ये कुछ पैसे हैं तुम्हारा मेहनताना (1 नोटो का बंडल टेबल पर रखते हुए)
बाबा: सरपंच साब इसकी कोई ज़रूरत नही आपने क़ासिम का क़र्ज़ माफ़ कर दिया यही बहुत है ये पैसे हमें नही चाहिए आप वापिस रख लीजिए...
सरपंच: ठीक है तो फिर मैं चलता हूँ (पैसे जेब मे वापिस डालते हुए) ...
फिर सरपंच वहाँ से चला गया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी दोनो मुझे रसोई से घूर-घूर कर देखे जा रही थी लेकिन बाबा के पास बैठे होने की वजह से दोनो ना तो रसोई से बाहर आई ना ही मुझसे कोई बात की मैं भी चुप-चाप नज़ारे झुकाए बैठा रहा...
अपडेट-19
बाबा: बेटा तुम कार चलानी जानते हो?
मैं: जी बाबा वो जिस दिन मैं शहर गया था तब रास्ते मे सरपंच की बेटी की कार खराब हो गई थी तो मैने उसकी कार ठीक कर दी थी फिर काफ़ी दूर तक चला कर भी दी थी शायद इसलिए वो मुझसे कार सीखना चाहती है (मैं ये सब फ़िज़ा को सुनाने के लिए कह रहा था)
बाबा: ओह्हो मैं क्या पूछ रहा हूँ तुम क्या जवाब दे रहे हो... मैने पूछा तुमको कार चलानी कहाँ से आई?
मैं: पता नही बाबा याद नही
बाबा: अच्छा चलो कोई बात नही... अब तुम आराम करो थके हुए होगे मैं भी ज़रा बाहर सैर कर लूँ... खाना बन जाए तो आवाज़ लगा देना मैं पड़ोस मे हैदर साब के साथ ज़रा सैर कर रहा हूँ यही पास मे...
मैं: अच्छा बाबा...
बाबा के घर से निकलते ही फ़िज़ा ऑर नाज़ी दोनो मेरे पास आके खड़ी हो गई ऑर गुस्से से मुझे घूर्ने लगी...
फ़िज़ा: अच्छा तो इसलिए जल्दी आ गये थे उस दिन शहर से...
मैं: अर्रे क्या हुआ क्यो गुस्सा कर रही हो बेकार मे
फ़िज़ा: मुझे बताया क्यो नही कि हीना के साथ आए थे तुम
मैं: यार मैं आना नही चाहता था लेकिन वो ज़बरदस्ती साथ ले आई (मैने फ़िज़ा को ये नही बताया कि मैं गया भी हीना के साथ ही था)
फ़िज़ा: मैने सोचा नही था कि तुम मुझसे भी झूठ बोल सकते हो
मैं: बेकार मे झगड़ा ना करो छोटी सी बात थी नही बताया तो क्या हुआ यार
नाज़ी: हाँ भाभी आज दिन मे भी वो चुड़ैल मिलने आई थी
मैं: तो मैने तो उसको मना किया ही था ना यार अब मुझे क्या पता था वो अपने बाप को भेज देगी... ठीक है अगर तुमको नही पसंद तो नही सिखाउन्गा उसको कार चलानी... अब तो खुश हो दोनो...
फ़िज़ा: अब बाबा ने हाँ बोल दिया है तो सिखा देना (मुँह दूसरी तरफ करके बोलती हुई)
ऐसे ही हम तीनो काफ़ी देर लड़ाई करते रहे फिर वो दोनो रसोई मे चली गई ऑर मैं कुर्सी पर बैठा दिन भर के बारे मे सोचने लगा जाने क्यो मुझे बार-बार अपने हाथो मे हीना का वही कोमल अहसास बार-बार हो रहा था...
थोड़ी देर बाद फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने खाना बना लिया ऑर बाबा को बुलाने के लिए बाहर आ गई... लेकिन अब वो मेरी तरफ देख भी नही रही थी जबकि मैं उसके पास ही खड़ा था...
मैं: अब तक नाराज़ हो...
फ़िज़ा: मैं कौन होती हूँ नाराज़ होने वाली जो तुम्हारा दिल करे वो करो
मैं: ऐसे क्यो बात कर रही हो यार आगे कोई काम बिना तुमसे पुच्छे कभी किया है जो अब करूँगा... यकीन करो मैं सच मे नही जानता था कि वो सरपंच को घर भेज देगी आज दिन मे भी मैने उसको मना कर दिया था...
फ़िज़ा बिना मेरी बात का जवाब दिए बाबा को 2-3 बार आवाज़ लगाके अंदर चली गई... मुझे उसका इस तरह का बर्ताव मेरे साथ बहुत बुरा लगा... लेकिन मैं चुप रहा पर उसको मनाने के लिए कोई ऑर तरीका सोचने लगा...
नाज़ी: ये तो सरपंच के लोग है यहाँ क्या कर रहे हैं...
मैं: क्या पता चलो चलकर देखते हैं अब ये यहाँ क्या लेने आया है...
मैं ऑर नाज़ी तेज़ कदमो के साथ घर आ गये अंदर देखा तो बाबा ऑर सरपंच बैठे बाते कर रहे थे... मैने दोनो को जाके सलाम किया जबकि नाज़ी सीधा रसोई मे फ़िज़ा के पास चली गई ऑर मैं भी बाबा के पास ही कुर्सी पर बैठ गया...
बाबा: आ गये बेटा
मैं: जी बाबा
बाबा: बेटा सरपंच साब तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं...
मैं: जी फरमाइए... क्या कर सकता हूँ मैं
सरपंच: बेटा तुमसे एक काम था वो मेरी बेटी चाहती है कि तुम उसको गाड़ी चलाना सिख़ाओ...
मैं: जी... मैं ही क्यो आपके पास तो इतने सारे लोग है किसी को भी बोल दीजिए वैसे भी मेरे पास इतना वक़्त नही है मुझे खेत भी संभालना होता है...
सरपंच: मैने तो बहुत समझाया अपनी बच्ची को लेकिन वो बचपन से थोड़ी ज़िद्दी है एक बार कुछ फरमाइश कर दे फिर सुनती नही है किसी की... मैं तुम्हारा क़र्ज़ माफ़ करने को तेयार हूँ बस तुम उसको कार चलानी सीखा दो
मैं: (बाबा की तरफ सवालिया नज़रों से देखते हुए) जी आप बाबा से पुछिये
बाबा: बेटा मैं क्या कहूँ तुम देख लो अगर तुम्हारे पास फारिग वक़्त होता है तो सिखा देना
सरपंच: ये हुई ना बात बहुत अच्छे तो फिर मैं अगले हफ्ते ही मेरी बेटी को नयी कार खरीद दूँगा तब तक तुम मेरी कार पर ही उसको कार चलानी सिखा देना फिर कल से सिखा दोगे ना...
मैं: दिन-भर तो मैं खेत मे उलझा रहता हूँ शाम को ही वक़्त निकाल पाउन्गा उससे पहले नही
सरपंच: ठीक है मुझे कोई ऐतराज़ नही... ये कुछ पैसे हैं तुम्हारा मेहनताना (1 नोटो का बंडल टेबल पर रखते हुए)
बाबा: सरपंच साब इसकी कोई ज़रूरत नही आपने क़ासिम का क़र्ज़ माफ़ कर दिया यही बहुत है ये पैसे हमें नही चाहिए आप वापिस रख लीजिए...
सरपंच: ठीक है तो फिर मैं चलता हूँ (पैसे जेब मे वापिस डालते हुए) ...
फिर सरपंच वहाँ से चला गया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी दोनो मुझे रसोई से घूर-घूर कर देखे जा रही थी लेकिन बाबा के पास बैठे होने की वजह से दोनो ना तो रसोई से बाहर आई ना ही मुझसे कोई बात की मैं भी चुप-चाप नज़ारे झुकाए बैठा रहा...
अपडेट-19
बाबा: बेटा तुम कार चलानी जानते हो?
मैं: जी बाबा वो जिस दिन मैं शहर गया था तब रास्ते मे सरपंच की बेटी की कार खराब हो गई थी तो मैने उसकी कार ठीक कर दी थी फिर काफ़ी दूर तक चला कर भी दी थी शायद इसलिए वो मुझसे कार सीखना चाहती है (मैं ये सब फ़िज़ा को सुनाने के लिए कह रहा था)
बाबा: ओह्हो मैं क्या पूछ रहा हूँ तुम क्या जवाब दे रहे हो... मैने पूछा तुमको कार चलानी कहाँ से आई?
मैं: पता नही बाबा याद नही
बाबा: अच्छा चलो कोई बात नही... अब तुम आराम करो थके हुए होगे मैं भी ज़रा बाहर सैर कर लूँ... खाना बन जाए तो आवाज़ लगा देना मैं पड़ोस मे हैदर साब के साथ ज़रा सैर कर रहा हूँ यही पास मे...
मैं: अच्छा बाबा...
बाबा के घर से निकलते ही फ़िज़ा ऑर नाज़ी दोनो मेरे पास आके खड़ी हो गई ऑर गुस्से से मुझे घूर्ने लगी...
फ़िज़ा: अच्छा तो इसलिए जल्दी आ गये थे उस दिन शहर से...
मैं: अर्रे क्या हुआ क्यो गुस्सा कर रही हो बेकार मे
फ़िज़ा: मुझे बताया क्यो नही कि हीना के साथ आए थे तुम
मैं: यार मैं आना नही चाहता था लेकिन वो ज़बरदस्ती साथ ले आई (मैने फ़िज़ा को ये नही बताया कि मैं गया भी हीना के साथ ही था)
फ़िज़ा: मैने सोचा नही था कि तुम मुझसे भी झूठ बोल सकते हो
मैं: बेकार मे झगड़ा ना करो छोटी सी बात थी नही बताया तो क्या हुआ यार
नाज़ी: हाँ भाभी आज दिन मे भी वो चुड़ैल मिलने आई थी
मैं: तो मैने तो उसको मना किया ही था ना यार अब मुझे क्या पता था वो अपने बाप को भेज देगी... ठीक है अगर तुमको नही पसंद तो नही सिखाउन्गा उसको कार चलानी... अब तो खुश हो दोनो...
फ़िज़ा: अब बाबा ने हाँ बोल दिया है तो सिखा देना (मुँह दूसरी तरफ करके बोलती हुई)
ऐसे ही हम तीनो काफ़ी देर लड़ाई करते रहे फिर वो दोनो रसोई मे चली गई ऑर मैं कुर्सी पर बैठा दिन भर के बारे मे सोचने लगा जाने क्यो मुझे बार-बार अपने हाथो मे हीना का वही कोमल अहसास बार-बार हो रहा था...
थोड़ी देर बाद फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने खाना बना लिया ऑर बाबा को बुलाने के लिए बाहर आ गई... लेकिन अब वो मेरी तरफ देख भी नही रही थी जबकि मैं उसके पास ही खड़ा था...
मैं: अब तक नाराज़ हो...
फ़िज़ा: मैं कौन होती हूँ नाराज़ होने वाली जो तुम्हारा दिल करे वो करो
मैं: ऐसे क्यो बात कर रही हो यार आगे कोई काम बिना तुमसे पुच्छे कभी किया है जो अब करूँगा... यकीन करो मैं सच मे नही जानता था कि वो सरपंच को घर भेज देगी आज दिन मे भी मैने उसको मना कर दिया था...
फ़िज़ा बिना मेरी बात का जवाब दिए बाबा को 2-3 बार आवाज़ लगाके अंदर चली गई... मुझे उसका इस तरह का बर्ताव मेरे साथ बहुत बुरा लगा... लेकिन मैं चुप रहा पर उसको मनाने के लिए कोई ऑर तरीका सोचने लगा...