10-11-2021, 01:08 PM
हीना: (चिड़ते हुए) क्या तुम भी... 20-20 लोगो को एक झटके मे गिरा देते हो 5-5 आदमियो का काम अकेले कर लेते हो लेकिन अभी भी हर काम बाबा से पूछ-पूछ के करते हो तुम अब बड़े हो गये हो बच्चे थोड़ी ना हो...
मैं: वो बात नही है लेकिन मुझे अच्छा लगता है बाबा से ऑर फ़िज़ा जी ऑर नाज़ी से हर काम पूछ कर करना... (मुस्कुराते हुए)
हीना: ठीक है जैसे तुम्हारी मर्ज़ी... अच्छा फिर मैं चलती हूँ
मैं: (मुझे भी समझ नही आ रहा था क्या कहूँ उसको) हमम्म...
हीना: दवाई वक़्त पर लेते रहना ऑर अगले हफ्ते एक बार फिर मेरे साथ तुमको शहर चलना है भूलना मत ठीक है...
मैं: नही हीना जी यहाँ खेतो मे बहुत काम है मैं ऐसे शहर नही जा पाउन्गा मैं तो बस अगर कुछ समान लेना हो या फिर कोई काम हो तभी जाता हूँ
हीना: हाँ तो मैं कौनसा तुमको घुमाने लेके जा रही हूँ तुमको डॉक्टर के पास ही लेके जाना है बस ऑर कुछ नही फिर वापिस आ जाएँगे...
मैं: अच्छा फिर मैं आपको सोच कर बताउन्गा
हीना: ठीक है अच्छा अब काफ़ी वक़्त हो गया मैं चलती हूँ घर मे किसी को बोलकर भी नही आई...
मैं: अकेली आई हो तो मैं घर तक छोड़ आउ... ?
हीना: नही रहने दो आप अपना काम करो मैं चली जाउन्गी... कोई सॉफ कपड़ा मिलेगा पैर पोंच्छने है...
मैं: ये लो (मैने अपने गले का साफ़ा उसको दे दिया)
हीना: अर्रे ये नही कोई ओर कपड़ा दो इस कपड़े से तुम अपना मुँह सॉफ करते हो मैं इससे अपने पैर थोड़ी ना सॉफ करूँगी
मैं: कोई बात नही वैसे भी आपके पैर सॉफ है इससे पोंछ लीजिए ऑर कोई कपड़ा इस वक़्त है नही मेरे पास...
हीना: (मुस्कुरा कर मेरे हाथ से साफ़ा लेते हुए) शुक्रिया...
फिर उसको मैं खेत के फाटक तक छोड़ आया ऑर पिछे नाज़ी खड़ी हम दोनो को घूर-घूर कर देखती रही जब उसको मैं छोड़कर वापिस आया तब भी नाज़ी मुझे घूर-घूर कर देख रही थी लेकिन बोल कुछ नही रही थी अचानक मेरी उस पर नज़र पड़ी...
मैं: क्या हुआ मुझे ऐसे खा जाने वाली नज़रों से क्यो देख रही हो...
नाज़ी: तुम इस सरपंच की लड़की पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान नही हो रहे
मैं: अर्रे क्या हुआ मिलने आई थी तो साथ बैठकर बात करने से कौनसा गुनाह हो गया मुझसे...
नाज़ी: अपना साफा क्यो दिया उसको (गुस्से से मुझे देखते हुए)
मैं: उसके पैर गीले हो गये थे इसलिए पोंच्छने के लिए
नाज़ी: मुझे तो कभी अपना रुमाल भी नही दिया उसके लिए गले का साफा उतारके दे दिया... वैसे पैर गीले क्यो हो गये थे महारानी के?
मैं: वो नाले मे पैर डालकर बैठी थी इसलिए...
नाज़ी: (गुस्से से) पैर नही इसका गला डुबोना चाहिए था पानी मे...
मैं: (हँसते हुए) तुम इससे इतना जलती क्यों हो...
नाज़ी: जले मेरी जुत्ति... मैं क्यो जलने लगी बस मुझे ये ऐसे ही पसंद नही... वैसे ये क्या काम से आई थी यहाँ मैं भी तो सुनू...
मैं: (सोचते हुए) कुछ नही वो बस कह रही थी कि मैं उसको कार चलानी सिखाऊ ऑर कुछ नही...
नाज़ी: तुमने क्या कहा... ऑर तुमने कार चलानी कब सीख ली ऑर जो उसको सीख़ाओगे?
मैं: (परेशान होते हुए) अर्रे उस दिन शहर गया था ना रास्ते मे ये मिली थी इसकी कार खराब हो गई थी तो मैने ठीक करदी थी (मैने नाज़ी को हीना के साथ जाने वाली बात नही बताई) इसलिए वो साथ मे शुक्रिया करने आई थी ऑर बोल रही थी कि मैं उसको भी कार चलानी सिखाऊ लेकिन मैने मना कर दिया...
नाज़ी: अच्छा किया जो मना कर दिया इसका कोई भरोसा नही... (खुश होते हुए)
मैं: अच्छा चलो अब काम कर लेते हैं बाते घर जाके कर लेंगे...
नाज़ी: ठीक है
फिर हम दोनो दिन भर खेतो के काम निबटाने मे लगे रहे