10-11-2021, 01:05 PM
रात को खाने के वक़्त मैं नाज़ी ऑर फ़िज़ा तीनो खाने पर बैठ गये ऑर रोज़ की तरह बाबा आज भी जल्दी सो गये थे... खाने के वक़्त मैने सबको बाबा का फ़ैसला सुना दिया... जिस पर पहले तो फ़िज़ा नही मानी लेकिन मेरे इसरार पर वो मान गई ऑर घर मे रहने का फ़ैसला कर लिया... लेकिन उसने ये शर्त रखी कि मैं अकेले काम नही करूँगा ऑर नाज़ी को भी अपने साथ लेके जाउन्गा ताकि वो मेरी खेत मे मदद कर सके जिस पर नाज़ी खुशी-खुशी मान गई... फिर हम तीनो खाना खाने लग गये...
नाज़ी: अच्छा भाभी बाबा ने मुझे आपके लिए कुछ हिदायतें दी है...
फ़िज़ा: (खाना खाते हुए) क्या कहा बाबा ने
नाज़ी: वो शाम को बाबा ने मुझे कमरे मे बुलाया था तो कह रहे थे कि अब हमारे घर मे कोई बड़ी बुजुर्ग औरत तो है नही जो तुम्हारी भाभी का ख्याल रख सके इसलिए मैं ही अबसे तुम्हारा ख्याल रखूँगी...
फ़िज़ा: (हँसती हुई) अच्छा जी... खुद को संभाल नही सकती मेरा ख्याल रखेगी...
नाज़ी: (चिड़ते हुए) हँसो मत ना भाभी मैं सच कह रही हूँ अब से आप ना तो रसोई मे ज़्यादा काम करेंगी ना ही कोई सॉफ-सफाई करेंगी...
फ़िज़ा: चलो जी... तो खाना कौन बनाएगा घर कौन सॉफ करेगा महारानी जी...
नाज़ी: मैं हूँ ना मैं सब संभाल लूँगी इतना तो आपसे काम सीख ही लिया है
फ़िज़ा: कोई बात नही कल सुबह देख लेंगे तुम कितने पानी मे हो... (हँसते हुए)
नाज़ी: हाँ... हाँ... देख लेना
फ़िज़ा: मज़ाक छोड़ ना नाज़ी मैं कर लूँगी तू रहने दे तुझसे अकेले नही संभाला जाएगा ये सब...
नाज़ी: आप भी तो संभालती हो ना... फिर मैं भी संभाल लूँगी फिकर ना करो...
फ़िज़ा: लेकिन अभी तो मुझे बस दूसरा महीना लगा है तुम सब अभी से मुझे बिस्तर पर डाल रहे हो ये तो ग़लत है अभी तो मैं काम करने लायक हूँ सच मे...
नाज़ी: मैं कुछ नही जानती बाबा का हुकुम है उन्ही को जाके बोलो मुझे ना सूनाओ हाँ...
फ़िज़ा: (मुझे देखते हुए) तुम ही समझाओ ना इसे
मैं: (अभी तक चुप-चाप बस इनकी बाते सुन रहा था) यार मैं क्या समझाऊ बाबा का हुकुम है तो मैं क्या बोल सकता हूँ इसमे...
फ़िज़ा: ठीक है सब मिलकर मुझे मरीज़ बना दो (रोने जैसा मुँह बनाते हुए)
नाज़ी: ये हुई ना बात (फ़िज़ा का गाल चूमते हुए) मेरी प्यारी भाभी...
ऐसे ही हम बाते करते हुए खाना खाते रहे फिर खाने के बाद मैं तबेले मे पशुओ को बाँधने चला गया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी रसोई मे काम निबटाने मे लग गई... मैं मेरे सब काम से फारिग होके जब अंदर आया तब तक नाज़ी ऑर फ़िज़ा भी लगभग अपना सारा काम निबटा चुकी थी... तभी फ़िज़ा ने मुझे इशारे से रसोई मे बुलाया... जब मैं अंदर गया तो नाज़ी वहाँ नही थी ऑर फ़िज़ा मुझे कुछ परेशान सी लग रही थी...
मैं: क्या हुआ परेशान हो?
फ़िज़ा: जान एक ऑर गड़-बॅड हो गई है (मुँह रोने जैसा बनाते हुए)
मैं: क्या हुआ सब ख़ैरियत तो है
फ़िज़ा: आज से नाज़ी भी मेरे साथ मेरे कमरे मे सोया करेगी ताकि रात को अगर मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मेरी मदद कर सके...
मैं: तो इसमे रोने जैसा मुँह बनाने की क्या बात है ये तो अच्छी बात है तुमने तो मुझे भी बेकार मे डरा दिया...
फ़िज़ा: नहियिइ... जान तुम मेरी बात नही समझे...
मैं: अब क्या हुआ है यार बाबा ठीक ही तो कह रहे हैं अब मैं या बाबा तो तुम्हारे साथ सो नही सकते ना इसलिए नाज़ी एक दम सही है...
फ़िज़ा: लेकिन फिर मैं मेरी जान को प्यार कैसे करूँगी (रोने जैसा मुँह बनाते हुए)
मैं: अच्छा तो ऐसा बोलो ना फिर...
फ़िज़ा: ये बाबा ने तो सब गड़बड़ कर दिया अब हम क्या करेंगे... (मेरे कंधे पर सिर रखते हुए)
मैं: मैं सोचता हूँ कुछ आज-आज का दिन कैसे भी गुज़ार लो कल देखेंगे ठीक है
फ़िज़ा: कल रात भी हमने प्यार नही किया एक-दूसरे को ऑर ऐसे ही सो गये थे जान...
मैं: अब कर भी क्या सकते हैं मुझे बस एक दिन दो कुछ सोचता हूँ मैं तुम भी कुछ सोचो...
फ़िज़ा: हमम्म
मैं: ये नाज़ी कहाँ है
फ़िज़ा: तुम्हारा बिस्तर करने गई है (मुस्कुराते हुए)
मैं: तभी तुम इतना चिपक के खड़ी हो...
फ़िज़ा: क्यो अब चिपक भी नही सकती... मेरी जान है (मुझे ज़ोर से गले लगाती हुई)
मैं: अच्छा अब छोड़ो नही तो नाज़ी आ जाएगी तो क्या सोचेगी...
फ़िज़ा: म्म्म्मडमम थोड़ी देर बसस्स... फिर चले जाना वैसे भी रात को सोना ही तो है...
मैं: जैसी तुम्हारी मर्ज़ी... (फ़िज़ा को गले से लगाते हुए)
नाज़ी: अच्छा भाभी बाबा ने मुझे आपके लिए कुछ हिदायतें दी है...
फ़िज़ा: (खाना खाते हुए) क्या कहा बाबा ने
नाज़ी: वो शाम को बाबा ने मुझे कमरे मे बुलाया था तो कह रहे थे कि अब हमारे घर मे कोई बड़ी बुजुर्ग औरत तो है नही जो तुम्हारी भाभी का ख्याल रख सके इसलिए मैं ही अबसे तुम्हारा ख्याल रखूँगी...
फ़िज़ा: (हँसती हुई) अच्छा जी... खुद को संभाल नही सकती मेरा ख्याल रखेगी...
नाज़ी: (चिड़ते हुए) हँसो मत ना भाभी मैं सच कह रही हूँ अब से आप ना तो रसोई मे ज़्यादा काम करेंगी ना ही कोई सॉफ-सफाई करेंगी...
फ़िज़ा: चलो जी... तो खाना कौन बनाएगा घर कौन सॉफ करेगा महारानी जी...
नाज़ी: मैं हूँ ना मैं सब संभाल लूँगी इतना तो आपसे काम सीख ही लिया है
फ़िज़ा: कोई बात नही कल सुबह देख लेंगे तुम कितने पानी मे हो... (हँसते हुए)
नाज़ी: हाँ... हाँ... देख लेना
फ़िज़ा: मज़ाक छोड़ ना नाज़ी मैं कर लूँगी तू रहने दे तुझसे अकेले नही संभाला जाएगा ये सब...
नाज़ी: आप भी तो संभालती हो ना... फिर मैं भी संभाल लूँगी फिकर ना करो...
फ़िज़ा: लेकिन अभी तो मुझे बस दूसरा महीना लगा है तुम सब अभी से मुझे बिस्तर पर डाल रहे हो ये तो ग़लत है अभी तो मैं काम करने लायक हूँ सच मे...
नाज़ी: मैं कुछ नही जानती बाबा का हुकुम है उन्ही को जाके बोलो मुझे ना सूनाओ हाँ...
फ़िज़ा: (मुझे देखते हुए) तुम ही समझाओ ना इसे
मैं: (अभी तक चुप-चाप बस इनकी बाते सुन रहा था) यार मैं क्या समझाऊ बाबा का हुकुम है तो मैं क्या बोल सकता हूँ इसमे...
फ़िज़ा: ठीक है सब मिलकर मुझे मरीज़ बना दो (रोने जैसा मुँह बनाते हुए)
नाज़ी: ये हुई ना बात (फ़िज़ा का गाल चूमते हुए) मेरी प्यारी भाभी...
ऐसे ही हम बाते करते हुए खाना खाते रहे फिर खाने के बाद मैं तबेले मे पशुओ को बाँधने चला गया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी रसोई मे काम निबटाने मे लग गई... मैं मेरे सब काम से फारिग होके जब अंदर आया तब तक नाज़ी ऑर फ़िज़ा भी लगभग अपना सारा काम निबटा चुकी थी... तभी फ़िज़ा ने मुझे इशारे से रसोई मे बुलाया... जब मैं अंदर गया तो नाज़ी वहाँ नही थी ऑर फ़िज़ा मुझे कुछ परेशान सी लग रही थी...
मैं: क्या हुआ परेशान हो?
फ़िज़ा: जान एक ऑर गड़-बॅड हो गई है (मुँह रोने जैसा बनाते हुए)
मैं: क्या हुआ सब ख़ैरियत तो है
फ़िज़ा: आज से नाज़ी भी मेरे साथ मेरे कमरे मे सोया करेगी ताकि रात को अगर मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मेरी मदद कर सके...
मैं: तो इसमे रोने जैसा मुँह बनाने की क्या बात है ये तो अच्छी बात है तुमने तो मुझे भी बेकार मे डरा दिया...
फ़िज़ा: नहियिइ... जान तुम मेरी बात नही समझे...
मैं: अब क्या हुआ है यार बाबा ठीक ही तो कह रहे हैं अब मैं या बाबा तो तुम्हारे साथ सो नही सकते ना इसलिए नाज़ी एक दम सही है...
फ़िज़ा: लेकिन फिर मैं मेरी जान को प्यार कैसे करूँगी (रोने जैसा मुँह बनाते हुए)
मैं: अच्छा तो ऐसा बोलो ना फिर...
फ़िज़ा: ये बाबा ने तो सब गड़बड़ कर दिया अब हम क्या करेंगे... (मेरे कंधे पर सिर रखते हुए)
मैं: मैं सोचता हूँ कुछ आज-आज का दिन कैसे भी गुज़ार लो कल देखेंगे ठीक है
फ़िज़ा: कल रात भी हमने प्यार नही किया एक-दूसरे को ऑर ऐसे ही सो गये थे जान...
मैं: अब कर भी क्या सकते हैं मुझे बस एक दिन दो कुछ सोचता हूँ मैं तुम भी कुछ सोचो...
फ़िज़ा: हमम्म
मैं: ये नाज़ी कहाँ है
फ़िज़ा: तुम्हारा बिस्तर करने गई है (मुस्कुराते हुए)
मैं: तभी तुम इतना चिपक के खड़ी हो...
फ़िज़ा: क्यो अब चिपक भी नही सकती... मेरी जान है (मुझे ज़ोर से गले लगाती हुई)
मैं: अच्छा अब छोड़ो नही तो नाज़ी आ जाएगी तो क्या सोचेगी...
फ़िज़ा: म्म्म्मडमम थोड़ी देर बसस्स... फिर चले जाना वैसे भी रात को सोना ही तो है...
मैं: जैसी तुम्हारी मर्ज़ी... (फ़िज़ा को गले से लगाते हुए)