10-11-2021, 01:04 PM
फ़िज़ा: कोई बात नही... नीर तुम सारे पैसे मुझे क्यो दे रहे हो कुछ अपने पास भी रखा करो तुम्हारी ज़रूरत के लिए
मैं: मेरा खर्चा ही क्या... ख़ाता यहाँ हूँ, रहता यहाँ हूँ ऑर कोई बुरी आदत मुझे है नही सिवाए तुम्हारे तो फिर पैसे किसलिए आप ही रखू...
फ़िज़ा: हमम्म पता है... अब मैं बुरी आदत हो गई हूँ ना... नीर तुम अपने लिए कुछ नही लाए...
मैं: नही वो अपने लिए मुझे कुछ पसंद ही नही आया
फ़िज़ा: अगली बार जब जाओगे तो या तो अपने लिए भी कुछ लेके आना नही तो ये भी वापिस कर आना मुझे नही चाहिए...
मैं: अर्रे ऐसे भी क्या कर रही हो मैं बहुत प्यार से लाया था
फ़िज़ा: जानती हूँ... लेकिन तुम अपने लिए अगर कुछ खरीद लोगे तो क्या हो जाएगा आख़िर मेरा भी मन करता है कि मेरा नीर अच्छे-अच्छे कपड़े पहने ऑर गाव मे सब आदमियो से सुंदर दिखे...
मैं: कुछ नही वो बस ऐसे ही पैसे बहुत लग गये थे इसलिए... अच्छा छोड़ो ये सब बाबा कहाँ है...
फ़िज़ा: वो ज़रा पड़ोस मे हैदर साब के घर गये हैं उनके पोते का पता लेने
मैं: क्यो क्या हुआ
फ़िज़ा: कुछ नही दोपहर को वो छत से गिर गया था उसकी टाँग टूट गई
मैं: ओह्ह्ह अच्छा... तभी मैं सोच रहा था आज ये तितली इतना शोर कैसे मचा रही है
फ़िज़ा: इस तितली को जल्दी इस घर से रवाना करना पड़ेगा (मुस्कुराते हुए)
हम ऐसे ही बाते कर रहे थे कि तभी पिछे से नाज़ी की आवाज़ आई...
नाज़ी:भाभी नीर अगर कमरे मे चले गये तो मैं नीचे आ जाउ
फ़िज़ा: हाँ नीचे आजा वो बुद्धू अपने कमरे मे चला गया (हँसती हुई)
मैं: तुम भी बुधु... ठीक है (नाराज़ होके जाते हुए)
फ़िज़ा: अर्रे जान गुस्सा क्यो होते हो मैं तो मज़ाक कर रही थी अच्छा लो कान पकड़े अब तो माफ़ कर दो अपनी फ़िज़ा को...
मैं: (मुस्कुराते हुए) तुम ऑर नाज़ी दोनो एक जैसी हो एक नंबर की ड्रामेबाज़...
नाज़ी: क्यो जी आप मेरी भाभी से कान क्यो पकड़वा रहे हो (अपने दोनो हाथ कमर पर रखते हुए)
मैं: मैने तो कुछ भी नही कहा जी आपकी प्यारी भाभी को ये खुद ही कान पकड़े खड़ी है...
फ़िज़ा: देखो नाज़ी ये हम सब के लिए नये कपड़े लाए हैं ऑर अपने लिए कुछ नही लाए...
नाज़ी: क्यो जी अपने लिए कुछ क्यो नही लाए
मैं: अर्रे ग़लती हो गई अगली बार जब जाउन्गा तो ले आउन्गा अब तो खुश हो दोनो
फ़िज़ा: ठीक है फिर हम सब एक साथ ही नये कपड़े पहनेगे तब तक नाज़ी मेरे कपड़े भी संभालकर अंदर रख दो
अभी हम तीनो ऐसे ही बात कर रहे थे कि इतने मे बाबा भी आ गये ऑर मुझे घर मे देखकर खुश होते हुए बोले...
बाबा: आ गये बेटा
मैं: जी बाबा आप बीज देख लीजिए ठीक लाया हूँ या नही
बाबा: (बीज हाथ मे लेके देखते हुए) बहुत अच्छे बीज लाए हो बेटा अब तो तुम लगभग सारा काम ही सीख चुके हो...
मैं: जी ये सब तो मुझे फ़िज़ा जी ने सिखाया है
बाबा: हाँ बेटा ये मेरी सबसे लायक बच्ची है
फ़िज़ा: (नज़रे झुका के मुस्कुराते हुए)
नाज़ी: ऑर मैं... बाबा मैं आपकी लायक बच्ची नही हूँ (रोने जैसा मुँह बनाके)
बाबा: ऑह्हूनो तुम्हारे सामने तो बात करना ही बेकार है जाने तुम्हारा बच्पना कब जाएगा
फ़िज़ा: बाबा अब हम को इसके लिए कोई अच्छा सा लड़का देखना शुरू कर देना चाहिए सिर पर ज़िम्मेदारी आएगी तो खुद ही बचपना करना छोड़ देगी...
नाज़ी: क्या भाभी आप भी... (मुस्कुराते हुए ऑर मेरी तरफ देखते हुए)
बाबा: बेटी कोई अच्छा लड़का भी तो मिले तब ही बात चलाए तुम्हारी नज़र मे कोई हो तो बता दो
फ़िज़ा: नही बाबा मैं तो ऐसे ही मज़ाक कर रही थी अभी तो इसके खेलने खाने के दिन है...
बाबा: चलो फिर ये ज़िम्मेदारी भी मैं तुमको ही देता हूँ जब तुमको लगे कि ये शादी के लायक हो गई है तो खुद ही इसके लिए लड़का ढूँढ लेना मुझे तुम्हारी पसंद पर पूरा भरोसा है...
फ़िज़ा: जी बाबा... अच्छा बाबा आप ऑर नीर बाते करो मैं रसोई मे ज़रा खाना बना लूँ
बाबा: हाँ बेटा अच्छा याद करवाया फ़िज़ा ने... मुझे तुमसे एक ज़रूरी बात करनी थी...
मैं: जी बाबा हुकुम कीजिए
बाबा: बेटा अब तो तुम सब काम देखने लग गये हो ऑर तुम तो जानते हो कि अपनी फ़िज़ा बेटी भी अब उम्मीद से है तो इस हालत मे इसका काम करना सही नही है ऑर खेत का मेहनत वाला काम तो बिल्कुल भी नही तो मैं सोच रहा हूँ कि जब तक बच्चा नही हो जाता तुम अकेले ही खेत का सारी देखभाल करो क्योंकि फ़िज़ा के बाद एक तुम ही हो जिस पर मैं भरोसा कर सकता हूँ क़ासिम का तो तुम जानते ही हो वो हुआ ना हुआ एक बराबर है... बाकी नाज़ी को तुम चाहो तो अपनी मदद के लिए साथ लेके जाना चाहो तो ले जाना तुम्हे मेरे फ़ैसले से कोई ऐतराज़ तो नही...
मैं: ऐतराज़ किस बात का बाबा आपका हुकुम सिर आँखो पर
बाबा: खुश रहो बेटा मुझे तुमसे यही उम्मीद थी... अल्लाह सबको ऐसी लायक औलाद दे
(इतना कह कर बाबा नाज़ी को आवाज़ लगते हुए अपने कमरे मे चले गये)
मैं वही पर बैठा बाबा के फ़ैसले के बारे मे सोचने लगा ऑर साथ ही अपने असल नाम के बारे मे सोच रहा था... काफ़ी देर मैं बाहर खड़ा रहा ऑर अपनी पुरानी जिंदगी को याद करने की कोशिश करता रहा लेकिन मुझे कुछ भी पिच्छला याद नही आ रहा था... अब मैं सोच रहा था कि अपने नाम के बारे मे सबको बताऊ या चुप रहूं बरहाल मैने ये फ़ैसला किया कि मैं इस बारे मे किसी को भी कुछ नही बताउन्गा ऑर जब तक मुझे कुछ ऑर बाते अपने बारे मे पता नही चल जाती या फिर याद नही आ जाती अपने बारे मे तब तक चुप रहूँगा...