10-11-2021, 01:00 PM
रात को मैं बाबा के पास बैठा बातें कर रहा था ऑर उनके पैर दबा रहा था ऑर नाज़ी ऑर फ़िज़ा रसोई मे खाने बनाने मे लगी थी कि अचानक बिजली चली गई...
बाबा: ये बिजली वालो को रात मे भी सुकून नही है...
मैं: बाबा रुकिये मैं रोशनी के लिए मोमबत्ती लेके आता हूँ...
मैं मोमबत्ती लेने रसोई मे गया तो मुझे 2 नही बल्कि एक साया नज़र आया जो झुका हुआ था ऑर कोई समान निकाल रहा था डब्बे मे से
मुझे लगा कि फ़िज़ा है इसलिए मुझे शरारत सूझी ऑर मैने पिछे से जाके उसको पकड़ लिया इससे पहले कि वो चोंक कर चीखती मैने उसके मुँह पर हाथ रख दिया...
मैं: चिल्लाना मत मैं हूँ नीर (बहुत धीमी आवाज़ मे)
वो साए वाली लड़की: (वो खामोश होके खड़ी हो गई) हमम्म
मैं: एक पप्पी दो ना (धीमी आवाज़ मे)
वो साए वाली लड़की: (ना मे सिर हिलाते हुए)
तभी लाइट आ गई ऑर मैं हैरान-परेशान वही खड़ा का खड़ा ही रह गया मेरी समझ मे नही आ रहा था कि मुझसे ऐसी ग़लती कैसे हो गई क्योंकि वो लड़की फ़िज़ा नही नाज़ी थी जिसको मैं गले लगाए खड़ा था... लाइट आने के बाद जैसे ही मैने उसको देखा जल्दी से उससे अलग हो गया ऑर रसोई से बाहर निकल गया तेज़ कदमो के साथ...
फ़िज़ा: अर्रे तुम यहाँ क्या कर रहे हो मैं तो तुमको मोमबत्ती देने गई थी...
मैं: कुछ नही वो मैं भी मोमबत्ती लेने आया था
मैं तेज़ कदमो के साथ वापिस कमरे मे आ गया...
रात को खाने पर नाज़ी मुझे अजीब सी नॅज़ारो से देख रही थी लेकिन मुझमे उससे नज़ारे मिलाने की हिम्मत नही थी ना ही ये बात मैं किसी को बता सकता था... मैं बस जल्दी-जल्दी खाना ख़तम करके वहाँ से उठना चाहता था
तभी नाज़ी बोली...
नाज़ी: भाभी आजकल बिजली जाने के भी फ़ायदे हो गये हैं ना (मेरी तरफ देखती हुई)
मैं: (डर से ना मे सिर हिलाते हुए ऑर मिन्नत वाले अंदाज़ मे नाज़ी को देखते हुए)
फ़िज़ा: (कुछ ना समझने वाले अंदाज़ मे) क्या मतलब...
नाज़ी: कुछ नही वो आजकल हम जैसे गाँव वाले भी शहर वालो की तरह मोमबत्ती जला के खाना खा सकते हैं जैसे फ़िल्मो मे दिखाते हैं...
फ़िज़ा: चल पागल (हँसती हुई)
नाज़ी: (मुझे देख कर हँसती हुई ऑर आँख मारते हुए) हमम्म्म...
फ़िज़ा: अच्छा नाज़ी तुम सबको एक बात बतानी थी (सिर झुका कर मुस्कुराते हुए)
नाज़ी: क्या भाभी...
फ़िज़ा: अब तू थोड़ी समझदार हो जा तुझे एक नये मेहमान की ज़िम्मेदारी उठानी है मेरे साथ...
नाज़ी: क्या मतलब
फ़िज़ा: मतलब ये कि तुम बुआ बनने वाली हो (शर्मा कर मुस्कुराती हुई)
नाज़ी: सचिईीई... (अपनी जगह से खड़ी होके फ़िज़ा को गले लगाते हुए) हाए कोई मुझे सम्भालो कहीं मैं खुशी से बेहोश ही ना हो जाउ...
मैं: बहुत-बहुत मुबारक हो फ़िज़ा जी...
फ़िज़ा: शुक्रिया...
नाज़ी: चलो क़ासिम भाई ने एक काम तो अच्छा किया
फ़िज़ा: चल बदमाश कही की (कंधे पर मुक्का मारते हुए)
नाज़ी: अच्छा भाभी सुबह बाबा को भी बता दूं वो भी ये सुनकर बहुत खुश होंगे...
फ़िज़ा: (शर्म से मुँह नीचे करते हुए) जो तुमको ठीक लगे...
इसी तरह बातें करते हुआ हमने खाना खाया ऑर रात को सब जल्दी सो गये... फ़िज़ा भी कल रात की चुदाई से बहुत खुश थी इसलिए वो भी मुझे बुलाने नही आई ऑर कुछ हम दोनो पर नींद का भी खुमार था इसलिए आज मैं ऑर फ़िज़ा भी सो गये थे अपने-अपने कमरो मे...
बाबा: ये बिजली वालो को रात मे भी सुकून नही है...
मैं: बाबा रुकिये मैं रोशनी के लिए मोमबत्ती लेके आता हूँ...
मैं मोमबत्ती लेने रसोई मे गया तो मुझे 2 नही बल्कि एक साया नज़र आया जो झुका हुआ था ऑर कोई समान निकाल रहा था डब्बे मे से
मुझे लगा कि फ़िज़ा है इसलिए मुझे शरारत सूझी ऑर मैने पिछे से जाके उसको पकड़ लिया इससे पहले कि वो चोंक कर चीखती मैने उसके मुँह पर हाथ रख दिया...
मैं: चिल्लाना मत मैं हूँ नीर (बहुत धीमी आवाज़ मे)
वो साए वाली लड़की: (वो खामोश होके खड़ी हो गई) हमम्म
मैं: एक पप्पी दो ना (धीमी आवाज़ मे)
वो साए वाली लड़की: (ना मे सिर हिलाते हुए)
तभी लाइट आ गई ऑर मैं हैरान-परेशान वही खड़ा का खड़ा ही रह गया मेरी समझ मे नही आ रहा था कि मुझसे ऐसी ग़लती कैसे हो गई क्योंकि वो लड़की फ़िज़ा नही नाज़ी थी जिसको मैं गले लगाए खड़ा था... लाइट आने के बाद जैसे ही मैने उसको देखा जल्दी से उससे अलग हो गया ऑर रसोई से बाहर निकल गया तेज़ कदमो के साथ...
फ़िज़ा: अर्रे तुम यहाँ क्या कर रहे हो मैं तो तुमको मोमबत्ती देने गई थी...
मैं: कुछ नही वो मैं भी मोमबत्ती लेने आया था
मैं तेज़ कदमो के साथ वापिस कमरे मे आ गया...
रात को खाने पर नाज़ी मुझे अजीब सी नॅज़ारो से देख रही थी लेकिन मुझमे उससे नज़ारे मिलाने की हिम्मत नही थी ना ही ये बात मैं किसी को बता सकता था... मैं बस जल्दी-जल्दी खाना ख़तम करके वहाँ से उठना चाहता था
तभी नाज़ी बोली...
नाज़ी: भाभी आजकल बिजली जाने के भी फ़ायदे हो गये हैं ना (मेरी तरफ देखती हुई)
मैं: (डर से ना मे सिर हिलाते हुए ऑर मिन्नत वाले अंदाज़ मे नाज़ी को देखते हुए)
फ़िज़ा: (कुछ ना समझने वाले अंदाज़ मे) क्या मतलब...
नाज़ी: कुछ नही वो आजकल हम जैसे गाँव वाले भी शहर वालो की तरह मोमबत्ती जला के खाना खा सकते हैं जैसे फ़िल्मो मे दिखाते हैं...
फ़िज़ा: चल पागल (हँसती हुई)
नाज़ी: (मुझे देख कर हँसती हुई ऑर आँख मारते हुए) हमम्म्म...
फ़िज़ा: अच्छा नाज़ी तुम सबको एक बात बतानी थी (सिर झुका कर मुस्कुराते हुए)
नाज़ी: क्या भाभी...
फ़िज़ा: अब तू थोड़ी समझदार हो जा तुझे एक नये मेहमान की ज़िम्मेदारी उठानी है मेरे साथ...
नाज़ी: क्या मतलब
फ़िज़ा: मतलब ये कि तुम बुआ बनने वाली हो (शर्मा कर मुस्कुराती हुई)
नाज़ी: सचिईीई... (अपनी जगह से खड़ी होके फ़िज़ा को गले लगाते हुए) हाए कोई मुझे सम्भालो कहीं मैं खुशी से बेहोश ही ना हो जाउ...
मैं: बहुत-बहुत मुबारक हो फ़िज़ा जी...
फ़िज़ा: शुक्रिया...
नाज़ी: चलो क़ासिम भाई ने एक काम तो अच्छा किया
फ़िज़ा: चल बदमाश कही की (कंधे पर मुक्का मारते हुए)
नाज़ी: अच्छा भाभी सुबह बाबा को भी बता दूं वो भी ये सुनकर बहुत खुश होंगे...
फ़िज़ा: (शर्म से मुँह नीचे करते हुए) जो तुमको ठीक लगे...
इसी तरह बातें करते हुआ हमने खाना खाया ऑर रात को सब जल्दी सो गये... फ़िज़ा भी कल रात की चुदाई से बहुत खुश थी इसलिए वो भी मुझे बुलाने नही आई ऑर कुछ हम दोनो पर नींद का भी खुमार था इसलिए आज मैं ऑर फ़िज़ा भी सो गये थे अपने-अपने कमरो मे...