10-11-2021, 12:59 PM
अपडेट-15
दुपेहर तक हम तीनो अपने-अपने कामो मे बिज़ी रहे तभी एक आदमी हमारे खेतो मे आता हुआ नज़र आया... जिससे फ़िज़ा ने सबसे पहले बात की ऑर फिर वो दोनो मेरी तरफ आने लगे...
आदमी: सलाम जनाब आपको छोटी मालकिन ने याद किया है...
मैं: वेलेकम... सलाम आप कौन हो ऑर कौनसी छोटी मालकिन...
आदमी: जी मेरा नाम खुदा बक्ष है मुझे सरपंच जी की बेटी ने भेजा है वो आपसे मिलना चाहती है...
मैं: अच्छा उनको बोलो थोड़ी देर मे आता हूँ
वो आदमी इतना सुनकर वापिस चला गया ऑर फ़िज़ा मुझे गुस्से से खा जाने वाली नज़रों से देखने लगी... मुझे समझ नही आ रहा था कि फ़िज़ा मुझे ऐसे गुस्से से क्यो देख रही है तभी वो वापिस पलट गई ऑर वापिस अपने काम वाली जगह जाने लगी...
मैं: फ़िज़ा क्या हुआ ऐसे बिना कुछ बोले कहाँ जा रही हो बात तो सुनो...
फ़िज़ा: (गुस्से मे) क्या है... जाओ अपनी छोटी मालकिन के पास वो तुम्हारा इंतज़ार कर रही है मेरे पिछे क्यो आ रहे हो...
मैं: अर्रे हुआ क्या है बताओ तो सही गुस्सा किस बात पर हो मैं तुम्हारे लिए उसके पास जा रहा हूँ तुम तो हर वक़्त गुस्सा ही करती रहती हो...
फ़िज़ा: अच्छा जी मैं गुस्सा करती हूँ तुम हवेली गये ऑर मुझे बताया भी नही वहाँ जाके क़ासिम की बात भी कर ली फिर भी मुझे बताना ज़रूरी नही समझा ऑर मैं बिना बात के गुस्सा कर रही हूँ क्यो हैं ना...
मैं: फ़िज़ा वो लड़की क़ासिम को जैल से निकलवाने मे हमारी मदद करेगी इसलिए मैं उसके पास गया था ऑर मैं तुमको बताना भूल गया था नाज़ी को सब पता है जाके पूछ लो...
फ़िज़ा: मैं क्यो पुछू नाज़ी से मुझे तुमको बताना चाहिए था ना ऑर क़ासिम को निकलवाने की कोई ज़रूरत नही है...
मैं: (चोन्क्ते हुए) क्यो तुम नही चाहती की वो बाहर आए ऑर तुम्हारे साथ रहे...
फ़िज़ा: नही मैं बस ये नही चाहती कि तुम मुझसे दूर हो जाओ...
मैं: क्या मतलब
फ़िज़ा: ज़ाहिर सी बात है कि क़ासिम अगर बाहर आएगा तो हम दोनो जैसे अब मिलते हैं वैसे नही मिल पाएँगे ऑर वैसे भी क़ासिम से मुझे सिर्फ़ आँसू ऑर तक़लीफ़ ही मिली है जो खुशी मुझे तुमसे मिली वो मैं खोना नही चाहती बस...
मैं: ठीक है जैसे तुम बोलोगि वैसा ही होगा...
फ़िज़ा: अब तुम छोटी मालकिन के पास भी मत जाना ठीक है...
मैं: (हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म अब तो खुश हो...
फ़िज़ा: हमम्म (मुस्कुराते हुए)
अभी हम बात की कर रहे थे कि नाज़ी भी हमारे पास आ गई...
नाज़ी: क्या हुआ नीर वो आदमी कौन था
मैं: वो हवेली से आया था
फ़िज़ा: (मुझे चुप रहने का इशारा करके नही मे सिर हिलाते हुए) कुछ नही वो बस सरपंच ने ऐसे ही आदमी भेजा था कि हम क़ासिम के लिए हुए पैसे देंगे या नही तो मैने मना कर दिया कि हमारे पास पैसे नही है... जब होंगे तो दे देंगे...
नाज़ी: ओह्ह अच्छा
फिर हम तीनो अपने-अपने कामों मे लग गये ओर शाम को खेत से घर आ गये...
...............
दुपेहर तक हम तीनो अपने-अपने कामो मे बिज़ी रहे तभी एक आदमी हमारे खेतो मे आता हुआ नज़र आया... जिससे फ़िज़ा ने सबसे पहले बात की ऑर फिर वो दोनो मेरी तरफ आने लगे...
आदमी: सलाम जनाब आपको छोटी मालकिन ने याद किया है...
मैं: वेलेकम... सलाम आप कौन हो ऑर कौनसी छोटी मालकिन...
आदमी: जी मेरा नाम खुदा बक्ष है मुझे सरपंच जी की बेटी ने भेजा है वो आपसे मिलना चाहती है...
मैं: अच्छा उनको बोलो थोड़ी देर मे आता हूँ
वो आदमी इतना सुनकर वापिस चला गया ऑर फ़िज़ा मुझे गुस्से से खा जाने वाली नज़रों से देखने लगी... मुझे समझ नही आ रहा था कि फ़िज़ा मुझे ऐसे गुस्से से क्यो देख रही है तभी वो वापिस पलट गई ऑर वापिस अपने काम वाली जगह जाने लगी...
मैं: फ़िज़ा क्या हुआ ऐसे बिना कुछ बोले कहाँ जा रही हो बात तो सुनो...
फ़िज़ा: (गुस्से मे) क्या है... जाओ अपनी छोटी मालकिन के पास वो तुम्हारा इंतज़ार कर रही है मेरे पिछे क्यो आ रहे हो...
मैं: अर्रे हुआ क्या है बताओ तो सही गुस्सा किस बात पर हो मैं तुम्हारे लिए उसके पास जा रहा हूँ तुम तो हर वक़्त गुस्सा ही करती रहती हो...
फ़िज़ा: अच्छा जी मैं गुस्सा करती हूँ तुम हवेली गये ऑर मुझे बताया भी नही वहाँ जाके क़ासिम की बात भी कर ली फिर भी मुझे बताना ज़रूरी नही समझा ऑर मैं बिना बात के गुस्सा कर रही हूँ क्यो हैं ना...
मैं: फ़िज़ा वो लड़की क़ासिम को जैल से निकलवाने मे हमारी मदद करेगी इसलिए मैं उसके पास गया था ऑर मैं तुमको बताना भूल गया था नाज़ी को सब पता है जाके पूछ लो...
फ़िज़ा: मैं क्यो पुछू नाज़ी से मुझे तुमको बताना चाहिए था ना ऑर क़ासिम को निकलवाने की कोई ज़रूरत नही है...
मैं: (चोन्क्ते हुए) क्यो तुम नही चाहती की वो बाहर आए ऑर तुम्हारे साथ रहे...
फ़िज़ा: नही मैं बस ये नही चाहती कि तुम मुझसे दूर हो जाओ...
मैं: क्या मतलब
फ़िज़ा: ज़ाहिर सी बात है कि क़ासिम अगर बाहर आएगा तो हम दोनो जैसे अब मिलते हैं वैसे नही मिल पाएँगे ऑर वैसे भी क़ासिम से मुझे सिर्फ़ आँसू ऑर तक़लीफ़ ही मिली है जो खुशी मुझे तुमसे मिली वो मैं खोना नही चाहती बस...
मैं: ठीक है जैसे तुम बोलोगि वैसा ही होगा...
फ़िज़ा: अब तुम छोटी मालकिन के पास भी मत जाना ठीक है...
मैं: (हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म अब तो खुश हो...
फ़िज़ा: हमम्म (मुस्कुराते हुए)
अभी हम बात की कर रहे थे कि नाज़ी भी हमारे पास आ गई...
नाज़ी: क्या हुआ नीर वो आदमी कौन था
मैं: वो हवेली से आया था
फ़िज़ा: (मुझे चुप रहने का इशारा करके नही मे सिर हिलाते हुए) कुछ नही वो बस सरपंच ने ऐसे ही आदमी भेजा था कि हम क़ासिम के लिए हुए पैसे देंगे या नही तो मैने मना कर दिया कि हमारे पास पैसे नही है... जब होंगे तो दे देंगे...
नाज़ी: ओह्ह अच्छा
फिर हम तीनो अपने-अपने कामों मे लग गये ओर शाम को खेत से घर आ गये...
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